Tuesday, September 17, 2019

नमो का बिहार कनेक्शन



प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Prime Minister Narendra Modi) का 17 सितंबर को 69वां जन्मदिन है और बिहार बीजेपी (BJP) की तरफ से इस मौके को खास बनाने की पूरी तैयारी हो रही है. नमो का बिहार कनेक्शन (Bihar Connection) भी काफी गहरा रहा है. जी हां, बिहार और पीएम नरेंद्र मोदी का एक दूसरे से गहरा नाता रहा है. राजनीतिक जानकार बताते हैं कि 2014 के लोकसभा चुनाव में प्रचार करने हुंकार रैली में जब मोदी गांधी मैदान (Gandhi Maidan) पहुंचे और इस दौरान रैली में जो विस्फोट हुआ, उसके बाद उनके पक्ष में पूरे देश में माहौल ही बदल गया था. शायद यही वजह है कि मोदी के लिए बिहार खास बन गया है.

नमो और बिहार का रिश्‍ता
1.नरेंद्र मोदी के बिहार से कनेक्शन की शुरुआत 2004 से ही हो गई थी, जब लुधियाना की रैली में नीतीश कुमार और मोदी की हाथ उठा कर एक फोटो सामने आयी थी. इस तस्वीर को लेकर तब ख़ूब चर्चा हुई थी और आज भी वो तस्वीर चर्चा में बनी हुई है.

2- नरेंद्र मोदी 2010 में जब बीजेपी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में जो गांधी मैदान में हुई थी, में शामिल होने के लिए पटना पहुंचे थे. देश के कई बीजेपी शासित राज्य के मुख्यमंत्री और बीजेपी के बड़े नेता भी पटना एयरपोर्ट पहुंचे थे. तमाम बड़े नेता कार में बैठकर मीटिंग में शामिल होने के लिए निकल गाए, लेकिन मोदी कार्यकर्ताओ से मुलाक़ात करने चले गए. उसके बाद ही कार्यकारिणी की बैठक में शामिल होने निकले.

3- बीजेपी राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक के बाद जो घटना हुई वह खासी चर्चा में रही. नीतीश कुमार ने बीजेपी के बड़े नेताओं के लिए दिए गए भोज को अंतिम समय में कैंसिल कर दिया था. इससे बीजेपी और जेडीयू के रिश्तों में काफ़ी तनाव बढ़ गया था, लेकिन इस घटना ने बिहार बीजेपी के नेताओं और कार्यकर्ताओ में मोदी के लिए क्रेज़ बढ़ा दिया और कार्यकारिणी की बैठक के बाद गांधी मैदान में जो रैली हुई तब गांधी मैदान में समर्थकों ने नमो का मास्क लगा उनके समर्थन में ख़ूब नारेबाज़ी की थी. यही नहीं, जेडीयू के समर्थकों से डाक बंगला में बीजेपी समर्थकों से भिड़ंत भी हुई थी.

4- इस घटना के बाद नीतीश कुमार के अड़ियल रूख ने बीजेपी के लिए मुसीबत बढ़ा दी और उसी दबाव में मोदी बिहार विधानसभा चुनाव में प्रचार करने नहीं पहुंचे.

5-मामला यही नहीं रुका, कोशी बाढ़ राहत के लिए जब कई राज्यों ने बिहार सरकार की मदद के लिए राशि भेजी, तब नरेंद्र मोदी ने भी गुजरात सरकार के तरफ़ पांच करोड़ रुपए और सामान भिजवाया था. सामान भिजवाने के पांच दिन के बाद पटना में कई जगह पर गुजरात सरकार की मदद का नरेंद्र मोदी की तस्वीर वाला पोस्टर लगा था, जिसके कारण नीतीश कुमार ने राशि और मदद वापस लौटा दी. इससे दोनों के रिश्‍ते खराब हुए.
6-मोदी ने बिहार से अपने गहरे सम्बंध को बनाए रखा और जब गुजरात विधान सभा चुनाव हुआ तब उन्‍होंने बिहार के कई नेताओं को गुजरात में चुनाव प्रचार के लिए बुलाया था.

7-आख़िरकार बीजेपी और जेडीयू के सम्बंध खराब होते चले गए और 16 जून 2013 को दोनों का गठबंधन टूट गया. हालांकि नमो का बिहार से कनेक्शन बढ़ता ही जा रहा था. बीजेपी के वरिष्ठ नेट कैलाश पति मिश्र का जब निधन हुआ तब मोदी पटना पहुंचे थे.

8-इस बीच नरेंद्र मोदी का कद बीजेपी में तेजी से बढ़ता चला गया और 2013 आते-आते नमो को बीजेपी ने प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित कर दिया. जब देशभर में मोदी की लहर बढ़ती जा रही थी, तब देश में पहली नमो चाय की शुरुआत पटना से ही हुई थी, जो चर्चा की वजह बनी.

9-2014 के लोकसभा चुनाव प्रचार के लिए जब मोदी 27 अक्टूबर को गांधी मैदान पहुंचे तो रैली में बम विस्फोट की घटना से हर कोई दहल गया. मोदी के पक्ष में सहानुभूति की ज़बरदस्त लहर बनी और देश-बिहार में भी बीजेपी को शानदार सफलता मिली. जबकि जेडीयू मात्र 2 सीट पर सिमट गई थी.

10- 2014 में मोदी जब प्रधानमंत्री बने तो बिहार के लिए उन्होंने विशेष पैकेज का वादा किया था. जबकि बिहार विधानसभा चुनाव में बीजेपी के खिलाफ महागठबंधन (नीतीश और लालू की जोड़ी) थी. पीएम मोदी ने बिहार में तूफ़ानी चुनाव प्रचार किया और इसी दौरान मुजफ्फरपुर रैली के दौरान उन्‍होंने नीतीश के DNA का मुद्दा उठाया था. इसका असर चुनाव परिणामों पर हुआ.

11.विधानसभा प्रचार के दौरान ही नमो ने आरा के मैदान में बिहार के लिए सवा लाख करोड़ का स्पेशल पैकेज देने का वादा किया था. हालांकि बाद में बिहार सरकार को अधिकांश राशि मिली भी.

12- बिहार विधानसभा के चुनाव परिणाम आने के एक साल के बाद ही महागठबंधन में नीतीश कुमार घुटन महसूस करने लगे और इस बीच कुछ ऐसी घटनाएं घटती चली गईं, जिसने नीतीश और पीएम मोदी को करीब ला दिया. नोट बंदी पर नमो का समर्थन करना, प्रकाश पर्व में नमो का आना और नीतीश कुमार के साथ मंच शेयर करना, लालू यादव को सामने जमीन पर बैठाना, ऐसी कुछ घटनाएं होती चली गईं, जिसकी वजह से नीतीश ने महागठबंधन का दामन छोड़ दिया. इसके बाद भाजपा और जेडीयू ने सरकार बना ली.

13-इस बीच नरेंद्र मोदी कई केंद्रीय योजनाओं के उद्घाटन के सिलसिले में बिहार पहुंचे और साथ ही बिहार को कई बड़ी सौग़ात दीं.

14- 2019 के लोकसभा चुनाव में बिहार ने भी नमो को शानदार तोहफ़ा दिया और 40 में से 39 सीट झोली में डाल दीं, लेकिन बिहार में ही उनके सहयोगी के रूख ने बीजेपी के लिए थोड़ा तनाव भी बढ़ाया. जेडीयू ने धारा 370, तीन तलाक़ और NRC जैसे मुद्दे पर जेडीयू ने विरोध के स्वर दिखाए हैं.

जेडीयू और भाजपा ने कही ये बात
बहरहाल, नमो के लिए बिहार से खट्टे-मीठे रिश्ते समय-समय पर आते रहे हैं, लेकिन आज भी बिहार बीजेपी के नेता हों या सहयोगी पीएम के बिहार से नज़दीकी रिश्ते का हवाला ज़रूर देते हैं. जेडीयू के मंत्री नीरज कुमार और जय कुमार सिंह कहते हैं कि बिहार ख़ास है और कई इतिहास का गवाह भी रहा है. बिहार ने पीएम मोदी को काफ़ी कुछ दिया है और यही बात खास रिश्‍ता बनाती है. जबकि बीजेपी विधायक मिथिलेश तिवारी कहते हैं कि पीएम मोदी के लिए बिहार काफ़ी लकी रहा है.

पाकिस्तान-टुकड़ा-टुकड़ा हो जायेगा?




अमानवीय आतंकवाद व नफरत के इतने गड्ढे नापाक पाकिस्तान ने खुद खोद डाले हैं कि एक दिन उसका टुकड़ा-टुकड़ा हो कर उसी में दफन होना तय है। एक ओर जहां बलूचिस्तान अमानवीय अत्यचार से बिलबिला रहा है,सिंध सहमा और कराची कंगाली से कराह रहा हैं,वहीं बलात कब्जे वाला गुलाम कश्मीर (पीओके) मुक्ति के लिए छटपटा और "यह जो दहशतगर्दी है,उसके पीछे वर्दी है"का नारा लगा कर पाकिस्तानी जोर-जुल्म की कहानी दुनिया को बता रहा है।

आखिर पाकिस्तानी कठमुल्ला,बेगैरत हुक्मरान,आतंक की फैक्ट्री चलाने वाली सेना और उसकी खुफिया एजेंसी आईएसआई कितने दिनों तक आवाम की आवाज़ को दबा और दुनिया की आंखों में धूल झोंक पाएंगे?...नफरत की आग सुलगा कर रखने वाले एक दिन उसी आग में झुलस कर खाक हो जाएंगे।

सोचिये, ऐसा क्यों है?



जगह-जगह भीड़ "न्याय"करने पर उतारू है। पुलिस पर हमले आम बात है। बिहार के एक पूर्व डीजीपी का कहना है कि-"आम आदमी यह मान बैठा है कि पैसा देकर केस निबटा देंगे।"...समाजशास्त्री व सेंटर फॉर द स्टडी ऑफ सोसायटी एंड पॉलिटिक्स के निदेशक डॉ ए के वर्मा का कहना है कि-" पुलिस के प्रति भ्रष्टाचार के चलते जनता के मन में सम्मान का भाव नहीं है।"
बिहार सरकार के काफी समय तक गृह सचिव रहे श्री जियालाल आर्य ने एक बार निजी बातचीत में कहा था कि-" प्रशासन और सरकार अपने "इकबाल" से चलती है।"- उनकी इस टिप्पणी में गहरा राज छुपा हुआ था।
अगर इकबाल नहीं हो तो लाठी-गोली चला कर कोई भी सरकार क्या कभी "कानून का डर व राज" कायम कर सकती है?

ट्रैफिक चालान से भरा सरकार का खजाना



ट्रैफिक (Traffic) के नए कानून (New Law) से बिहार (Bihar) की नीतीश सरकार (Nitish Govt) की इनदिनों चांदी है. महज 13 दिन में चालान (Challan) से बिहार सरकार (Bihar Government) के खजाने में तकरीबन 50 लाख रुपये का राजस्व आया है. 50 लाख रुपये का यह राजस्व अकेले पटना (Patna) में ट्रैफिक (Traffic) की सख्ती और नए नियमों के चलते सरकार को मिला है. नए ट्रैफिक नियमों के चलते ड्राइविंग लाइसेंस (Driving license) बनवाने वालों में 10 गुना बढ़ोत्तरी हुई है.

सरकारी राजस्व में 10 गुना का इजाफा
पटना में ट्रैफिक के सख्त कानून ने आम आदमी की भले ही कमर तोड़ कर रख दी है, लेकिन पुलिस के ताबड़तोड़ चालान ने सरकारी राजस्व में इतना खजाना भर दिया है कि आप सुनकर हैरान हो जाएंगे. पटना के जिलाधिकारी कुमार रवि ने बताया कि महज 13 दिन में पटना जिला प्रशासन ने 50 लाख रुपये की वसूली की है. ये 50 लाख का आंकड़ा नए ट्रैफिक नियम लागू होने से पहले जिला प्रशासन पहले 3 महीने में पूरा करता था. यानी चालान की नई दर और नए कानून ने सरकारी खजाने की झोली भर दी है.

ड्राइविंग लाइसेंस और प्रदूषण जांच कराने वालों में 10 गुना बढ़ोत्तरी

सख्त कानून और सरकारी डंडे का कमाल, सरकार मालामाल
सरकारी आंकड़े के मुताबिक, पिछले 10 दिन में करीब सवा पांच हजार Motor Violation का मामला सामने आया है. शायद यह पहला मौका है जब इतने कम दिन में इतनी बड़ी जुर्माने की राशि सरकार और जिला प्रशासन ने लोगों से वसूली है. यह आंकड़ा अकेले बिहार की राजधानी पटना का है, अगर समूचे बिहार का आंकड़ा देखा जाएगा तो जुर्माने की राशि करोड़ों में पहुंची जाएगी.

Tuesday, September 3, 2019

सरदार पटेल भवन : दरक गया सीएम का सपना

  • पटना के जवाहर लाल नेहरू मार्ग पर सीएम नीतीश का ड्रीम प्रोजेक्ट हर किसी को आकर्षित करता है. सीएम नीतीश इस इमारत की कहानी अपने हर कार्यक्रम में कहते नहीं थकते, करोड़ों  की लागत से खड़ी ये इमारत पटना में बिहार पुलिस का मुख्यालय है, जहां सीएम साहब से लेकर पुलिस मुख्यालय,गृह विभाग से जुड़े दफ्तर है. लेकिन उदघाटन के कुछ ही महीने बाद सीएम का ड्रीम प्रोजेक्ट कैसे टूट कर बिखर रहा है....


  • जानकारी के मुताबिक़ सरदार पटेल भवन जिसे बिहार पुलिस मुख्यालय के रूप में हाल लोग जानने लगे है में अभी अभी एक बड़ी घटना हुई है जब एक कमरे की  फाल्स सीलिंग अचानक से गिर गई है. घटना सरदार पटेल भवन के ई ब्लॉक के तीसरे तल्ले पर स्थित फोटो ब्यूरो का लैब में हुई है. सीलिंग के अचानक गिरने से किसी को कोई चोट तो नहीं आई है लेकिन वहां रखे उपकरणों को भारी नुकसान पहुंचा है.फॉल्स सिलिंग के अचानक धराशायी होने के बाद कर्मी भी चौंचक्के रह गए।सरदार पटेल भवन पर एक नज़र 

बीते अक्तूबर महीने में बिहार के मुख्यमंत्री ने इस इमारत का उदघाटन किया था।करीब एक सौ साल बाद पुलिस विभाग को अपना मुख्लाय मिला था. करीब 305 करोड़ की लागत से बना यह सरदार पटेल भवन 53504 स्क्वॉयर मीटर में बना है. सात मंजिला यह भवन पूरी तरह से हाईटेक है. हर तरह की आपदा और माहौल में भी विधि व्यवस्था को नियंत्रण करने में सक्षम है. बिल्डिंग को 10 दिनों का पावर बैक-अप से लैस किया गया है. साथ ही वाटर ट्रीटमेट प्लांट से लैस ग्रीन बिल्डिंग है. यह बिल्डिंग 9 रियेक्टर स्केल तक के भूकंप के झटकों को भी आसानी से झेल सकेगा. पूरी बिल्डिंग को ग्रीन कंसेप्ट पर तैयार किया है. इसमें एक हेलीपैड से लेकर राज्य पुलिस का एक बेहद आधुनिक कमांड सेंटर भी होगा, जहां से पुलिस बल को किसी भी आपात स्थिति में राज्य में कहीं भी रवाना किया जा सकता है.  

महागठबंधन के ऑफर में कितना दम है?

बिहार-2020 से पहले नीतीश कुमार को फिर से बड़ा ऑफर मिला है. ये ऑफर महागठबंधन को लेकर आरजेडी की तरफ से है - और वो भी नेतृत्व करने के लिए. देखा जाये तो आम चुनाव से पहले महागठबंधन में शामिल होने को लेकर नीतीश कुमार खुद ही खूब कोशिश कर रहे थे. जेडीयू उपाध्यक्ष प्रशांत किशोर को लेकर उन दिनों मीडिया की सुर्खियां भी बनी थीं.
आरजेडी नेता शिवानंद तिवारी ने नीतीश कुमार को महागठबंधन की अगुवाई करने का न्योता दिया है. सवाल ये है कि क्या मौजूदा हालात में नीतीश कुमार ये स्वीकार करेंगे?

एकबारगी तो आम चुनाव के बाद नीतीश कुमार को RJD की तरफ से मिले ऑफर का कोई मतलब नहीं है. बीजेपी के पक्ष में जो माहौल बना है, विरोधी दलों के लिए टकराना तो दूर उनके अस्तित्व पर ही खतरा मंडराने लगा है. बगैर विपक्ष के लोक तंत्र का कोई मतलब तो होता नहीं, इसलिए स्कोप तो हमेशा बना रहेगा. ज्यादा कुछ न सही, सत्ता पक्ष को बुनियादी चीजें याद दिलाने की जिम्मेदारी भी तो विपक्ष की ही होती है.

राष्ट्रीय जनता दल के उपाध्यक्ष शिवानंद तिवारी का मानना है कि नीतीश कुमार, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का विकल्प बन सकते हैं. लगे हाथ, शिवानंद तिवारी ने नीतीश कुमार को चेतावनी भी दे डाली है - अगर ऐसे समय की वो अनदेखी करते हैं तो इतिहास कभी उन्हें माफ नहीं करेगा.
नीतीश को ऑफर देने के साथ ही शिवानंद तिवारी ने बिहार की राजनीतिक स्थिति की एक साफ तस्वीर भी खींची है, बकौल आरजेडी नेता -
1. बिहार में महागठबंधन पूरी तरह बिखर गया है. शिवानंद तिवारी के हिसाब से इसकी बड़ी वजह आरजेडी में नेतृत्व की निष्क्रियता है.
2. शिवानंद तिवारी की राय में देश के मौजूदा हालात में नीतीश कुमार जैसे नेता को आगे आकर राष्ट्रीय राजनीति में महत्वपूर्ण भूमिका निभानी चाहिए.
3. आरजेडी नेता मानते हैं कि नीतीश कुमार एक ऐसे नेता हैं, जो एनडीए में रहने के बावजूद धर्मनिरपेक्ष चेहरा हैं.
4. शिवानंद तिवारी का दावा है कि मौजूदा स्थिति में एक व्यवहारिक किस्म का गठबंधन हो सकता है और राष्ट्रीय राजनीति में गठबंधन की अहम भूमिका हो सकती है.
नीतीश कुमार के सामने ये मौका ऐसे दौर में आया है जब वो BJP के साथ 'कभी नरम तो कभी गरम' वाले खेल खेल रहे हैं. शिवानंद तिवारी की नजर में भले ही राष्ट्रीय राजनीति में नीतीश कुमार महत्वपूर्ण हो सकते हों, लेकिन फिलहाल तो उनके सामने आने वाली चुनौती बिहार विधानसभा का चुनाव है. समझने वाली बात ये है कि नीतीश कुमार अगर अभी NDA छोड़ कर महागठबंधन की तरफ जाने की सोचते हैं, तो क्या फायदा और नुकसान हो सकता है? अभी तो ऐसा लग रहा है कि महागठबंधन में गये बगैर ही नीतीश कुमार इस ऑफर का ज्यादा फायदा उठा सकते हैं. हालांकि, नीतीश कुमार को ये फायदा तभी मिल सकता है जब बीजेपी की नजर में नीतीश कुमार की अहमियत बनी रहे.
बेशक, भारी बहुमत के साथ आम चुनाव जीत कर आयी बीजेपी के पक्ष में एक जनमत नजर आ रहा है, खासकर जम्मू-कश्मीर से जुड़ी धारा 370 खत्म कर दिये जाने के बाद. निश्चित तौर पर बीजेपी ने अपने वोटर को मैसेज भेजा है कि जो चुनावी वादे वो करके सत्ता में लौटी है - पूरा भी करती है. लेकिन क्या बगैर नीतीश कुमार के बीजेपी बिहार में भी सरकार बना सकती है? तब भी जब शिवानंद तिवारी और आम चुनाव के नतीजों के हिसाब से महागठबंधन जीरो बैलेंस की स्थिति में आ चुका हो?
अभी तो मुश्किल है. अभी बिहार में बीजेपी का कोई भी नेता नीतीश कुमार जैसा तो नहीं ही बन पाया है - आगे की बात और है. यही वो सबसे अहम पहलू है जो बीजेपी नेतृत्व के सामने नीतीश कुमार का कद बढ़ा देता है. इसी कारण नीतीश कुमार बारगेन की पोजीशन में पहुंच जाते हैं. महागठबंधन के नाम पर नीतीश कुमार चाहें तो बीजेपी से विधानसभा सीटों के बंटवारे में सौदेबाजी की कोशिश कर सकते हैं. फिलहाल तो नीतीश कुमार के लिए महागठबंधन के ऑफर की इतनी ही अहमियत है.

 'दोनों हाथों में लड्डू' जैसा 'फील गुड'?

मोदी कैबिनेट 2.0 के गठन के वक्त नीतीश कुमार ने अपने मन मुताबिक न होने से दूरी बना ली थी, लेकिन कुछ ही दिन बाद जब बिहार मंत्रिमंडल का विस्तार किया तो गठबंधन पार्टनर को ही झटका दे दिया. नीतीश कुमार के इस कदम को बीजेपी नेतृत्व - प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह को सख्त संदेश के दौर पर देखा गया.
जब संसद में तीन तलाक बिल आया तो रास्ते से हटकर जेडीयू ने सत्ताधारी बीजेपी की मदद कर दी - लेकिन धारा 370 का विरोध किया और बाद में पलट गये. एक जेडीयू नेता ने कुछ ऐसे समझाया कि जब कानून बन ही गया तो विरोध का क्या फायदा.
नीतीश कुमार ने एक बार फिर बीजेपी नेतृत्व को कड़ा तेवर दिखाया है. नीतीश कुमार ने 3C फॉर्मूला पेश किया है - Crime, Corruption and Communalism यानी अपराध, भ्रष्टाचार और सांप्रदायिकता. सांप्रदायिकता ही वो मुद्दा है है जिसे लेकर नीतीश कुमार, बीजेपी के साथ एनडीए में रहते हुए भी दूरी बनाने की कोशिश करते हैं और खुद को अपनी शर्तों पर अलग दिखाने की कोशिश करते हैं.
ध्यान देने वाली बात ये है कि बिहार से पहले कुछ और विधानसभाओं के साथ झारखंड में भी चुनाव होने जा रहे हैं और नीतीश कुमार ने मैदान में अकेले उतरने का ऐलान कर दिया है. नीतीश कुमार की पार्टी जेडीयू झारखंड की सभी 81 सीटों पर चुनाव लड़ने जा रही है. बीजेपी के लिए संदेश ये है कि गठबंधन सिर्फ बिहार में है, बाहर नहीं.
नीतीश कुमार ने लोक सभा चुनाव में तो सीटों की बराबरी पर समझौता कर लिया - क्या विधानसभा चुनाव में भी ऐसा ही होगा?
लोक सभा में कम ज्यादा होने से ज्यादा फर्क नहीं पड़ने वाला था, लेकिन विधान सभा में इसका सीधा फायदा और नुकसान हो सकता है. अगर नीतीश कुमार ने कम सीटें जीती तो बीजेपी के विधायक कब नीतीश कुमार को हटाने की मांग करने लगें, कहा नहीं जा सकता. वैसे ही जैसे कर्नाटक में बीजेपी को सत्ता झटकने में सिर्फ सवा साल लगे - क्या मालूम बिहार के लिए क्या प्लान बना रखा हो?
जैसा कि शिवानंद तिवारी बता रहे हैं कि बिहार में महागठबंधन मृतप्राय है. दरअसल, महागठबंधन ने तेजस्वी यादव के नेतृत्व में चुनाव लड़ा था और वो पूरी तरह नाकाम रहे. चुनाव में हार के बाद भी तेजस्वी यादव की कोई दिलचस्पी नजर नहीं आ रही है. चर्चा है कि तेजस्वी यादव तब तक सक्रिय भागीदारी से दूर रहना चाहते हैं जब तक पार्टी में मीसा भारती और तेज प्रताप यादव की दखल पर अंकुश लगने का आश्वासन नहीं मिलता.
वैसे बहुत कुछ बिहार चुनाव से पहले होने जा रहे विधान परिषद  चुनावों के नतीजे आने के बाद मालूम होगा. नतीजे ही बताएंगे कि नीतीश कुमार और बीजेपी दोनों ही आगे की रणनीति किस तरीके से तैयार करते हैं? अभी तो ऐसा ही लग रहा है जैसे नीतीश कुमार के दोनों हाथों में लड्डू आया हुआ है - और वो ज्यादा फायदे के हिसाब से फैसला कर सकते हैं.
बिहार में प्रचलित एक भोजपुरी कहावत है, 'दोनों हाथ में लड्डू और सिर कड़ाही में', ज्यादा लंबा न सही, मगर कुछ देर के लिए तो नीतीश कुमार ऐसा फील गुड कर ही सकते हैं.

बिहार में मुस्लिम नेताओं की मजबूरी


इन दिनों बिहार की राजनीति में इस बात पर सबसे ज़्यादा बहस होती है कि क्या बिहार में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार विपक्षी दलों के मुस्लिम नेताओं की पसंद के साथ मजबूरी बनते जा रहे हैं? दरअसल विपक्षी राजद और कांग्रेस के नेताओं के बीच सार्वजनिक रूप से नीतीश कुमार के कामकाज की तारीफ और फिर उनकी पार्टी में शामिल होने की होड़ लगी है. ऐसे में यह सवाल और भी ज्यादा पूछा जाने लगा है कि भले ही नीतीश कुमार बीजेपी के साथ सरकार चला रहे हैं लेकिन वे क्या बिहार की राजनीति में सक्रिय मुस्लिम नेताओं की पहली पसंद हैं?
इसका एक उदाहरण रविवार को देखने को मिला जब चार बार राजद से सांसद मोहम्मद अली अशरफ़ फ़ातमी ने जनता दल यूनाइटेड विधिवत रूप से ज्वाइन किया. उनसे पहले राजद के वरिष्ठ नेता अब्दुल बारी सिद्दिकी सदन के अंदर और बाहर बार-बार यह संदेश दे चुके हैं कि अब उन लोगों की राजनीति के तारणहार नीतीश ही हो सकते हैं.
अब राजनीतिक गलियारे में यह भी चर्चा है कि कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री शकील अहमद भी देर सबेर जनता दल यूनाइटेड का रुख कर लें तो आश्चर्य की बात नहीं होगी. कांग्रेस के विधायक शकील अहमद खान ने भी बार-बार संकेत दिया है कि बिहार में नीतीश कुमार से अच्छा कोई प्रशासक नहीं है और तेजस्वी यादव के नेतृत्व में चुनाव लड़ने का अब कोई सवाल नहीं है. अधिकांश मुस्लिम नेताओं का मानना है कि अगर अगले विधानसभा चुनाव में राजद के साथ गठबंधन करके चुनाव मैदान में जाएंगे तो हार मिलना निश्चित है. लेकिन अगर नीतीश का साथ हो जाते हैं तो उन्हें कोई पराजित भी नहीं कर सकता.
मुस्लिम नेताओं का यह भी कहना है कि नीतीश भले ही बीजेपी के साथ हैं लेकिन मुस्लिम समुदाय के लिए उन्होंने अलग-अलग योजनाओं के अंतर्गत जो काम शुरू किए हैं उनका असर जमीन पर भी दिखता है. उसे नज़रअंदाज़ कर केवल धर्मनिरपेक्षता के नाम पर कब तक वोट मांगे जा सकते हैं.
इन नेताओं का मानना है कि जब तक नीतीश कुमार का नेतृत्व है तब तक बीजेपी एक सीमा से ज़्यादा अपने एजेंडा को लागू नहीं कर सकती. इसका उदाहरण पिछले साल रामनवमी के बाद तब देखने को मिला जब दंगा भड़काने के आरोप में केंद्रीय मंत्री अश्विनी चौबे के बेटे को भी जेल की हवा खिलाने में नीतीश कुमार ने देर नहीं की.

अब 'कामचलाऊ' नेता बन गए हैं नीतीश कुमार?


क्या बिहार में सत्तारूढ़ जनता दल यूनाइटेड अपने सुप्रीमो नीतीश कुमार को अब 'कामचलाऊ' और 'अस्थायी'  मानती है. ये सवाल पार्टी दफ़्तर के बाहर लगाए गये नए होर्डिंग के बाद लोग पूछ रहे हैं.  पटना में पार्टी दफ़्तर के बाहर नए होर्डिंग लगाए गए जिसमें नारा  था , ‘क्यूं करे विचार ठीके तो है नीतीश कुमार'.  निश्चित रूप से जिसने भी स्लोगन लिखा होगा उसमें पार्टी के वरिष्ठ नेताओं ख़ासकर नीतीश कुमार के क़रीबी आरसीपी सिंह के सहमति से  ही ये होर्डिंग लगायी होगी. लेकिन पार्टी के ही नेताओं को लगता है ये नारा लोगों को पच नहीं रहा. ठीके का मतलब बिहार की राजनीति और गांव घर में यही होता हैं कि वो बहुत अच्छे तो नहीं लेकिन ठीक ठाक कामचलाऊ हैं.

जहां पिछले विधान सभा चुनाव के दौरान ‘बिहार में बहार हैं नीतीशे कुमार है' उसके बाद लोक सभा चुनाव के दौरान ‘ सच्चा है अच्छा है नीतीश के साथ चले ‘ जैसे नारे के साथ होर्डिंग पोस्टर लगाए गए थे. वहीं इस बार जो एक शब्द 'ठीके' है का प्रयोग किया गया है उससे तो यही साबित होता है कि नीतीश कुमार की पार्टी भी मानती है कि वो सर्वश्रेष्ठ या कुशल प्रशासक अब नहीं रहे बल्कि जो राजनीतिक माहौल है उसमें वह बस ठीक ही हैं .
अभी तक पार्टी का यही दावा था कि बिहार में नीतीश कुमार से बेहतर कोई मुख्यमंत्री नहीं हुआ उनसे अच्छा कोई कुशल प्रशासक नहीं है लेकिन जब पार्टी ही मान रही हो कि वो ठीके हैं तो तब क्या कहना. हालांकि जनता दल यूनाइटेड के प्रवक्ता संजय सिंह का कहना हैं कि ये स्लोगन बारह करोड़ जनता की आकांक्षा का प्रतीक है. उन्होंने यह भी माना कि इस स्लोगन के पीछे पार्टी के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष प्रशांत किशोर का कोई लेना देना नहीं हैं.  

01 Sep से होम और लोन में बदलाव



बैंक अकाउंट से नगद पैसा पर टीडीएस कटेगा
किसी भी सरकारी बैंक, पोस्ट ऑफिस से एक साल में 1 करोड़ से ज्यादा नगदी निकालने पर अब आपको 1 सितंबर से 2 फीसदी टीडीएस देना होगा. माना जा रहा है कि सरकार इसके पीछे डिजिटल ट्रांजेक्शन को बढ़ावा देना चाहती है.
होम और लोन में बदलाव 
अब आपके होम लोन और ऑटो लोन को रेपो रेट से लिंक किया जाएगा. इससे फायदा यह होगा कि आरबीआई जब भी रेपो रेट में कटौती करेगा इसका फायदा आपको मिलेगा. एसबीआई यह सेवा आज से शुरू कर देगा.
अब यहां देना होगा KYC
गूगल पे, पीटीएम या फोनपे जैसे मोबाइल वालेट का इस्तेमाल करने वालों को KYC भरना होगा. जिन लोगों ने 31 अगस्त इसे नहीं दिया है उनका वालेट आज से काम करना बंद कर देगा.  
FDI के रेट में कटौती
रिटेल डिपॉजिट पर अब ब्याज कम मिलेगा. एसबीआई ने इसमें कटौती की है. 1 लाख तक के डिपॉजिट वाले ग्राहकों को बचत खाते में 3.5 प्रतिशत ब्याज मिलता रहेगा. लेकिन एक लाख से ज्यादा डिपॉजिट वाले ग्राहकों के लिए यह दर 3 प्रतिशत ही रहेगी।
घर  खरीदने पर देना होगा ज्यादा टीडीएस
अब अगर आप खरीदते हैं तो साथ मिलने वाली सुविधाएं जैसे कार पार्किंग, विद्युत-पानी की सुविधा और क्लब मेंबरशिप जैसी अन्य सुविधाओं पर खर्च भी टीडीएस के दायरे में आएगा. 
आधार से नहीं लिंक है पैन तो
अगर अभी तक आपने आधार नंबर से अपना पैन लिंक नहीं कराया है तो इनकम टैक्स डिपार्टमेंट नया पैन जारी करेगा और अब आपका पुराना पैन कार्ड अवैध माना जाएगा.
15 दिन में जारी होगा किसान क्रेडिट कार्ड
अब 1 सितंबर से बैकों को किसान क्रेडिट कार्ड 15 दिन में जारी करना होगा.
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यहां भी देना होगा 5 फीसदी का टीडीएस
अगर आपने एक साल के अंदर किसी कांट्रेक्टर्स या प्रोफेशनल को 50 लाख से अधिक का पेमेंट करते है तो उसमें 5 फीसदी का टीडीएस देना होगा.
LIC पर टीडीएस
अब आपको LIC से मिलने वाली राशि टैक्स के दायरे में आती है तो इस पर 5 फीसदी टीडीएस कटेगा.



ये हैं नए (Motor Vehicle Act) ट्रैफिक नियम

मोटर व्हीकल ऐक्ट 2019 01 sep से लागू हो गया है जिससे ट्रैफिक नियम तोड़ने वालों को भारी जुर्माना भुगतना पड़ेगा. इस एक्ट को बीती महीने ही संसद से मंजूरी मिली है. इन नियमों का उद्देश्य लोगों में ट्रैफिक नियमों को तोड़ने का भय भरना है क्योंकि अभी तक जुर्माने की राशि बहुत कम होती थी जिसकी वजह से लोग 100-50 रुपये थमाकर ट्रैफिक के नियमों को तोड़ना अपनी शान समझते थे. अब कई शहरों में ट्रैफिक नियमों को तोड़ने वाले 'इंटलीजेंट ट्रैफिक सिस्टम' भी नजर रखेगा. नए नियमों के मुताबिक अब ड्राइविंग के दौरान मोबाइल से बात करना, ट्रैफिक जंप करना और गलत दिशा में ड्राइव करने को खतरनाक ड्राइविंग कैटेगिरी में रखा गया है और इस पर भारी जुर्माना देना पड़ेगा.

ये हैं नए (Motor Vehicle Act) ट्रैफिक नियम

  • नाबालिग के गाड़ी चलाने पर 25 हज़ार रुपये का जुर्माना
  • बिना हेलमेट के दुपहिया वाहन चलाने पर 500 से 1500 रुपये का जुर्माना, पहले ये 100 से 300 रुपये था.
  • दुपहिया वाहन पर तीन सवारी बैठाने पर जो जुर्माना पहले 100 रुपये था अब वो 500 रुपये हो गया है.
  • पॉल्यूशन सर्टिफ़िकेट न होने पर पहले 100 रुपये भरने पड़ते थे अब 500 रुपये देने होंगे.
  • बिना ड्राइविंग लाइसेंस के गाड़ी चलाते पाए जाने पर अब 500 की जगह 5000 रुपये देने होंगे.
  •  ख़तरनाक ड्राइविंग करने पर अब एक हज़ार की बजाए 5 हज़ार रुपये देने होंगे.
  • ड्राइविंग के दौरान फ़ोन पर बात करने पर 1 हज़ार की जगह 5 हज़ार रुपये तक भरने पड़ेंगे.
  •  गलत दिशा में ड्राइविंग करने पर अब 1100 के बजाए 5 हज़ार रुपये तक देने होंगे.
  • रेड लाइट जंप करने पर पहले जो जुर्माना सिर्फ़ 100 रुपये था अब वो 10 हज़ार हो गया है.
  •  सीट बेल्ट लगाए बिना गाड़ी चलाने पर अब 1 हज़ार रुपए का जुर्माना भरना पड़ेगा.
  •  शराब पीकर गाड़ी चलाने पर जुर्माना अब 10 हज़ार हो गया है.
  • इमरजेंसी गाड़ियों जैसे एंबुलेंस और दमकल की गाड़ियों को साइड न देने पर 10 हज़ार रुपये का जुर्माना.