Tuesday, August 30, 2011

अन्ना के बाद -'अल्ला जाने क्या होगा आगे ..'


लोकपाल विधेयक के इतिहास से वाकिफ भाजपा को इस बार इस विधेयक से काफी उम्मीद हैं। उम्मीदें इस हद तक जवान हो गई हैं कि वह 2014 के पूर्व ही लोकसभा चुनाव के सपने भी बुनने लगी है। यही वजह है कि विधेयक को लेकर अन्ना हजारे के नेतृत्व में चले आंदोलन को मिले व्यापक जन समर्थन तथा भारी थूकम-फजीहत के बाद कांग्रेसनीत यूपीए सरकार द्वारा अन्ना के ड्राफ्ट पर प्रस्ताव पारित हो कर स्टैंडिंग कमेटी में भेजे जाने पर भाजपा की बांछें खिल गई हैं।
हिंदू विचारधारा से ओत-प्रोत भाजपा का नेतृत्व शुभ-अशुभ, ग्रह-गोचर आदि को मानता है इसलिए अंधविश्वास से खुद को कभी अलग नहीं कर सका। हालांकि उपमुख्यमंत्री व भाजपा के वरिष्ठ नेता सुशील कुमार मोदी अपने बारे में बेबाकी से कहते हैं कि ग्रह दशा अथवा जंत्र-यंत्र आदि में उनका कोई विश्वास नहीं है। वैसे लोकपाल बिल के साथ जो अशुभ संकेत हैं उस पर उनकी नजर है। बोल पड़े - 'लोकपाल विधेयक आठ बार यह बिल संसद में पेश हुआ मगर पारित नहीं हो सका, अलबत्ता सरकारें गिर गई व लोकसभा भी कई बार भंग हुई ।'
अतीत में झांके तो 1968 से जिन सरकारों ने बिल को नहीं छुआ वहीं अपना कार्यकाल पूरा कर सकीं। कांग्रेस सरकार तक ही यह बुरे ग्रह सीमित नहीं रहे। जनता पार्टी सरकार में भी 1977 में विधेयक पेश हुआ मगर पारित होने से पहले ही सरकार चली गई और लोकसभा भी भंग कर दी गई। इसी प्रकार 1989 में वीपी सिंह सरकार ने इस विधेयक को पेश किया, लेकिन सरकार भी गिर गई और लोकसभा भंग हो गई। 1996 में देवेगौड़ा सरकार ने विधेयक पेश किया, वह सरकार भी लुढ़क गई। वाजपेयी सरकार ने 1998 में इस विधेयक को पेश किया, लेकिन उनकी भी सरकार लोकसभा को साथ लिये हुए गिर गई। दोबारा सत्ता में आने पर 2001 में एनडीए सरकार ने बिल पेश नहीं किया मगर वह पास नहीं हुआ। फिर अगले चुनाव में सत्ता हाथ से फिसल गई। इस बार मनमोहन सरकार जबर्दस्त दबाव के बीच बिल को पारित कर कानून बनाने का संकल्प ले चुकी है-'अल्ला जाने क्या होगा आगे ..।

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