Monday, November 26, 2012

'बिहारी बाबू' पर भाजपाई उठापटक


भाजपा सांसद शत्रुघ्न सिन्हा ने अपने राष्ट्रीय अध्यक्ष नितिन गडकरी से इस्तीफा मांग बवाल मचा दिया है। खासकर प्रदेश भाजपा में उठापटक शुरू हो गई है। रविवार को कई भाजपा नेताओं ने बिहारी बाबू को घेरा। खुद बिहारी बाबू का कहना था कि 'मैं अब सीनियर हो गया हूं।' उनसे पूछा गया था कि गडकरी से इस्तीफा मांग कर रहे राम जेठमलानी व यशवंत सिन्हा के साथ खड़े होने पर आप पर अनुशासनात्मक कार्रवाई हो सकती है?
बिहारी बाबू के अनुसार 'मैंने कभी मर्यादा का उल्लंघन नहीं किया है।' उन्होंने लालकृष्ण आडवाणी को अंधेरी सुरंग में रोशनी की लकीर बताते हुए कहा कि आडवाणी प्रधानमंत्री पद के लिए सबसे बेहतर उम्मीदवार हैं। वे रविवार को यहां संवाददाताओं से बात कर रहे थे। उनके मुताबिक भले ही यह पार्टी का अधिकार है, लेकिन मैं नहीं मानता कि सच बोलने के लिए पार्टी मुझ पर कोई कार्रवाई करेगी। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार भी प्रधानमंत्री पद के लिए सक्षम उम्मीदवार हैं, लेकिन उम्मीदवार का चयन संख्या बल को ध्यान में रखकर किया जाएगा। भाजपा में आडवाणी, यशवंत सिन्हा, राम जेठमलानी, सुषमा स्वराज, अरुण जेटली, नरेंद्र मोदी जैसे कई नेता हैं, लेकिन आडवाणी प्रधानमंत्री पद के लिए सबसे बेहतर हैं। वे अटल बिहारी वाजपेयी की तरह अंधेरी सुरंग में रोशनी की लकीर हैं। उनकी दृष्टि, व्यापक अनुभव और स्वच्छ छवि उन्हें सबसे बेहतर उम्मीदवार बनाती है। पार्टी के लिए यह बेहतर रहेगा कि 2014 के आम चुनाव से पहले प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार की घोषणा कर दी जाए।
रंजीत सिन्हा के सीबीआइ निदेशक बनाए जाने के मामले में भी उन्होंने राम जेठमलानी का पक्ष लेते हुए कहा कि इस मामले में किसी प्रकार का विवाद बेबुनियाद है। उनका चयन सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर गठित कमेटी की अनुशंसा पर किया गया है, जिस पर मुख्य सतर्कता आयुक्त ने भी मुहर लगाई है। उनके अनुसार लोकपाल बिल का हश्र हम राज्यसभा में देख चुके हैं, जहां राजद सदस्यों ने इस बिल की प्रति फाड़ डाली थी और इसे मंजूर नहीं होने दिया था। बताते चलें कि पार्टी की वरिष्ठ नेता सुषमा स्वराज और अरुण जेटली ने रंजीत सिन्हा की नियुक्ति पर आपत्तिदर्ज की है।

खुद को साबित करें केजरीवाल



फिल्म कलाकार अनुपम  खेर ने कहा है कि सामाजिक कार्यकर्ता से नेता बने अरविंद केजरीवाल को दूसरों की आलोचना करने से पहले खुद को साबित करना चाहिए। वाकई दूसरों की आलोचना करने का समय अब समाप्त हो चुका है। गौरतलब है कि अनुपम खेर भ्रष्टाचार के खिलाफ अन्ना हजारे के अभियानों में शामिल रहे हैं। अरविंद केजरीवाल ने हाल के दिनों में नेताओं और उद्योगपतियों के बारे में कई खुलासे किए। इनमें डीएलएफ और सोनिया गांधी के दामाद राबर्ट वाड्रा के बीच नेक्सस का खुलासा प्रमुख है। इसके अलावा केजरीवाल ने सलमान खुर्शीद और भाजपा अध्यक्ष नितिन गडकरी के बारे में भी खुलासे किए। इसी क्रम में केजरीवाल ने प्रसिद्ध उद्योगपति  मुकेश अंबानी पर भी केजी बेसिन में मनमानी कर करोड़ों के गबन करने का आरोप लगाया। आम आदमी पार्टी की घोषणा के साथ ही केजरीवाल ने कांग्रेस व भाजपा के खिलाफ देशव्यापी अभियान चलाने का एलान किया है। अरविंद केजरीवाल का मानना है कि ये दोनों पार्टियां देश को लूटने में समान भागीदार रही हैं और जनता को इन दोनों से दूर रहना चाहिए। इसके साथ ही अरविंद की कोशिश युवाओं को आंदोलित करने की है, जिनकी ताकत के बूते वे आने वाले वर्षों में होने वाले विधान सभाओं व लोकसभा के चुनाव में इन राष्टÑीय पार्टियों से दो-दो हाथ करेंगें। मगर क्या यह सब इतना आसान है। क्या अरविंद केजरीवाल और उनकी नवोदित राजनीतिक पार्टी व उसकी टीम की राहें इतनी आसान होगी। क्या अरविंद वाकई भ्रष्टाचार को आगामी लोकसभा चुनाव में मुद्दा बना पायेंगे। ये तमाम सवाल अभी भविष्य के गर्भ में हैं। समय-समय पर केजरीवाल को इन सबका जवाब भी देना होगा। इससे इत्तर उन्हें अनुपम खेर के शब्दों में अगर कहे तो वाकई उन्हें अपने का साबित करना होगा। जनता का  भरोसा भी हासिल करना होगा। वरना, राजनीतिक दलों के दलदल में अरविंद व उनकी पार्टी भी गुम हो जाए तो कोई आश्चर्य नहीं।

क्यों मिली शर्मनाक हार?


 पिछले साल इंग्लैंड में 4-0 से सूपड़ा साफ होने के बाद भारतीय टीम ने इस बार हुंकार भरते हुए इशारों-इशारों में यह जरूर जताया था कि वह उस शर्मनाक हार का बदला जरूर लेंगे। फैंस को भी उम्मीदें थीं क्योंकि सीरीज अपनी जमीन पर हो रही थी, पहले टेस्ट में नौ विकेट की जीत ने इन उम्मीदों को और बढ़ावा दिया लेकिन मुंबई में अंग्रेजों ने ना सिर्फ सीरीज में सूपड़ा साफ करने की भारतीय हसरतों को तोड़ा बल्कि हर भारतीय खिलाड़ी का मनोबल भी झंझोड़ कर रख दिया। हर जुबान पर सवाल यही है कि मन माफिक पिच पर हम आखिर 10 विकेट से क्यों हारे।
अहमदाबाद टेस्ट [पहला टेस्ट] में भारत को जब नौ विकेट से जीत मिली तो टीम इंडिया के कप्तान ने क्यूरेटर से लेकर बीसीसीआई तक सबको संदेश पहुंचा दिया था कि उन्हें टर्निग ट्रैक चाहिए और अहमदाबाद में ऐसा ट्रैक ना होने से वह बेहद निराश हुए। मुंबई ने माही की बात का ख्याल रखते हुए एक शानदार टर्निग ट्रैक बनाया जिसके बाद उत्साह से लबरेज कप्तान ने एक अतिरिक्त स्पिनर भी खिलाया लेकिन वह इंग्लैंड को शायद कमतर आंक गए और जो काम भारतीय स्पिनर्स को करना था वह इंग्लिश खिलाड़ी पनेसर और स्वान कर गए। इसलिए जो सबसे पहले और सबसे बड़ा कारण हार का रहा वह था माही का कुछ ज्यादा ही आत्मविश्वास से भरपूर होना और विरोधी टीम के स्पिनरों को कम आंकना।
दूसरे कारण की बात करें तो जाहिर तौर पर यह ठीकरा भारतीय फिरकी गेंदबाजों पर ही फोड़ा जा सकता है जैसा खुद कप्तान धौनी ने मैच के बाद किया भी। हरभजन का अनुभव व अश्विन और ओझा का दाएं और बांए हाथ का काम्बिनेशन होने के बावजूद सिर्फ ओझा ही विकेट बटोरते दिखे। भज्जी और ओझा को जो विकेट मिले वह अधिकतर पुछल्ले बल्लेबाजों के ही रहे। मैच से पहले शेन वार्न ने कहा था कि पिच की बातें करके धौनी माइंड गेम खेल रहे हैं, शायद उनकी बात सही भी थी क्योंकि इस माइंड गेम के चक्कर में वह अपने ही गेंदबाजों को असमंजस में छोड़ गए और इसका पूरा फायदा इंग्लैंड के फिरकी गेंदबाजों ने उठाया।
हार के पीछे तीसरा अहम कारण था हमारे फिरकी गेंदबाजों का लगातार इंग्लिश बल्लेबाजों को ऐसी गेंदें देना जिस पर वह बैकफुट पर जाकर आराम से शाट खेल सकें जबकि इंग्लैंड के गेंदबाजों ने खासतौर पर मोंटी पनेसर ने ऐसी गेंदों का उपयोग किया जिन पर भारतीय बल्लेबाजों को मजबूरन फ्रंट फुट पर खेलना पड़ा जिस चक्कर में कई बार बल्लेबाज चूके, कुछ दिग्गज बोल्ड हुए तो कुछ कैच और स्टंपिंग का शिकार हुए।
हार का चौथा कारण रहा भारतीय टीम के उन बल्लेबाजों का फ्लाप होना जिनसे जरूरत के समय सबसे ज्यादा उम्मीदें थीं। इनमें सबसे ऊपर नाम आता है सचिन तेंदुलकर का जिन्होंने अहमदाबाद में ना सही लेकिन अपने घरेलू मैदान मुंबई पर भी शर्मनाक प्रदर्शन किया जबकि वह मुंबई में ही सीरीज से ठीक पहले रणजी मैच में शतक लगाकर आए हैं। सचिन की नाकामयाबी से टीम का हौसला भी टूटा और मिडिल आर्डर सीरीज में लगातार चौथी बार दबाव में आ गई। इसके अलावा पहले मैच के शतकवीर वीरेंद्र सहवाग और लगातार दूसरा शतक जड़ने वाले चेतेश्वर पुजारा भी दूसरी पारी में फ्लाप साबित हुए। युवराज सिंह का बल्ला भी मुंबई में बिल्कुल ठंडा रहा और कप्तान धौनी को अच्छी बल्लेबाजी करते देख तो जमाना हो गया। वहीं, गौतम गंभीर अब तक फ्लाप साबित हो रहे थे लेकिन दूसरी पारी में जब वह फार्म में लौटते दिखे तो किसी ने उनका साथ नहीं दिया और ताश के पत्तों की तरह सभी धुरंधर दूसरे छोर पर आउट होते चले गए। वहीं अगर इंग्लिश बल्लेबाजों को देखा जाए तो विपरीत परिस्थितियों में खेलने के बावजूद उनके कप्तान और अनुभवी बल्लेबाज केविन पीटरसन ने इस अंदाज में बल्लेबाजी की मानो वह एक दोयम दर्जे की टीम के खिलाफ खेल रहे हों। आखिर आप अनुभवी बल्लेबाजों को अगर आराम से पीछे हटकर खेलने की छूट दोगे तो नतीजा भी यही होगा।

'ये दिल मांगे मोर...' तो नहीं मांगूगा वोट : नीतीश



          राकेश प्रवीर
पटना। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने शनिवार को अपनी सरकार के कामकाज का लेखा-जोखा पेश किया। उन्होंने कहा कि राज्य सरकार की प्राथमिकता है कि यहां के लोगों को पर्याप्त बिजली मिले। अगर विधान सभा चुनाव से पहले यहां की जनता को पर्याप्त बिजली नहीं मिलती है, तो चुनाव में वोट नहीं मांगेंगे। मुख्यमंत्री ने अपनी सरकार द्वारा एक साल में किए गये कामकाज को रिपोर्ट कार्ड के जरिए सबके सामने रखा। उन्होंने दावा किया कि वह राज्य में बिजली की दशा को सुधार देंगे। उनका कहना था कि अगर ऐसा नहीं हुआ तो वे अगले विधानसभा चुनाव में अपनी पार्टी के लिए वोट नहीं मांगेंगे। गौरतलब है कि बिहार में बिजली की हालत बेहद खराब है। उन्होंने सरकार द्वारा जनता की भलाई के लिए की जा रही ढेर सारी उपलब्ध्यिों पर भी प्रकाश डाला। इसके बावजूद नीतीश कुमार को भी 'ये दिल मांगे मोर' का अहसास है। इसके पहले 15 अगस्त को भी पटना के गांधी मैदान में अपने भाषण में नीतीश कुमार ने कहा था, 'अगर हम 2015 तक बिहार के प्रत्येक गांव में बिजली नहीं पहुंचा पाए तो लोगों से अगले विधानसभा चुनाव में हमें वोट करने के लिए नहीं कहूंगा।'
बिहार में बिजली की रोजाना खपत 2500 मेगावाट से 3000 मेगावॉट तक है जबकि राज्य महज 100 मेगावाट बिजली का उत्पादन करता है। केंद्र से राज्य को 1100-1200 मेगावाट बिजली की आपूर्ति की जाती है। बिहार के पास 1200 मेगावाट बिजली की कमी है। इससे तो यही लगता है कि मुख्यमंत्री ने अपनी क्षमता से ज्यादा का वादा कर लिया है। पिछले महीने ही उन्होंने बिहार को विशेष दर्जा देने की मांग के लिए अपनी 'अधिकार यात्रा' रद्द कर दी थी, क्योंकि उन पर एक जगह प्लास्टिक की कुर्सी फेंकी गई और एक जगह सड़े हुए अंडे। तब इस काम को अंजाम दिया उन शिक्षामित्रों ने, जो नियमित शिक्षकों के बराबर हक मांग रहे हैं। बिहार ने करीब 2 लाख शिक्षकों की नियुक्ति की है। इनमें से कुछ प्रशिक्षण प्राप्त हैं, जिनका वेतन 6,000 रुपये प्रति माह है, जबकि कुछ अप्रशिक्षित, जिन्हें 4,000 रुपये प्रति माह वेतन मिलता है। हालांकि इस वेतन को राजनीतिक नफा-नुकसान को ही ध्यान में रखकर मुद्रास्फीति व महंगाई से भी जोड़ा गया है और इसमें बढ़ोतरी भी की गई है। लेकिन शिक्षामित्र नियमित शिक्षकों और उनके वेतन में भारी भरकम अंतर का विरोध कर रहे हैं।
यह सब राज्य के लोगों की बढ़ती आकांक्षाओं का नतीजा है, जिन्हें विकास का अनुभव हो चुका है और अब वे ज्यादा विकास चाहते हैं। ऐसा नहीं है कि नीतीश कुमार इस बात से वाकिफ नहीं है। उन्होंने विकास की रफ्तार को तेज करने की कोशिश की, जिसके लिए उन्होंने राज्य भर के लोगों से बातचीत स्थापित करने के लिए अनेक यात्राएं कीं। इन यात्राओं का लक्ष्य नौकरशाही को संवेदनशील बनाना था। मगर ऐसा हो नहीं सका। एक ओर आकांक्षाएं व उम्मीदें कुलांचे भरती रहीं, तो दूसरी ओर निराशा भी गहराता रहा। दूसरे कार्यकाल के दूसरे वर्ष की समाप्ति पर इसीलिए नए कलेवर के साथ पुराने रेकार्ड को ही बजाया गया है। कई ऐसी तल्ख सच्चाइयां हैं जिसे याद करना और दुहराना सत्ता शीर्ष को कभी नहीं भाता। आमतौर पर जनता भी अल्प याद्दाश्त का शिकार होती है। मगर चुनाव के दौरान राजनीतिक पार्टियां सब कुछ भूल जाएगी, ऐसा नहीं कहा जा सकता है।

सत्तारूढ़ गठबंधन की साझेदार भारतीय जनता पार्टी के पूर्णिया के सांसद उदय सिंह, जो जनता दल यूनाइटेड के राज्य सभा सदस्य एन के सिंह के भाई भी हैं, ने बेहतर प्रशासन के नीतीश कुमार सरकार के दावों को पिछले ही महीने पूर्णिया में एक रैली कर तार-तार कर दिया। उदय सिंह के गैर-सरकारी संगठन द्वारा कराए गए सर्वेक्षण के अनुसार 2005 में नीतीश कुमार के मुख्यमंत्री बनने के बाद से राज्य में गरीबों की संख्या में 50 लाख का इजाफा हुआ है। महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना समेत किसी भी प्रमुख योजना को राज्य में ईमानदारी से लागू नहीं की गई है। सांसद का दावा है कि उनके इस सर्वेक्षण  में उनके संसदीय क्षेत्र में शामिल 3.5 लाख परिवारों में से 2.1 लाख परिवारों ने हिस्सा लिया। सिंह का कहना है कि जिस इलाके में 80 फीसदी आबादी आजीविका के लिए दिहाड़ी पर निर्भर हो, वहां महज 13 फीसदी परिवारों को ही मनरेगा के तहत काम मिला है। 3 से 6 वर्ष की आयु वाले 60 फीसदी बच्चों का आंगनबाड़ी या आईसीडीएस योजनाओं में नामांकन नहीं किया गया है, जिससे उन्हें पूरक पोषण और प्राथमिक शिक्षा नहीं मिल पाती है। इस सर्वेक्षण में हिस्सा लेने वाले 50 फीसदी प्रतिभागियों का कहना था कि स्थानीय स्वास्थ्य देखभाल केंद्रों की हालत बेहद खराब है। सर्वेक्षण में हिस्सा लेने वाले महादलित और अल्पसंख्यक समुदाय के महज 5 फीसदी प्रतिभागियों को ही राज्य सरकार की योजनाओं का फायदा मिला है। बिजली की किल्लत झेल रहे राज्य में 39 फीसदी प्रतिभागियों का कहना था कि अच्छी सड़कों और बुनियादी ढांचे के बजाय बिजली उनकी प्राथमिक जरूरत है। संभव है कि सरकार इस सर्वेक्षण से सहमत नहीं हो। रिपोर्ट कार्ड में अनेक अच्छी बातों व उपलब्धियों की चर्चा हैं। बिजली उपलब्ध कराने का आत्मविश्वास भी। अभी तीन साल शेष है,ईमानदार कोशिश की जरूरत होगी।