Wednesday, January 29, 2020

मुस्लिम आक्रांताओं का नफरती हिन्दू विरोध
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मुहम्मद गजनी के आने और अहमदशाह अब्दाली की वापसी के बीच जो 762 वर्षों की अवधि रही, उस दौरान ‘जिहाद’ हिन्दुओं की स्थिति पर सुल्तान अलाउद्दीन के एक काजी ने जो कहा है उसकी कुछ पंक्तियां आज के तथाकथित हिन्दू सेक्युलर, डिजायनर बुद्धिजीवियों के लिए -
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उन्हें (हिन्दुओं) खिराज (कर) अदा करने वाला कहा जाता है और जब राजस्व अधिकारी उनसे चांदी मांगे तो उन्हें बिना सवाल उठाए अति विनम्रता और आदर व्यक्त करते हुए सोना देना चाहिए। यदि अधिकारी उनके मुंह में मैला फेंके तो उन्हें निस्संकोच अपना मुंह खोल कर उस ले लेना चाहिए......। मुंह में मैला फेंके जाने और इस विनम्र अदायगी से धर्म की अपेक्षित अधीनता ही व्यक्त होती है। इस्लाम का गरिमागान एक कत्र्तव्य और दीन के प्रति अनादर दंभ है। खुदा उनसे नफरत करता है और उसका आदेश है कि उन्हें दासता में रखा जाए।

हिन्दुओं को अपमानित करना खासतौर पर एक मजहबी फर्ज है, क्योंकि वे पैगंबर के सर्वाधिक कट्टर दुश्मन हैं और क्योंकि पैगंबर ने हमें उनका कत्ल करने, उन्हें लूटने और गुलाम बनाने का आदेश यह कहते हुए दिया है-‘उन्हें इस्लाम में दीक्षित करो अथवा मार डालो और उन्हें गुलाम बनाओ और उनकी धन-संपदा को नष्ट कर दो। किसी अन्य धर्माचार्य ने नहीं, अपितु महान धर्माचार्य (हनीफ) ने, जिसकी राह के हम अनुगामी हैं, हिन्दुओं पर जजिया लगाए जाने की इजाजत दी है। अन्य पंथों के धर्माचार्य भी किसी अन्य विकल्प की नहीं, अपितु ‘मौत या इस्लाम’ की ही अनुमति देते हैं।’

इतिहासकार लेन पूल के अनुसार-‘ हिन्दुओं पर कर उनकी भूमि के उत्पादन में से आधार तक था और उन्हें अपनी सभी भैंसों, बकरियों और अन्य दुधारू पशुओं पर भी कर चुकाना पड़ता था। धनी और निर्धन सभी को प्रति एकड़ और प्रति पशु की दर से समान रूप से कर चुकाना होता था। रिश्वतखोर संग्राहक या अधिकारी उनकी बेंतों, चिमटों से पिटाई करते थे तथा मुश्कें और हथकड़ियां-बेड़ियां डालने जैसी कड़ी सजा दी जाती थी। ऐसी व्यवस्था की गई थी, एक राजस्व अधिकारी बीस विशिष्ट हिन्दुओं को शिकंजे में कसकर उन पर घूसों से प्रहार करें और वसूली कर सकें।

किसी भी हिन्दू घर से सोना अथवा चांदी तो क्या, सुपारी, जिसे किसी खुशी के अवसर पर पेश किया जाता है, तक भी दिखाई नहीं देती थी और इन असहाय बना गए देशज अधिकारियों की पत्नियों को मुसलिम परिवारों में नौकरी करके गुजारा करना पड़ता था।...... ये राजाज्ञाएं इतनी कठोरता से लागू की गई थीं कि चैकीदार, खूट और मुकद्दिम घोड़े की सवारी नहीं कर सकते थे, हथियार नहीं रख सकते थे, न ही अच्छे कपड़े पहन सकते थे और पान भ्ज्ञी नहीं चबा सकते थे....कोई भी हिन्दू अपना सिर नहीं उठा सकता था....वसूली करने के लिए घंूसे माना जाना, माल भत्ता जब्त किया जाना, कैद और बेड़ियां डाले जाने आदि सभी तरीके अपनाए जाते थे।

यह वह दौर था जब हिन्दुओं को इतनी लाचार स्थिति में लाकर खड़ा कर दिया गया था  िकवे सवारी के लिए घोड़ा तक भी नहीं रख सकें और ही अच्छे वस्त्र पहन सकें और न ही जीवन का कोई और सुखोपयोग कर सकें।

फिरोजशाह के शासनकाल (1351-1388)में फरमान था-‘ ब्राह्मण या तो मुसलमान बन जाएं अथवा उन्हें जला दिया जाए।’ ‘तबकाते-नसीरी’ के अनुसार मुहम्मद बख्तियार खिलजी ने निद्दिया (बिहार) पर कब्जा कर लिया तो भयंकर लूटपाट की और हजारों सिर मुंडे हुए ब्राहम्णों को मौत के घाट उतर दिया।

इतिहास प्रमाणित है कि गजनी के मुहम्मद ने भारत पर अपने हमलों को ‘जिहाद’ छेड़ने की संज्ञा दी थी। मुहम्मद के इतिहासकार अल उतबी ने उसके हमलों के बारे में लिखा था-‘ उसने मंदिरों में मूर्तियों को तोड़ कर इसलाम की स्थापना की। उसने शहरों पर कब्जा किया। नापाक कमीनों को मार मार डाला, मूर्ति-पूजकों को तबाह किया और मुसलमानों को गौरवान्वित किया। तदुपरांत वह घर लौटा और इसलाम के लिए की गई विजयों का ब्योरा दिया और यह संकल्प व्यक्त किया कि वह हर वर्ष हिंद के खिलाफ जिहाद करेगा।

मुहम्मद गौरी के इतिहासकार हसन निजामी ने उसके बारे में लिखा है- ‘उसने अपनी तलवार से हिंद को कुफ्र की गंदगी से साफ किया और पाप से मुक्त किया तथा उस सारे मुल्क को बहुदेववाद के कंटक से स्वच्छ किया और मूर्तिपूजा की अपवित्रता से पाक किया और अपने शाही शौर्य और साहस का प्रदर्शन करते हुए एक भी मंदिर को खड़ा नहीं रहने दिया।’

तैमूर अपने संस्मरण में भारत पर हमला करने को प्रेरित करने वाले कारणों का उल्लेख करते हुए कहता है- ‘ मेरा हिन्दुस्तान पर हमलों का मकसद काफिरों के खिलाफ अभियान चलाना और मुहम्मद के आदेशानुसार उन्हें सच्चे दीन में धर्मांतरित करना है। उस धरती को मिथ्या आस्था और बहुदेववाद से पवित्र करना है तथा मंदिरों और मूर्तियों का विघ्वंस करना है, हम गाजी और मुजाहिद होंगे और अल्लाह की नजर में सहयोगी और सैनिक सिद्ध होंगे।’
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डा. बाबासाहेब आंबेडकर लिखित पुस्तक-★ 'Pakistan or Partition of India' का एक अंश जो  प्रभात प्रकाशन से प्रकाशित ‘ डा. आंबेडकरः राष्ट्र दर्शन’ में संकलित से साभार

Monday, January 27, 2020

मुस्लिमपरस्ती और दलितों की उपेक्षा कांग्रेस की पुरानी नीति
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CAA के बहाने जिस तरह से कांग्रेस तीन इस्लामिक देशों से धार्मिक प्रताड़ना का शिकार होकर हिंदुस्तान में शरण लिए दलित शरणार्थियों  को नागरिकता देने का विरोध कर रही है वह उसकी पुरानी "दलित विरोधी व मुस्लिमपरस्ती की नीति" का ही हिस्सा है।

कांग्रेस और तत्कालीन प्रधानमंत्री पण्डित जवाहरलाल नेहरू की दलित विरोधी व मुस्लिम तुष्टिकरण की नीति के विरोध में ही डॉ बाबा साहेब अंबेडकर ने 10 अक्टूबर,1951 को उनके मंत्रिमंडल से कानून मंत्री के पद से इस्तीफा दे दिया था।

इस्तीफा देने के बाद 10 अक्टूबर,1951 को लोकसभा में दिए अपने भाषण में डॉ. आंबेडकर ने कहा- " भारत में अछूतों को किसी प्रकार की सुविधा प्रदान नहीं की गई है। सरकार को मुसलमानों के संरक्षण की ही अधिक चिंता है। प्रधानमंत्री का पूरा समय मुसलमानों की चिंता में खर्च होता है। ...मैं जानना चाहता हूं कि ऐसे संरक्षण की मुसलमानों को क्यों जरूरत है? इस तरह की व्यवस्था की आवश्यकता अपृश्य जातियों व भारतीय ईसाइयों की क्यों नहीं हैं? वस्तुतः मुसलमानों से कहीं अधिक सुरक्षा की आवश्यकता जिन लोगों को है, उन लोगों की चिंता प्रधानमंत्री को कितनी है? सरकार ने अछूत जाति के बारे में जो उपेक्षापूर्ण व्यवहार किया है, उसके कारण मेरे मन में रोष उतपन्न हुआ है।"
(पुस्तक: "डॉ. आंबेडकर-राष्ट्रदर्शन" प्रभात प्रकाशन, से साभार)

दरअसल कांग्रेस आज भी दलित विरोध की अपनी उसी नीति पर कायम है। दशकों तक दलितों का वोट लेने वाली कांग्रेस सी ए ए कानून का विरोध इसलिए कर रही है कि इससे जिन शरणार्थियों को नागरिकता मिलेगी, उनमें 75-80 प्रतिशत दलित हैं। काश आज डॉ. आंबेडकर की तरह दलितों का कोई सर्वमान्य नेता होता जो कांग्रेस के दलित विरोध की इस नीति के खिलाफ अपना रोष व्यक्त करता!

Saturday, January 18, 2020

राज्य नागरिकता कानून को लागू करने से इनकार नहीं कर सकता, यह असंवैधानिक होगा
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* सिब्बल ने कहा- संसद से पास हुए कानून का पालन न करना किसी राज्य के लिए बेहद मुश्किल हालात बना देगा

* सीएए को लेकर देशभर में जारी आंदोलन पर सिब्बल ने कहा- यह एक नेता और आम लोगों के बीच युद्ध की तरह

* बंगाल, राजस्थान, केरल, पुड्डुचेरी, पंजाब, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र और छत्तीसगढ़ की सरकार ने कहा था कि वे सीएए को लागू नहीं करेंगे

Dainik Bhaskar
Jan 18, 2020
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कोझिकोड (केरल)। कांग्रेस नेता कपिल सिब्बल ने कहा है कि कोई भी राज्य नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) लागू करने से इनकार नहीं कर सकता। केरल लिट्रेचर फेस्टिवल के तीसरे दिन शनिवार को कोझिकोड में उन्होंने कहा कि संसद में पास होने के बाद राज्य अगर कानून लागू करने से इनकार करते हैं, तो यह असंवैधानिक होगा। इससे पहले बंगाल, राजस्थान, केरल, पुड्डुचेरी, पंजाब, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र और छत्तीसगढ़ की सरकार ने कहा था कि वे इस कानून को लागू नहीं करेंगे। इन 8 राज्यों में देश की 35% आबादी रहती है।

पूर्व कानून मंत्री सिब्बल ने कहा- अगर सीएए को संसद की मंजूरी मिल चुकी है, तो कोई राज्य यह नहीं कह सकता कि वह इसे लागू नहीं करेगा। यह संभव नहीं है और ऐसा करना असंवैधानिक है। हालांकि राज्य इसका विरोध कर सकते हैं और विधानसभा में इसके खिलाफ संकल्प पारित कर सकते हैं। राज्य केंद्र सरकार से इसे वापस लेने की मांग भी कर सकते हैं, लेकिन किसी का यह कहना कि मैं इस कानून को लागू नहीं करूंगा, ज्यादा बड़ी समस्या पैदा करेगा। जब कोई राज्य ऐसा कहता है कि वो इसे लागू नहीं करेगा, तो माना जाना चाहिए कि उसकी इच्छा इस कानून को लागू करने की नहीं है। हालांकि उसके हाथ बंधे हुए हैं।

सिब्बल ने कहा- एनआरसी का आधार एनपीआर
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सिब्बल ने कहा, “नागरिकता रजिस्टर (एनआरसी) दरअसल जनसंख्या रजिस्टर (एनपीआर) पर आधारित है। एनपीआर को स्थानीय रजिस्ट्रार के जरिए लागू किया जाएगा, जिसकी नियुक्ति सामुदायिक स्तर पर होगी। अगर राज्य यह कहते हैं कि हम राज्य के कर्मचारियों को केंद्र के साथ सहयोग नहीं करने को कहेंगे। मुझे नहीं मालूम कि यह संभव है या नहीं, लेकिन संवैधानिक तौर पर किसी राज्य के लिए संसद से पास हुए कानून का पालन न करना बेहद मुश्किल हालात बना देगा।”

सीएए के खिलाफ आंदोलन आम लोगों ने खड़ा किया। सीएए को लेकर देशभर में जारी आंदोलन पर सिब्बल ने कहा कि यह नेता और आम लोगों के बीच युद्ध की तरह है। उन्होंने कहा- शुक्र है किसी राजनेता की जगह देश के छात्र, गरीब और मध्यम वर्ग के लोगों ने इसके खिलाफ आंदोलन खड़ा किया। उन्होंने कहा, “इसका असर इसलिए दिखाई दे रहा है, क्योंकि दुनिया भर में लोग यह समझ रहे हैं कि यह राजनीति नहीं है, बल्कि यह आम लोगों का आंदोलन है। वे लोग किसी राजनीतिक दल से जुड़े हुए नहीं हैं। उनकी चिंता भारत के भविष्य को लेकर है। हर कोई विकास चाहता है।” सिब्बल ने सवाल उठाया कि मोदी ने क्या किया। उन्होंने देश के बजाय खुद का विकास किया।

8 राज्य सरकारों ने सीएए लागू न करने को कहा था
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बंगाल, राजस्थान, केरल, पुड्डुचेरी, पंजाब, मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र और छत्तीसगढ़ की सरकार ने कहा था कि वे इस कानून को लागू नहीं करेंगे। इन 8 राज्यों में देश की 35% आबादी रहती है। वहीं, 3 और राज्य सरकारें ऐसी हैं जो सीएए के विरोध में तो हैं, लेकिन इस कानून को लागू होने देंगी या नहीं, इस पर उनका रुख साफ नहीं है। इन राज्यों को भी जोड़ दिया जाए तो 42% आबादी वाली 11 राज्य सरकारेंसीएए का विरोध कर चुकी हैं।

राज्य आबादी भूभाग किसकी सरकार
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बंगाल 7.3% 2.8% ममता बनर्जी, तृणमूल
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महाराष्ट्र 9.3% 9.3% उद्धव ठाकरे, शिवसेना
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मध्यप्रदेश 6% 9.3% कमलनाथ, कांग्रेस
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राजस्थान 5.7% 10% अशोक गहलोत, कांग्रेस
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केरल 2.6% 1.1% पिनरई विजयन, माकपा
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पंजाब 2.2% 1.5% अमरिंदर सिंह, कांग्रेस
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छत्तीसगढ़ 2% 4.11% भूपेश बघेल, कांग्रेस
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पुड्‌डुचेरी 0.1% 0.1% नारायणसामी, कांग्रेस
कुल 35% 38%
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केरल सरकार सीएए के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट पहुंची थी
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14 जनवरी को केरल सरकार सीएए के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट पहुंची थी सरकार का तर्क था कि यह कानून संविधान के अनुच्छेद 14, 21 और 25 का उल्लंघन है। केरल ने इस कानून को रद्द करने के लिए 31 दिसंबर को विधानसभा में प्रस्ताव भी पारित किया था। सीएए के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में पहले ही 60 याचिकाएं दायर की जा चुकी हैं। कोर्ट इन पर 22 जनवरी को सुनवाई करेगा। केंद्रीय गृह मंत्रालय ने 10 जनवरी को सीएए को लेकर अधिसूचना जारी की थी।

शाहीनबाग का धरना और कांग्रेस की असली मंशा...सचेत,सतर्क रहें सरकार
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शाहीनबाग के धरने पर लोग भाजपा को यह सलाह दे रहे हैं कि वह इस प्रदर्शन पर उसी तरह से हमला करें,
जैसे कांग्रेस ने बाबा रामदेव के ऊपर रात्रि में किया था ।
लेकिन वे सब क्या यह नहीं समझते कि यह प्रायोजित भीड़ कांग्रेस ने इसलिए ही तो रोक रखी है कि भाजपा ऐसा करने को विवश हो जाए।
कांग्रेस ने चारा फेंककर जाल बिछाया है,
और टकटकी लगाए अपनी पूरी ब्रिगेड के साथ इन्तेजार में बैठी है ।
इस चारे में उसने छोटे छोटे बच्चों को रखा है, तो 80-90 साल के वृद्धों को भी रखा है । उन सबको पता भी नहीं कि कांग्रेस उन सबको मारने के इंतजाम करके इंतज़ार में है।
👉लाठीचार्ज हुआ तो गोली बम फोड़ने वाले लोग भी उनके अंदर छुपे हुए तैयार बैठे हैं । ताकि मामला बड़ा हो सके और भाजपा को एक आततायी, लोकतंत्र की हत्यारी, आजादी छीनने वाली, हिटलरशाही सरकार का दर्जा दिया जा सके और बाद में अगले हरेक चुनाव में गुजरात की तरह भुनाया जा सके ।
👉जैसे ही यह हुआ..... प्रेस कॉन्फ्रेंस, अस्पतालों का दौरा, कुछ मुआवजा, लल्लनटॉप, क्विंट, बीबीसी, ndtv जैसे रखैलों से न्यूज़ बनवाना, चिंदीचोर कन्हैय्या, शेहला, स्वरा आदि कौवों से कांव कांव करवाना, कोर्ट में केस डालने से लेकर मानवाधिकार एजेंसी को उतारते हुए
एक पूरा जाना पहचाना सीरीज है जिसे अब सभी जानने लगे हैं ।
मेरा सुझाव है कि भाजपा को बिलकुल भी एक्शन नहीं लेना चाहिए   ..........ये लोग दिल्ली चुनाव के बाद अपने आप ही चले जाएँगे.......थक हार कर ......
जब पैसा देने वाले और लंगर चलाने वाले लोग कडके हो जाएंगे
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Friday, January 17, 2020


ब्रू को अब मिलेगा ठिकाना
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मिजोरम की "ब्रू" जनजाति  जो २२ साल से अपने घर मिजोरम से दूर त्रिपुरा में अपने ही देश में शरणार्थी बने हुए रह रहे थे को केंद्र सरकर त्रिपुरा में बसएगी।...ब्रू जनजाति हिन्दू धर्म की वैष्णव परंपरा से है.

ब्रू मुख्यतः मिजोरम,त्रिपुरा और कुछ असम के हिस्सों में पाए जाने वाली जनजाति है. और मिजोरम की अगर बात करें तो ये मुख्यतः २ जिले "मामित" और "कोलासिब" में रहते हैं. इन्हें त्रिपुरा में "रियांग" भी कहा जाता है.

मिजोरम में ब्रू जनजाति और मिजो जनजाति के बीच 90 के दशक में लगातार संघर्ष चल रहा था...उसका एक मुख्य कारण ये था कि मिजो जनजाति जो कि वर्तमान में ईसाई रिलिजियन को फॉलो करती है वो ब्रू जनजाति को बाहरी वर्ग मानती थी. 1997 में ये संघर्ष बहुत हिंसक हो गए जिसके चलते ब्रू जनजाति से जुड़े अधिकांश लोगों को मिजोरम से अपने घर छोड़ कर त्रिपुरा में शरण लेने पर मजबूर होना पड़ा...

पूर्वोत्तर में जातीय पहचान को मुद्दा बना कर लोग अलग राष्ट्र की मांगें करते आये थे जिनपर पूर्व की भारत सरकारों ने ढुलमुल रवैय्या अपनाया हुआ था..मिज़ो उग्रवादी समूहों द्वारा भी इस तरह की मांगे रखी गयीं थीं..

जब मिजो उग्रवादी समूहों को लगने लगा कि उनकी अलग राष्ट्र की मांगें पूरी नहीं हो सकतीं तो उन्होंने हिंसक तरीके अपनाने शुरू किये और उस हिंसा की चपेट में सबसे पहले "ब्रू" जनजाति आयी जो कि धार्मिक रीतिरिवाजों में मिजो समुदाय से अलग थी.

साल 1995 में मिजो जनजाति से जुड़े यंग मिजो असोसिएशन और स्टूडेंट मिजो असोसिएशन ने ब्रू  जनजाति को बाहरी घोषित कर दिया..

इसके बाद लगातार चलते संघर्ष का परिणाम ये हुआ कि साल 1997 में ब्रू जनजाति को अत्यधिक हिंसा का सामना करना पड़ा..और उनकी अधिकांश आबादी को मिजोरम छोड़कर त्रिपुरा भागना पड़ा.. ब्रू नेशनल यूनियन के मुताबिक लगभग उनके 1391 घरों और 41 गाँवों को जलाया गया और बड़ी संख्या में ब्रू समुदाय से जुड़े लोगों कि हत्या और महिलाओं के बलात्कार हुए.

इसके चलते लगभग 37000 ब्रू जनजाति से जुड़े लोग मिजोरम से भाग कर त्रिपुरा पहुँच गए..

सन 2010 में मनमोहन सिंह के नेतृत्व वाली UPA सरकार ने 1600 ब्रू समुदाय से जुड़े 8000 लोगों को मिजोरम में बसाया था लेकिन मिजो समुदाय के विरोध के चलते इस पर काम आगे नहीं बढ़ सका.

पिछले 22 सालों में मात्र 5 हज़ार ब्रू समुदाय से जुड़े लोग वापस मिजोरम गए थे..और अब भी 32000 लोग त्रिपुरा में ही विस्थापित थे..

अब तक की सारी सरकारों के प्रयास व्यर्थ जाने के बाद मोदी सरकार ने CAA लागू करने के बाद एक और बड़ा कदम उठाया है..

गृह मंत्री अमित शाह ने कहा कि त्रिपुरा में लगभग 30,000 ब्रू शरणार्थियों को बसाया जाएगा। उन्होंने इसके लिए 600 करोड़ के पैकेज का भी ऐलान किया।

साथ ही -------->

* सभी ब्रू विस्थापित परिवारों को 40x30 फुट का प्लाट दिया जाएगा

* आर्थिक सहायता के लिए प्रत्येक परिवार को 4 लाख रुपये फिक्स्ड डिपॉजिट में..

* दो साल तक 5 हजार रुपये प्रतिमाह नकद सहायता..

* दो साल तक फ्री राशन व मकान बनाने के लिए 1.5 लाख रुपये दिये जाएंगे..

* इस नई व्यवस्था के लिए त्रिपुरा की भाजपा सरकार भूमि की व्यवस्था करेगी..

त्रिपुरा/असम/मिजोरम के मुख्यमंत्रियों के साथ दशकों पुरानी समस्या का शांतिपूर्ण समाधान केंद्र में 303 सीट और राज्यों में अपनी सरकारों के रहते संभव हुआ है.

न मीडिया ने कभी इन शरणार्थियों के बारे में दिखाया. न हम जैसे लोगों को भी कभी इनके होने का पता चला..

अब जब केंद्र सरकार ने पहल कर इन्हें न्याय दिया है तब जाकर अहसास हुआ है कि देश में एक मजबूत सरकार हो और राज्यों में उसके पास बहुमत हो तो दशकों पुरानी समस्याएं भी सुलझायी जा सकती हैं.

बहरहाल ये सबके समझने के लिए नहीं है..अभी भी एक बहुत बड़ी आबादी फ्री बिजली/फ्री पानी पर अपने हिसाब से वोट करती है..

ये संघर्ष हर किसी को नहीं दिखता..जिन्हें दिखता है उन्हें लड़ना पड़ता ही है.