Sunday, March 10, 2013

कांग्रेस और नीतीश की नजदीकियों का निहितार्थ



क्या आने वाले दिनों में बिहार की राजनीति कोई करवट लेगी?नीतीश कुमार की राजनीतिक चालों को लेकर फिलवक्त कयासों का बाजार गर्म हैं। कांग्रेस और नीतीश कुमार(फिलहाल जदयू नहीं) की बढ़ रही नजदीकियां इन कयासों को पंख दे रही है। वैसे अपनी अधिकार यात्रा के दौरान ही गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी की पीएम उम्मीदवारी को लेकर उत्पन्न तल्खी के बीच नीतीश कुमार ने इस बात का मुखर एलान किया था कि 2014 के लोकसभा चुनाव के बाद बिहार को विशेष राज्य का दर्जा देने की जो पहल करेगा, उसे ही उनका समर्थन मिलेगा। हाल के दिनों में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने देश के प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को बिहार में तेज गति से विकास के लिए प्रशंसा करने पर धन्यवाद दिया है। प्रधानमंत्री द्वारा प्रशंसा किए जाने के बारे में पूछे जाने पर नीतीश ने कहा कि प्रधानमंत्री ने बिहार में तेज गति से हो रहे विकास की प्रशंसा की है, इसके लिए वह उन्हें धन्यवाद देते हैं। गौरतलब है कि प्रधानमंत्री ने ट्वीट कर कहा था कि सभी बीमारू राज्य तेजी से विकास कर रहे हैं। इसमें बिहार सभी राज्यों की तुलना में तेज गति से विकास कर रहा है। उन्होंने तीव्र विकास के लिए बिहार की प्रशंसा की थी। गौरतलब है कि बिहार का विकास दर वर्ष 2006-07 से 2010-11 के दौरान 10.9 प्रतिशत रहा है जो देश के कई राज्यों की तुलना में सबसे बेहतर है। आम तौर पर गंभीर मुद्दों पर भी मौन रहने वाले प्रधानमंत्री का एक गैरकांग्रेस शासित राज्य के विकास गाथा की प्रशंसा के भी अर्थ है। गौरतलब है कि वित्त मंत्री पी़ चिदंबरम ने संसद में आम बजट पेश करते हुए विशेष राज्य का दर्जा देने की अर्हताओं में बदलाव की बात की थी और इसके लिए भी नीतीश ने वित्त मंत्री को भी बधाई दी थी। ठीक इसके एक दिन पहले विगत वर्ष के आर्थिक सर्वेक्षण में भी विशेष राज्य का दर्जा देने के  मानदंड में बदलाव को समय की जरूरत जब बताया गया तो मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने इसे बिहार की मांग की सैद्धांतिक जीत करार दिया। यह सब बेजा नहीं है और ऐसा भी नहीं है कि इन सबका कोई राजनीतिक निहितार्थ नहीं है। गौरतलब हो कि वर्ष 2009 के लोकसभा चुनाव के बाद भी नीतीश कुमार ने कुछ इसी तरह की राजनीतिक चाल चली थी। चुनाव परिणाम आने के ठीक एक दिन पहले उन्होंने घोषणा की थी कि उनको कांग्रेस को समर्थन देने में कोई हर्ज नहीं होगा, बशर्ते की वह बिहार को विशेष राज्य का दर्जा दिलाने का भरोसा दे। यह दीगर रहा कि जब चुनाव परिणाम आया तो कांग्रेस और संप्रग को किसी के समर्थन की जरूरत ही नहीं पड़ी और नीतीश कुमार के आॅफर का कोई मतलब ही नहीं रह गया। सम्प्रति बदली हुई राजनीतिक परिस्थितियों में कांग्रेस को भी कुछ अन्य नए सहयोगियों की जरूरत है। तृणमूल कांग्रेस के अलग होने की भरपाई करने की उसकी कोशिश में नीतीश कुमार मददगार हो सकते हैं। अड़चन शरद यादव को माना जा सकता है। नीतीश कुमार के मोदी से बिदकने और इसी आधार पर अगर भाजपा से उनकी दूरियां बढ़ती है तो इसका लाभ लेने का मौका कांग्रेस भी नहीं छोड़ना चाहेगी। नीतीश कुमार के लिए भी केन्द्रीय राजनीति में दखल का यह एक मौका हो सकता है। ‘बिहार के हक’ के नाम पर अगर वह ऐसा करते हैं तो 2015 के बिहार विधान सभा चुनाव में उनके पास एक मजबूत तर्क होगा। दिल्ली में आयोजित जदयू की रैली को भी इसी नजरिए से देखा जा रहा है। रैली के जरिए नीतीश कुमार केन्द्र की सरकार को अपनी ताकत का अहसास कराएंगे। अगर यह रैली भीड़ के लिहाज से सफल रहती है तो नीतीश समर्थकों के साथ ही कांग्रेसियों के लिए भी राहत की बात होगी,क्योंकि इससे नरेन्द्र मोदी के जवाब के तौर पर देखा जाएगा। ऐसे में यह सवाल भी महत्वपूर्ण होगा कि क्या आने वाले दिनों में वाकई बिहार की राजनीति करवट लेगी?

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