Friday, January 4, 2013

केंद्र और राज्यों को नोटिस



उच्चतम न्यायालय ने बलात्कार के आरोपी जन प्रतिनिधियों को निलंबित करने के आदेश देने से शुक्रवार को भले ही इंकार कर दिया लेकिन महिला उत्पीड़न से संबंधित मामलों की यथाशीघ्र सुनवाई के लिए देश भर में त्वरित अदालतों के गठन को लेकर केंद्र और राज्य सरकारों से जवाब-तलब किया है। न्यायमूर्ति के एस राधाकृष्णन और न्यायमूर्ति दीपक मिश्रा की खंडपीठ ने भारतीय प्रशासनिक सेवा (आईएएस) की सेवानिवृत्त अधिकारी प्रोमिला शंकर की एक जनहित याचिका की सुनवाई के दौरान केंद्र एवं राज्य सरकारों को नोटिस जारी करके यह बताने का निर्देश दिया कि त्वरित अदालतों के गठन को लेकर उनकी क्या योजनाएं हैं। खंडपीठ ने उन सांसदों और विधायकों का निलंबन आदेश जारी करने से इंकार कर दिया जिनके खिलाफ बलात्कार और महिला उत्पीड़न के मामलों में आरोपपत्र दायर किये जा चुके हैं। न्यायमूर्ति राधाकृष्णन ने कहा कि ऐसे जन प्रतिनिधियों के निलंबन का आदेश देना उसके अधिकार क्षेत्र में नहीं है। उन्होंने कहा  कि हम जनप्रतिनिधियों को अयोग्य घोषित नहीं कर सकते क्योंकि इसका अधिकार हमारे पास नहीं है। इस तरह का अनुरोध नहीं किया जा सकता। हालांकि, न्यायालय ने त्वरित अदालतों के मामले में राज्य सरकारों से पूछा कि आखिर इन अदालतों में कब तक न्यायाधीश नियुक्त किये जाएंगे और बलात्कार पीड़ितों को मुआवजा देने की उनकी क्या योजना है। न्यायालय ने केंद्र और राज्य सरकारों को चार सप्ताह के भीतर जवाब देने का निर्देश दिया। याचिकाकर्ता ने उन सांसदों और विधायकों को अयोग्य ठहराने का न्यायालय से आग्रह किया था जिनके खिलाफ महिलाओं के उत्पीड़न मामलों में आरोप पत्र दायर किये जा चुके हैं। उन्होंने बलात्कार और महिला उत्पीड़न के सभी मामलों की सुनवाई के लिए पूरे देश में त्वरित अदालत गठित करने तथा ऐसे मामलों की सुनवाई महिला न्यायाधीशों से कराये जाने के निर्देश देने का भी अनुरोध किया है। केन्द्र व राज्यों को नोटिस जारी कर सुप्रीम कोर्ट ने इस दिशा में महत्वपूर्ण पहल की है।

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