Monday, January 27, 2020

मुस्लिमपरस्ती और दलितों की उपेक्षा कांग्रेस की पुरानी नीति
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CAA के बहाने जिस तरह से कांग्रेस तीन इस्लामिक देशों से धार्मिक प्रताड़ना का शिकार होकर हिंदुस्तान में शरण लिए दलित शरणार्थियों  को नागरिकता देने का विरोध कर रही है वह उसकी पुरानी "दलित विरोधी व मुस्लिमपरस्ती की नीति" का ही हिस्सा है।

कांग्रेस और तत्कालीन प्रधानमंत्री पण्डित जवाहरलाल नेहरू की दलित विरोधी व मुस्लिम तुष्टिकरण की नीति के विरोध में ही डॉ बाबा साहेब अंबेडकर ने 10 अक्टूबर,1951 को उनके मंत्रिमंडल से कानून मंत्री के पद से इस्तीफा दे दिया था।

इस्तीफा देने के बाद 10 अक्टूबर,1951 को लोकसभा में दिए अपने भाषण में डॉ. आंबेडकर ने कहा- " भारत में अछूतों को किसी प्रकार की सुविधा प्रदान नहीं की गई है। सरकार को मुसलमानों के संरक्षण की ही अधिक चिंता है। प्रधानमंत्री का पूरा समय मुसलमानों की चिंता में खर्च होता है। ...मैं जानना चाहता हूं कि ऐसे संरक्षण की मुसलमानों को क्यों जरूरत है? इस तरह की व्यवस्था की आवश्यकता अपृश्य जातियों व भारतीय ईसाइयों की क्यों नहीं हैं? वस्तुतः मुसलमानों से कहीं अधिक सुरक्षा की आवश्यकता जिन लोगों को है, उन लोगों की चिंता प्रधानमंत्री को कितनी है? सरकार ने अछूत जाति के बारे में जो उपेक्षापूर्ण व्यवहार किया है, उसके कारण मेरे मन में रोष उतपन्न हुआ है।"
(पुस्तक: "डॉ. आंबेडकर-राष्ट्रदर्शन" प्रभात प्रकाशन, से साभार)

दरअसल कांग्रेस आज भी दलित विरोध की अपनी उसी नीति पर कायम है। दशकों तक दलितों का वोट लेने वाली कांग्रेस सी ए ए कानून का विरोध इसलिए कर रही है कि इससे जिन शरणार्थियों को नागरिकता मिलेगी, उनमें 75-80 प्रतिशत दलित हैं। काश आज डॉ. आंबेडकर की तरह दलितों का कोई सर्वमान्य नेता होता जो कांग्रेस के दलित विरोध की इस नीति के खिलाफ अपना रोष व्यक्त करता!

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