Monday, December 31, 2012

साल गया 2012



देश की बेटी सबको गमगीन करके चली गई, लेकिन अपने पीछे छोड़ गई है गुस्से और इंसाफ की आग जो आज हर हिंदुस्तान के दिल में जल रही है।गुजरे साल 2012 के दामन पर दामिनी का दाग हमेशा चस्पां रहेगा। इस लिहाज से अगर यह कहा जाए कि जाते-जाते साल 2012 साल गया तो कोई गलत नहीं होगा। साल के आखिरी दिन सोमवार को भी दिल्ली का जंतर-मंतर एक बार इस जंग का गवाह बना। कड़ाके की ठंड में पूरी रात लोग जागते रहे। सुबह हुई तो भीड़ बढ़ती गई। हर कोई इस बेटी को आंसू भरी आंखों से अंतिम विदाई दे रहा था। गैंग रेप पीड़िता की मौत के बाद लोगों में बेहद गुस्सा है, जंतर मंतर पर विरोध का अलग अलग तरीका देखने को मिल रहा है। लोग शांति और खामोशी से अपने गुस्से को बयां कर रहे हैं। कुछ कलाकारों ने पेंटिंग के जरिए अपना गुस्सा और दर्द बयां किया। प्रदर्शनकारियों ने श्रद्धांजलि देने के लिए सिंगनेचर कैंपेन भी चलाया। जंतर मंतर पर ये भीड़ तब जुटी जब इंडिया गेट पर प्रदर्शनकारियों को पहुंचने से रोकने के लिए दिल्ली के दस मेट्रो स्टेशन रविवार को भी बंद रखा गया था। जंतर मंतर पर इकट्ठा हुए इन नौजवानों ने नए साल का जश्न न मनाने का फैसला लिया है। लोगों ने जंतर मंतर पर इक्ट्ठा होकर कैंडल मार्च निकाले। देश की बेटी की मौत पर हर तरफ गम का माहौल है। सामूहिक दुष्कर्म की शिकार दिल्ली की छात्रा की मौत से लोग इतने गमगीन व आहत हैं कि उन्होंने नए साल के जश्न से खुद को दूर रखने का फैसला लिया है। लोगों का कहना है कि सामूहिक दुष्कर्म की घटना और पीड़िता की मौत से उन्हें गहरा धक्का लगा है, आरोपितों को जब तक सख्त से सख्त सजा देने का फरमान नहीं आयेगा उनको शांति नहीं मिलने वाली है। दिल्ली ही नहीं देश के हर छोटे-बड़े शहरों में इंसाफ की मांग को लेकर आवाज उठाई जा रही है। ऐसे में हमारी कामना होगी कि गुजरे साल की तरह नए साल में फिर किसी दामिनी के दामन पर दाग न लगे और हमारी तमाम बेटियां और बहनें महफूज रहें...ताकि हमें शर्मिंदा न होना पड़े।

Sunday, December 30, 2012

बलात्कारियों की सजा!



दिल्ली गैंग रेप जैसी शर्मसार करने वाली घटना के बाद देश में महिलाओं के खिलाफ बढ़ते अपराध से निपटने के लिए कड़ी से कड़ी सजा की देशवासियों की ओर से मांग की जा रही हैं। अनेक विशेषज्ञों की ओर से भी सुझाव दिए जा रहे हैं। कोई फांसी की सजा की मांग कर रहा है तो कोई बलात्कारियों के दोष सिद्ध होने पर उसे नपुंसक बनाने की मांग कर रहा है। विधि विशेषज्ञों से भी राय शुमारी की जा रही है। केन्द्र सरकार ने इस मुतल्लिक जस्टिस्ट जे एस वर्मा की अध्यक्षता में एक कमिटी का गठन किया है। जानकारी के अनुसार केन्द्र में सत्तारूढ़ कांग्रेस जिसकी दिल्ली गैंगरेप मामले में पूरे देश में किरकिरी हुई हैं भी एक सख्त ड्राफ्ट बिल की तैयारी कर रही है। बलात्कारियों को कड़ी से कड़ी सजा दिलाने के मकसद से कांग्रेस यह ड्राफ्ट जस्टिस वर्मा कमिटी को सुझाव के तौर पर पेश करेगी। इसके तहत रेप के दोषियों को 30 साल तक कैद की सजा की सिफारिश की जाएगी। इसके अलावा इस ड्राफ्ट बिल में रेपिस्टों को केमिकली बधिया करने और 90 दिन की डेडलाइन के साथ फास्ट ट्रैक कोर्ट के गठन का सुझाव भी शामिल है। यह ड्राफ्ट बिल  यूपीए अध्यक्ष सोनिया गांधी को भी दिखाया जा चुका है। सोनिया ने महिलाओं के खिलाफ बढ़ते क्राइम को देखते हुए पार्टी को सख्त कानून बनाने को लेकर सक्रियता दिखाने का निर्देश दिया था। सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस जे. एस. वर्मा की अध्यक्षता में तीन सदस्यीय कमिटी गठित की है जो सारे पहलुओं की स्टडी के बाद महिलाओं अपराध के खिलाफ कड़े कानून बनाने पर सुझाव देगी। वर्मा कमिटी दोषियों को कड़ी से कड़ी सजा और पीड़ित को तुरंत न्याय दिलाने को लेकर 30 दिनों की डेडलाइन में काम कर रही है। इसके लिए कमिटी ने 5 जनवरी तक देश भर के लोगों से सुझाव मांगे हैं। वाकई अब समय आ गया है कि इस दिशा में ठोस  पहल हो ताकि पीड़ितों को न्याय मिल सके।  देश अब और इंतजार करने के लिए तैयार नहीं है।

अलविदा...दामिनी!



आनन-फानन में अंतिम संस्कार करवाना चाहती थी पुलिस
श्मशान में थी कड़ी सुरक्षा,आम लोग और मीडिया पर थी पाबंदी

13 दिनों तक जीवन से संघर्ष के बाद मौत से पराजित गैंग रेप पीड़िता दामिनी का अंतिम संस्कार रविवार सुबह 7:30 बजे किया गया। पुलिस पहले ही अंतिम संस्कार करवाना चाहती थी लेकिन हिन्दू परंपराओं के मुताबिक सूरज निकलने से पहले अंतिम संस्कार नहीं किया जा सकता। इसलिए साढ़े सात बजे गोपनीय तरीके से अंतिम संस्कार किया गया। दामिनी भले ही इस दुनिया को अलविदा कह चुकी हो लेकिन उसके लिए एक बार फिर रविवार को पूरे देश में लोग सड़क पर उतर आए। दिल्ली के जंतर-मंतर पर शनिवार से ही लोगों का जमावड़ा लगा हुआ है। हर कोई दामिनी के लिए इंसाफ मांग रहा है।दिल्ली के गैंग रेप के आरोपियों को जल्द सजा देने की मांग को लेकर रविवार को यहां जंतर मंतर पर प्रदर्शन के दौरान  एबीवीपी के कथित कार्यकतार्ओं और पुलिस के बीच झड़प हुई। लड़की का शव एयर इंडिया के विशेष विमान से सिंगापुर से दिल्ली लाया गया। शव को कड़ी सुरक्षा के बीच देर रात करीब साढ़े तीन बजे उनके निवास पर ले जाया गया। शव लेकर घर जा रही ऐम्बुलेंस के साथ बड़ी संख्या में सुरक्षाकर्मी थे। उनके घर के आस-पास के क्षेत्र में भी सुरक्षा बंदोबस्त कड़ा था। सिंगापुर से लौटने पर शव लेने और परिजनों को सांत्वना देने के लिए प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी वहां पहुंची थीं। मुख्यमंत्री शीला दीक्षित ने श्मशान पहुंचकर श्रद्धांजलि दी। गृह राज्य मंत्री आरपीएन सिंह, पश्चिमी दिल्ली के सांसद महाबल मिश्र और दिल्ली बीजेपी के अध्यक्ष विजेन्दर गुप्ता भी अंतिम संस्कार के वक्त मौजूद थे। घर पर सभी रिवाजों को पूरा किए जाने के बाद शव को कड़ी सुरक्षा में ऐम्बुलेंस में श्मशान ले जाया गया। सीनियर पुलिस अधिकारी का कहना है कि अंतिम संस्कार शांतिपूर्ण तरीके से सम्पन्न हो, इसके लिए सुरक्षा के कड़े इंतजाम किए गए थे। पिछले हफ्ते इस मामले को लेकर पूरी दिल्ली में हिंसक प्रदर्शन हुए थे। लड़की के परिजनों को पुलिस सुरक्षा में बस से श्मशान लाया गया। श्मशान को आम लोगों और मीडिया के लिए बंद कर दिया गया था। कानून-व्यवस्था की समस्याओं को ध्यान में रखते हुए अधिकारी चाहते थे कि अंतिम संस्कार सूरज निकलने से पहले साढ़े छह बजे तक कर दिया जाए, लेकिन उनकी इच्छा पूरी नहीं हो सकी क्योंकि हिन्दू परंपराओं के मुताबिक सूरज निकलने से पहले अंतिम संस्कार नहीं किया जा सकता। पीड़िता के पिता ने सुबह साढ़े सात बजे, बेटों और कई रिश्तेदारों की मौजूदगी में लड़की के शव को मुखाग्नि दी। अंतिम संस्कार के लिए पुलिस ने साउथ दिल्ली स्थित एक श्मशान के अधिकारियों से शनिवार देर रात संपर्क किया था। अंतिम संस्कार की योजनाओं को पूरी तरह गुप्त रखा गया। पुलिस को डर था कि बड़ी संख्या में लोग श्मशान पहुंचकर हंगामा कर सकते हैं।



Saturday, December 29, 2012

दिल में गुस्सा,आंखें नम


दिल्ली सहित पूरे देश के हर हिस्से में शांतिपूर्ण तरीके से शोक जताने के साथ ही विरोध किया जा रहा है। हर देशवासियों के दिलों में गुस्सा हैं मगर आंखे नम हैं। देशभर में लोगों ने अपने-अपने तरीके से लड़की के प्रति संवेदना जताई है। सामूहिक दुष्कर्म व हिंसा के बाद इस दुनिया को अलविदा कह गई 23 वर्षीया युवती की मौत का सफर एक फिल्म के साथ शुरू हुआ था। अपने मित्र के साथ फिल्म देखने के बाद बस से लौटना इस युवती के लिए भारी पड़ गया। दक्षिण दिल्ली के साकेत में फिल्म देखने के बाद युवती व उसका मित्र मुनिरका पहुंचे थे। वहां से उन्होंने सड़क किनारे खड़ी एक निजी बस पकड़ी। यह 16 दिसम्बर की देर शाम की घटना है। बस चालक व उसमें मौजूद अन्य सदस्यों ने उनसे कहा कि वे उन्हें पश्चिमी दिल्ली के द्वारका में छोड़ देंगे। लेकिन यह झूठ था, पर बस में चढ़ी युवती व उसके मित्र के पास उन पर शक करने की कोई वजह नहीं थी और यह उनकी बहुत बड़ी भूल थी। यह बस आपराधिक प्रवृत्ति के लोगों के हाथों में थी। इनमें बस चालक व कंडक्टर भी शामिल थे। दिन के समय यह बस स्कूली बच्चों को छोड़ती थी। रात के समय बस मालिक बस को चालक व कंडक्टर के साथ छोड़कर चला जाता था। बस में चढ़ी युवती व उसके मित्र को यह भी नहीं पता था कि हाल ही में वहां एक व्यक्ति के साथ लूट कर उसे बाहर फेंक दिया गया था। वह व्यक्ति पुलिस के पास गया था लेकिन उसकी कोई सुनवाई नहीं हुई। पुलिस के मुताबिक जब बस चलनी शुरू हुई तो छह आदमी युवती को खींचकर पीछे की ओर ले गए। इसका विरोध करने पर उसके साथ मारपीट की गई। उसके दोस्त ने भी इसका विरोध किया और उसे भी पीटा गया। बस में मौजूद इन छह लोगों ने युवती के साथ 40 मिनट तक सामूहिक दुष्कर्म किया और फिर उसे लोहे की एक छड़ से मारा-पीटा। इसके बाद उन्होंने युवती व उसके मित्र को महिपालपुर पर सड़क किनारे फेंक दिया। तेरह दिन तक जिन्दगी से संघर्ष के बाद आखिर युवती की सांसे थम गई। देशवासियों का गुस्सा वाजिब है।

जिंदगी की जंग हार गई दामिनी



13 दिनों से जिंदगी की जंग लड़ रही गैंग रेप पीड़ित आखिरकार जिंदगी की जंग हार गई। भारतीय समयानुसार शनिवार तड़के 2.15 बजे सिंगापुर के माउंट एलिजाबेथ हॉस्पिटल में उनकी मौत हो गई। शनिवार शाम उसके पार्थिव शरीर को एयर इंडिया के विशेष विमान से भारत लाया गया। रविवार को अंतिम संस्कार किया जाएगा। माउंट एलिजाबेथ हॉस्पिटल के सीईओ डॉ केल्विन लोह ने युवती की मौत की सूचना देते हुए कहा-हमें यह बताते हुए अत्यंत दुख हो रहा है कि मरीज का 29 दिसंबर 2012 की सुबह 4 बज कर 45 मिनट पर (सिंगापुर के समयानुसार) निधन हो गया। उन्होंने कहा कि दुख की इस घड़ी में माउंट एलिजबेथ हॉस्पिटल के डॉक्टर, नर्स और कर्मचारी पीड़ित परिवार के साथ हैं। पिछले दिनों दिल का दौरा पड़ने की वजह से दिमाग में सूजन हो गई थी और इस जाबांज युवती की मौत का बड़ा कारण यही बना। ब्रेन में सूजन की वजह अंदर या बाहर के हिस्से में पानी का जमा होना है। 25 दिसंबर को युवती को दिल का दौरा पड़ा था, जिसके कारण उसके दिमाग में कई स्थान चोटिल भी हुए। ब्रेन में सूजन और कई अंगों के काम करना बंद करने के कारण पीड़ित ने दम तोड़ा। मेदांता हॉस्पिटल के डॉक्टर यतीन मेहता ने कहा, 'मौत की एक प्रमुख वजह ब्रेन में चोट का होना है। मंगलवार को सफदरजंग अस्पताल में दिल का दौरा पड़ा था। इससे दिमाग में चोट आई और कई अंगों ने काम करना बंद कर दिया।' उन्होंने कहा कि इस तरह के मामले में आखिकार मौत दिल का दौरा पड़ने से ही होती है। दिल्ली के वसंत विहार में रविवार 16 दिसंबर की रात चलती बस में गैंग रेप के बाद लड़की को बुरी तरह पीटा गया था। सफदरजंग हॉस्पिटल से लड़की को 26 दिसंबर की रात एयर ऐंबुलेंस के जरिए सिंगापुर के माउंट एलिजाबेथ हॉस्पिटल ले जाया गया था। सफदरजंग हॉस्पिटल में लड़की के तीन आॅपरेशन हुए थे। वहां इलाज के दौरान ज्यादातर समय उन्हें वेंटिलेटर पर रखा गया था। डॉक्टरों ने इन्फेक्शन की वजह से मरीज की आंत को भी आॅपरेशन कर निकाल दिया था। इससे पहले एलिजाबेथ हॉस्पिटल ने शुक्रवार रात को जारी मेडिकल बुलेटिन में कहा था कि लड़की के सिर में गंभीर जख्म हैं, फेफड़ों और पेट में इन्फेक्शन है और वह तमाम प्रतिकूल परिस्थितियों से जूझ रही हैं। माउंट एलिजाबेथ अस्पताल के सीईओ डॉक्टर केल्विन लोह ने कहा था, 'गुरुवार को अस्पताल लाए जाने के बाद हमारे डॉक्टरों की टीम ने जांच में पाया कि दिल का दौरा पड़ने के अलावा उसके फेफड़ों और पेट में इन्फेक्शन है और साथ ही सिर में भी गंभीर जख्म हैं।' सिंगापुर में भारत के उच्चायुक्त टी. सी. ए. राघवन ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में बताया कि लड़की के पैरेंट्स और परिवार के अन्य सदस्य उसकी पार्थिव देह लेकर जाएंगे। उन्होंने कहा कि भारत से चार्टर्ड विमान के दोपहर तक पहुंचने की संभावना है। राघवन ने कहा कि उन्होंने प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह का शोक संदेश लड़की के परिवार वालों तक पहुंचा दिया है। सिंह ने संदेश में भारत को महिलाओं के रहने के लिए सुरक्षित और बेहतर बनाने की इच्छा जाहिर की है। राघवन ने कहा कि लड़की की मौत पर गहरा दुख जाहिर करते हुए उच्चायोग कार्यालय में सिंगापुर सरकार सहित अलग अलग हिस्सों से संदेश आए हैं। उन्होंने पिछले दो दिन में लड़की के इलाज के लिए सिंगापुर के विदेश मंत्रालय, वहां की सरकार और माउंट एलिजबेथ अस्पताल की ओर से किए गए प्रयासों के लिए उनकी सराहना की।

Friday, December 28, 2012

बिहार में शीतलहर



उत्तर प्रदेश के उपर बने पश्चिमी विक्षोभ के उत्तर पश्चिम बिहार की ओर बढ़ने के कारण उत्तर और मध्य बिहार में कोहरे का प्रकोप है जबकि दक्षिण बिहार में शीतलहर जैसे हालात है और राज्य में रेल तथा हवाई यातायात पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है। मौसम विज्ञान केंद्र के निदेशक एके सेन ने शुक्रवार को बताया कि उत्तर प्रदेश के उपर बने पश्चिमी विक्षोभ के उत्तर पश्चिम बिहार की ओर बढ़ने के कारण उत्तर और मध्य बिहार में दिन में भी कोहरा छाया हुआ है जबकि रात के न्यूनतम तापमान के सामान्य से पांच डिग्री सेल्सियस नीचे गिरने के कारण बिहार में शीतलहर चल रही है। उन्होंने बताया कि अधिकतम तापमान 23 से 24 डिग्री सेल्सियस के बजाय सामान्य से 8 से 9 डिग्री गिरने के कारण उत्तर और मध्य बिहार के इलाकों में दिन में काफी ठंडक है और दिन में कोहरा छाया हुआ है। सेन ने बताया कि शुक्रवार को राज्य में गया सबसे ठंडा स्थान रहा जहां का न्यूनतम तापमान 4.4 डिग्री सेल्सियस दर्ज किया गया। राजधानी पटना में न्यूनतम तापमान 8.5 डिग्री सेल्सियस दर्ज किया गया। अपुष्ट खबरों के अनुसार राज्य भर में पिछले तीन दिन में ठंड के कारण 20 लोगों की मौत हुई लेकिन इसकी आधिकारिक पुष्टि नहीं हो पायी है। राज्य के आपदा प्रबंधन विभाग ने राज्य के शहरी इलाकों में बस पडाव, रैन बसेरों और चौक चौराहों पर अलाव के इंतजाम के लिए कुल मिलाकर 28 लाख रुपये आवंटित किये हैं। मौसम विज्ञान केंद्र के निदेशक ने बताया कि शुक्रवार को राज्य में भागलपुर का न्यूनतम तापमान 6.5 डिग्री सेल्सियस, बांका का 5.2 और मुजफ्फरपुर का 9.3 दर्ज किया गया। सेन ने बताया कि मौसम पूवार्नुमान के अनुसार नये वर्ष के अवसर पर 31 दिसंबर और एक जनवरी को मौसम साफ रहने लेकिन ठंडक भरा रहने की संभावना है।
कोहरे ने लगाया ट्रेनों पर ब्रेक
पटना। कोहरे के कारण नई दिल्ली से उत्तर बिहार की ओर आने वाली कई ट्रेनों का परिचालन प्रभावित हुआ है और कई ट्रेनों को रद्द करना पड़ा है। पूर्व मध्य रेलवे ने बताया कि खराब मौसम के कारण हटिया आनंद विहार स्वर्णजयंती एक्सप्रेस अप और डाउन (12873 और 12874) का परिचालन 31 दिसंबर से आगामी 18 फरवरी तक रद्द कर दिया गया है। आंनद विहार सीतामढ़ी लिच्छवी एक्सप्रेस अप और डाउन (14005 तथा 14006) का परिचालन 28 दिसंबर से 17 फरवरी जबकि जनता एक्सप्रेस अप और डाउन (13039 और 13040) को 28 दिसंबर से 19 फरवरी तक की अवधि के लिए रद्द कर दिया गया है। पूमरे के मुख्य जनसंपर्क पदाधिकारी अमिताभ प्रभाकर ने बताया कि आनंद विहार से बिहार के लिए दो जोडी स्पेशल ट्रेनों का परिचालन रद्द कर दिया गया है। कई ट्रेनों का आंशिक समापन भी किया गया है जबकि कुछ परिवर्तित मार्ग से चलायी जा रही हैं।
हवाई सेवा बाधित,दिल्ली में फंसे सीएम
पटना। हवाई सेवा प्रभावित होने के कारण मुख्यमंत्री नीतीश कुमार विमान से नई दिल्ली से पटना नहीं आ पाये। राष्ट्रीय विकास परिषद (एनडीसी) की बैठक में गुरुवार को शिरकत करने के बाद शुक्रवार की सुबह उन्हें पटना आना था। कोहरे के कारण हवाई यातायात पर बहुत बुरा असर पडा है। पटना स्थित जयप्रकाश नारायण अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे पर खराब दृश्यता के कारण दोपहर ढाई बजे तक न तो किसी विमान ने उड़ान भरी थी और न ही किसी की लैंडिंग हुई। हवाई अड्डा के हवाई यातायात प्रबंधन (एटीम) सूत्रों ने बताया कि एयरपोर्ट पर दृश्यता 600 मीटर रही जबकि सामान्य परिचालन के लिए यह 1600 मीटर होनी चाहिए। खराब दृश्यता के कारण मुंबई से पटना आने वाली गो एयरवेज की उडान को रांची के लिए मार्ग परिवर्तित कर दिया गया।

भारत ने लिया बदला, पाक को 11 रनों से हराया




अहमदाबाद में हुए दूसरे टी-20 मैच में भारत ने पाकिस्तान को 11 रनों से हरा दिया है। भारत ने पाकिस्तान के सामने जीत के लिए 193 रनों का लक्ष्य रखा था। 20 ओवर में पाकिस्तानी टीम 181 रन ही बना पाई। भारत की जीत के साथ ही दो मैचों की सीरीज 1-1 से बराबर रही।भारत के 192 रनों के जवाब में पाकिस्तानी ओपनरों ने ठोस शुरूआत करते हुए अर्धशतकीय साझेदारी की। लेकिन 9वें ओवर में अश्विन ने पाकिस्तान को झटका देते हुए नासिर जमशेद को 41 के निजी स्कोर पर आउट कर दिया। इसके बाद युवराज सिंह ने 10वें ओवर में शहजाद को 31 रन के निजी स्कोर पर पवेलियन भेज दिया।लेकिन कप्तान मो. हफीज ने जबरदस्त बल्लेबाजी करते हुए मैच को रोमांचक बना दिया। हफीज ने अश्विन के एक ओवर में दो लगातार छक्के भी जड़े।इसके बाद खतरनाक दिख रहे कामरान अकमल भी पवेलियन लौट गए। दोनों बल्लेबाजों को अशोक डिंडा ने पवेलियन भेजा। इससे पहले युवराज सिंह ने धमाकेदार बल्लेबाजी करते हुए भारत को मजबूत स्कोर रखने में मदद की। युवराज ने 36 गेंदों पर 72 रनों की धमाकेदार पारी खेली। अपनी पारी के दौरान युवराज ने छक्कों की बरसात कर 2008 टी-20 वर्ल्ड कप की याद दिला दी। युवराज ने पाकिस्तान के नंबर एक स्पिनर सईद अजमल के एक ओवर में लगातार तीन छक्के भी मारे। युवराज का साथ देने वाले कप्तान महेंद्र सिंह धोनी 23 गेंद पर 33 रन बनाकर आउट हुए। पाकिस्तान ने टॉस जीतकर पहले गेंदबाजी का फैसला किया। भारत की ओर से गौतम गंभीर और अजिंक्य रहाणे ने बल्लेबाजी करने उतरे और दोनों के भारत को अच्छी शुरूआत दिलाई। आक्रामक अंदाज में बल्लेबाजी कर रहे गंभीर को 21 रन पर उमर गुल ने एलबीडब्ल्यू आउट कर दिया। दोनों बल्लेबाजों के बीच 44 रनों की साझेदारी हुई। गौतम गंभीर के बाद रहाणे भी 28 रन पर आउट हो गए। रहाणे को भी उमर गुल ने ही पवेलियन भेजा। इसके बाद विराट कोहली 27 रन बनाकर सोहेल तनवीर का शिकार बने। इसके बाद धोनी मैदान पर उतरे। लेकिन इस बीच युवराज और कोहली के बीच अच्छी साझेदारी हो चुकी थी। युवराज और धोनी ने टीम का स्कोर 100 रन के पार पहुंचा दिया। पाकिस्तान ने अपनी टीम में कोई बदलाव नहीं किया है। जबकि भारतीय टीम में एक बदलाव किया गया है। रवींद्र जडेजा की जगह स्पिनर आर अश्विन को शामिल किया गया है। बैंगलोर टी-20 में कड़ी आलोचना के बाद कप्तान महेंद्र सिंह धोनी ने अश्विन को खिलाने का फैसला लिया।

फैसला सवालों के घेरे में



दिल्ली में गैंगरेप की शिकार युवती को इलाज के लिए एकाएक सिंगापुर भेजने का सरकार का फैसला सवालों के घेरे में आ गया है। खुद डॉक्टरों ने सरकार के इस फैसले पर अंगुली उठानी शुरू कर दी है। एक अंग्रेजी अखबार के अनुसार सफदरजंग अस्पताल में भर्ती 23 वर्षीय गैंगरेप पीड़िता को इलाज के लिए सिंगापुर भेजने के पीछे मेडिकल कारण कम और राजनीतिक कारण ज्यादा नजर आ रहे हैं। अखबार के अनुसार जब सामूहिक दुष्कर्म की शिकार पीड़िता को सिंगापुर शिफ्ट करने का फैसला लिया गया तो इलाज कर रहे डॉक्टरों से बस इतना पूछा गया कि क्या पीड़िता सिंगापुर जाने की स्थिति में है? सरकार ने इलाज कर रहे डॉक्टरों की विशेषज्ञ टीम से यह नहीं पूछा कि सिंगापुर शिफ्ट किया जाए या नहीं? या फिर वहां दिल्ली से बेहतर किस मामले में इलाज होगा। डॉक्टरों ने आरोप लगाया कि सरकार फैसला ले चुकी थी कि पीड़िता को सिंगापुर भेजा जाए। डॉक्टरों ने बताया कि हम यहां मरीज को बेहतर चिकित्सा दे रहे थे। अखबार के अनुसार पीड़िता को सिंगापुर भेजने का निर्णय डॉक्टरों का नहीं था, बल्कि सरकार की तरफ से लिया गया फैसला है। एम्स के एक वरिष्ठ डॉक्टर का कहना है कि जब प्रधानमंत्री का यहां आॅपरेशन और इलाज हो सकता है तो फिर एक मरीज को सिंगापुर भेजने की क्या जरूरत थी। एम्स के जेपीएन ट्रॉमा सेंटर के प्रमुख डॉ. एमसी मिश्रा का कहना है कि सरकार के निर्देश और छात्रा के हित को ध्यान में रखकर उसे सिंगापुर भेजे जाने का निर्णय लिया गया है। अखबार ने सर गंगाराम अस्पताल में आॅर्गन ट्रांसप्लांट और गेस्ट्रो सर्जरी डिपार्टमेंट के चेयरमैन डॉ. समीरन नंदी के हवाले से लिखा है कि जब पीड़िता खून से लथपथ थी,उसकी हालत बेहद नाजुक थी और उसे कई दिनों से वेंटिलेटर पर रखा जा रहा था तब ऐसे हालात में उसे सिंगापुर भेजना वाकई में संदेहास्पद है। वैसे पूरा देश पीड़िता की प्राण रक्षा के लिए दुआ कर रहा है। सरकार को भी इस मामले में राजनीति से परे रहने की जरूरत है।

Thursday, December 27, 2012

हर हाल में मिले विशेष राज्य का दर्जा: नीतीश



मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने गुरुवार को राष्ट्रीय विकास परिषद् (एनडीसी)की बैठक में अपने प्रदेश को विशेष राज्य का दर्जा देने की मांग पुरजोर ढंग से फिर उठाते हुए केंद्र सरकार से अपील की कि वह देश के सकल घरेलू उत्पाद में राज्य की हिस्सेदारी बढ़ाने तथा प्रति व्यक्ति आय को राष्ट्रीय औसत के बराबर पहुंचाने एवं विकास दर में वृद्धि के लिए राष्ट्रहित में उनकी मांग पर विचार करें। श्री कुमार ने विज्ञान भवन मेंं 12वीं पंचवर्षीय योजना के अनुमोदन के लिए प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की अध्यक्षता में एन डी सी की 57 वीं बैठक में कहा कि बिहार को विशेष श्रेणी के राज्य का दर्जा देने के लिए वह गत छह वर्षों से मुहिम चला रहे हैं और प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने इसके लिए एक अंतर्मंत्रालीय समूह का गठन भी किया पर इस समूह ने इस मुद्दे को गंभीरता से नहीं लिया और पूर्वाग्रह से ग्रसित होकर विशेष दर्जे के लिए पूर्व निर्धारित मानकों के आधार पर ही निष्कर्ष निकाल दिया।
उन्होंने कहा कि बिहार की प्रति व्यक्ति आय राष्ट्रीय औसत की एक तिहाई है। प्रथम पंचवर्षीय योजना से ही बिहार की प्रति व्यक्ति आय एवं राष्ट्रीय प्रति व्यक्ति आय में अंतर बढ़ता जा रहा है। राज्य में प्रति व्यक्ति आय के राष्ट्रीय औसत को प्राप्त करने में 25-30 वर्ष लगेंगें। इसलिए 12 वीं पंचवर्षीय योजना में राज्य के विकास के लिए विशेष ध्यान देना होगा ताकि प्रति व्यक्ति की आय की इस खाई को कारगर तरीके से पाटा जा सके। उन्होंने कहा कि 11वीं पंचवर्षीय योजना में भारतीय अर्थव्यवस्था की औसत विकास दर 7.94 प्रतिशत रही जबकि बिहार की औसत विकास दर 12.11 प्रतिशत रही। बिहार ने 12वीं पंचवर्षीय योजना में 13 प्रतिशत विकास दर का लक्ष्य रखा है। लेकिन 12 वीं पंचवर्षीय योजना में भी राज्य योजना हेतु सकल बजटीय सहायता 25.62 से घटकर 24.04 प्रतिशत हो गयी है। यह हमारी अर्थव्यवस्था के संघीय ढांचे के विपरीत हैं। इस प्रवृति को बदलना चाहिए और राज्यों के लिए सकल बजटीय सहायता बढ़ाकर कम से कम 10 प्रतिशत तक करना चाहिए। श्री कुमार ने यह भी कहा कि बिहार प्रति व्यक्ति आय के न्यूनतम स्तर पर होने के साथ-साथ शिक्षा, स्वास्थ्य, सामाजिक एवं अन्य आर्थिक सेवाओं पर प्रति व्यक्ति खर्च में भी सबसे निचले पायदान पर है। बिहार में प्रति व्यक्ति विकास खर्च 3600 रुपये है जबकि राष्ट्रीय औसत 6100 रुपये है। इसलिए बिहार को प्रति व्यक्ति विकास खर्च के राष्ट्रीय औसत की कतार में लाने के लिए अतिरिक्त केन्द्रीय सहायता की आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि बिहार राज्य ने पिछले पांच वर्षो में तीव्र आर्थिक विकास दर को हासिल किया है। वह राष्ट्रीय सकल घरेल उत्पाद में अपनी भागीदारी को सार्थक रुप में बढ़ाना चाहता है। विशेष राज्य का दर्जा कई मामलों में मदद करेगा। केन्द्रीय योजनाओं में केन्द्र का हिस्सा 90 प्रतिशत बढ़ जाएगा। राज्य के हिस्सों में बचत होने से हम अधिक कल्याणकारी योजनाएं बना सकेंगे। इसके अतिरिक्त प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष करों में कटौती मिलने से निजी निवेशों को बढावा मिलेगा। इससे राज्य के विभिन्न क्षेत्रों में निजी निवेश हो सकेगा और रोजगार के अनेक अवसर उत्पन्न होंगे।
उन्होंने कहा कि अन्तमंत्रालीय समूह ने भी 12वीं पंचवर्षीय योजना में बिहार के लिए विशेष योजना को जारी रखने की सिफारिश की थी। पिछली देनदारियों के अलावा 12वीं पंचवर्षीय योजना में प्रतिवर्ष अतिरिक्त 4000 करोड़ रुपये देने का विशेष अनुरोध करता हूं ताकि बिहार एवं अन्य राज्यों के बीच आधारभूत संस्थानाओं एवं विकास की इस खाई को पाटा जा सके। उन्होंने शिक्षा के अधिकार कानून के क्रियान्वन की अवधि बढ़ाने की भी मांग की क्योंकि बिहार 31 मार्च 2013 तक इस कानून को लागू नहीं कर सकता क्योंकि उनके पास संसाधनों की कमी है। उन्होंने यह भी कहा कि योजना आयोग एवं केन्द्र सरकार के स्तर पर पिछड़ा क्षेत्र अनुदान फंड के तहत योजनावार स्वीकृति दी जाती थी। इसके कारण योजनाओं के क्रियान्वन में काफी देर हुई। इसलिए इस विशेष योजनाओं के तहत योजनाओं की स्वीकृति का अधिकार राज्य सरकार को दिया जाए। मुख्यमंत्री ने बच्चों में अतिकुपोषण को दूर करने के लिए राष्ट्रीय पोषण मिशन की स्थापना की भी मांग की।

सबसे तेजी से बढ़ता क्राइम रेप,दिल्ली नंबर 1 पर







 


देशभर में महिलाओं के खिलाफ यौन अपराध चिंताजनक रफ्तार से बढ़ रहे हैं। पिछले चार दशकों में अन्य अपराधों की तुलना में रेप की संख्या में सबसे ज्यादा बढ़ोतरी हुई है और इनसे जुड़े दोषियों को सजा देने के मामले में हम सबसे पीछे रहे हैं। दिल्ली में गैंगरेप से पहले पड़ोसी हरियाणा में ही पिछले कुछ महीनों में रेप के एक के बाद एक 15 मामले सामने आए, जिसमें ज्यादातर गैंगरेप के केस थे। इसी तरह पंजाब के अमृतसर में पिछले महीने एक पुलिस अधिकारी को इसलिए मौत के घाट उतार दिया गया कि वह अपनी बेटी को यौन उत्पीड़न से बचाने की कोशिश कर रहा था।
राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के ताजे आकंड़े दिखाते हैं कि 1971 से 2011 के बीच रेप की घटनाओं में 873.3 फीसद की बढ़ोतरी दर्ज की गई। 1971 में जहां रेप की 2,487 मामले सामने आए थे, वहीं, 2011 में यह आंकड़ा 24,206 तक पहुंच गया। इसकी तुलना में पिछले छह दशकों यानी 1953 से 2011 के बीच हत्या के मामले में 250 फीसद की ही बढ़ोतरी हुई। 1970 तक रेप की घटनाओं को ज्यादा तवज्जो नहीं दी जाती थी इसलिए तब तक इसका रिकॉर्ड भी इकट्ठा नहीं किया जाता था लेकिन 1971 से एनसीआरबी ने आंकड़ा रखना शुरू किया।
रेप की घटनाओं में वृद्धि की रफ्तार, तमाम अपराधों की तुलना में तीन गुना ज्यादा है और हत्याओं की तुलना में साढ़े तीन गुना। पिछले पांच वर्षो में रेप की घटनाओं में 9.7 फीसद की बढ़ोतरी हुई है। कुछ हफ्ते पहले ब्रिटिश अखबार गार्जियन ने जी-20 के देशों में भारत को महिलाओं के लिए सबसे बुरा जगह करार दिया था। इसके साथ महिला अधिकारों के लिए काम करने वाली एक अंतरराष्ट्रीय संस्था ने एक सर्वे में कहा था कि भारत महिलाओं के सबसे खतरनाक जगहों में आता है और इसमें उनका साथ दे रहे हैं अफगानिस्तान, सोमालिया और कांगो। भारत में औसतन हर 40 मिनट में एक महिला यौन उत्पीड़न या घरेलू हिंसा का शिकार हो रही हैं।
देश के महानगरों में दिल्ली शर्मनाक तरीके से रेप के मामले में सबसे आगे है। पिछले पांच सालों में राजधानी में रेप की 2620 घटनाएं दर्ज की गई थीं। इसकी तुलना में मुंबई में 1033, बेंगलूर में 383, चैन्नई में 293 और कोलकाता में 200 मामले दर्ज किए गए थे। इससे भी बदतर स्थिति रेप के मामले में दोषियों को सजा देने में है। देश में रेप के आरोपियों को सजा देने का औसत 11 फीसद है जबकि हत्या या अन्य अपराधों में औसत 28 फीसद है। 2002 से 2011 के बीच यानी पिछले एक दशक में रेप के 5337 मामलों में फैसले आए थे और इनमें से 3860 मामलों में आरोपियों को या तो बरी कर दिया गया या फिर समुचित साक्ष्यों के अभाव में अदालत ने छोड़ दिया। पूरे देश को देखा जाए तो 2001 से 2010 बीच, रेप के मामलों में आरोप साबित करने की दर 26 फीसद ही रही है। यह हत्याओं के मामले में आरोप साबित करने की 35 फीसद की दर से नौ फीसद कम है। निवारक सजा की तो बात दूर, ऐसा लगता है कि हमारे देश में अपराध के लिए सजा दिए जाने का रिकॉर्ड इतना खराब होने के चलते ही, अपराधियों के मन में अब कानून का कोई डर ही नहीं रह गया है। जहां तक रेप के मामले में वर्ष 2011 के रिकॉर्ड का सवाल है मध्यप्रदेश 3406 रेप केस के साथ अव्वल रहा, वहीं पश्चिम बंगाल 2363 केस, उत्तर प्रदेश 2042 केस, राजस्थान 1800 केस, महाराष्ट्र 1701 केस, असम 1700 केस और आंध्र प्रदेश 1442 के साथ क्रमश: दूसरे, तीसरे, चौथे, पांचवें, छठे और सातवें नंबर पर रहा। इसके साथ ही पिछले वर्ष 572 रेप के मामलों के साथ मेट्रो पोलिटन शहरों में सबसे अव्वल रहा।

Wednesday, December 26, 2012

कांस्टेबल की मौत पर झूठ बोल रही है दिल्ली पुलिस: चश्मदीद चोट के कारण कांस्टेबल की मौत: पोस्टमार्टम रिपोर्ट



गैंगरेप के विरोध प्रदर्शन के दौरान घायल होने के बाद मंगलवार को अस्पताल में दम तोड़ने वाले दिल्ली पुलिस के कांस्टेबल सुभाष तोमर की पोस्ट मार्टम रिपोर्ट आ गई है। दिल्ली पुलिस ने दावा किया है कि सुभाष तोमर की मौत चोट की वजह से हुई है। पोस्टमार्टम रिपोर्ट का हवाला देते हुए दिल्ली पुलिस के एडिशनल कमिश्नर के सी द्विवेदी ने कहा कि चोट की वजह से सुभाष तोमर को दिल का दौरा पड़ा जिस वजह से उनकी मौत हो गई।दिल्ली पुलिस ने कहा, 'मृत कांस्टेबल के सीने, गर्दन और पैर में भी चोट लगी थी। गौरतलब है कि सुभाष तोमार की मौत का मामला पल-पल नया रूप लेता जा रहा है। इससे पहले राम मनोहर लोहिया अस्पताल के डॉ. टीएस सिद्धू ने कहा था कि कांस्टेबल के शरीर पर किसी तरह की चोट नहीं थी। आरएमएल के डॉक्टर टी एस सिद्धू का कहना है कि सुभाष तोमर जब अस्पताल लाए गए, तब उनके शरीर पर बाहरी या अंदरूनी चोट के निशान नहीं थे।गौरतलब है कि मौके पर सुभाष तोमर को अस्पताल में भर्ती करवाने वाले एक चश्मदीद ने भी ऐसा ही दावा किया था। चश्मदीद योगेन्द्र का कहना है कि सुभाष तोमर को भीड़ ने कोई नुकसान नहीं पहुंचाया था, बल्कि वे खुद ही गिर पड़े थे। योगेन्द्र का समर्थन पाउलीन नामक एक लड़की ने भी की है, जो उस समय योगेन्द्र के साथ ही कांस्टेबल की मदद कर रही थी। इन दोनों के उस समय अनुसार  सुभाष के शरीर पर चोट के कोई निशान नहीं दिख रहे थे।
जनता की पिटाई या आंसू गैस के धुएं व लाठीचार्ज से मची भगदड़ के बाद हार्ट अटैक। दिल्ली पुलिस के कांस्टेबल सुभाष चंद तोमर की मौत की असल वजह इनमें से क्या हो सकती है? मौत की वजह पर उलझन बढ़ती ही जा रही है। इस बीच चश्मदीद महिला पाउलिन ने यह कहकर मामले को और उलझा दिया है कि पुलिस झूठ कह रही है। दरअसल सुभाष के आस-पास भीड़ थी ही नहीं तो भीड़ द्वारा उन्हें पीटे जाने का तो सवाल ही नहीं उठता। पाउलिन ने यह कहकर दिल्ली पुलिस की मुश्किल और बढ़ा दी है कि जिस वक्त तोमर की हालत बिगड़ रही थी उस वक्त पुलिस के लोगों ने उनकी मदद नहीं की। उनकी मौत पुलिस की वजह से हुई न कि प्रदर्शनकारियों की वजह से। उन्होंने कहा कि दिल्ली पुलिस सुभाष की मौत के बहाने गैंगरेप के मामले को दबाना चाहती है। वहीं दिल्ली पुलिस की क्राइम ब्रांच ने खुद अपने साथी की मौत की जांच करने का फैसला किया है। वहीं केंद्र सरकार ने सिपाही के परिजनों को दस लाख रुपये देने की घोषणा की है। मौत पर गहराए रहस्य की क्राइम ब्रांच जांच करेगी। इस मामले में आठ लोगों पर केस दर्ज कर लिया गया है। इनमें अरविंद केजरीवाल की 'आप' पार्टी का एक कार्यकर्ता भी शामिल हैं। वहीं अरविंद केजरीवाल ने अपनी पार्टी के किसी भी कार्यकर्ता के शामिल होने की बात से इंकार करते हुए उल्टा दिल्ली पुलिस की जांच पर ही सवाल उठा दिए। इंडिया गेट के समीप रविवार को ड्यूटी के दौरान मारे गए सिपाही सुभाष चंद तोमर को घटना के वक्त सहारा देने वाले युवक योगेंद्र के मुताबिक सिपाही की मौत प्रदर्शनकारियों के हमले से नहीं बल्कि भीड़ के पीछे भागने के दौरान हुई थी। प्रदर्शनकारियों के पीछे भागते वक्त वे थोड़ी देर के लिए रुके थे बाद में सड़क पर गिर पड़े थे। इसके बाद सुभाष को योगेंद्र, एक युवती व पुलिसकर्मियों ने सहारा भी दिया था। उन लोगों ने सुभाष के जूते खोले, हथेली रगड़ी तथा उनके सीने को दबाकर सांस देने की कोशिश की थी। लेकिन उन्हें नहीं बचाया जा सका। मालूम हो कि पुलिस आयुक्त नीरज कुमार ने मंगलवार को प्रेस वार्ता के दौरान सिपाही की मौत का कारण प्रदर्शनकारियों का उन पर हमला करना बताया था। इस मामले में आठ लोगों के खिलाफ हत्या का मुकदमा भी दर्ज किया गया है। पुलिस आयुक्त ने दावा किया था कि सिपाही के शरीर पर कई गंभीर चोट के निशान थे। लेकन योगेंद्र ने बताया कि बेसुध होने के बाद अन्य पुलिसकर्मियों की मदद से सुभाष चंद की वर्दी खोली थी। उस वक्त उनके सीने व दाहिने हाथ में सिर्फ खरोच के निशान मिले थे।
दिल्ली पुलिस आयुक्त नीरज कुमार कहते हैं कि पेट, छाती और गर्दन में चोट के निशान पाए गए हैं। सिपाही रविवार को इंडिया गेट पर प्रदर्शनकारियों के उपद्रव का शिकार हुआ है। वहीं राम मनोहर लोहिया अस्पताल, जहां सिपाही की मौत हुई, वहां के चिकित्सा अधीक्षक डॉ. टीएस सिद्धू कहते हैं, सदमे के चलते सिपाही को हार्ट अटैक आया था। उसके शरीर पर कहीं भी गंभीर चोट के निशान नहीं थे। अस्पताल के सूत्र तो यहां तक बताते हैं कि सिपाही को हृदय से संबंधित बीमारी पहले से थी। ऐसे में सवाल खड़ा होता है कि जब इंडिया गेट पर इतना बड़ा प्रदर्शन चल रहा था तो हृदय रोगी सिपाही की वहां ड्यूटी क्यों लगाई गई? हालांकि इस बारे में दिल्ली पुलिस का कोई अधिकारी कुछ नहीं कह रहा है। सोशल नेटवर्किंग साइट पर इस मामले में कई फोटो भी शेयर हो रहे हैं। जिनमें सुभाष चंद जमीन पर लेटे दिख रहे हैं। पुलिसकर्मियों के साथ कुछ प्रदर्शनकारी जिनमें युवती भी शामिल है, उनके हाथों की मालिश कर रहे हैं। सोशल साइट पर ही सवाल उठाया गया है कि जब कोई व्यक्ति चक्कर खाकर या कोई दौरा आदि आने से गिरता है तभी उसके हाथ पैर की मालिश होती है, प्रदर्शनकारियों की पिटाई से घायल को तो तत्काल अस्पताल पहुंचाया जाता है। इस बाबत दिल्ली पुलिस के संयुक्त आयुक्त ताज हसन जो स्वयं रविवार को इंडिया गेट पर मौजूद थे और पुलिस बल का नेतृत्व का रहे थे। ताज हसन ने कहा है कि कांस्टेबल सुभाष इंडिया गेट पर कानून व्यवस्था संभालने की ड्यूटी पर था। उसे बेहोशी हालत में उठाया गया था। हमने एक बहादुर सिपाही को खो दिया है। इसका दुख है। जबकि सोमवार को एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी ने दावा किया था कि सुभाष को मारा-पीटा गया। वह नीचे गिर गया तो लोग उसके ऊपर से गुजरते चले गए। आरएमएल अस्पताल के चिकित्सा अधीक्षक सिद्धु कहते हैं दिल्ली पुलिस के सिपाही सुभाष तोमर को जब अस्पताल के इमरजेंसी वार्ड में लाया गया था, उसे गहरा सदमा लगा था। जिसकी वजह से उसे हृदयाघात हुआ। इमरजेंसी वार्ड में पहुंचने के बाद उसे आइसीयू में वेंटिलेटर पर रखा गया था। उसके शरीर में कहीं भी गंभीर चोट के निशान नहीं थे। सिर्फ हाथ व सीने पर मामूली चोट थी। उन्होंने कहा कि सुभाष की कोई सर्जरी करने का मौका नहीं मिल पाया। अस्पताल सूत्रों की मानें तो सिपाही को सुबह 6:22 पर एक और हार्ट अटैक आया था, जो उसकी मौत का कारण बना। चिकित्सा अधीक्षक से जब पूछा गया कि पुलिस सिपाही की मौत का कारण पिटाई से लगी चोट बता रही है, तो उन्होंने कहा कि पोस्टमार्टम रिपोर्ट से पता चल जाएगा कि सच्चाई क्या है। कुछ यही जवाब पुलिस आयुक्त नीरज कुमार का था। उनसे सवाल किया गया तो जवाब था मैं डाक्टर नहीं हूं। हार्ट अटैक चोट की वजह से हुआ या बिना चोट के, यह मैं नहीं बता सकता। लेकिन उसके शरीर पर चोट के निशान मिले हैं। मौत की असली वजह दो दिन में पोस्टमार्टम रिपोर्ट में आ जाएगी। खास बात यह है कि दिल्ली पुलिस के जवानों में हृदयरोग, मधुमेह, उच्च रक्तचाप, तनाव तथा मोटापे संबंधी बीमारियां आम बात है। लंबी ड्यूटी व अत्यधिक तनाव में काम करने का असर उनके स्वास्थ्य पर पड़ रहा है इसका खुलासा हाल ही में एक निजी अस्पताल द्वारा पुलिसकर्मियों की हेल्थ जांच में हुआ था। सवाल यह भी है कि देश की राजधानी में सख्त ड्यूटी कर रहे पुलिसकर्मियों के स्वास्थ्य की चिंता करने की जिम्मेदारी आखिर किसकी है?

झूठ पर झूठ आखिर क्यों?



दिल्ली पुलिस के कांस्टेबल सुभाष चंद तोमर की मौत की असल वजह क्या थी? मौत की वजह पर उलझन बढ़ती ही जा रही है। यह उलझन दिल्ली पुलिस की झूठ पर झूठ बोलने की वजह से और बढ़ी है। इस बीच चश्मदीद महिला पाउलिन ने यह कहकर मामले को और उलझा दिया है कि पुलिस झूठ कह रही है। दरअसल सुभाष के आस-पास भीड़ थी ही नहीं तो भीड़ द्वारा उन्हें पीटे जाने का तो सवाल ही नहीं उठता। उन्होंने कहा कि दिल्ली पुलिस सुभाष की मौत के बहाने गैंगरेप के मामले को दबाना चाहती है। वहीं अब दिल्ली पुलिस की क्राइम ब्रांच ने खुद अपने साथी की मौत की जांच करने का फैसला किया है। इस मामले में आठ लोगों पर केस दर्ज कर लिया गया है। इनमें अरविंद केजरीवाल की 'आप' पार्टी का एक कार्यकर्ता भी शामिल हैं। वहीं अरविंद केजरीवाल ने अपनी पार्टी के किसी भी कार्यकर्ता के शामिल होने की बात से इंकार करते हुए उल्टा दिल्ली पुलिस की जांच पर ही सवाल उठा दिए। इंडिया गेट के समीप रविवार को ड्यूटी के दौरान मारे गए सिपाही सुभाष चंद तोमर को घटना के वक्त सहारा देने वाले युवक योगेंद्र के मुताबिक सिपाही की मौत प्रदर्शनकारियों के हमले से नहीं बल्कि भीड़ के पीछे भागने के दौरान हुई थी। प्रदर्शनकारियों के पीछे भागते वक्त वे थोड़ी देर के लिए रुके थे बाद में सड़क पर गिर पड़े थे। इसके बाद सुभाष को योगेंद्र, एक युवती व पुलिसकर्मियों ने सहारा भी दिया था। उन लोगों ने सुभाष के जूते खोले, हथेली रगड़ी तथा उनके सीने को दबाकर सांस देने की कोशिश की थी। वहीं पुलिस आयुक्त नीरज कुमार ने मंगलवार को सिपाही की मौत का कारण प्रदर्शनकारियों का उन पर हमला करना बताया था। उन्होंने दावा किया था कि सिपाही के शरीर पर कई गंभीर चोट के निशान थे। वहीं राम मनोहर लोहिया अस्पताल, जहां सिपाही की मौत हुई, वहां के चिकित्सा अधीक्षक डॉ. टीएस सिद्धू कहते हैं, सदमे के चलते सिपाही को हार्ट अटैक आया था। उसके शरीर पर कहीं भी गंभीर चोट के निशान नहीं थे।

Tuesday, December 25, 2012

टी-20 में पाक से भारत की पहली हार



भारतीय और पाकिस्तान के बीच बैंगलोर के चेन्नास्वामी स्टेडियम में खेला गया पहला टी-20 मैच में भारत को 5 विकेट से शिकस्त मिली है। पाकिस्तान के कप्तान हफीज ने शानदार 61 रनों की पारी खेली। दो मैचों की सीरीज में पाकिस्तान 1-0 से आगे।इससे पहले पाकिस्तान ने टॉस जीतकर गेंदबाजी करने का फैसला किया। पहले बल्लेबाजी करते हुए भारत ने निर्धारित 20 ओवरों में 9 विकेट खोकर 133 रन बनाए। रहाणे ने 42 रन और गंभीर ने 43 रन बनाए। इससे पहले दोनों टीमें 3 बार टी-20 में आमने-सामने हुई थी और तीनों में भारत विजयी रहा था।टीम इंडिया के लिए आज बल्लेबाजी बड़ी परेशानी की वजह रही। रहाणे और गंभीर को छोड़कर कोई बल्लेबाज नहीं चले। जबकि पहली बार टीम इंडिया में शामिल भूवनेश्वर कुमार ने 3 विकेट झटके। भुवनेश्वर कुमार ने तीन पाकिस्तानी बल्लेबाजों को पविलियन भेजकर विरोधी टीम को शुरूआती झटके दिए लेकिन शोएब मलिक ने नॉट आउट हाफ सेंचुरी जड़कर पाकिस्तान को पहले टी-20 में जीत दिलाई।
इससे पहले भारत ने पहले बैटिंग करते हुए पाकिस्तान को जीत के लिए 134 रन का टारगेट दिया था। भारत की ओर से पहले विकेट के लिए सलामी बल्लेबाज जोड़ी गौतम गंभीर और अजिंक्य रहाणे ने बेहतरीन खेल का प्रदर्शन किया। दोनों बल्लेबाजों ने मिलकर टीम के लिए 77 रन जोड़े। पाकिस्तान को शाहिद अफरीदी ने पहला ब्रेक थ्रू दिलवाया जब रहाणे उनकी गेंद पर उमर अकमल को विकेट थमा बैठे। 12 वें ओवर की चौथी गेंद पर तेजी से रन लेने के चक्कर में गंभीर रन आउट हो गए। इसके बाद बाकी बचे बल्लेबाजों में से कोई भी अच्छे रन नहीं बना पाया और एक के बाद एक आसानी से विकेट गिरते गए। 20वें ओवर के अंत तक भारत 9 विकेट खोकर 133 रन ही बना पाया। पाकिस्तान के कप्तान मोहम्मद हफीज के विश्वास पर पाकिस्तानी बोलर काफी हद तक खरे उतरे। उमर गुल ने 3 ओवर में 21 रन देकर 3 विकेट झटके। वहीं पाकिस्तान के स्टार बोलर सईद अजमल ने भी धोनी और रैना को झटपट निपटा कर अपनी झोली में दो विकेट कर लिए। शाहिद अफीरीदी ने भी स सलामी जोड़ी को तोड़ने का काम किया और रहाणे का महत्वपूर्ण विकेट अपने खाते में जोड़ लिया। भारत के बोलिंग लाइन अप में आज इशांत शर्मा को शामिल किया गया है जो पाकिस्तान के खिलाफ अच्छा प्रदर्शन करते आए हैं। अब देखना है कि पाकिस्तान अफरीदी की खराब फॉर्म के चलते 134 रन के इस टार्गेट को अचीव कर पाता है या नहीं।

बलात्कारियों की क्या हो सजा?



राकेश प्रवीर/ विमर्श 
पूरे देश में इन दिनों बलात्कार की घटनाओं को लेकर राष्ट्रव्यापी चिंता बनी हुई है। आए दिन देश के किसी न किसी भाग से न केवल वयस्क लड़की अपितु अवयस्क, किशोरी यहां तक कि गोद में उठाई जाने वाली बच्चियों तक के साथ बलात्कार किए जाने की घटनाओं के मामले प्रकाश में आ रहे हैं। यह भी देखा जा रहा है कि हमारे देश की अदालतें ऐसे जघन्य अपराधों के लिए कड़ी से कड़ी सजा देने में भी नहीं हिचकिचा रही हैं। यहां तक कि बलात्कार तथा उसके बाद बलात्कार पीड़िता की हत्या किए जाने के जुर्म में कोलकाता में धनंजय चटर्जी नामक एक व्यक्ति को फांसी के तख्ते पर भी लटका दिया गया। इसी प्रकार की सजा निचली अदालतों द्वारा दिए जाने के कुछ और मामले भी प्रकाश में आए हैं। परंतु जिस तरह से देश की राजधानी दिल्ली में एक 23 वर्षीय पैरामेडिकल की छात्रा के साथ चलती हुई बस में 6 लोगों द्वारा किए गए गैंगरेप के बाद उसे चलती हुई बस से बाहर फेंक दिए जाने की घटना ने एक बार फिर पूरे देश के सभ्य समाज को हिलाकर रख दिया है। क्या संसद,क्या भारतीय सिने जगत, क्या बुद्धिजीवी और क्या समाजसेवी यहां तक कि छात्र व देश के आम नागरिक सभी इस घटना से स्तब्ध रह गए हैं। एक स्वर में पूरा देश इन बलात्कारी दरिंदों को यथाशीघ्र कड़ी से कड़ी सजा दिए जाने की मांग कर रहा है।
दिल्ली में हुए इस सामूहिक बलात्कार की घटना के बाद जहां इन अपराधियों को फास्ट ट्रैक कोर्ट में मुकद्दमा चलाकर कुछ ही दिनों के भीतर सख्त से सख्त सजा दिए जाने की मांग की जा रही है वहीं इसी दौरान एक बहस इस बात को लेकर भी छिड़ गई है कि आखिर देश में बलात्कार की बढ़ती घटनाएं रोकने के लिए और क्या अतिरिक्त उपाय किए जाएं? ऐसे जघन्य अपराध के मुजरिमों को किस प्रकार की सजाएं दी जाएं? गौरतलब है कि अभी तक भारतीय दंड संहिता में रेयर आॅफ द रेयरेस्ट समझे जाने वाले अपराधों के लिए ही सजा-ए-मौत अथवा फांसी दिए जाने का प्रावधान है। जाहिर है हत्या तथा वीभत्स तरीके से अंजाम दिए गए हत्या जैसे गंभीर आरोपों के लिए अभी तक देश की अदालतों द्वारा फांसी की सजा सुनाए जाने के मामले कभी-कभार सामने आते हैं। कोलकाता में धनंजय चटर्जी को भी अदालत ने केवल बलात्कार का दोषी होने के चलते फांसी की सजा दिए जाने का आदेश नहीं दिया था बल्कि उसके अपराध में यह भी शामिल था कि वह स्वयं एक अपार्टमेंट में सिक्योरिटी गार्ड था तथा उसके ऊपर उस अपार्टमेंट में रहने वालों की सुरक्षा का जिम्मा था। परंतु उसने अपनी जिम्मेदारी निभाने के बजाए स्वयं ही उस अपार्टमेंट में रहने वाली एक नाबालिग बच्ची के साथ बलात्कार किया तथा बाद में उसकी हत्या भी कर डाली। यानी रक्षक ही भक्षक बन बैठा। इसीलिए अदालत ने अपने फैसले में इस बलात्कार व हत्या की घटना की तुलना इंदिरा गांधी की हत्या से करते हुए तथा धनंजय को रक्षक के रूप में भक्षक बताते हुए उसे फांसी की सजा सुनाई थी।
परंतु पिछले दिनों दिल्ली के सामूहिक बलात्कार कांड के बाद चारों ओर से यह आवाजें सुनाई दे रही हैं कि बलात्कार की सजा भी मृत्यु दंड होना चाहिए। बलात्कारियों को सजा-ए-मौत दिए जाने की मांग केवल सडकों पर प्रदर्शनकारियों द्वारा ही नहीं की जा रही बल्कि देश की संसद में भी यह मांग की गई है। कई सांसद खुलकर बलात्कारी को फांसी दिए जाने के पक्ष में अपनी राय जाहिर कर रहे हैं जबकि फांसी की सजा का मानवीय दृष्टि से विरोध करने वाले लोगों का कहना है कि बलात्कारी को आजीवन कारावास की सजा होनी चाहिए। दूसरी ओर बलात्कार जैसी दिल दहला देने वाली घटनाओं से दु:खी समाज के एक बड़े तबके का यह भी मानना है कि ऐसे अपराधियों को हिजड़ा अथवा नपुंसक बना दिया जाना चाहिए ताकि वे न केवल स्वयं अपनी करनी पर पछताएं बल्कि दूसरे भी उसे देखकर सबक हासिल करें तथा भविष्य में कोई भी व्यक्ति उस सजायाफ्ता अपराधी को देखकर बलात्कार जैसा दु:स्साहस करने की कोशिश न करे। दिल्ली की घटना से बेहद दु:खी होकर फिल्म अभिनेता अमिताभ बच्चन ने इस घटना में शामिल लोगों को जानवरों से बदतर प्राणी होने की बात तो कही वहीं सांसद व अपने दौर की ख्यातनाम अभिनेत्री जया बच्चन ने कहा कि इस घटना के अपराधियों को जनता के हवाले कर दिया जाना चाहिए। परंतु क्या केवल भारतीय दंड संहिता में बलात्कारियों की सजा के विभिन्न कठोर तरीके अपनाए जाने या फांसी जैसी कठोर सजा दिए जाने के बाद क्या समाज में बलात्कार की घटनाओं पर नियंत्रण पाया जा सकेगा? यहां यह भी गौरतलब है कि भारत संभवत: भारत विश्व का अकेला ऐसा देश है जहां औरत को कभी दुर्गा का रूप बताया जाता है तो कभी देवियों से औरत की तुलना की जाती है। इतना ही नहीं बल्कि नवरात्रों के अवसर पर तो अवयस्क कन्याओं को अपने-अपने घरों में सम्मानित तरीके से बुलाकर उनकी पूजा करने व उन्हें प्रसाद आदि भेंट करने जैसा उत्सव भी मनाया जाता है।
इत्तेफाक से आज यदि हम राजनीति व सत्ता के क्षेत्र में भी देखें तो हमें सोनिया गांधी, मीरा कुमार, सुषमा स्वराज जैसी हस्तियां राजनीति व सत्ता के शिखर पर बैठी दिखाई देंगी। यहां तक कि हमारा देश गत दिनों देश के प्रथम नागरिक के रूप में एक महिला राष्ट्रपति को भी देख चुका है। देश के कई राज्यों में इस समय महिला राज्यपाल व महिला मुख्यमंत्री देखी जा सकती हैं। परंतु इन सब वास्तविकताओं के बावजूद समाज में महिलाओं के प्रति न तो आदर की भावना पैदा हो रही है न ही बलात्कारी प्रवृति के लोग इन सबसे भयभीत होते हैं। कुछ समाजशास्त्रियों का तो उपरोक्त बातों से अलग हटकर कुछ और ही मत है। इनका मानना है कि पारिवारिक स्तर पर लडकी व लडकों की परवरिश के दौरान उनकी बाल्यावस्था में अपनाए जाने वाले दोहरे मापदंड ही समाज में इस प्रकार की घटनाओं के जिम्मेदार हैं। प्रत्येक माता-पिता अपने बच्चों के पालन-पोषण में लड़कों को आक्रामक बने रहने तथा लड़कियों को यहां तक कि लड़के से बड़ी उम्र की उसकी ही बहनों को मारने व पीटने तक की घटनाओं को आंखें मूंद कर देखते हैं। परिणास्वरूप बचपन से ही लड़के को किसी भी लड़की पर अपनी प्रभुता व आक्रामकता बनाए रखने का पूरा रिहर्सल हो जाता है। इसी बात को प्रसिद्ध कहानीकार व लेखक राजेंद्र यादव ने इन शब्दों में बयान किया है कि जब तक लड़कों को राजकुमार की तरह पाला-पोसा जाता रहेगा तथा मर्दों को पति परमेश्वर का दर्जा दिया जाता रहेगा तब तक समाज में ऐसी आपराधिक घटनाएं होती रहेंगी। ऐसे में निश्चित रूप से यह एक अति गंभीर, चिंतनीय तथा अति संवेदनशील विषय है कि आख्रिर भारतीय समाज में बलात्कार जैसी शर्मनाक घटनाओं को रोकने के लिए कौन से पुख्ता उपाय किए जाएं? क्या मौत की सजा के भय से ऐसी घटनाओं को रोका जा सकता है? क्या आजीवन कारावास जैसी सजा देकर बलात्कारियों को सारी उम्र बिठाकर मुफ्त की रोटी खिलाना न्यायसंगत है या हिजड़ा या बधिया बनाकर बलात्कारियों को उनके दुष्कर्मों की सजा देना तथा ऐसी मानसिकता रखने वाले दूसरे लोगों के दिलों में भय पैदा करना उचित है? या फिर पारिवारिक स्तर पर बचपन से ही बच्चों की मानसिकता ऐसी बनानी होगी कि वे बड़े होकर किसी लड़की पर आक्रमकता की दृष्टि से हावी होने या उसे अपमानित करने की बात तक अपने जेहन में न ला सकें? कुछ लोगों का यह भी तर्क है कि बलात्कार या यौन शोषण जैसे मामलों को रोकने के लिए सेक्स शिक्षा का ज्ञान आम लोगों को विशेषकर स्कूल, कॉलेज जाने वाले बच्चों को होना बहुत जरूरी है।
वैसे इस ज्वलंत मुद्दे पर कि बलात्कार की सजा क्या हो और क्या न हो इसका निर्धारण करने का अधिकार बुद्धिजीवियों, सांसदों या आम लोगों को होने के बजाए या इनकी सलाह लेने के बजाए देश की तमाम बलात्कार पीड़ित महिलाओं के मध्य बाकायदा एक व्यापक सर्वेक्षण करवा कर निर्धारित की जाए तो शायद सख्त से सख्त सजा की जो बातें की जा रहीं है,उसकी कुछ हद तक सार्थकता हो सकती है। क्योंकि भुक्तभोगी महिला ही अपने वास्तविक दु:ख-दर्द, उसकी पीड़ा तथा सामाजिक व पारिवारिक स्तर पर पेश आने वाली समस्याओं को बयां कर सकती है। हां इतना जरूर है कि बलात्कार के आरोप में हमारे देश में अब तक साल,दो साल या पांच-सात साल तक की अधिकतम सजाएं जो बलात्कारियों को दी जाती रही हैं वह कतई पर्याप्त नहीं हैं। निश्चित रूप से सजा ऐसी होनी चाहिए कि जो ऐसी घटना को अंजाम देने से पहले बलात्कारियों के दिल में खौफ पैदा करे। परंतु बलात्कार पीड़िता की इच्छा व उसकी मंशा को बलात्कारी को सजा दिए जाने के मामले में शामिल जरूर किया जाना चाहिए। क्योंकि बलात्कार को लेकर छिड़ी बहस को राजनैतिक रूप देने वालों या केवल आम लोगों की सहानुभूति अर्जित करने हेतु उनकी भावनाओं को भड़काने पर आधारित भाषणबाजी करने वाले लोगों से कहीं अच्छी तरह अपने दु:ख-दर्द व अपने अंधकारमय भविष्य के विषय में एक बलात्कार पीड़िता ही समझ सकती है।

यह आंदोलन नहीं गुस्सा है



आजकल आप किसी भी नुक्कड़ या सार्वजनिक स्थानों पर खड़े हो जाएं तो वहां आपको दिल्ली में हुए सामूहिक बलात्कार की हालिया घटना और उसके बाद के घटनाक्रम पर चर्चा करते लोग मिल जाएंगे। घटना के विरोध में तीखे स्वर और पुलिस तथा सरकार की विफलताओं पर भी आपको तल्खी देखने-सुनने को मिलेगी। प्रदर्शनकारियों पर हुए लाठीचार्ज का मामला हो या फिर प्रदर्शनकारियों की कथित पिटाई से एक कांस्टेबल की मौत का,हर व्यक्ति अपने गुस्से का इजहार करता मिलेगा। इस गुस्से को दिल्ली से लेकर पटना और अन्य सुदूरवर्ती इलाकों तक महसूसा जा सकता है। ऐसा नहीं है कि दिल्ली में बलात्कार की यह कोई पहली घटना है। बलात्कार की घटनाएं पहले भी होती रही हैं, लेकिन 16 दिसम्बर की रात चलती बस में सामूहिक बलात्कार के बाद लड़की को गंभीर हालत में जिस तरह से सड़क पर फेंका गया, उससे लोगों का गुस्सा फूट पड़ा। लोग बड़ी तादाद में सड़कों पर निकले और उनकी नाराजगी सबने देखी। दरअसल यह नाराजगी आम लोगों की थी। कोई संगठन, पार्टी या सुनियोजित समूह इसके पीछे नहीं था। मगर यह गुस्सा कारगर रहा। इस गुस्से ने कई नए बदलावों को सामने लाया है। संभव है कि आने वाले दिनों में इसके सार्थक परिणाम भी आए। जनता के विरोध को देखते हुए सरकार ने यौन उत्पीड़न मामलों में मौजूदा कानूनों की समीक्षा के लिए एक अधिसूचना जारी की। भारत के पूर्व मुख्य न्यायाधीश जेएस वर्मा की अध्यक्षता में गठित तीन सदस्यीय समिति से मौजूदा कानूनों में संभावित संशोधन पर 30 दिनों में सुझाव मांगे गए हैं। प्रदर्शनकारियों पर दिल्ली पुलिस ने बल प्रयोग किया,मामले की गंभीरता को देखते हुए प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और गृह मंत्री सुशील कुमार शिंदे को दुहाई देनी पड़ी कि उनकी भी बेटियां हैं। लचर कानून व्यवस्था पर सवाल उठे और दिल्ली पुलिस आयुक्त को हटाने की मांग हुई लेकिन गाज गिरी दो सहायक पुलिस आयुक्तों पर। दरअसल इस गुस्से से बचने के लिए ही और भी कई कदम उठाए गए हैं।

Sunday, December 23, 2012

‘क्रिकेट के भगवान’ की एक पारी का अंत



भारतीय क्रिकेट जब जब संकट के दौर से गुजरा, संकट से उबारने के लिए सचिन रमेश तेंदुलकर के रूप में भगवान ने अवतार लिया। सचिन तेंदुलकर ने भारतीय क्रिकेट को एक नई ऊंचाई दी। आज क्रिकेट के भगवान सचिन तेंदुलकर ने अपने क्रिकेट करियर की एक पारी की समाप्ति की घोषणा करते हुए वनडे क्रिकेट को संन्यास ले लिया। भारत में क्रिकेट दरअसल खेल नहीं धर्म है और उस धर्म में सचिन भगवान की तरह पूजे जाते हैं। उनका अचानक वनडे क्रिकेट को अलविदा कहना करोड़ों प्रशंसकों के लिए सदमे से कम नहीं है। अब सचिन को चाहने वालों को उनका कलात्मक खेल नहीं दिखेगा, न तो टी-20 और न ही वनडे में। टी-20 से तो सचिन ने पहले ही संन्यास ले लिया था। अपने 23 साल के क्रिकेट करियर में सचिन ने दुनिया के सबसे तेज गेंदबाज शोएब अख्तर और सबसे बेहतरीन स्पिनर शेन वॉर्न को अपनी बल्लेबाजी का लोहा मनवाया। दुनिया के बेहतरीन बल्लेबाजों में सबसे श्रेष्ठ सचिन के सामने उनके समकक्ष ब्रायन लारा और रिकी पॉन्टिंग भी उनकी तारीफ करते नहीं थकते हैं। सचिन सिर्फ बेहतरीन क्रिकेटर ही नहीं बल्कि सुलझे हुए इंसान भी हैं। कभी विवादों में नहीं रहने वाले सचिन को तभी तो राज्यसभा में बतौर सांसद मनोनीत किया गया। सचिन तेंदुलकर ने अपने क्रिकेट करियर में कीर्तिमानों की झड़ी लगा दी, इसलिए सचिन को क्रिकेट का शहंशाह कहा जाता है। उन्होंने अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में शतकों का शतक बनाया। सचिन ने 100वां शतक बांग्लादेश के खिलाफ 16 मार्च 2012 को मीरपुर में बनाया था। वनडे करियर की शुरूआत सचिन ने 1989 में पाकिस्तान के गुजरांवाला में भारत के चिरप्रतिद्वंदी पाकिस्तान के खिलाफ की थी। टेस्ट करियर का आगाज भी 1989 में पाकिस्तान के कराची में किया था। पहला शतक लगाने में सचिन को पांच साल लग गए। सचिन का कीर्तिमान क्रिकेट में अमर रहेगा।

नीतीश की चुप्पी का राज



बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार द्वारा गुजरात में मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी की लगातार तीसरी जीत पर साधी गयी चुप्पी के पीछे कई प्रकार की अटकलें लगाई जा रही हैं और इस रुख को 2010 के बिहार विधानसभा चुनावों से भी जोड़कर देखा जा रहा है जिसमें गुजरात के मुख्यमंत्री ने उस समय नीतीश कुमार की जीत पर कोई बधाई नहीं दी थी। मुख्यमंत्री के करीबी सूत्रों की मानें तो 2010 में बिहार विधानसभा चुनावों में नीतीश कुमार को भारी जीत मिली थी लेकिन इसके लिए नरेंद्र मोदी ने कोई बधाई नहीं दी थी। संभवत: नीतीश कुमार का रुख भी सोची समझी रणनीति के तहत उसके जवाब में है। वैसे मोदी की लगातार तीसरी बार जीत कोई छोटी मोटी जीत नहीं है लेकिन 2010 में बिहार में विधानसभा चुनावों में नीतीश कुमार के नेतृत्व में उम्मीदवारों की जीत का प्रतिशत 85 था,तब भी नरेंद्र मोदी ने प्रत्यक्ष या परोक्ष तौर पर नीतीश कुमार को बधाई नहीं दी थी। भाजपा और जदयू गठबंधन ने राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद, कांग्रेस और लोजपा को धूल चटाते हुए 2010 के विधानसभा चुनाव में 243 सीटों में से 206 पर जीत हासिल की थी। नीतीश कुमार की चुप्पी से अब कई प्रकार के कयास लगाये जा रहे हैं। यह अटकलें लगायी जा रही हैं कि यह मौन सोची समझी रणनीति के तहत धारण किया गया है या राजग के दोनों दिग्गजों के बीच टकराव का एक और प्रकरण है। एक आधिकारिक कार्यक्रम के बाद शुक्रवार को जब नरेंद्र मोदी की गुजरात में ऐतिहासिक जीत पर प्रतिक्रिया मांगी गयी तो नीतीश कुमार बिना कुछ कहे एक अन्य बैठक के लिए रवाना हो गये। गुरुवार को भी मुख्यमंत्री ने गुजरात के संबंध में कोई प्रतिक्रिया देने से इनकार किया था। नीतीश कुमार की रहस्यमय चुप्पी को जदयू के सहयोगी दल भाजपा के नेताओं ने पसंद नहीं किया। कई नेता इस पर आश्चर्य जता रहे हैं। भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष सीपी ठाकुर ने नीतीश के मौन धारण पर कहा कि उन्हें आश्चर्य हो रहा है कि मुख्यमंत्री क्यों चुप हैं? यह एक सामान्य बात है कि जीत पर एक दूसरे को बधाई दी जाती है।

Sunday, December 16, 2012

दिल्ली के गरीबों के साथ दिल्लगी ?



क्या दिल्ली की मुख्यमंत्री शीला दीक्षित ने दिल्ली के गरीबों के साथ मजाक किया है। ये सवाल उठ खड़ा हुआ है शीला दीक्षित के एक बयान से। शनिवार को शीला दीक्षित ने अन्नश्री योजना की शुरूआत की थी। योजना है गरीब परिवारों को हर महीने अनाज के बदले 600 रुपए देने की। शीला दीक्षित ने इस कार्यक्रम में कहा कि दिल्ली में पांच लोगों का परिवार छह सौ रुपए महीने में अच्छे से पेट भर सकता है। उसे कम से कम दाल, चावल और गेहूं तो मिल ही सकता है। अब सवाल उठता है कि क्या दिल्ली में रहने वाले किसी आदमी का पेट सिर्फ 4 रुपए में भर सकता है। आप कहेंगे की दिल्ली क्या देश और दुनिया के किसी कोने में भी 4 रुपए में पेट नहीं भरा जा सकता हैं। लेकिन दिल्ली की मुख्यमंत्री के मुताबिक दिल्ली में ऐसा संभव हैं। यकीन नहीं हो रहा हो तो आप खुद जानिए किस तरह दिल्ली की मुख्यमंत्री ने गरीबों का मजाक उड़ाया है। शीला दीक्षित ने कहा, ‘सरकार अन्नश्री के तहत हर महीने गरीब परिवारों को 600 रुपए देगी। मैं समझती हूं दिल्ली में पांच लोगों का परिवार छह सौ रुपए महीने में अच्छे से पेट भर सकता है।’ शीला दीक्षित ने ये बात अन्नश्री योजना की शुरूआत करते वक्त कही थी तब वहां सोनिया गांधी भी मौजूद थीं। अन्नश्री योजना के तहत दिल्ली के गरीब परिवारों को 600 रुपये नकद सब्सिडी दी जाएगी। शीला कह रही हैं कि एक परिवार में 5 सदस्यों के लिए ये रकम काफी है। अब जरा इस हिसाब को देखिए, एक परिवार में 5 लोगों के लिए एक महीने में दिल्ली सरकार 600 रुपये देगी। मतलब 5 लोगों के लिए एक दिन के खाने का बजट 20 रुपये हुआ। इसका मतलब ये हैं कि एक आदमी के लिए एक दिन में 4 रुपये ही होगा। शीला दीक्षित के मुताबिक 4 रुपये में पेट आराम से भर सकता है। यानी दिन और रात का भोजन 2-2 रुपए में। यानी शीला दीक्षित तो योजना आयोग के उपाध्यक्ष से भी कमाल की योजनाकार निकलीं। इसे अब दिल्ली के गरीबों का मजाक नहीं तो और क्या कहा जाएगा। 

Monday, November 26, 2012

'बिहारी बाबू' पर भाजपाई उठापटक


भाजपा सांसद शत्रुघ्न सिन्हा ने अपने राष्ट्रीय अध्यक्ष नितिन गडकरी से इस्तीफा मांग बवाल मचा दिया है। खासकर प्रदेश भाजपा में उठापटक शुरू हो गई है। रविवार को कई भाजपा नेताओं ने बिहारी बाबू को घेरा। खुद बिहारी बाबू का कहना था कि 'मैं अब सीनियर हो गया हूं।' उनसे पूछा गया था कि गडकरी से इस्तीफा मांग कर रहे राम जेठमलानी व यशवंत सिन्हा के साथ खड़े होने पर आप पर अनुशासनात्मक कार्रवाई हो सकती है?
बिहारी बाबू के अनुसार 'मैंने कभी मर्यादा का उल्लंघन नहीं किया है।' उन्होंने लालकृष्ण आडवाणी को अंधेरी सुरंग में रोशनी की लकीर बताते हुए कहा कि आडवाणी प्रधानमंत्री पद के लिए सबसे बेहतर उम्मीदवार हैं। वे रविवार को यहां संवाददाताओं से बात कर रहे थे। उनके मुताबिक भले ही यह पार्टी का अधिकार है, लेकिन मैं नहीं मानता कि सच बोलने के लिए पार्टी मुझ पर कोई कार्रवाई करेगी। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार भी प्रधानमंत्री पद के लिए सक्षम उम्मीदवार हैं, लेकिन उम्मीदवार का चयन संख्या बल को ध्यान में रखकर किया जाएगा। भाजपा में आडवाणी, यशवंत सिन्हा, राम जेठमलानी, सुषमा स्वराज, अरुण जेटली, नरेंद्र मोदी जैसे कई नेता हैं, लेकिन आडवाणी प्रधानमंत्री पद के लिए सबसे बेहतर हैं। वे अटल बिहारी वाजपेयी की तरह अंधेरी सुरंग में रोशनी की लकीर हैं। उनकी दृष्टि, व्यापक अनुभव और स्वच्छ छवि उन्हें सबसे बेहतर उम्मीदवार बनाती है। पार्टी के लिए यह बेहतर रहेगा कि 2014 के आम चुनाव से पहले प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार की घोषणा कर दी जाए।
रंजीत सिन्हा के सीबीआइ निदेशक बनाए जाने के मामले में भी उन्होंने राम जेठमलानी का पक्ष लेते हुए कहा कि इस मामले में किसी प्रकार का विवाद बेबुनियाद है। उनका चयन सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर गठित कमेटी की अनुशंसा पर किया गया है, जिस पर मुख्य सतर्कता आयुक्त ने भी मुहर लगाई है। उनके अनुसार लोकपाल बिल का हश्र हम राज्यसभा में देख चुके हैं, जहां राजद सदस्यों ने इस बिल की प्रति फाड़ डाली थी और इसे मंजूर नहीं होने दिया था। बताते चलें कि पार्टी की वरिष्ठ नेता सुषमा स्वराज और अरुण जेटली ने रंजीत सिन्हा की नियुक्ति पर आपत्तिदर्ज की है।

खुद को साबित करें केजरीवाल



फिल्म कलाकार अनुपम  खेर ने कहा है कि सामाजिक कार्यकर्ता से नेता बने अरविंद केजरीवाल को दूसरों की आलोचना करने से पहले खुद को साबित करना चाहिए। वाकई दूसरों की आलोचना करने का समय अब समाप्त हो चुका है। गौरतलब है कि अनुपम खेर भ्रष्टाचार के खिलाफ अन्ना हजारे के अभियानों में शामिल रहे हैं। अरविंद केजरीवाल ने हाल के दिनों में नेताओं और उद्योगपतियों के बारे में कई खुलासे किए। इनमें डीएलएफ और सोनिया गांधी के दामाद राबर्ट वाड्रा के बीच नेक्सस का खुलासा प्रमुख है। इसके अलावा केजरीवाल ने सलमान खुर्शीद और भाजपा अध्यक्ष नितिन गडकरी के बारे में भी खुलासे किए। इसी क्रम में केजरीवाल ने प्रसिद्ध उद्योगपति  मुकेश अंबानी पर भी केजी बेसिन में मनमानी कर करोड़ों के गबन करने का आरोप लगाया। आम आदमी पार्टी की घोषणा के साथ ही केजरीवाल ने कांग्रेस व भाजपा के खिलाफ देशव्यापी अभियान चलाने का एलान किया है। अरविंद केजरीवाल का मानना है कि ये दोनों पार्टियां देश को लूटने में समान भागीदार रही हैं और जनता को इन दोनों से दूर रहना चाहिए। इसके साथ ही अरविंद की कोशिश युवाओं को आंदोलित करने की है, जिनकी ताकत के बूते वे आने वाले वर्षों में होने वाले विधान सभाओं व लोकसभा के चुनाव में इन राष्टÑीय पार्टियों से दो-दो हाथ करेंगें। मगर क्या यह सब इतना आसान है। क्या अरविंद केजरीवाल और उनकी नवोदित राजनीतिक पार्टी व उसकी टीम की राहें इतनी आसान होगी। क्या अरविंद वाकई भ्रष्टाचार को आगामी लोकसभा चुनाव में मुद्दा बना पायेंगे। ये तमाम सवाल अभी भविष्य के गर्भ में हैं। समय-समय पर केजरीवाल को इन सबका जवाब भी देना होगा। इससे इत्तर उन्हें अनुपम खेर के शब्दों में अगर कहे तो वाकई उन्हें अपने का साबित करना होगा। जनता का  भरोसा भी हासिल करना होगा। वरना, राजनीतिक दलों के दलदल में अरविंद व उनकी पार्टी भी गुम हो जाए तो कोई आश्चर्य नहीं।

क्यों मिली शर्मनाक हार?


 पिछले साल इंग्लैंड में 4-0 से सूपड़ा साफ होने के बाद भारतीय टीम ने इस बार हुंकार भरते हुए इशारों-इशारों में यह जरूर जताया था कि वह उस शर्मनाक हार का बदला जरूर लेंगे। फैंस को भी उम्मीदें थीं क्योंकि सीरीज अपनी जमीन पर हो रही थी, पहले टेस्ट में नौ विकेट की जीत ने इन उम्मीदों को और बढ़ावा दिया लेकिन मुंबई में अंग्रेजों ने ना सिर्फ सीरीज में सूपड़ा साफ करने की भारतीय हसरतों को तोड़ा बल्कि हर भारतीय खिलाड़ी का मनोबल भी झंझोड़ कर रख दिया। हर जुबान पर सवाल यही है कि मन माफिक पिच पर हम आखिर 10 विकेट से क्यों हारे।
अहमदाबाद टेस्ट [पहला टेस्ट] में भारत को जब नौ विकेट से जीत मिली तो टीम इंडिया के कप्तान ने क्यूरेटर से लेकर बीसीसीआई तक सबको संदेश पहुंचा दिया था कि उन्हें टर्निग ट्रैक चाहिए और अहमदाबाद में ऐसा ट्रैक ना होने से वह बेहद निराश हुए। मुंबई ने माही की बात का ख्याल रखते हुए एक शानदार टर्निग ट्रैक बनाया जिसके बाद उत्साह से लबरेज कप्तान ने एक अतिरिक्त स्पिनर भी खिलाया लेकिन वह इंग्लैंड को शायद कमतर आंक गए और जो काम भारतीय स्पिनर्स को करना था वह इंग्लिश खिलाड़ी पनेसर और स्वान कर गए। इसलिए जो सबसे पहले और सबसे बड़ा कारण हार का रहा वह था माही का कुछ ज्यादा ही आत्मविश्वास से भरपूर होना और विरोधी टीम के स्पिनरों को कम आंकना।
दूसरे कारण की बात करें तो जाहिर तौर पर यह ठीकरा भारतीय फिरकी गेंदबाजों पर ही फोड़ा जा सकता है जैसा खुद कप्तान धौनी ने मैच के बाद किया भी। हरभजन का अनुभव व अश्विन और ओझा का दाएं और बांए हाथ का काम्बिनेशन होने के बावजूद सिर्फ ओझा ही विकेट बटोरते दिखे। भज्जी और ओझा को जो विकेट मिले वह अधिकतर पुछल्ले बल्लेबाजों के ही रहे। मैच से पहले शेन वार्न ने कहा था कि पिच की बातें करके धौनी माइंड गेम खेल रहे हैं, शायद उनकी बात सही भी थी क्योंकि इस माइंड गेम के चक्कर में वह अपने ही गेंदबाजों को असमंजस में छोड़ गए और इसका पूरा फायदा इंग्लैंड के फिरकी गेंदबाजों ने उठाया।
हार के पीछे तीसरा अहम कारण था हमारे फिरकी गेंदबाजों का लगातार इंग्लिश बल्लेबाजों को ऐसी गेंदें देना जिस पर वह बैकफुट पर जाकर आराम से शाट खेल सकें जबकि इंग्लैंड के गेंदबाजों ने खासतौर पर मोंटी पनेसर ने ऐसी गेंदों का उपयोग किया जिन पर भारतीय बल्लेबाजों को मजबूरन फ्रंट फुट पर खेलना पड़ा जिस चक्कर में कई बार बल्लेबाज चूके, कुछ दिग्गज बोल्ड हुए तो कुछ कैच और स्टंपिंग का शिकार हुए।
हार का चौथा कारण रहा भारतीय टीम के उन बल्लेबाजों का फ्लाप होना जिनसे जरूरत के समय सबसे ज्यादा उम्मीदें थीं। इनमें सबसे ऊपर नाम आता है सचिन तेंदुलकर का जिन्होंने अहमदाबाद में ना सही लेकिन अपने घरेलू मैदान मुंबई पर भी शर्मनाक प्रदर्शन किया जबकि वह मुंबई में ही सीरीज से ठीक पहले रणजी मैच में शतक लगाकर आए हैं। सचिन की नाकामयाबी से टीम का हौसला भी टूटा और मिडिल आर्डर सीरीज में लगातार चौथी बार दबाव में आ गई। इसके अलावा पहले मैच के शतकवीर वीरेंद्र सहवाग और लगातार दूसरा शतक जड़ने वाले चेतेश्वर पुजारा भी दूसरी पारी में फ्लाप साबित हुए। युवराज सिंह का बल्ला भी मुंबई में बिल्कुल ठंडा रहा और कप्तान धौनी को अच्छी बल्लेबाजी करते देख तो जमाना हो गया। वहीं, गौतम गंभीर अब तक फ्लाप साबित हो रहे थे लेकिन दूसरी पारी में जब वह फार्म में लौटते दिखे तो किसी ने उनका साथ नहीं दिया और ताश के पत्तों की तरह सभी धुरंधर दूसरे छोर पर आउट होते चले गए। वहीं अगर इंग्लिश बल्लेबाजों को देखा जाए तो विपरीत परिस्थितियों में खेलने के बावजूद उनके कप्तान और अनुभवी बल्लेबाज केविन पीटरसन ने इस अंदाज में बल्लेबाजी की मानो वह एक दोयम दर्जे की टीम के खिलाफ खेल रहे हों। आखिर आप अनुभवी बल्लेबाजों को अगर आराम से पीछे हटकर खेलने की छूट दोगे तो नतीजा भी यही होगा।

'ये दिल मांगे मोर...' तो नहीं मांगूगा वोट : नीतीश



          राकेश प्रवीर
पटना। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने शनिवार को अपनी सरकार के कामकाज का लेखा-जोखा पेश किया। उन्होंने कहा कि राज्य सरकार की प्राथमिकता है कि यहां के लोगों को पर्याप्त बिजली मिले। अगर विधान सभा चुनाव से पहले यहां की जनता को पर्याप्त बिजली नहीं मिलती है, तो चुनाव में वोट नहीं मांगेंगे। मुख्यमंत्री ने अपनी सरकार द्वारा एक साल में किए गये कामकाज को रिपोर्ट कार्ड के जरिए सबके सामने रखा। उन्होंने दावा किया कि वह राज्य में बिजली की दशा को सुधार देंगे। उनका कहना था कि अगर ऐसा नहीं हुआ तो वे अगले विधानसभा चुनाव में अपनी पार्टी के लिए वोट नहीं मांगेंगे। गौरतलब है कि बिहार में बिजली की हालत बेहद खराब है। उन्होंने सरकार द्वारा जनता की भलाई के लिए की जा रही ढेर सारी उपलब्ध्यिों पर भी प्रकाश डाला। इसके बावजूद नीतीश कुमार को भी 'ये दिल मांगे मोर' का अहसास है। इसके पहले 15 अगस्त को भी पटना के गांधी मैदान में अपने भाषण में नीतीश कुमार ने कहा था, 'अगर हम 2015 तक बिहार के प्रत्येक गांव में बिजली नहीं पहुंचा पाए तो लोगों से अगले विधानसभा चुनाव में हमें वोट करने के लिए नहीं कहूंगा।'
बिहार में बिजली की रोजाना खपत 2500 मेगावाट से 3000 मेगावॉट तक है जबकि राज्य महज 100 मेगावाट बिजली का उत्पादन करता है। केंद्र से राज्य को 1100-1200 मेगावाट बिजली की आपूर्ति की जाती है। बिहार के पास 1200 मेगावाट बिजली की कमी है। इससे तो यही लगता है कि मुख्यमंत्री ने अपनी क्षमता से ज्यादा का वादा कर लिया है। पिछले महीने ही उन्होंने बिहार को विशेष दर्जा देने की मांग के लिए अपनी 'अधिकार यात्रा' रद्द कर दी थी, क्योंकि उन पर एक जगह प्लास्टिक की कुर्सी फेंकी गई और एक जगह सड़े हुए अंडे। तब इस काम को अंजाम दिया उन शिक्षामित्रों ने, जो नियमित शिक्षकों के बराबर हक मांग रहे हैं। बिहार ने करीब 2 लाख शिक्षकों की नियुक्ति की है। इनमें से कुछ प्रशिक्षण प्राप्त हैं, जिनका वेतन 6,000 रुपये प्रति माह है, जबकि कुछ अप्रशिक्षित, जिन्हें 4,000 रुपये प्रति माह वेतन मिलता है। हालांकि इस वेतन को राजनीतिक नफा-नुकसान को ही ध्यान में रखकर मुद्रास्फीति व महंगाई से भी जोड़ा गया है और इसमें बढ़ोतरी भी की गई है। लेकिन शिक्षामित्र नियमित शिक्षकों और उनके वेतन में भारी भरकम अंतर का विरोध कर रहे हैं।
यह सब राज्य के लोगों की बढ़ती आकांक्षाओं का नतीजा है, जिन्हें विकास का अनुभव हो चुका है और अब वे ज्यादा विकास चाहते हैं। ऐसा नहीं है कि नीतीश कुमार इस बात से वाकिफ नहीं है। उन्होंने विकास की रफ्तार को तेज करने की कोशिश की, जिसके लिए उन्होंने राज्य भर के लोगों से बातचीत स्थापित करने के लिए अनेक यात्राएं कीं। इन यात्राओं का लक्ष्य नौकरशाही को संवेदनशील बनाना था। मगर ऐसा हो नहीं सका। एक ओर आकांक्षाएं व उम्मीदें कुलांचे भरती रहीं, तो दूसरी ओर निराशा भी गहराता रहा। दूसरे कार्यकाल के दूसरे वर्ष की समाप्ति पर इसीलिए नए कलेवर के साथ पुराने रेकार्ड को ही बजाया गया है। कई ऐसी तल्ख सच्चाइयां हैं जिसे याद करना और दुहराना सत्ता शीर्ष को कभी नहीं भाता। आमतौर पर जनता भी अल्प याद्दाश्त का शिकार होती है। मगर चुनाव के दौरान राजनीतिक पार्टियां सब कुछ भूल जाएगी, ऐसा नहीं कहा जा सकता है।

सत्तारूढ़ गठबंधन की साझेदार भारतीय जनता पार्टी के पूर्णिया के सांसद उदय सिंह, जो जनता दल यूनाइटेड के राज्य सभा सदस्य एन के सिंह के भाई भी हैं, ने बेहतर प्रशासन के नीतीश कुमार सरकार के दावों को पिछले ही महीने पूर्णिया में एक रैली कर तार-तार कर दिया। उदय सिंह के गैर-सरकारी संगठन द्वारा कराए गए सर्वेक्षण के अनुसार 2005 में नीतीश कुमार के मुख्यमंत्री बनने के बाद से राज्य में गरीबों की संख्या में 50 लाख का इजाफा हुआ है। महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना समेत किसी भी प्रमुख योजना को राज्य में ईमानदारी से लागू नहीं की गई है। सांसद का दावा है कि उनके इस सर्वेक्षण  में उनके संसदीय क्षेत्र में शामिल 3.5 लाख परिवारों में से 2.1 लाख परिवारों ने हिस्सा लिया। सिंह का कहना है कि जिस इलाके में 80 फीसदी आबादी आजीविका के लिए दिहाड़ी पर निर्भर हो, वहां महज 13 फीसदी परिवारों को ही मनरेगा के तहत काम मिला है। 3 से 6 वर्ष की आयु वाले 60 फीसदी बच्चों का आंगनबाड़ी या आईसीडीएस योजनाओं में नामांकन नहीं किया गया है, जिससे उन्हें पूरक पोषण और प्राथमिक शिक्षा नहीं मिल पाती है। इस सर्वेक्षण में हिस्सा लेने वाले 50 फीसदी प्रतिभागियों का कहना था कि स्थानीय स्वास्थ्य देखभाल केंद्रों की हालत बेहद खराब है। सर्वेक्षण में हिस्सा लेने वाले महादलित और अल्पसंख्यक समुदाय के महज 5 फीसदी प्रतिभागियों को ही राज्य सरकार की योजनाओं का फायदा मिला है। बिजली की किल्लत झेल रहे राज्य में 39 फीसदी प्रतिभागियों का कहना था कि अच्छी सड़कों और बुनियादी ढांचे के बजाय बिजली उनकी प्राथमिक जरूरत है। संभव है कि सरकार इस सर्वेक्षण से सहमत नहीं हो। रिपोर्ट कार्ड में अनेक अच्छी बातों व उपलब्धियों की चर्चा हैं। बिजली उपलब्ध कराने का आत्मविश्वास भी। अभी तीन साल शेष है,ईमानदार कोशिश की जरूरत होगी।

Friday, October 26, 2012

ठाकरे के बयान के मायने


शिवसेना प्रमुख बाल ठाकरे दशहरे के मौके पर मुंबई में पार्टी की सालाना रैली में शामिल नहीं हुए।ये एक ऐसी रैली थी, जो पार्टी के रूप में शिवसेना की प्रगति से जुड़ी हुई है। वर्षों से चली आ रही इन रैलियों में अपने ख़ास अंदाज़ के भाषण से बाल ठाकरे ने धीरे-धीरे अपना समर्थन का आधार पुख्ता किया था। पहली बार ऐसा हुआ जब बाल ठाकरे ने मुंबई में दशहरा रैली को संबोधित नहीं किया । अब बाल ठाकरे बीमार हैं। थक गए हैं। अब उनमें वो पहले जैसी ऊर्जा नहीं। इस साल वे इस रैली में नहीं आए। उन्होंने एक रिकॉर्डेड संदेश के जरिए कांग्रेस पार्टी और गांधी परिवार के खिलाफ अपने बेटे उद्धव और पोते आदित्य के लिए समर्थन जरूर मांगा बाल ठाकरे ने अपने अंदाज़ में कांग्रेस पर निशाना साधना नहीं छोड़ा. कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी पर हमला बोलते हुए ठाकरे ने सोनिया गांधी, राहुल गांधी, प्रियंका-रॉबर्ट वाड्रा और उनके राजनीतिक सचिव अहमद पटेल को 'पांच लोगों का गिरोह' बताया और कहा कि इसे 'तबाह' किया जाना चाहिए। ठाकरे ने कहा,''पंच-कड़ी को नष्ट किया जाना चाहिए और देश से बाहर निकाल फेंकना चाहिए।'' उन्होंने ज्यादा विस्तार में ना जाते हुए कहा कि ये देश 'धोखेबाज़ों का देश' बन गया है। बेटे उद्धव और पोते आदित्य के लिए पार्टी कार्यकर्ताओं से समर्थन मांगते हुए 86 वर्षीय बाल ठाकरे ने कहा, ''लोगों को शिवसेना के प्रति अपनी वफादारी अक्षुण्ण बनाए रखना चाहिए। आपने मेरा ख्याल रखा, अब उद्धव और आदित्य का ख्याल रखिएगा. उन्हें आप पर थोपा नहीं गया है. शिवसेना, गांधी परिवार की तरह नहीं है।''बाल ठाकरे के इस रिकॉर्डेड संदेश को दादर स्थित शिवाजी पार्क में दिखाया गया जहां वो गुजरे सालों में दशहरे के मौके पर अपने समर्थकों को संबोधित करते रहे हैं।बाल ठाकरे ने कहा कि इस बार उन्होंने दशहरे के मौके पर अपने समर्थकों को सीधे संबोधित इसलिये नहीं किया क्योंकि उनकी तबीयत ठीक नहीं है।ठाकरे ने कहा, ''मैं चल भी नहीं सकता हूं. बोलते समय मेरी सांस फूल जाती है. मेरी बिगड़ती तबीयत के बावजूद मेरा दिल आपके साथ हैं, मैंने अपना दिल किसी को नहीं दिया, वो आपके पास ही है।'' ठाकरे ने पार्टी कार्यकर्ताओं से कहा कि वो अपना वोट किसी 'बेचे' नहीं. उन्होंने कहा, ''कुछ बेशर्म लोग हैं जो अपना वोट बेच देते हैं. लोगों को पैसे के लिए अपना वोट नहीं बेचना चाहिए।''ठाकरे ने अपने पुराने दोस्त और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के मुखिया शरद पवार को भी कोसा जिन्होंने कहा था कि मुंबई बहुभाषी शहर है. उन्होंने जोर देकर कहा, ''शिवसेना ने मराठी हितों की तिलांजलि नहीं दी है. ये हमारी बुनियाद है।'' मुंबई स्थित वरिष्ठ पत्रकार अनुराग चतुर्वेदी का कहना है कि शिवसेना प्रमुख बाला साहब ठाकरे के दशहरे के मौके पर सालाना भाषण का उनके समर्थक सालभर बेसब्री से इंतजार करते हैं और उनके ना आने से एक बात पुख्ता हो गई है कि बाल ठाकरे और शिवसेना का साथ अब थोड़े ही दिनों का है।वे कहते हैं, ''लगता है कि बाल ठाकरे ने अपने कैडर को ये संकेत दिया है कि ये उनकी चलाचली की बेला है. मेरी उपस्थिति, मेरा निर्देशन अब पार्टी को नहीं मिलेगा. पार्टी में इससे सन्नाटा छा गया है।'' वे कहते हैं, ''कार्यकर्ताओं को लग रहा है कि नेतृत्व अब ढीला पड़ गया है. उद्धव पर ज्यादा जिम्मेदारी आ गई है लेकिन पार्टी कार्यकर्ता निराश हैं. पार्टी अभी कुछ दिनों तक दिशाहीन रहेगी।'' बेटे उद्धव और पोते आदित्य ठाकरे के लिए पार्टी कार्यकर्ताओं से समर्थन मांगे जाने पर उनका कहना है कि बाल ठाकरे ने इस तरह से विदाई का, शोक का गीत पूरा किया है कि मेरे अब कुछ ही दिन रह गये हैं।

Thursday, October 25, 2012

पौराणिक चरित्रों के जरिए विरोधियों पर हमला



काटजू ने दिलाई धनानंद की याद तो नीतीश को आया कालनेमि का स्मरण

राकेश प्रवीर
पटना। बिहार में आजकल अचानक कई पौराणिक चरित्र जिंदा हो गए हैं। दो दिन पहले भारतीय प्रेस परिषद के अध्यक्ष मार्कण्डेय काटजू ने धनानंद की याद दिलाई तो दूसरे दिन बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को रामायण के एक चरित्र कालनेमि का स्मरण हो आया। उन्होंने कहा है कि कुछ लोग राज्य में उत्साह के माहौल को निराशा में बदलने के लिए कालनेमि की तरह घूमते रहते हैं। नीतीश कुमार का कहना है कि बिहार में माहौल बदल रहा है और विकास हो रहा है, लेकिन कुछ लोग उत्साह के वातावरण को निराशा में बदलने के लिए रामायण के पात्र कालनेमि की तरह घूमते रहते हैं। कहीं से अवतरित हो जाते हैं और कुछ प्रवचन देकर चलते जाते हैं। दरअसल उनका यह कटाक्ष भारतीय प्रेस परिषद के अध्यक्ष मार्कण्डेय काटजू पर था। 
गौरतलब हो कि श्री काटजू ने शुक्रवार को एक कार्यक्रम में राजग सरकार पर लोगों का विश्वास खो देने का कथित रूप से आरोप लगाया था। काटजू ने नीतीश सरकार पर निशाना साधते हुए कहा था कि मुख्यमंत्री अब बिहार के लोगों का विश्वास खो चुके हैं। उनके खिलाफ लगातार प्रदर्शन हो रहे हैं। साथ में काटजू ने जेपी की दुहाई देते हुए पूछा-आप कैसे शिष्य हैं। कहां है जेपी का जातिविहीन समाज। कहां गलत रास्ते पर चले गए। क्यों आपका इतना विरोध हो रहा है। सवालों की झड़ी लगाते हुए काटजू ने कहा- मुख्यमंत्री जी आप आत्मनिरीक्षण कीजिए। आत्म आलोचना कीजिए। नीतीश कुमार को सावधान करते हुए काटजू ने कहा- धनानंद का क्या हश्र हुआ, सभी जानते हैं। आप धनानंद मत हो जाइए। मुसीबत हो जाएगी। मालूम हो कि वह इससे पहले भी नीतीश पर प्रेस की स्वतंत्रता को लेकर हमला कर चुके हैं। 
हालांकि कालनेमि से संबंधित नीतीश के बयान से यह स्पष्ट नहीं हो सका कि उनका इशारा काटजू के कथन पर था या कुछ और था। नीतीश ने कहा कि कुछ लोग राज्य में उत्साह के माहौल को निराशा में बदलने के लिए कालनेमि की तरह घूमते रहते हैं। नीतीश का यह भी कहना था कि बहुत से लोग न जाने क्यों बिहार में लोगों को निराश करने के प्रयास में और माहौल बिगाड़ने में लगे रहते हैं। भले ही वे कहीं से अवतरित होकर प्रवचन देकर चले जाएं, लेकिन बिहारियों का मनोबल टूटने वाला नहीं है। राज्य में बेहतर माहौल बना है और चारों ओर विकास हो रहा है। 
मालूम हो कि कालनेमि लंका का एक राक्षस था, जो रावण का विश्वस्त अनुचर था। युद्ध में लक्ष्मण को शक्ति लगने पर हनुमान औषधि लाने के लिए द्रोणाचल की ओर चले तो रावण ने उनके मार्ग में विघ्न उपस्थित करने के लिए कालनेमि को भेजा। वह ऋषि का वेश धारण कर मार्ग में बैठ गया। हनुमान जलपान के लिए रुके तो कालनेमि ने उन्हें जाल में फांसना चाहा। लेकिन हनुमान उसके कपट को भाँप गए और उन्होंने तत्काल उसक वध कर दिया। कालनेमि विरोचन का पुत्र था। पौराणिक कथा के अनुसार कंस पूर्वजन्म में कालेनेमि असुर था। वहीं, धनानंद मगध का एक अत्याचारी सम्राट था,जो अपनी अय्यासी और क्रुरता के कारण प्रजा में काफी अलोकप्रिय था। चाणक्य ने चन्द्रगुप्त के सहयोग से उसका नाश किया था। 

Monday, October 15, 2012

ब्लॉग लेखन से नीतीश की तौबा

बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार जब ब्लॉगर बने तो वेब दुनिया मे उनका जोरदार स्वागत हुआ। नीतीश कुमार ने अपने ब्लॉग पर करीब दो साल में 13 पोस्ट किए हैं। वर्ष 2012 में उन्होंने कोई पोस्ट नहीं किया है। ऐसे में यह माना जा सकता है कि अब उन्होंने ब्लॉग लेखन से तौबा कर ली है। विश्वास यात्रा के अनुभव को सुखद बताने वाले मुख्यमंत्री ने अधिकार यात्रा के अनुभवों को साझा करना मुन
ासिब नहीं समझा है। साल 2010 में उन्होंने अपने ब्लॉग पर 11 पोस्ट किए। वर्ष 2011 में मात्र दो पोस्ट ही कर पाए। एक तरह से वह उनका आखिरी पोस्ट रहा, जिसमें उन्होंने लिखा ‘ एक वादा निभाया...भ्रष्टाचार के खिलाफ जंग जारी रहेगी।’ यह पोस्ट उन्होंने अपने ब्लॉग पर 10 अक्तूबर, 2011 को डाला था। इसी का अंग्रेजी रूपांतर इसके पहले श्री कुमार ने 13 सितम्बर को अपने ब्लॉग पर पोस्ट किया था। हिन्दी में लिखे पोस्ट पर मात्र 34 लोगों ने कमेंट किए, जबकि अंग्रेजी में लिखे पोस्ट पर 115 कमेंट आए। 2010 में श्री कुमार का सर्वाधिक चर्चित पोस्ट ‘ निर्माण या विध्वंस आपके हाथ में हैं, इसलिए आइए और वोट डालिए’ रहा। हिन्दी में किए गए पोस्ट पर तब 258 कमेंट आए ,जबकि इसी के अंग्रेजी रूपांतर पर मात्र 120 लोगों ने अपनी टिप्पणियां दर्ज कीं।
गौरतलब हो कि 2010 चुनावी वर्ष था। इस साल अपने 11 पोस्ट के जरिए श्री कुमार ने जहां मतदाताओं को सक्रिय करने का प्रयास किया, वहीं अपनी सरकार की कतिपय योजनाओं के बारे में भी चर्चा छेड़ी। इसी साल 4 जुलाई को जारी ‘विश्वास यात्रा का अनुभव सुखद रहा’ शीर्षक अपने पोस्ट में श्री कुमार ने अपनी यात्रा के अनुभवों को साझा किया। तब उन्होंने लिखा था कि ‘पिछले दो महीनों में अनगिनत विश्वास यात्राओं को लेकर अत्यधिक व्यस्त रहा । इतना कि आपसे इस ब्लॉग पर चर्चा भी लगभग नगण्य रही । थकान से पस्त हूं लेकिन जो अभूतपूर्व अनुभव इन यात्राओं में हुआ वो बहुत सुखद है।’ इसके पहले 19 जून को उन्होंने ‘ बिहार के विकास में युवाओं की बढ़ती सहभागिता’ शीर्षक से पोस्ट किया।
बिहार में अपराध पर लगाम लगाने की बाबत उन्होंने 29 अप्रैल को एक पोस्ट डाला कि राज्य में अपराध नियंत्रण एक बड़ी चुनौती थी। 2010 में श्री कुमार जब ब्लॉगर बने तो उनका पहला पोस्ट महत्वाकांक्षी बालिका साइकिल योजना पर था। 10 अप्रैल 2010 को ‘मुख्यमंत्री बालिका साइकिल योजना’ शीर्षक से उन्होंने पहला पोस्ट डाला था। इस पोस्ट पर आए कमेंट्स से मुख्यमंत्री इतने गदगद हुए कि एक सप्ताह बाद ही उन्होंने दूसरा पोस्ट किया-‘ आपके साथ संवाद प्रेरणादायक है...।’ मगर पिछले एक साल में मुख्यमंत्री एक भी पोस्ट डालने का समय नहीं निकाल पाए हैं। विश्वास यात्रा के अनुभव को सुखद बताने वाले मुख्यमंत्री को अपनी अधिकार यात्रा के अनुभवों को भी साझा करना चाहिए था। एक तरह से यह उनकी महत्वाकांक्षी यात्रा है। बिहार के हक और अधिकार की लड़ाई के लिए श्री कुमार पूरे बिहार में यात्रा कर रहे हैं। इस बाबत अपने ब्लॉग पर श्री कुमार ने कुछ भी पोस्ट नहीं किया है। श्री कुमार के ब्लॉग पर 2243 फ्लोवर हैं। ऐसे में क्या समझा जाए कि श्री कुमार ने ब्लॉग लेखन से वाकई तौबा ली है।

Thursday, July 19, 2012

बिहार में युटोपीयाई पत्रकारिता


चारों तरफ एक अजीब सा माहौल बना हुआ हैं. स्वयं निर्मित यूटोपिया में हम सब घिरे हुए है.सब कुछ अच्छा हो रहा है, केवल अच्छा,कही कुछ बुरा नहीं, यह सुशासन का फीलगुड है. मानो अचानक हमारा गौरवशाली अतीत वाला बिहार लन्दन और पेरिस बन गया है. मीडिया से भूख,गरीबी, अशिक्षा,शोषण, उत्पीडन, दुराचार, अनाचार,अपराध, लूट-पाट, छिना-झपटी की खबरें गायब है. मुझे नहीं लगता की यह अघोषित सेंसरशिप सत्ताजनित है, बल्कि हमने खुद अपने ऊपर अधिरोपित कर ली है. हम खुश है, कुछ करना नहीं पड़  रहा है.सरकारी विज्ञप्तियो, राजा के बयानों, प्रेस नोट्स और साहबों के डिक्टेशन से कम चल जा रहा है. गाँधी जी को भले ही हम विस्मृत कर दिए हो, मगर उनके तीन बन्दर आज हमारे आदर्श बने हुए हैं, हमने तय कर रखी है कि- हम बुरा देखेंगे, सुनेगे और बोलेंगे.यह हमारी कार्पोरेट पत्रकारिता है.
इस पत्रकारिता ने हमे हमारे सरोकारों से, अपनों से, कर्तव्यों और दायित्वों से  काट दिया है.यह एक गहरी साजिश है, पत्रकारिता के मूल उद्देश्यों और सामाजिक दायित्वों को विलोपित करने का. मीडिया के कार्पोरेट घरानों को इसमें काफी हद तक सफलता भी मिली है. तीन बाई चार फुट के शीशे से घिरे तथाकथित केबिन में दीवार की तरफ मुंह करके बैठने वाला हमारा पत्रकार साथी केवल अपने आप से ही नहीं बल्कि अपने आजू-बाजु से भी कट गया है, कई बार तो बगल में बैठे अपने सहयोगी से बात किये उसे कई-कई दिन हो जाते हैं. घर-परिवार, नाते-रिश्ते, अडोस -पड़ोस की भी उसे सुध नहीं रहती है. इसे परिणामी पत्रकारिता(Result orientet journalism) का नाम दिया गया है. हम ख़ुशी से स्वीकार भी कर लिए हैं.
सबसे गलीज स्तिथि हमारे उन पत्रकार बंधुओं कि है जो जिलो में, अनुमंडलों में और प्रखंडों में कलम के जरिये अलख जगाने कि जिद लेकर पत्रकारिता में उतरे हैं. बेचारे पत्रकार तो रहे नहीं विज्ञापन कलेक्टर और दलाल जैसी भूमिका में सिमट कर रह गए है. इस टिप्पणी पर एतराज हो सकता है, थोड़े सुधार के साथ मैं यह कह सकता हूं कि भले ही सभी नहीं, मगर अधिकाश की तो यही स्थिति है. ऐसे पत्रकार मित्रों को मनरेगा कि लूट-खसोट, चोरी-बेईमानी, आम और गरीब लोगो की हकमारी नहीं दिखती, दिखेगी भी कैसे? होली, दीवाली, दशहरा और १५ अगस्त, २६ जनवरी को इन्हें उन्ही बी डी , सी , मुखिया, प्रमुख और वार्ड सदस्य से हज़ार-पांच सौ के विज्ञापन जो वसूलने है. यह वसूली उन कार्पोरेट मीडिया घरानों के लिए उन्हें करनी पड़ती है, जो अपनी सालन शुद्ध आय ३०० से ५०० करोड़  घोषित करते है. 
वैसे इन सब के लिए केवल डेस्क पर बैठे और फिल्ड में काम कर रहे पत्रकारों को ही दोषी नहीं ठहराया जा सकता है. उस सिस्टम पर भी गौर करने कि जरूरत है, जिसके तहत इस पूरे कारोबार को संचालित किया जा रहा है. लाखो रुपए का तनख्वाह लेने वाले चमचमाती कारों में काले शीशे लगा कर विचारने वाले संपादक रुपी संस्था पर ग्रहण लगा हुआ है. अब अख़बारों में लिखने-पढने और सामाजिक सरोकार रखने वाले संपादको की जरूरत नहीं है. संपादकों की भूमिका प्रबंधकीय कौशल और मालिको के हितों के संरक्षण तक सीमित हो गई है. जो जितना राजस्व उगाही करता है वह उतना ही सफल माना जाता है.आज किसी संपादक से पूछिए की आपकी पत्रकारीय उपलब्धि क्या है? तो वह बड़े गर्व से कहेगा कि पटना और दिल्ली में फ्लैट ले लिया हू. बेटी को सिम्बोसिस में पढ़ा रहा हूं, बेटा को पढने के लिए डोनेशन  देकर विदेश भेज दिया हू, लाइफ शेटल है, और क्या चाहिए.लिखने-पढने कि बात करें तो टका सा जवाब मिलेगा, यार समय कहा मिलता है. यानी  जो जितना बड़ा  दलाल वह उतना सफल संपादक.  
अखबारी दफ्तरों में अब अख़बार को अख़बार या समाचार पत्र नहीं कहा जाता है. कार्पोरेट संस्कृति ने इसे प्रोडक्ट बना दिया है. मूर्धन्य पत्रकार स्वर्गीय प्रभाष जोशी ने अपने एक भाषण में इस पर तल्ख़ मगर सामयिक टिप्पणी की थी.उनका साफ कहना था कि कि अगर यह समाचार पत्र और अख़बार नहीं है और साबुन सर्फ़. शैम्पू तथा सौन्दर्य प्रसाधनो की तरह महज एक प्रोडक्ट है तो फिर इसे मीडिया का नाम क्यों दिया जा रहा हैं, अगर सिगरेट स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है और वैधानिक तौर पर उसकी डिब्बिओं पर यह लिखना जरूरी है कि ' सिगरेट स्मोकिंग इज इन्जुरिओस टू हेल्थ' तो अख़बारों के मास्क हेड पर भी यह लिखा जाना चाहिए कि ' न्यूज पेपर रीडिंग इज इन्जुरिओस टू सोसायटी' और सरकार को भी  इस उद्योग और इससे जुड़े लोगो के साथ वैसा ही व्यव्हार करना चाहिए जैसे अन्य उधोयोगो के साथ होता है.मीडिया के नाम पर इन्हें वे तमाम रियायते और सहुलियते भी नहीं मिलनी चाहिए.
युटोपीआई पत्रकारिता की कई वजहों में से एक पत्रकारीय मूल्यों का क्षरण भी है. क्रांति और सजगता के  प्रतीक बिहार की धरती पर इसे शिद्दत से महसूस किया जा सकता है.अगर आप सहमत है तो अपनी टिपण्णी जरूर दें.वैसे सच कहना और सच का साथ देना बहुत सहज और सरल नहीं होता है. मैं आपकी दुविधा को समझ सकता हूं...