Friday, August 19, 2011

जन लोकपाल से कम कुछ मंजूर नहीं


सरकार के अहंकार और हर वार का दमन करते हुए तिहाड़ जेल से रामलीला मैदान तक पहुंचे अन्ना हजारे और उनकी टीम ने जंग का दायरा बढ़ा दिया है। अन्ना के सत्याग्रह से सहमी सरकार मानो अपने खोल में सिमटती जा रही है। तेज बारिश के बावजूद अन्ना हजारे के लिए दिल्ली में जनता सड़कों पर उतर आई। उससे ऊर्जा पाकर टीम अन्ना ने रामलीला मैदान से हुंकार भरी कि जन लोकपाल विधेयक से कम पर उन्हें कुछ मंजूर ही नहीं। अपने आमरण अनशन के चौथे दिन अन्ना ने 30 अगस्त से जन लोकपाल के लिए जेल भरो आंदोलन की घोषणा कर पहले से ही बैकफुट हो चुकी सरकार की मुसीबतें और बढ़ा दीं हैं।
चिंतन और मंथन के बाद भी सरकार अंधेरे में ही तीर चला रही है। बीच का रास्ता निकालने के लिए कानून मंत्री सलमान खुर्शीद ने टीम अन्ना से संसद की स्थायी समिति के सामने बात रख, सरकार की तरफ से पेश किए गए लोकपाल में संशोधन का प्रस्ताव रखा। उन्होंने दूसरा विकल्प यह भी रखा कि निजी विधेयक के जरिए भी संसद में कोई दूसरा प्रस्ताव दिया जा सकता है। सरकार की पूरी कोशिश यह थी कि वह अपनी तरफ से बातचीत के रास्ते खोले और पहले तो कांग्रेस बनाम अन्ना हो चुकी लड़ाई को अन्ना बनाम संसद कर दिया जाए।
खुर्शीद ने कहा भी कि टीम अन्ना के सुझाव खारिज नहीं किए गए हैं। वह संसदीय समिति के समक्ष बात रखें तो संसद में पेश किए गए लोकपाल विधेयक में चर्चा के बाद सभी यथासंभव संशोधन किए जाएंगे। कोशिश यही थी कि टीम अन्ना संसदीय समिति में सभी राजनीतिक दलों के नेताओं से संवाद करे, जिससे संसद बनाम अन्ना की लड़ाई को धार दी जा सके। मगर टीम अन्ना ने शाम को ही रामलीला मैदान से यह कहकर सरकार का दांव काट दिया कि'सत्ताधारी दल के पास बहुमत है, वह जन लोकपाल विधेयक खुद ही पारित करा सकती है।'
शाम को प्रधानमंत्री, राहुल गांधी, प्रणब मुखर्जी, अहमद पटेल और पी चिदंबरम के बीच इस विकट स्थिति पर चर्चा भी हुई, लेकिन इससे निपटने का कोई समाधान नहीं है। सरकार की आस सिर्फ इस बात पर टिकी है कि आंदोलन दिन बढ़ने के साथ-साथ हल्का होता जाएगा। इसके अलावा टीम अन्ना के खिलाफ व्यक्तिगत बयानबाजी से जनता में गए गलत संदेश को दूर करने के लिए नुकसान से भरपाई की कोशिशें भी शुरू की गई।
इसीलिए, सार्वजनिक रूप से अन्ना और उनकी टीम के प्रति हुई तल्खी के लिए कांग्रेस सांसद और दिल्ली की मुख्यमंत्री शीला दीक्षित के पुत्र संदीप दीक्षित ने इस मुद्दे पर खेद भी जताया। उन्होंने अन्ना की गिरफ्तारी का दोष पुलिस पर मढ़ते हुए उसे गलत भी करार दिया। एक शीर्ष नेता ने कहा भी कि 'दलदल में जितना हाथ-पैर मारो, उतना आदमी धंसता है। सवाल लोकतंत्र और संविधान का है, लिहाजा जनता को भी देखने दें कि अन्ना हजारे की टीम कैसे ज्यादती पर उतारू है।'
मैं रहूं, ना रहूं.. क्रांति की मशाल जलती रहे
'भारत माता की जय! प्यारे देशवासियो, यह दूसरी क्रांति की शुरुआत है और मैं रहूं, ना रहूं.. क्रांति की यह मशाल जलती रहना चाहिए। जब तक जनलोकपाल विधेयक पारित नहीं होगा, तब तक हम अनशन स्थल नहीं छोड़ेंगे।
अंग्रेजों के जाने के साथ ही हमें आजादी मिली, लेकिन देश से भ्रष्टाचार खत्म नहीं हुआ। आजादी के 64 साल बाद भी हमें पूरी स्वतंत्रता नहीं मिली है। जब तक हम भ्रष्टाचार को खत्म नहीं कर देते, हमारी आजादी अधूरी है। हमारा संघर्ष अधूरा है। ..यह आजादी की दूसरी लड़ाई है। हमें सिर्फ लोकपाल ही नहीं, बल्कि पूरा परिवर्तन लाना है। देश में गरीबों को न्याय दिलाना है।
चार दिन में मेरा वजन भले ही तीन किलो घट गया है, लेकिन आप लोग जो आंदोलन कर रहे हैं, उससे मुझे ऊर्जा मिल रही है। वजन चाहे 10 किलो भी कम क्यों न हो जाए, हमारा जोश कम नहीं होगा।
जिस तरह जापान राख के ढेर से फिर उठ खड़ा हुआ। हमें भी उस तरह फिर से उठ खड़े होना है। अगर देश का युवा जाग गया तो देश का भविष्य उज्जवल है। जिन गद्दारों ने इस देश को लूटा है, हम उन्हें बर्दाश्त नहीं करेंगे। मैं आप लोगों से अपील करता हूं कि हिंसा न करें और सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान न पहुंचाएं। हमारे आंदोलन का मकसद देश को भ्रष्टाचार मुक्त करना है।

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