Monday, July 4, 2011

FLOOD IN BIHAR

बिहार में बाढ़; आधी हकीकत आधा फ़साना 
बाढ़ बिहार की त्रासदी है. एक ऐसी त्रासदी जिसे नियति मन लिया गया है. आमतौर पर बिहारासियों को नसीहत दी जाती हैं कि वे प्रकृति से तालमेल बैठा कर जीना सिख लें. बाढ़ से रहत एवं बचाव को लेकर हर साल यहाँ जोरशोर से तैयारियां होती हैं. सरकार कि ओर से कई-कई दावें किये जाते हैं. तटबंधों कि सुरक्षा से लेकर रहत एवं पुनर्वास कि पुख्ता व्यवस्था का जुमला मंत्री से लेकर आलाधिकारी तक कि ओर से उछाला जाता हैं. राष्मितौर पर हर साल बाढ़ आती है, करोड़ों का नुकसान होता हैं, लाखो के घर बह जाते हैं,सैकड़ों कि जाने जाती हैं.यह किस्सा हर वर्ष का हैं. बाढ़ पूर्व कि तमाम तैयारियां धरी कि धरी रह जाती हैं.बाढ़ आने पर रहत और बचाव का खेल शुरू होता हैं. लाखों लोगो कि तबाही कि कीमत पर मुट्ठी भर आधिकारियों और नेतायों कि जेबे और बैंक बैलेंस बढ़ जाती हैं. लाखों बिहारवासी गुहार लगाते हैं कि बाढ़ से उनकी रक्षा हो, मगर वहीँ कुछ आधिकारियों,अभियंताओं और नेताओं को बाढ़ आने का इंतजार  भी रहता हैं.  तबाही कि कीमत पर जेबे भरने का यह खेल वर्षों से जारी हैं, आगे भी जारी रहेगा... सुशासन से क्या फर्क पड़ता हैं.

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