Wednesday, February 27, 2013

अपराध नियंत्रण गंभीर चुनौती



अपराध पर नियंत्रण हर सरकार और प्रशासन के लिए वाकई एक गंभीर चुनौती होती है। अपराधमुक्त समाज एक आदर्श स्थिति हो सकती है, मगर व्यवहार में यह संभव नहीं है। ऐसे में अपराध नियंत्रित समाज की बातें होनी चाहिए। इसके लिए अनुशासित व लोकोन्मुखी पुलिसिंग की जरूरत है। इलेक्ट्रॉनिक मीडिया, प्रिंट मीडिया एवं मानवाधिकार के दौर में सही तौर तरीके विकसित कर पुलिस को कार्य करने होंगे। पटना में आॅल इंडिया पुलिस कांग्रेस का आयोजन किया गया है। उम्मीद की जानी चाहिए कि इस कांग्रेस से बिहार पुलिस की सोच व तरीके में बदलाव आएगा।  पुलिस को कानून के हिसाब से चलते हुए आधुनिक तरीकों का सहारा लेना चाहिये। एक लाख की आबादी पर 125 पुलिसकर्मी की राष्ट्रीय औसत को बिहार में 44 हजार पुलिसकर्मियों की नियुक्ति कर शीध्र ही पूरा करने का भरोसा सरकार की ओर से दिया गया है। इसके साथ ही अनुसंधान का काम एवं विधि व्यवस्था संधारण का काम अलग-अलग हो, इसके लिए पटना शहर से कार्य प्रारंभ किया गया है, जो पूरे राज्य में लागू होगा। इसके लिए सरकार बड़े पैमाने पर पुलिस इंस्पेक्टर की बहाली करने जा रही है। सामान्य अपराधों की तरह ही आर्थिक अपराध यानी भ्रष्टाचार पर भी कारगर नियंत्रण और ससमय समुचित कार्रवाई की जरूरत है। सुप्रीम कोर्ट ने भी बार-बार कहा है कि भ्रष्टाचार समाज के लिए कैंसर है। भ्रष्टाचार धीरे-धीरे पूरे समाज को खत्म कर रहा है। भ्रष्टाचार के मामले के निष्पादन में तेजी होनी चाहिए।इस दिशा में बिहार की पहल सराहनीय है। बिहार में स्पेशल कोर्ट एक्ट लागू किया गया है। बिहार ही एक ऐसा अनोखा राज्य है, जहॉ पांच लोकसेवकों की संपति जब्त हुई है और उसका बेहतर उपयोग करते हुये उसमें स्कूल खोला गया है। आर्थिक अपराध को भी नियंत्रित करना पुलिस की चुनौती है। वैसे सरकार का मानना है कि वह आर्थिक अपराधियों पर भी सरकार शिकंजा कस रही है। बहुत से लोग शराब का नाजायज धंधा करते हैं। लोगों के पास हजारों करोड़ की इकोनॉकी है, इसका प्रयोग वे एशोआराम तथा अपराध के लिए करते हैं। पुलिस की यह चुनौती है कि आधुनिक तकनीक के सहारे वैज्ञानिक ढ़ंग से अनुसंधान कर मामले का शीघ्र निष्पादन करें। पुलिस हमेशा समाज के सुरक्षा के लिए अपराध एवं अपराधकर्मियों पर नियंत्रण कायम रखे, इसके लिए सरकार को उन्हें हर सुविधा उपलब्ध कराना चाहिए।  पुलिस बल भी पर्याप्त संख्या में उपलब्ध होना चाहिए।  यह उल्लेखनीय है कि सूबे में पिछले सात वर्षों में 79 हजार से अधिक अपराधियों को सजा मिली है। बिहार का कनविक्शन दर देश का सर्वाधिक है। वर्ष 2006 में सबसे पहले आर्म्स एक्ट के मामले में स्पीडी ट्रायल के द्वारा कनविक्शन होने शुरू हुये। संगीन अपराध अपहरण, हत्या, डकैती, बलात्कार में भी स्पीडी ट्रायल शुरू हुआ। अपराधियों को स्पीडी ट्रायल के माध्यम से सजा दिलाने में पुलिस ने महत्वपूर्ण भूमिका अदा की, जबकि न्यायालय ने स्पीडी ट्रायल का मॉनिटरिंग करना शुरू किया। स्पीडी ट्रायल का तौर तरीका जारी रहे। गवाहों को ससमय उपस्थित किया जाय तथा अपील में भी तेजी आनी चाहिये, इससे ससमय निर्णय होगा। पहले सरकारी गवाह समय पर उपस्थित नहीं होते थे, अन्य गवाह गवाही ही नहीं देते थे। अब गवाही देने के लिये लोग तत्पर रहते हैं। सरकारी अधिकारियों को सिर्फ एक मुहलत दी गयी है कि वे गवाही देने के लिये एक बार से अधिक अनुपस्थित नहीं हो सकते। पुलिस को भी अपने तौर तरीकों में बदलाव लाने की जरूरत है।

Tuesday, February 26, 2013

जनाकांक्षाओं पर बेपटरी रेल



रेल बजट से आम लोगों की उम्मीदें जुड़ी होती हैं। आम तौर हर व्यक्ति किसी न किसी रूप में रेलवे का उपभोक्ता होता है। लाखों कर्मियों वाली रेलवे से यूं तो लाखों लोगों की रोजी-रोटी चलती है। पूरे भारत में करीब साढ़े सात हजार से ज्यादा स्टेशन हैं तो करीब 7800 लोकोमेटिव रेलवे के पास हैं। हर रोज भारतीय रेल करीब चौदह हजार ट्रेनें विभिन्न जगहों से चलाती है। भारतीय रेल के पास चालीस हजार कोच और सवा तीन लाख से ज्यादा वैगन है। हर रोज करीब ढ़ाई करोड़ यात्री भारतीय रेल में सफर करते हैं और एक करोड़ टन की माल ढुलाई हर रोज रेल के माध्यम से ही की जाती है। भारतीय रेल के पास 18 राजधानी और करीब 26 शताब्दी ट्रेनें चलाती है। लगातार घाटे का रोना रोने के साथ बुनियादी ढांचे की कमी रेलवे में साफतौर पर नजर आती है। अफसोस की बात यह है कि पिछले एक वर्ष के दौरान रेल मंत्री तो तीन बदल गए लेकिन नहीं बदली तो वह है भारतीय रेल की हालत।वर्ष 2011 में जब तृणमूल कांग्रेस प्रमुख ने बतौर रेलमंत्री रेल बजट पेश किया था तो उन्होंने कई नई ट्रेन चलाने के वादे किए साथ ही रेल किराए न बढ़ाकर यात्रियों को राहत देने की कोशिश की। इसके अलावा उन्होंने अपने बजट में रेल सुविधाओं में बढ़ोतरी की बातें कहीं। लेकिन साल गुजर गया और हुआ कुछ नहीं। हालांकि कुछ नई ट्रेनें जरूर चलाई गई लेकिन खस्ता हाल होती पटरियों को बदलने के बारे में न तो कोई रेल बजट में प्लानिंग ही की गई न ही इन पर इस बार कोई तवज्जो दी गई है। इसका ही नतीजा रहा है कि हर भारतीय रेलवे को बार-बार दुर्घटनाओं का शिकार होना पड़ता है। हालत यह हुई है कि रेल के जरिए विजन 2020 की बातें कहने वाला रेल मंत्रालय हकीकत से कहीं दूर होता चला गया है। हालांकि इस विजन के लिए चौदह लाख करोड़ रुपये जुटाने की दरकार थी। वैसे सुरक्षा व संरक्षा रेलवे के लिए सबसे बड़ी चुनौती है। भारतीय रेल की हालत में सुधार का वादा करने वाली सरकार स्टेशनों के रखरखाव में हर बार विफल होती आई है। इस बार भी इस मामले में निराशा ही हाथ लगी है।

Saturday, February 23, 2013

एक बार फिर अलर्ट



हैदराबाद धमाके में जांच एजेंसियों को अभी तक कोई ऐसा सुराग नहीं मिला है जिसके आधार पर यह कहा जाए असली दोषियों तक वह पहुंच चुकी है। इस बीच गृह मंत्रालय ने देश के छह बड़े शहरों को एक बार फिर अलर्ट भेजा है। हैदराबाद धमाके के बाद गृह मंत्रालय ने शनिवार को छह बड़े शहरों के लिए अलर्ट जारी किया है। जिन शहरों के लिए अलर्ट जारी किया गया है उनमें एक बार फिर हैदराबाद का नाम है। हैदराबाद के अलावा बैंगलोर, दिल्ली, मुंबई, चेन्नई और कोलकाता जैसे शहरों को भी अलर्ट जारी किया गया है। अलर्ट में कहा गया है कि इन राज्यों की पुलिस केंद्र सरकार की एजेंसियों के साथ तालमेल से काम करें। 21 फरवरी को हैदराबाद में हुए बम धमाकों के लिए भी गृह मंत्रालय ने 19 फरवरी को हाई अलर्ट जारी किया था, लेकिन इसके बावजूद धमाके को रोका नहीं जा सका। हैदराबाद बम धमाकों के आरोपियों को अभी तक पकड़ा नहीं जा सका है। गृह मंत्रालय का कहना है कि कई आतंकी अभी भी गिरफ्त से बाहर हैं और आतंकी हमले की साजिश रच रहे हैं। दोहरे बम विस्फोट से दहल उठे शहर के व्यस्त दिलसुखनगर इलाके में स्थितियां पहले की तरह सामान्य हो रही है। दुकानें और सड़क किनारे में लगने वाली खाने पीने की दुकानों में फिर से कामकाज शुरू हो गया है। बस स्टैंड के करीब आतंकी हमले के दो दिन बाद यातायात भी शनिवार को सामान्य हो गया और कारोबारी प्रतिष्ठान भी खुल गए हैं। दिलसुखनगर में काफी शैक्षिक संस्थान, कोचिंग सेंटर, सरकारी दफ्तर, कई मॉल और कई वाणिज्यिक प्रतिष्ठान हैं। धमाकों के बाद से इलाके में भय का माहौल है। बावजूद, जिंदगी चल रही है। इस तरह की घटनाएं फिर नहीं होनी चाहिए।ऐसी लोगों की उम्मीदें और अपेक्षाएं हैं। बहरहाल, सरकारी उस्मानिया अस्पताल में अनेक घायलों में कुछ की स्थिति गंभीर बनी हुई है। दूसरी ओर केन्द्र व राज्य की सरकारें कई-कई घोषणाएं कर रही हैं,बयान दिए जा रहे हैं। भाजपा के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी ने बीते गुरुवार को हैदराबाद में हुए दोहरे बम धमाकों के लिए पाकिस्तान को जिम्मेदार ठहराते हुए कहा है कि वह भारत के खिलाफ छद्म युद्ध में शामिल है। पड़ोसी देश बीते कुछ दशक में भारत के खिलाफ युद्ध छेड़कर कामयाब नहीं हुआ तो उसने छद्म युद्ध शुरू कर दिया है। उन्होंने कहा, पड़ोसी देश ने भारत में समस्या पैदा करने के लिए आतंकवाद का सहारा लिया है। इसमें कोई संदेह नहीं है कि हैदराबाद विस्फोटों में पाकिस्तान का हाथ है। पाकिस्तान को वाजपेयी और मुशर्रफ के बीच बैठक के दौरान की गई उस प्रतिबद्धता पर अमल करना चाहिए कि भारत के खिलाफ आतंकवादी घटनाओं के लिए वह अपनी सरजमीं का इस्तेमाल नहीं करने देगा। वैसे भी अफजल गुरु की फांसी के बाद जिस तरह से बदला लेने की धमकियां दी गई थी, उसके बाद पाकिस्तान हैदराबाद विस्फोटों से खुद को अलग भी नहीं कर सकता है।

Tuesday, February 19, 2013

अगले दो दिन पड़ेंगे भारी



अगले दो दिन भारी पड़ने वाले हैं। बुधवार से देश भर के ट्रेड यूनियनों ने दो दिनों के हड़ताल की घोषणा की है। इसमें एक अनुमान के मुताबिक ढाई करोड़ लोगों के हड़ताल पर जाने की आशंका है। हड़ताल की वजह से बैंकिंग, इंश्योरेंस, इनकम टैक्स, टेलीकॉम, पोस्टल, तेल और गैस सेक्टर के कामकाज पर असर पड़ेगा। बैंकों में तो अगले दो दिन काम नहीं ही होंगे। इसके अलावा सरकारी बसों, आॅटो और टैक्सी को लेकर भी मुसीबतें झेलने पड़ सकती है। दरअसल अगले दो दिनों तक देश के ठप होने की आशंका है। अगले दो दिनों तक बैंकों में नहीं हो पाएगा आपका कोई काम। ट्रेड यूनियनों ने अगले दो दिन तक देशव्यापी हड़ताल का आह्वान किया है। 20 और 21 फरवरी को भारतीय मजदूर संघ और आॅल इंडिया ट्रेड यूनियन कांग्रेस की तरफ से आह्वान की गई इस हड़ताल में 11 सेंट्रल यूनियनें हिस्सा लेंगी। दो दिन की इस हड़ताल में देश भर के ढाई करोड़ लोगों के शामिल होने का अनुमान है। यानि आने वाले दो दिन देश पर भारी पड़ने वाले हैं। इस हड़ताल की खबर से केंद्र से लेकर राज्य सरकारों तक में खलबली मच गई है। सवाल ये है कि आखिर वह ट्रेड यूनियनों की सभी मांगे कैसे पूरी करेगी। कर्मचारी यूनियनों की मांग है कि तेल की कीमतों को बढ़ने से रोका जाए। निजीकरण, आउट सोर्सिंग, बढ़ती कीमतें और महंगाई पर लगाम लगे। कर्मचारियों की तनख्वाह बढ़ाई जाए। रोजगार के नियम लागू किए जाएं। न्यूनतम मजदूरी तय की जाए। बैंकों में कर्मचारियों के वेतन संशोधन लागू हों। खुदरा क्षेत्र में खाली पड़े पद भरे जाएं। सभी को पेंशन, भविष्य निधि और बोनस मिले। एफडीआई वापस लिया जाए। विदेशों में जमा कालाधन वापस लाया जाए। ट्रेड यूनियनों की मांग लंबी चौड़ी है और उन्हें देश के हर कोने से इन मागों पर समर्थन मिलने की भी उम्मीद नजर आ रही है। मुंबई में भले ही आॅटो, टैक्सी और बेस्ट चले। लेकिन दिल्ली, उत्तर प्रदेश, मध्यप्रदेश, हिमाचल, हरियाणा, पंजाब और पश्चिम बंगाल और बिहार जैसे कई राज्यों में आम लोगों को फजीहत झेलनी पड़ सकती है।

Sunday, February 17, 2013

राष्ट्रपति की वाजिब चिन्ता



संसद एवं राज्य विधानसभाओं की कार्यवाही में बारबार बाधाएं डाले जाने की बढती प्रवृत्ति पर चिंता जताते हुए राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने कहा है कि ये व्यवधान ऐसे मामूली मुद्दों को लेकर होता है जिनका समाधान किया जा सकता है। संसद में बाधाओं के प्रचलन बनने का जिक्र करते हुए मुखर्जी ने कहा, ऐसा न केवल संसद में बल्कि राज्य विधानसभाओं में भी हो रहा है। राष्ट्रपति ने कहा कि उन्होंने इन बाधाओं के उपचार पर भी गौर करने का प्रयास किया और इस प्रक्रिया में महसूस हुआ कि अधिकतर समय विवाद इस बात पर होता है कि किसी मुद्दे पर संसद के किस नियम के तहत चर्चा हो। उन्होंने कहा कि अधिकतर अवसरों पर संसद के किसी भी सदन में विपक्ष के नेता इस आधार पर आपत्ति करते हैं कि किस नियम के तहत चर्चा हो। पिछले कुछ समय से विपक्ष द्वारा संसद की कार्यवाही को बारबार स्थगित किए जाने के परिप्रेक्ष्य में मुखर्जी की यह टिप्पणी आयी है। उन्होंने कहा, मेरे हिसाब से इस समस्या का समाधान करना बहुत कठिन नहीं है । राष्ट्रपति बनने से पहले लोकसभा के नेता रहे मुखर्जी सरकार की तरफ से ऐसे गतिरोध को दूर करने में प्रमुख भूमिका निभाते रहे हैं। उन्होंने कहा कि संविधान निमार्ताओं ने यह नहीं सोचा था कि इस तरह की घटनाएं (बाधा) संसद में प्रचलन बन जायेंगी। मुखर्जी ने कहा, इन विकृतियों को दूर किया जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि इन बाधाओं के कारण वित्तीय मामलों पर लोकसभा में चर्चा करने की शक्ति का भी पूरा उपयोग नहीं हो पाता है। राष्टÑपति की चिन्ता से सहमति बनती है। आमतौर पर देश की सर्वोच्च पंचायत संसद से लेकर राज्य विधान मंडलों तक में मामूली मुद्दों को लेकर गतिरोध की स्थिति कायम होती है और जनता के बहुमूल्य सवाल और मुद्दे पीछे छूट जाते हैं। कई बार तो यह भी देखा गया है कि मुद्दे आधारित विरोध न होकर वह व्यक्ति तक सीमित हो कर रह जाता है। मसलन जार्ज फर्नांडीस या फिर पी चिदम्बरम का संसद में बॉयकाट और उनको सदन के अंदर बोलने न देने की जिद। इसी तरह से राज्य विधानमंडलों में भी मामूली बातों को लेकर सदन की कार्यवाही को कई-कई दिनों तक बाधित कर दिया जाता है। दरअसल आम सहमति के आधार पर इस समस्या का निराकरण ढूंढा जाना चाहिए।

विरोध के बाद सूर्य नमस्कार हुआ वैकल्पिक



 बिहार सरकार ने स्कूलों में सूर्य नमस्कार को वैकल्पिक बना दिया है। सोमवार को बिहार के सभी जिलों में चौथी से सातवीं कक्षा तक के स्कूली बच्चों को सूर्य नमस्कार करना है। लेकिन मुस्लिम संगठन सूर्य नमस्कार को जरूरी बनाए जाने का विरोध कर रहे हैं। अब बिहार सरकार ने सभी जिला शिक्षा अधिकारियों को नया सर्कुलर जारी किया है। जिसके तहत इसे वैकल्पिक कर दिया गया है। इस साल देश भर में स्वामी विवेकानंद की 150 वी जयंती मनाई जा रही है और इसी के तहत सोमवार को बिहार के हर स्कूल में सूर्य नमस्कार किया जाना है। इमारत-ए-शरिया के सचिव मौलाना अनिसुर्रहमान कासमी का कहना है कि स्कूलों में सेकुलर शिक्षा दी जाती है और इसमें किसी धार्मिक चीज को नहीं लाना चाहिए। बकौल अनिसुर्रहमान सरकारी स्कूलों में किसी भी मौके पर सूर्य नमस्कार को लाजमी करार देना गलत है। हालांकि, अब सरकार के जरिए इसे वैकल्पिक करने के फैसले का स्वागत किया है। इसके साथ ही जदयू के सांसद अली अनवर ने कहा कि सरकार किसी दबाव में नहीं है और अब सरकार ने इसे वैकल्पिक कर दिया है इसलिए इसपर हो-हल्ला करना गलत है।

Friday, February 15, 2013

गरीबों को भोजन का अधिकार यानी चुनावी चाल



खाद्य सुरक्षा विधेयक के प्रावधानों पर भले ही कई राज्य सरकारों ने आपत्ति जताई हो लेकिन आने वाले लोकसभा चुनावों को देखते हुए केन्द्र सरकार कोई रिस्क नहीं उठाना चाहती। वैसे भी बढ़ती मंहगाई और भ्रष्टाचार के मुद्दे पर सरकार पहले से बैकफुट पर है। ऐसे में अंत्योदय अन्न योजना से यूपीए सरकार अपनी अगली पारी खेलना चाहती है। दरअसल संसदीय स्थायी समिती ने सुझाव दिया था कि प्रति व्यक्ति 5 किलों अनाज एकसमान मूल्य पर उपलब्ध कराई जाए। लेकिन केन्द्र सरकार ने इसे बढ़ाकर प्रति व्यक्ति 7 किलों करने का प्रस्ताव दिया है। अगर ये बिल संसद के दोनों सदनों में पास हो जाता है तो भारत में गरीबी रेखा से नीचे वाले परिवारों को समर्थन मूल्य से आधी कीमतों पर अनाज उपलब्ध कराया जाएगा दरअसल संसदीय स्थायी समिती ने इन विधेयक में कुछ संशोधन किए थे। लेकिन यूपीए सरकार ने इस संशोधनों में अंत्योदय अन्न योजना और मौजूदा खाद्यान्न आवंटन व्यवस्था को जारी रखा है। इस संशोधित विधेयक के संसद के बजट सत्र में पेश किया जाएगा। मौजूदा समय में अंत्योदय अन्न योजना के तहत अति निर्धन लोगों को प्रति परिवार हर माह 35 किलोग्राम खाद्यान्न प्राप्त होता है जिसमें उसे 2 रुपये प्रति किलो की दर से गेहूं और 3 रुपये प्रति किलो की दर से चावल मिलता है। इस बिल को पास कराने के लिए केंद्रीय खाद्य मंत्री के वी थॉमस ने हाल ही में राज्य सरकार के प्रतिनिधियों के साथ बैठक की थी। बैठक के बाद उन्होंने बताया कि राज्य सरकारों ने कुछ सुझावों के साथ इस विधयक पर अपनी सहमति जताई है। दरअसल जैसे-जैसे लोकसभा चुनाव की तारिखे नजदीक आ रही है जनता को लुभाने के लिए राजनीतिक दलों में हलचलें भी बढ़ रही है। पहले कैश सब्सिडी स्कीम में मनमाफिक परिणाम नहीं मिलने के बाद यूपीए सरकार अब एक नयी योजना की तलाश कर रही है। लोगों को लुभाने के लिए कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने अब गरीबों को भोजन की गारंटी देने की योजना को हरी झंडी दिखा दी है। सोनिया गांधी के निर्देश के सरकार खाद्य सुरक्षा विधेयक में बदलाव करने का मन बना चुकी है। सरकार ने स्थायी समिति की सिफारिशों का विरोध करते हुए इस योजना को बड़े पैमाने पर लागू करने का फैसला किया है। सोनिया गांधी की सहमति के बाद कैबिनेट ने बजट सत्र में इस विधेयक को पेश करने से पहले इसके मौजूदा प्रावधानों को बदलने की कवायत शुरू कर दी है। सरकार इस पर तेजी से काम कर रही है। खबर के मुताबिक संशोधन के बाद जब यह बिल संसद में पेश होगा तो उसमें अंत्योदय अन्न योजना के तहत हर परिवार को महीने में 35 किलो अनाज देने का प्रावधान शामिल किया जाएगा। साथ ही संशोधित खाद्य सुरक्षा विधेयक में 250 जिलों को गरीब घोषित कर इस योजना का लाभ दिया जाएगा। इस योजना के तहत समग्र बाल विकास योजना को भी शामिल किया जाएगा। स्थायी समिति की सिफारिशो के मुताबिक हर परिवार को 25 किलो अनाज का प्रावधान था, साथ ही सम्रग बाल विकास को भी इससे अलग रखा गया था। सूत्रों के हवाले से खबर ये भी है कि सोनिया गांधी ने संबंधित मंत्रियों से कहा है कि अंत्योदय अन्न योजना में अधिकारों को कम नहीं किया जाएगा। सरकार इस बिल को सत्र के आखिरी हफ्ते में संसद में पेश करेंगी। लोकसभा चुनाव को देखते हुए सरकार बिल को पास करवाना चाहती है। वही विपक्ष में बैठी भाजपा ने साफ कर दिया है कि अगर में बिल में 35 किलो से कम का प्रावधान रहा तो वह इसका विरोध करेगी। माना जा रहा है कि खाद्य सुरक्षा बिल कांग्रेस अपने आखिरी चुनावी हथियार के तौर इस्तेमाल कर सकती है।




Saturday, February 9, 2013

देर से उठाया गया सही कदम



2001 में संसद पर हुए हमले के दोषी मोहम्मद अफजल गुरु को शनिवार को दिल्ली के तिहाड़ जेल में सुबह आठ बजे फांसी दे दी गई। अफजल की फांसी दरअसल देश के खिलाफ आतंक को करारा जवाब के तौर पर देखा जा रहा है। आम प्रतिक्रिया रही कि देर से ही उठाया गया एक सही कदम है। जैश ए मोहम्मद के आतंकवादी को फांसी दिये जाने के कुछ ही देर बाद गृहमंत्री सुशील कुमार शिन्दे ने कहा, अफजल गुरु को सुबह आठ बजे फांसी दे दी गई। राष्ट्रपति भवन के प्रवक्ता वेणु राजामणि ने कहा कि 43 वर्षीय गुरु की दया याचिका कुछ दिन पहले राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने खारिज कर दी थी, जिसे 2002 में विशेष अदालत ने मौत की सजा सुनाई थी और 2004 में उच्चतम न्यायालय ने इस सजा को बरकरार रखा था। इससे पहले मुम्बई पर आतंकी हमले एक मात्र जीवित आतंकी एवं इस मामले में दोषी करार अजमल कसाब को पिछले वर्ष 21 नवंबर को फांसी दी गई थी। गुरु को गोपनीय अभियान में फांसी दी गई। उत्तरी कश्मीर के सोपोर में रहने वाले अफजल के परिवार को सरकार के इस फैसले से अवगत करा दिया गया था कि राष्ट्रपति ने उसकी दया याचिका ठुकरा दी है। गुरू के शव को तिहाड़ जेल में ही दफनाया गया,जैसे कि कसाब के मामले में हुआ था। कसाब को फांसी दिये जाने के बाद पुणे स्थित यरवदा जेल में ही दफनाया गया था। अफजल को फांसी पर लटकाए जाने की प्रक्रिया सुबह आठ बजे तक पूरी हो गयी थी। अफजल को 2004 में मौत की सजा सुनाई गई थी। इससे पहले शनिवार तड़के कश्मीर घाटी में कर्फ्यू लगा दिया गया। कानून व्यवस्था की स्थिति पर नजर रखने के लिए जम्मू कश्मीर के मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला पुलिस महानिदेशक अशोक प्रसाद और अन्य वरिष्ठ अधिकारी शनिवार सुबह जम्मू से श्रीनगर पहुंच गये थे। बहरहाल, पाकिस्तान समर्थक अलगाववादी संगठनों ने घाटी में तीन दिन के बंद का आह्वान किया है। वैसे एहतियात के तौर पर पूरे देश में अलर्ट घोषित कर दिया गया है। विभिन्न राजनीतिक दलों ने सरकार के इस कदम की सराहना की है।

Thursday, February 7, 2013

भागवत कह गए मन की बात



महाकुंभ नगरी में  आरएसएस के प्रमुख मोहन भागवत ने इशारों ही इशारों में नरेंद्र मोदी को पीएम बनाए जाने का समर्थन किया। उन्होंने कहा कि जो देश की आवाज है उस पर विचार होना चाहिए। वहीं भागवत ने यह भी कहा कि उम्मीदवार तय करना हमारा काम नहीं है। इसका फैसला सबकी सहमति से ही होगा। संघ प्रमुख ने कहा कि धर्म संसद में कई लोगों ने इस बाबत विचार रखे। देश भर में भी इस बारे में चर्चा हो रही है कि इस नेता को आगे कर सामने लाना चाहिए। मेरा मानना है कि जिन लोगों का ये काम है, उन्हें(भाजपा को) करने देना चाहिए। अगर वे नहीं करते हैं, तो उन्हें इसका खामियाजा भुगतने देना चाहिए। गौरतलब है कि संघ प्रमुख के पहले कई वक्ताओं ने भी खुलेआम नरेंद्र मोदी को पीएम पद का प्रत्याशी बनाने की मांग मंच से की थी। शीर्ष वीएचपी नेता मीडिया में भी मोदी की वकालत करते दिखाई दिए।  इलाहाबाद के महाकुंभ के दौरान धर्मसंसद में संघ प्रमुख मोहन भागवत ने परोक्ष रूप से ही सही प्रधानमंत्री पद के लिए गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी के नाम पर मुहर लगा दी है। उन्होंने कहा कि जो देश की आवाज है उसपर विचार होना चाहिए। धर्म संसद में संघ प्रमुख ने कहा कि तात्कालिक परिस्थिति को लेकर यहां पर कुछ विचार व्यक्त किए गए। चुनाव में किसको आना चाहिए...किसको लाना चाहिए...सारे देश में उठ रहे हैं ये विचार। और स्वाभाविक है कि लोग विचार करते ही हैं। लेकिन हम लोग यहां कितना भी बोलेंगे तो भी, जिनको करना है उन्हीं(भाजपा) का कर्तव्य है और उन्हीं को उसका अधिकार है। उनको करने देना चाहिए। उनका करना गलत हुआ तो उनको उसका फल खाने देना चाहिए। लेकिन अपने अधिकार का अतिक्रमण नहीं करना चाहिए, ऐसा मुझे लगता है। संघ प्रमुख ने आगे कहा कि लोग जानते ही हैं कि आपके मन में क्या है। केवल यहां बैठे लोग ऐसा नहीं बोलते, सारे देश में आवाज यही गूंजती है(मोदी के समर्थन की)। भागवत के इतना कहते ही संतों के बीच नरेंद्र मोदी के पक्ष में नारे लगने शुरू हुए। इस तरह मौका मिला और मन की बात कह गए संघ प्रमुख।

Tuesday, February 5, 2013

कश्मीरी रॉक बैंड को न्यौता



प्रगाश, कश्मीर का एक मात्र लड़कियों द्वारा बनाया गया रॉक बैंड है। इस रॉक बैंड को अपने ही राज्य में मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है लेकिन इनका साथ देने के लिए अब हिंदी फिल्म इंडस्ट्री आगे आई है। कश्मीर के ग्रैंड मुफ्ती बशीरुद्दीन अहमद और कुछ संगठनों द्वारा बैंड का विरोध करते हुए उनके खिलाफ फतवा जारी कर दिया है। ये मामला सामने आने पर भारत के प्रसिद्ध बैंड पैंटाग्राम के प्रमुख गायक रहे विशाल ने इन लड़कियों को प्रस्ताव दिया है कि वह उनके मुंबई आने-जाने और रहने की सारी व्यवस्था के साथ ही उनके एल्बम की रिकॉर्डिंग से लेकर रिलीज और प्रमोशन तक का खर्चा वहन करने के लिए तैयार है। सोशल मीडिया पर धमकियां मिलने के बाद इन लड़कियों ने संगीत से तौबा करने की बात कही है, लेकिन संगीतकार विशाल डडलानी ने इस बैंड के फेसबुक पेज पर लिखा है,"कृप्या कुछ सनकियों के डर के कारण संगीत बनाना बंद मत करो। ये किसी भी नए कलाकार, खासकर युवतियों के लिए एक बड़ा मौका हो सकता है लेकिन बैंड की लड़कियां फिलहाल बहुत घबराई हुई हैं। बैंड की मुख्य गायिका नोमा ने कहा है कि वह इस प्रस्ताव के बारे में जरा सा भी नहीं सोचने वाली। दरअसल प्रगाश बैंड के लिए मुश्किलें तब खड़ी हो गई जब उन्होंने पिछले साल दिसंबर में श्रीनगर में हुए एक संगीत प्रतियोगिता में हिस्सा लिया। इसके बाद बैंड के फेसबुक पन्ने पर कई अभद्र टिप्पणियां की गई जिसका लड़कियों ने काफी बहादुरी से सामना किया। लेकिन बाद में कश्मीर के ग्रैंड मुफ्ती बशीरुद्दीन अहमद ने उनके खिलाफ फतवा जारी कर दिया। इस मामले में जम्मू-कश्मीर पुलिस ने मंगलवार को एक प्राथमिकी भी दर्ज कर ली है और वह उन लोगों की तलाश में हैं जिन्होंने बैंड के सोशल मीडिया पन्ने पर गलत टिप्पणियां की थी। श्रीनगर के जिला पुलिस अधिकारी आशिक बुखारी ने पुष्टि की है कि केस रजिस्टर कर लिया गया है और आईपी पतों के जरिए आरोपियों को पकड़ा जाएगा। बताया जाता है कि पुलिस की ये कार्रवाई मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्लाह के निर्देश के बाद की गई है।

Sunday, February 3, 2013

एनडीए में घमासान


गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी को भाजपा की तरफ से प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार के तौर पर पेश किए जाने की खबर से ही जदयूू और भाजपा में जुबानी जंग शुरू हो चुकी है। जदयू बार- बार कह रही है कि भाजपा जल्द नाम की घोषणा करे तो भाजपा  इसे जदयू की बेकरारी बता रही है। जुबानी जंग इतनी बढ़ रही है, कि आशंका तो ये होने लगी है, कि क्या एनडीए कुनबा बिखरने की ओर बढ़ रहा है। प्रधानमंत्री की उम्मीदवारी के लिए नरेंद्र मोदी के नाम का ऐलान कब होगा, कब भाजपा उन्हें पीएम पद के उम्मीदवार के तौर पर पेश करेगी, ये सवाल फिलहाल पीछे चले गए हैं। क्योंकि एनडीए के गठबंधन पर नया संकट मंडराने लगा है। मोदी के नाम पर घमासान शुरू हो गया है। जदयू अध्यक्ष शरद यादव भले ही शांति की कोशिशों में जुटे नजर आएं लेकिन जदयू की तरफ से तीखी आवाजें इस शांति को लगातार भंग करती नजर आ रही हैं। पहले खबर थी, कि भाजपा इलाहाबाद के महाकुंभ में साधु-संतों की तरफ से मोदी का नाम उछालने का प्लान बना रही है। उसके बाद वह जल्द ही नाम का ऐलान कर देगी,लेकिन जदयू के वरिष्ठ नेता शिवानंद तिवारी इस पर खासे नाराज नजर आ रहे हैं। मालूम हो कि पीएम उम्मीदवार के लिए गुजरात के सीएम नरेंद्र मोदी के पक्ष में भाजपा के अंदर-बाहर लामबंदी जितनी तेज हो रही है, जदयू से उसकी दूरी उतनी ही बढ़ रही है। रविवार को भाजपा नेताओं मुख्तार अब्बास नकवी, कीर्ति आजाद, बलबीर पुंज और सीपी ठाकुर ने मोदी को लेकर ऐतराज पर जदयू पर दिल्ली से लेकर पटना तक सीधा हमला बोला। पार्टी उपाध्यक्ष मुख्तार अब्बास नकवी ने तो यहां तक कहा कि पार्टी के पीएम पद का उम्मीदवार साधु-संत तय नहीं करेंगे तो क्या आतंकवादी हाफिज सईद करेगा? गौरतलब है कि जेडीयू नेता शिवानंद तिवारी ने कहा था कि प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार साधु-संत और नागा तय नहीं करेंगे। दूसरा तीखा हमला बोलते हुए भाजपा सांसद कीर्ति आजाद ने कहा कि नरेंद्र मोदी के नाम पर अगर जदयू से गठबंधन टूट भी गया, तो देखा जाएगा।

Saturday, February 2, 2013

मोदी ही करेंगे अगुवाई


2014 के आम चुनावों को लेकर बीजेपी ने सबसे बड़े फैसले लेने का संकेत दे दिया है। बीजेपी गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार बनाएगी। सूत्रों के मुताबिक पार्टी ने ये फैसला कर लिया है कि नरेंद्र मोदी बीजेपी के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार होंगे। बीजेपी इसकी घोषणा भी जल्दी ही कर सकती है। माना जा रहा है कि पार्टी की राष्ट्रीय परिषद की बैठक में राजनाथ सिंह खुद इस बात का ऐलान कर सकते हैं। पिछले कुछ दिनों से पार्टी के भीतर से इस बात की मांग उठ रही थी कि मोदी को प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार बनाया जाए और पार्टी ने मोदी पर मुहर लगाने का फैसला कर लिया है। दरअसल बीजेपी के हिंदू हृदय सम्राट नरेंद्र मोदी गुजरात में लगातार तीसरी बार विजय पताका फहराने के बाद दिल्ली कूच के लिए तैयार हैं। इस मुद्दे पर पार्टी के भीतर मचे भूचाल के बीच बीजेपी ने मोदी के नाम पर जुआ खेलने का मन बना लिया है। संघ और बीजेपी के वरिष्ठ नेताओं के बीच हुई बैठक में इस बात पर चर्चा हुई कि नरेंद्र मोदी को प्रोजेक्ट करने से पार्टी का कल्याण होगा। माना जा रहा है कि इसी महीने पार्टी के वरिष्ठ नेताओं की एक बैठक होगी जिसमें बीजेपी के मुख्यमंत्री भी शामिल होंगे और इस बैठक में मोदी को दिल्ली बुलाने का खांका खींच लिया जाएगा। सूत्रों के मुताबिक मोदी को लेकर नए सिरे से पेशबंदी इलाहाबाद के कुंभ से शुरू होगी जहां संत महात्मा मोदी को प्रधानमंत्री बनाने के लिये हुंकार भरेंगे। माना जा रहा है कि इलाहाबाद में संतों के इस समागम में न सिर्फ बीजेपी के अध्यक्ष राजनाथ सिंह हिस्सा लेंगे बल्कि नरेंद्र मोदी के भी उस वक्त वहां रहने की उम्मीद है। पार्टी को लगता है कि लाखों की इस भीड़ में जब मोदी के नाम का संत महात्मा जयकारा लेंगे उससे उत्तर प्रदेश में पार्टी को लाभ होगा। दिल्ली फतह करने के लिये उत्तर प्रदेश को ठीक करना पार्टी की सबसे बड़ी जरूरत है। बीजेपी ने इस बात का विचार कर लिया है कि ऐसे में नीतीश कुमार एनडीए का साथ छोड़ेंगे। पार्टी के अंदर इस बात को लेकर मन बन चुका है कि नीतीश हर हाल में बीजेपी से तलाक लेने पर आमादा हैं। वे चाहते हैं कि बीजेपी प्रधानमंत्री के उम्मीदवार के तौर पर मोदी को प्रोजेक्ट न करे। और ये भी नहीं चाहते कि सामूहिक नेतृत्व में चुनाव हो तो ऐसे में उनका साथ ज्यादा दिनों तक नहीं रह सकता। अब सवाल ये है कि आखिर इतना सब होने के बाद देर किस बात की है। सूत्रों के मुताबिक संकेत तो मिलने ही लगे हैं, इस बात की घोषणा भी इसी महीने हो सकती है। पार्टी को लगता है कि मोदी को छोड़ दें तो कोई ऐसा नेता नहीं है जिसको दिल्ली लाने की पूरे देश से मांग हो रही है। और मोदी को जानने वाले ये जानते हैं कि जब तक उनके सामने कोई ठोस प्रस्ताव नहीं आता वो दिल्ली कूच करने वाले नहीं हैं। इसलिये इस बात की संभावना नहीं है जैसी कि चर्चा हो रही है कि वो कैंपेन कमिटि के अध्यक्ष के तौर पर दिल्ली बुलाये जायेंगे। सूत्रों के मुताबिक इसी महीने होने वाली पार्टी की राष्ट्रीय परिषद की बैठक में पार्टी के अध्यक्ष राजनाथ सिंह खुद सबके सामने इस बात का ऐलान कर सकते हैं। ऐसा 95 में मुंबई की राष्ट्रीय परिषद की बैठक में हुआ था जब आडवाणी ने अटल बिहारी वाजपेयी का नाम प्रधानमंत्री के उम्मीदवार के तौर पर घोषित कर दिया था।

Friday, February 1, 2013

जनता पर तिहरा बोझ


महंगाई की मार झेल रही जनता पर सरकार ने तिहरा बोझ डाल दिया है। पेट्रोलियम मंत्री वीरप्पा मोइली ने हर महीने डीजल के दाम में 40 से 50 पैसे प्रति लीटर का इजाफा होने की घोषणा की है। वहीं रेलवे ने पहले ही किराया बढ़ा दिया है। इसके अलावा प्याज की कीमतें तेजी से बढ़ रही हैं। मोइली ने पेट्रोलियम पदार्थों की कीमत में बढ़ोत्तरी के पीछे डीजल की बिक्री पर सरकारी तेल कंपनियों को हो रहे घाटे को कारण बताया है। दिलचस्प है कि पेट्रोलियम प्रोडक्ट में सबसे ज्यादा खपत डीजल की ही होती है। मोइली का कहना है कि अगले आदेश तक आॅयल मार्केटिंग कंपनियां डीजल की कीमतों में 40-50 पैसे प्रति लीटर बढ़ाएंगी। हालांकि, उन्होंने यह नहीं बताया कि कंपनियां डीजल की कीमत में अगला इजाफा कब करेंगी।  दिलचस्प है कि हर महीने 40-50 पैसे डीजल को महंगा करने पर सरकार द्वारा इस मद में दी जा रही सब्सिडी में करीब 12907 करोड़ रुपए की कमी आएगी। सरकार इन फैसलों के पीछे पेट्रोलियम कंपनियों को हो रहे नुकसान, बढ़ते राजकोषीय घाटे और अर्थव्यवस्था की खराब हालत को जिम्मेदार बता रही है। इस समय तेल कंपनियों को डीजल की बिक्री पर प्रति लीटर 10.16 रुपये, केरोसीन तेल पर 32.17 रुपये और एलपीजी सिलेंडरों पर 490.50 रुपये का नुकसान हो रहा है जिसकी भरपाई सब्सिडी के रूप में वित्त मंत्रालय और अपस्ट्रीम कंपनियों को करनी पड़ती है। फिलहाल बाजार मूल्य से कम कीमत पर पेट्रोलियम पदार्थ बेचने की वजह से 1,55,313 करोड़ रुपये की सब्सिडी का अनुमान लगाया गया है। दिलचस्प है कि सरकार ने 2012 में अलग-अलग चरणों में 8 रुपये तक की बढ़ोत्तरी डीजल के दामों में की थी। इसका सीधा असर आम आदमी पर पड़ने वाला है। खाने-पीने की चीजों से लेकर पब्लिक ट्रांसपोर्ट के किराए तक हर जगह महंगाई की आग लगनी तय है। मगर सरकार इससे बेफिक्र है। आम लोगों के लिए इस महंगाई को अब झेल पाना मुश्किल होता जा रहा है। मगर सरकार सब्सिडी के बोझ को कम करने के बहाने जनता की फजीहत करने पर तुली है।