Sunday, August 21, 2011

अन्ना की मनुहार तेज लेकिन नहीं बनी बात



देश में अन्ना को मिल रहे जनसमर्थन और जनता के आक्रोश से घबराई सरकार ने 'समझौते का सफेद झंडा' लहराना शुरू कर दिया है, लेकिन अपनी अकड़ भी नहीं छोड़ पा रही है। रविवार शाम सरकार की ओर से मध्यस्थों के जरिए चार सूत्री फार्मूला लेकर अन्ना का दरवाजा खटखटाया गया और आध्यामिक गुरु भैय्यूजी महाराज व महाराष्ट्र के अधिकारी उमेश सारंगी ने वार्ता की शुरुआत कर दी। इसके बाद अन्ना को सरकार की ओर एक प्रस्ताव भेजा गया, लेकिन टीम अन्ना ने इसे सिरे से नकार दिया।
अरविंद केजरीवाल ने देर रात कहा कि सरकार के प्रस्ताव में कुछ नया नहीं है। यह सरकारी लोकपाल बिल ही है। इसमें हमारी कोई मांग शामिल नहीं है। सिविल सोसाइटी और सरकार के बीच कोई समझौता नहीं हुआ है। इन हालात में अब प्रधानमंत्री के कोलकाता से लौटने के बाद सोमवार को ही कुछ ठोस पहल होने की उम्मीद है। सरकार की कोशिश है कि सोमवार शाम तक अन्ना का अनशन खत्म हो जाए। वार्ता के लिए पहल न करने का निर्णय ले चुकी सरकार अब खुद ही बातचीत के लिए बेचैन हो गई है। सुबह तक प्रणब मुखर्जी ने टीम अन्ना के रुख की आलोचना करते हुए यही संकेत दिया था कि सांसदों के अधिकारों से समझौता नहीं किया जा सकता, लेकिन शाम होते-होते स्थिति बदल गई। बैक डोर वार्ता शुरू हो गई।
बताते हैं कि जिद पर अड़े अन्ना को साधने के लिए सरकार ने चार सूत्री फार्मूला तैयार किया है। सरकार अन्ना से शीतकालीन सत्र तक का समय चाहती है ताकि एक ऐसा ड्राफ्ट तैयार हो सके जो जनता की अपेक्षाओं के अनुरूप हो। कहा गया है कि अन्ना चाहें तो मंगलवार को सरकार इस बाबत संसद में बयान दे सकती है। भैय्यूजी महाराज और महाराष्ट्र के अधिकारी उमेश सारंगी ने अन्ना से बातचीत के बाद कपिल सिब्बल से भी मुलाकात कर स्थिति की जानकारी दी, लेकिन अन्ना 3-4 माह का समय देने के पक्ष में नहीं हैं।
विलासराव देशमुख को भी रास्ता तलाशने को कहा गया है। सुशील कुमार शिंदे ने भी अपनी उपलब्धता बता दी है। दूसरी तरफ स्थायी समिति के जरिए सरकारी कवायद जारी है। शनिवार को प्रधानमंत्री ने बातचीत का संकेत दिया था, लेकिन औपचारिक रूप से इसकी घोषणा नहीं हुई। शाम होते होते टीम अन्ना ने इसे ही हथियार बनाकर सरकार को घेर दिया था और पूछा कि वह किससे, कब और कहां मिलकर बातचीत करें। जवाब सरकार की ओर से नहीं, बल्कि स्थायी समिति की ओर से आया। सिंघवी ने कहा कि औपचारिक वार्ता के लिए सबसे अच्छी जगह स्थायी समिति है। मौका तो दीजिये, समिति की रिपोर्ट आश्चर्यचकित भी कर सकती है।

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