Sunday, August 28, 2011

लोकतंत्र नेताओं की बपौती नहीं

 लोकतंत्र आज चौराहे पर है- प्रणब मुखर्जी ----- दादा भारत का लोकतंत्र आप जैसे नेताओं की बपौती नहीं है...कभी जातीय तो कभी धार्मिक उन्माद फैला कर तो कभी जोड़-तोड़ और तीन-तिकड़म करके चुनावी जीत हासिल करने वाले  सांसदों और विधायकों की हकीकत जनता अब जान  चुकी हैं....जब तक सारी सत्ता आपकी जेब में रहे तब तक लोकतंत्र सुरक्षित और ज्यों ही जनता सामने आ जाये आप जैसों को लोकतंत्र पर खतरा दिखने लगता हैं...यह खेल अब इस देश में और ज्यादा दिनों तक नहीं चलने वाला----अन्ना ने लोगो को बस यंही तो समझाया हैं...
लालू प्रसाद और रामविलास पासवान जैसे नेता जिन्हें जनता पहले ही रिजेक्ट कर चुकी हैं, जब लोकतंत्र और संसद की दुहाई देते हैं, तो तरस आती हैं. देश की कुछ चर्चित घोटालों में बिहार के चारा घोटाले की चर्च भी होती रहती है...इस घोटाले में लालू जी कितना दोषी है,इसका अंतिम फैसला भले ही कोर्ट को करना हैं, मगर इस हकीकत को स्वीकारना ही होगा की मूक पशुओं का निवाला लालू जी के मुख्यमंत्रित्व काल में ही छिना गया...इसी आरोप में उन्हें अपनी कुर्सी भी गवानी पड़ी,संसदीय राजनीती की शुचिता और सर्वोच्चता की दुहाई देने वाले लालू जी ने जेल जाने के पहले इसी लोकतंत्र को अपनी सुविधा के तर्क के आधार पर राजतन्त्र में तब्दील करने में कोई  देरी नहीं की और अपनी धर्मपत्नी को गर्वभाव में सिंहासन सौंप दी---लालू जी को उस दिन संसदीय राजनीती की शुचिता और सर्वोच्चता क्यों नहीं याद आई. 
दरअसल. अन्ना का आन्दोलन लालू जी और उन जैसे तमाम राजनेताओं को इसलिए फूटी आँख नहीं सुहा रहा है की अब इनके चेहरे का नकाब उतरने वाला हैं.संविधान की बार-बार चर्चा करने वाले इन नेताओं को अब यह अच्छी तरह समझ लेना चाहिए की संविधान संसद की सर्वोच्चता से पहले जनता की संप्रभुता को स्वीकार करता है--- लोकतंत्र एक ऐसी शासन व्यवस्था है- जो जनता का, जनता के लिए और जनता द्वारा स्थापित हैं...लूट की सुविधा के तर्क के आधार पर इसे मात्र ५४५ माननीयों की जागीर नहीं माना जाना चाहिए. 

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