Sunday, August 21, 2011

जनता का आंदोलन जनता के लिए



सरकार हतप्रभ है। कांग्रेस भी सन्न। विपक्षी दलों में भी बेचैनी कम नहीं.। सभी सिविल सोसाइटी पर 'फाउल-फाउल' चिल्ला रहे हैं। सत्ता पक्ष संसद-संविधान की दुहाई दे रहा है। उनको शिकायत और चिंता है कि जनता कानून बनाएगी तो लोकतंत्र का हनन होगा! मगर उनको यह नहीं दिखता कि पूरी दुनिया में हिंसक आंदोलनों का दौर चल रहा है। लोग सड़कों पर उतरकर तोड़फोड़ कर रहे हैं।
ऐसे में भ्रष्टाचार के खिलाफ जंग में पूरा राष्ट्र एकसूत्र में बंधा है और गांधीवादी बुजुर्ग अन्ना की भाषा बोल रहा है। उन्हें इस आंदोलन की यह खूबसूरती भी नहीं दिखती कि लाखों-करोड़ों युवा सड़कों पर हैं, लेकिन उसमें लेशमात्र हिंसा की जगह नहीं है।
मिस्त्र से शुरू हुई हिंसक क्रांति के बाद लीबिया और अब सीरिया भी जल रहे हैं। फ्रांस और इटली जैसे विकसित देशों में बेरोजगारी को लेकर युवक आगजनी और हिंसा कर रहे हैं। एक छोटी सी बात पर लंदन भी कुछ दिनों के लिए अशांति की आग में झुलसा। दुनिया के भ्रष्टतम देशों की गिनती में शामिल होने की पीड़ा और जगह-जगह रिश्वतखोरी को बाध्य हिंदुस्तानी समाज के सीने पर पड़े ये बेइज्जती के जख्म इतने गहरे पैठ चुके हैं कि अब इनका इलाज न हुआ तो शायद फिर कभी नहीं हो! अंदर ही अंदर पलते इस नासूर से त्रस्त समाज को बस किसी रहनुमा का इंतजार था। जो अन्ना के रूप में उन्हें मिला तो उसके पीछे चल दिए। सरकार और राजनीतिक प्रतिष्ठान की परेशानी शायद भ्रष्टाचार से इतनी ज्यादा नहीं, जितनी कि जनआंदोलन अपने हाथ से निकलते दिखने की है। उन्हें लगता था कि वे ही जनता के रहनुमा हैं। वे आगे बढ़ेंगे और आवाज उठाएंगे तो जनता सीधी-साधी और निरीह गाय की तरह चल देगी। जो काम इस राजनीतिक प्रतिष्ठान को करना था, वह जनता ने किया। उस जनता के प्रतिनिधि अन्ना हजारे उस प्रतिष्ठान को जनतंत्र की परिभाषा समझा रहे हैं। मगर राजनीति इतनी सीधी और सरल होती तो फिर बात ही क्या थी? उन्हें जनता का गुस्सा अब भी नहीं दिखता। उन्हें इसमें भी षड़यंत्र नजर आता है। वे इस आंदोलन में रंग तलाश रहे हैं। व्यक्तियों पर और आंदोलन की मंशा पर सवाल उठा रहे हैं। असल मुद्दे को नेपथ्य में फेंक नियमों की किताब दिखा रहे हैं। शायद गलती उनकी पूरी तरह है ही नहीं। सामाजिक जीवन में संघर्ष कर आए जनता की भाषा समझने वाले रहनुमा होते तो शायद ऐसे सवाल उठाने की वह कोशिश न करते। मगर पैराशूट से राजनीति में आए रहनुमाओं की समझ में यह आए भी तो कैसे? संघर्ष करते तो उन्हें मालूम होता कि अभूतपूर्व फैसले अभूतपूर्व परिस्थितियों से ही निकलते हैं। फिर इस आंदोलन में तो सब कुछ अभूतपूर्व, दिव्य और अति सुंदर है।
आजादी के बाद चाहे 1975 की संपूर्ण क्रांति हो या फिर 90 के दशक में मंडल और कमंडल का बवंडर। जनता सड़कों पर थी तो हिंसा का तांडव भी हुआ। मगर इस दफा उत्तर से दक्षिण और पूरब से पश्चिम तक हिंदुस्तानी एक 'अन्ना सूत्र' में बंधे हुए हैं। अन्ना बार-बार कसम दिला रहे हैं कि हिंसा न हो, किसी को परेशानी न हो। बस एक बुजुर्ग की बात, पूरा हिंदुस्तान साथ। बड़ा से बड़ा मार्च, कहीं हिंसा नहीं। यहां तक कि यथासंभव कोशिश इस बात की भी हो रही है कि सड़क पर चलने वालों को भी परेशानी न हो। राजनीतिक दल सवाल उठाने के बजाय अपनी रैली और आंदोलन इस अंदाज में कराना सीखें तो शायद ज्यादा बेहतर रहे। क्योंकि.यह जनता का जनता के लिए आंदोलन है, जिसमें जनतंत्र के लिए सिर्फ और सिर्फ शुभ संकेत ही छिपे हुए हैं।
पीएम आवास घेरने पहुंचे अन्ना समर्थक
सरकार की रणनीति पर लगातार भारी पड़ रहे अन्ना ने रविवार को समर्थकों से सांसदों के घेराव की अपील कर सरकार के साथ-साथ माननीयों को भी बांध दिया। भ्रष्टाचार से त्रस्त जनता के सामने अन्ना की अपील ने हर सांसद के लिए राजनीतिक चुनौती पैदा कर दी है। सांसदों और मंत्रियों के घरों के बाहर धरना देने की अपील का पूरे देश में असर दिखने लगा। समर्थक न केवल प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के सात रेस कोर्स स्थित आवास तक पहुंच गए बल्कि कपिल सिब्बल समेत कई सांसदों के घरों के सामने प्रदर्शन हुआ। हाथरस के रालोद सांसद ने लिखित रूप में जन लोकपाल के समर्थन की घोषणा भी कर दी। आंदोलन के समर्थक दिल्ली में प्रधानमंत्री आवास पर जन लोकपाल बिल की मांग करते हुए धरने पर बैठ गए। हालांकि दिल्ली पुलिस ने धरने पर बैठे 74 युवाओं को 65 डीपी एक्ट के तहत हिरासत में ले तो लिया लेकिन देर शाम रिहा भी कर दिया। केंद्रीय मंत्री कपिल सिब्बल और दिल्ली सरकार में पीडब्ल्यूडी मंत्री राजकुमार चौहान के आवासों पर अन्ना समर्थकों ने विरोध प्रदर्शन किया। दूसरे शहरों में भी कई सांसदों के आवास पर धरना-प्रदर्शन शुरू हो गया। केंद्रीय मंत्री श्रीप्रकाश जायसवाल, राजीव शुक्ला, जयंती नटराजन समेत कई संासदों के आवास का घेराव हुआ।
बताते हैं कि अपने ही लोगों के बीच घिरी हाथरस की रालोद सांसद सारिका बघेल ने जन लोकपाल के समर्थन की घोषणा कर दी। उत्तराखंड के टिहरी से कांग्रेस सांसद विजय बहुगुणा ने कहा कि भ्रष्टाचार के खिलाफ अन्ना की मुहिम का वह स्वागत करते हैं। यूपी में बाराबंकी में एक समारोह में आए केंद्रीय मंत्री जितिन प्रसाद और बेनी प्रसाद वर्मा के साथ सांसद पीएल पुनिया को भी अन्ना समर्थकों का विरोध झेलना पड़ा। इलाहाबाद में रेवती रमण सिंह, लखनऊ में लालजी टंडन, फैजाबाद में निर्मल खत्री और लखीमपुर में जफर अली नकवी के आवासों पर युवाओं ने प्रदर्शन किया। कानपुर में कांग्रेस सांसद राजबब्बर को भी अन्ना समर्थकों ने घेर लिया। रमाबाई नगर के सांसद राजाराम पाल का भी घेराव हुआ।

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