Monday, March 25, 2013

फागुन आया



मन बौराया,
तन बौराया
बौराया अंग-अंग
अब तो आजा
फागुन आया
रह लेंगे संग-संग।
बैठ मुंडेरे
 कागा बोले
मन में उठी तरंग
तुम तो मुझसे
करके वादा
चले गए मोरंग।
तुम आए
न आई पाती
आस हुई बेरंग।
अब तो आजा
फागुन आया
रह लेंगे संग-संग...।
पायल-झांझर
बाज उठे सब
बाजे ढोल-मृदंग
केसर-कुमकुम
मंह-मंह महके
मन हुए मतंग।
अब तो आजा
फागुन आया
रह लेंगे संग-संग...।
                                                                     राकेश प्रवीर

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