Saturday, August 20, 2011

संसद की आड़ में छिपी सरकार


जन लोकपाल मुद्दे पर टीम अन्ना के नरम-गरम होते तेवरों के बीच सरकार सदमे से उबर कर मैदान पर तो उतरी, लेकिन संसद की आड़ लेकर। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने मजबूत और प्रभावी लोकपाल पेश करने की पैरवी करते हुए लोकपाल के सरकारी मसविदे में बदलाव के रास्ते खुले होने की बात कही, लेकिन संसदीय प्रक्रिया में समय लगने का हवाला देकर एक तरह से टीम अन्ना की 30 अगस्त तक जन लोकपाल विधेयक पारित करने की मांग को खारिज भी कर दिया।
इसी के साथ प्रधानमंत्री कार्यालय में राज्यमंत्री वी नारायणसामी ने टीम अन्ना को धमकाने वाले अंदाज में यह कहकर चेताया कि संसदीय समिति पर प्रहार करना संसद की अवमानना है। उन्होंने अन्ना के सहयोगी अरविंद केजरीवाल को हद में रहने को कहा। इसके अलावा सरकारी लोकपाल विधेयक पर गौर कर रही कार्मिक और कानून एवं न्याय मामलों की संसदीय स्थायी समिति के अध्यक्ष अभिषेक सिंघवी ने भी साफ किया कि कुछ प्रक्रियाओं का पालन करना पड़ेगा और उसमें समय लगेगा। उक्त समिति ने एक विज्ञापन जारी कर लोकपाल विधेयक पर जनता की राय मांगी है। टीम अन्ना की जनलोकपाल की मांग पर शनिवार को प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने योजना आयोग की पूर्ण बैठक के बाद खुद चुप्पी तोड़ी। उन्होंने कहा कि सरकार चर्चा और बातचीत के लिए तैयार है। हम इस पर एक व्यापक राष्ट्रीय सहमति चाहते हैं। इसमें समाज के सभी तबकों से सुझावों का आदान-प्रदान किया जाएगा।
प्रधानमंत्री ने संसद में पेश मौजूदा लोकपाल विधेयक पर उठ रहे सवालों का भी जवाब दिया। उन्होंने कहा कि इस मुद्दे पर सर्वदलीय बैठक बुलाई गई थी। सभी दलों का कहना था कि वे सरकार का मसौदा आने के बाद राय देंगे। हमने यह काम भी कर दिया है। इस महीने के आखिर तक जन लोकपाल विधेयक पारित करने की माग पर प्रधानमंत्री ने कहा कि इसमें कुछ परेशानिया हैं। यह विधायी प्रक्रिया से जुड़ा सवाल है। जो भी कहा जा रहा है [अन्ना की तरफ से] मैं उस पर कुछ कहना अथवा विवाद पैदा नहीं करना चाहता।
प्रधानमंत्री ने इशारों में कहा तो संसदीय कार्य राज्य मंत्री हरीश रावत ने दो टूक कहा कि 30 अगस्त तक लोकपाल बिल लाना असंभव है।
लोकपाल विधेयक पर विचार कर रही संसदीय स्थायी समिति के अध्यक्ष अभिषेक मनु सिंघवी ने अखबारों में विज्ञापन देकर इस बिल पर जनता की राय जानने की जो प्रक्रिया शुरू की है उसके तहत इस समिति के सामने इच्छुक लोगों को अपना पक्ष रखने के लिए तीन सितंबर तक का मौका दिया गया है।सिंघवी ने कहा कि समिति विभिन्न वर्गों के सभी प्रस्तावों पर गौर कर बेहतर एवं कड़ा विधेयक तैयार करने की कोशिश करेगी। हमने सभी विकल्प और विचार खुले रखे हैं। योजना राज्य मंत्री अश्विनी कुमार ने भी टीम अन्ना को सलाह दी है कि वह संविधान के खिलाफ कोई कदम न उठाए। अच्छा लोकपाल विधेयक जल्द से जल्द लाने के लिए सरकार प्रतिबद्ध है।
झुकने को तैयार नहीं टीम अन्ना आंदोलन को बढ़ते जन समर्थन और सरकार के साथ कायम गतिरोध को देखते हुए टीम अन्ना अब ज्यादा सचेत हो गई है। उसने यह साफ कर दिया कि वह अपनी मांगों से किसी कीमत पर पीछे नहीं हट सकती, मगर बातचीत और शर्तो पर सुलह के लिए तैयार है। 30 अगस्त तक जन लोकपाल बिल पास करने की मांग को सरकार की ओर से अव्यावहारिक बताए जाने पर अन्ना के साथियों ने कहा कि अगर सरकार इस तारीख तक यह बिल पास करने की बजाय सिर्फ पेश भी कर दे तो अन्ना मान सकते हैं। वैसे अनशन के सौ घंटे बाद भी अन्ना ने अपने तेवर बरकरार रखे।
उन्होंने कहा कि सरकारी खजाने को चोरों से नहीं पहरेदारों से खतरा है। देश को शत्रुओं ने नहीं बल्कि विश्वासघातियों ने धोखा दिया है। समर्थन से उत्साहित अन्ना ने कहा कि लोकपाल बिल पारित होने से ही लड़ाई खत्म नहीं होगी। उनकी लड़ाई चुनाव सुधार और किसानों की हितों के साथ हो रहे खिलवाड़ के खिलाफ जारी रहेगी। जमीन पर जबरन कब्जा किया जाता है और विरोध करने वालों पर गोली दागी जाती है।
टीम अन्ना की ओर से पूर्व कानून मंत्री शांति भूषण ने शनिवार की सुबह ही विस्तार से बताया कि 30 अगस्त तक जन लोकपाल बिल पास करना असंभव नहीं है। जब इंदिरा के खिलाफ हाई कोर्ट का फैसला आया था तो केंद्र सरकार ने चार दिन के अंदर न सिर्फ संविधान संशोधन करवा लिया था, बल्कि आधे राज्यों की विधानसभाओं से उसे मंजूरी भी दिलवा दी थी। उन्होंने यह भी कहा कि अगर सरकार फिर भी नहीं मान रही तो कम से कम 30 तक भ्रष्टाचार को बढ़ावा देने वाला अपना बिल वापस लेकर जन लोकपाल बिल संसद में पेश तो कर दे। मौके की नजाकत को देख टीम अन्ना ने अपने रवैये में लचीलापन दिखाया, लेकिन अपनी मांग को कमजोर भी नहीं होने दिया। इसी सिलसिले में अन्ना ने सरकार और कांग्रेस की नयीत पर सवाल उठाते हुए कहा कि इन लोगों ने पहले आरोप लगाया था कि आंदोलन अमेरिका की मदद से चल रहा है। अब किसी दिन ये कहेंगे कि इसमें पाकिस्तान मदद कर रहा है। अरविंद केजरीवाल ने संसद की स्थायी समिति को निशाने पर लेते हुए कहा कि लोगों को यह पता होना चाहिए कि इस समिति में लालू और अमर सिंह जैसे लोग भी हैं। क्या ये यह तय करेंगे कि भ्रष्टाचार से लड़ने के लिए कैसे एक मजबूत व्यवस्था तैयार की जाए? किरण बेदी ने कहा कि कई विपक्षी दलों ने साफ तौर पर कह दिया है कि वे सरकारी लोकपाल बिल को नाकाफी मानती हैं,मगर भाजपा ने अब तक अपने पत्ते नहीं खोले हैं। मौजूदा औद्योगिकी नीति पर बरसते हुए मेधा पाटकर ने कहा कि आपात उपबंधों के आधार पर जमीनों का अधिग्रहण कर उद्योग लगाए जाते हैं, जहां मजदूरों का शोषण हो रहा है। दशकों से मजदूर पिस रहा है और सरकार चुप है। मनरेगा में भ्रष्टाचार का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि इसे बदलने की जरूरत है।

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