Wednesday, August 17, 2011

आखिर क्‍या है लोकपाल बिल


भ्रष्‍टाचार के खिलाफ खड़े अन्‍ना हजारे जिस लोकपाल बिल की लड़ाई लड़ रहे हैं वह भारतीय इतिहास का एक अहम हिस्‍सा है। अन्‍ना हजारे के अनशन की वजह से अचानक ही देश की सबसे बड़ी खबर बने लोकपाल बिल का मसौदा नया नहीं है। इसका इतिहास 4 दशक से भी ज्‍यादा पुराना है। कई विवादों के बाद इसे संसद के मानसून सत्र में इस बार पेश किया गया है। यह पहला मौका नहीं है जब इस संसद में पेश किया गया हो।

भ्रष्‍टाचार के‍ खिलाफ लड़ाई ने लोकपाल बिल के प्रारूप को भी बदल दिया है। लोकपाल के इस समय दो फाड़ हो गए हैं। सिविल सोसाइटी का लोकपाल बिल जनलोकपाल बिल बन गया और सरकार द्वारा तैयार लोकपाल बिल का ड्राफ्ट सरकारी लोकपाल बिल कहलाया। यह पहला मौका था जब भ्रष्‍टाचार के खिलाफ लोकपाल बिल के दो मसौदे तैयार किए गए।

सरकारी लोकपाल बिल और जनलोकपाल बिल को सभी दलों के साथ विचार विमर्श करने के बाद केबिनेट में भेजा गया। यहां केबिनेट ने सरकारी लोकपाल बिल को अपनी मंजूरी दे दी। इसके बाद इसे लोकसभा में पेश किया गया। अब यह स्‍टैंडिंग कमेटी के पास विचाराधीन है। जनलोकपाल बिल की अनदेखी होने पर अन्‍ना हजारे भड़के और उन्‍होंने 16 अगस्‍त से अनशन करने का फैसला किया। दिल्‍ली पुलिस ने उन्‍हें अनशन की इजाजत नहीं दी और उन्‍हें गिरफ्तार कर तिहाड़ जेल भेज दिया।

आखिर क्‍या है लोकपाल बिल 

लोकपाल बिल देश में भ्रष्‍टाचारनिरोधी विधेयक का मसौदा है। इस बिल को भ्रष्‍ट नेताओं और नौकरशाहों पर लगाम लगाने के लिए तैयार किया गया था। इस बिल में यह नियम है कि इसे बिना सरकार की अनु‍मति के नेताओं और सरकारी अफसरशाहों पर अभियोग चलाया जा सके। अगर यह बिल पास हो जाता है तो लोकपाल तीसरी ऐसी बॉडी होगी जो सरकार के बिना किसी दखल के काम करेगी। जिस तरह चुनाव आयोग और न्‍यायपालिका स्‍वतंत्र रूप से अपना काम करती है। इस कानून के तहत राज्‍यों में लोकायुक्‍त और देश में लोकपाल का चयन होगा। लोकपाल 3 सदस्‍यों की कमेटी होगी जिसके अध्‍यक्ष सुप्रीम कोर्ट के रिटायर या मौजूद जज होंगे और बाकी 2 सदस्‍य हाईकोर्ट के जज या चीफ जस्टिस हो सकते हैं।

लोकपाल का इतिहास


लोकपाल बिल सबसे पहले 1969 में चौथी लोकसभा में पेश किया गया था। इसके बाद इसे 1971, 1977, 1985, 1989, 1996, 1998, 2001, 2005 and in 2008 में भी पेश किया गया। इतनी बार लोकसभा में पेश होने के बावजूद यह राज्‍यसभा तक नहीं पहुंच सका। इस लोकपाल बिल को शांति भूषण ने तैयार किया है जो इस समय सिविल सोसाइटी के सदस्‍य हैं। वे सरकारी लोकपाल बिल को नहीं बल्कि जनलोकपाल बिल का समर्थन कर रहे हैं। 2011 में लोकसभा में इसे 11वीं बार पेश किया गया है। हर बार की तरह इसे स्‍टेंडिंग कमेटी के पास भेजा गया है।

सरकारी लोकपाल और जनलोकपाल बिल में अंतर 


आइए आपको बताते हैं कि सरकारी लोकपाल बिल और जनलोकपाल बिल के बीच क्‍या अंतर हैं। विकीपीडिया के मुताबिक सरकारी लोकपाल के पास भ्रष्टाचार के मामलों पर ख़ुद या आम लोगों की शिकायत पर सीधे कार्रवाई शुरु करने का अधिकार नहीं होगा। सांसदों से संबंधित मामलों में आम लोगों को अपनी शिकायतें राज्यसभा के सभापति या लोकसभा अध्यक्ष को भेजनी पड़ेंगी। वहीं प्रस्तावित जनलोकपाल बिल के तहत लोकपाल ख़ुद किसी भी मामले की जांच शुरु करने का अधिकार रखता है। इसमें किसी से जांच के लिए अनुमति लेने की ज़रूरत नहीं है सरकार द्वारा प्रस्तावित लोकपाल को नियुक्त करने वाली समिति में उपराष्ट्रपति. प्रधानमंत्री, दोनो सदनों के नेता, दोनो सदनों के विपक्ष के नेता, क़ानून और गृह मंत्री होंगे। वहीं प्रस्तावित जनलोकपाल बिल में न्यायिक क्षेत्र के लोग, मुख्य चुनाव आयुक्त, नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक, भारतीय मूल के नोबेल और मैगासेसे पुरस्कार के विजेता चयन करेंगे ।

राज्यसभा के सभापति या स्पीकर से अनुमति

सरकारी लोकपाल के पास भ्रष्टाचार के मामलों पर ख़ुद या आम लोगों की शिकायत पर सीधे कार्रवाई शुरु करने का अधिकार नहीं होगा। सांसदों से संबंधित मामलों में आम लोगों को अपनी शिकायतें राज्यसभा के सभापति या लोकसभा अध्यक्ष को भेजनी पड़ेंगी। वहीं प्रस्तावित जनलोकपाल बिल के तहत लोकपाल ख़ुद किसी भी मामले की जांच शुरु करने का अधिकार रखता है। इसमें किसी से जांच के लिए अनुमति लेने की ज़रूरत नहीं है। सरकारी विधेयक में लोकपाल केवल परामर्श दे सकता है। वह जांच के बाद अधिकार प्राप्त संस्था के पास इस सिफ़ारिश को भेजेगा। जहां तक मंत्रीमंडल के सदस्यों का सवाल है इस पर प्रधानमंत्री फ़ैसला करेंगे।

वहीं जनलोकपाल सशक्त संस्था होगी। उसके पास किसी भी सरकारी अधिकारी के विरुद्ध कार्रवाई की क्षमता होगी। सरकारी विधेयक में लोकपाल के पास पुलिस शक्ति नहीं होगी। जनलोकपाल न केवल प्राथमिकी दर्ज करा पाएगा बल्कि उसके पास पुलिस फ़ोर्स भी होगी। सरकारी विधेयक में लोकपाल केवल परामर्श दे सकता है। वह जांच के बाद अधिकार प्राप्त संस्था के पास इस सिफ़ारिश को भेजेगा। जहां तक मंत्रीमंडल के सदस्यों का सवाल है इस पर प्रधानमंत्री फ़ैसला करेंगे। वहीं जनलोकपाल सशक्त संस्था होगी। उसके पास किसी भी सरकारी अधिकारी के विरुद्ध कार्रवाई की क्षमता होगी.सरकारी विधेयक में लोकपाल के पास पुलिस शक्ति नहीं होगी। जनलोकपाल न केवल प्राथमिकी दर्ज करा पाएगा बल्कि उसके पास पुलिस फ़ोर्स भी होगी

अधिकार क्षेत्र सीमित

अगर कोई शिकायत झूठी पाई जाती है तो सरकारी विधेयक में शिकायतकर्ता को जेल भी भेजा जा सकता है। जनलोकपाल बिल में झूठी शिकायत करने वाले पर जुर्माना लगाने का प्रावधान है। सरकारी विधेयक में लोकपाल का अधिकार क्षेत्र सांसद, मंत्री और प्रधानमंत्री तक सीमित रहेगा। जनलोकपाल के दायरे में प्रधानमत्री समेत नेता, अधिकारी, न्यायाधीश सभी आएँगे। लोकपाल में तीन सदस्य होंगे जो सभी सेवानिवृत्त न्यायाधीश होंगे। जनलोकपाल में 10 सदस्य होंगे और इसका एक अध्यक्ष होगा। 4 की क़ानूनी पृष्टभूमि होगी बाक़ी का चयन किसी भी क्षेत्र से होगा।

चयनकर्ताओं में अंतर

सरकार द्वारा प्रस्तावित लोकपाल को नियुक्त करने वाली समिति में उपराष्ट्रपति। प्रधानमंत्री, दोनो सदनों के नेता, दोनो सदनों के विपक्ष के नेता, क़ानून और गृह मंत्री होंगे। वहीं प्रस्तावित जनलोकपाल बिल में न्यायिक क्षेत्र के लोग, मुख्य चुनाव आयुक्त, नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक, भारतीय मूल के नोबेल और मैगासेसे पुरस्कार के विजेता चयन करेंगे। लोकपाल की जांच पूरी होने के लिए छह महीने से लेकर एक साल का समय तय किया गया है।

प्रस्तावित जनलोकपाल बिल के अनुसार एक साल में जांच पूरी होनी चाहिए और अदालती कार्यवाही भी उसके एक साल में पूरी होनी चाहिए। सरकारी लोकपाल विधेयक में नौकरशाहों और जजों के ख़िलाफ़ जांच का कोई प्रावधान नहीं है। लेकिन जनलोकपाल के तहत नौकरशाहों और जजों के ख़िलाफ़ भी जांच करने का अधिकार शामिल है। भ्रष्ट अफ़सरों को लोकपाल बर्ख़ास्त कर सकेगा।

सज़ा और नुक़सान की भरपाई

सरकारी लोकपाल विधेयक में दोषी को छह से सात महीने की सज़ा हो सकती है और धोटाले के धन को वापिस लेने का कोई प्रावधान नहीं है। वहीं जनलोकपाल बिल में कम से कम पांच साल और अधिकतम उम्र क़ैद की सज़ा हो सकती है। साथ ही धोटाले की भरपाई का भी प्रावधान है। ऐसी स्थिति मे जिसमें लोकपाल भ्रष्ट पाया जाए, उसमें जनलोकपाल बिल में उसको पद से हटाने का प्रावधान भी है। इसी के साथ केंद्रीय सतर्कता आयुक्त, सीबीआई की भ्रष्टाचार निरोधक शाखा सभी को जनलोकपाल का हिस्सा बनाने का प्रावधान भी है। 

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