Tuesday, August 9, 2011

आरक्षण पर बहस

आरक्षण पर बहस वाकई आग पर चलने जैसा ही है. एक लड़का ट्रेन में मिला. किसी इंजीनियरिंग कालेज में नामांकन के लिए चंडीगढ़ जा रहा था. मामूली सी परिचय के बाद उसका एक सवाल  था- अंकल आखिर हम लोगो के साथ ऐसा क्यों होता हैं, हम लोगो का क्या कसूर हैं- मैंने पूछा क्या हुआ- शिकायती लहजे में उसका सवाल था- हम सब एक ही क्लास में पढ़ते हैं, एक ही टीचर हम सब को पढ़ता है,स्कूल से लेकर कॉलेज का माहौल भी एक ही रहता हैं मगर फिर यह भेदभाव क्यों होता है? मेरा ऑल  इंडिया रंकिंग ५२ हजार हैं, मुझे कोई ढंग का कॉलेज नहीं मिल रहा हैं मगर मेरे साथी जो क्लास वन से ही मेरे साथ पढ़ा, उसका रंकिंग ५ लाख हैं और उसे सरकारी इंजीनियरिंग कालेज मिल गया. हम दोनों तो सामान सुबिधा और माहौल में साथ- साथ पढ़े, साथ ही AIEE  की परीशा भी दिए... फिर ऐसा क्यों? क्या आरक्षण के नाम पर यह भेदभाव नहीं हैं? मेरे मित्र के पिता राज्य सरकार में उच्चाधिकारी हैं. मैं तो गाँव से आता हूँ, मेरे पिता जी खेती करते हैं. अपने परिवार का मैं पहला लड़का हूँ जो  राजधानी पटना में रह कर इंजीनियरिंग की तयारी की और AIEE की परीक्षा में यह रैंक लाया.-----  फिर मेरे साथ ऐसा क्यों हो रहा हैं? क्या मेरा कसूर यह है की मैं किसी उच्च कूल में पैदा हुआ. इसमें भी भला मेरा क्या कसूर है? ...... उस लडके के सवाल पर मै रस्ते भर सोचता रहा.... आरक्षण का समाजशास्त्रीय विश्लेषण भी करता रहा.... मेरे मुंह से कुछ नहीं निकला....क्योंकि मैं भी कथित तौर पर एक उच्च कूल में ही पैदा लिया हूँ......एक अदृश्य भय सताता है कि कंही मुझे भी आरक्षण विरोधी न करार दे दिया जाय.....

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