Friday, March 15, 2013
अहसास वसंत का
मंद-मंद हवा के झोके से सिहरन सी उठी और मन मॅह मॅह करते आम के बौरों की भीनी गंध से भींग गया। गांव से लौटने के दौरान बगीचे के बगल से गुजरने का यह संयोग वसंत का सुखद अहसास करा गया। सूरज की किरण फूटने ही वाली थी,नजर उठा कर देखा तो ऐसा लगा कि महुए की फुनगी पर लालिमा से भरपूर सूरज टंगा हुआ है... अभी कुछ कदम ही आगे बढ़ा कि कोयल की कू...कू... की आवाज कान में रस घोलने लगी। आम के झुरमुठों से उठ रही यह आवाज दूर तक पीछा करती रही... एकबारगी मन किया कि वापस हो जाऊं,फिर ख्याल आया, बस छुट जाएगी। बस में बैठा तो मन पर उदासी छाई हुई थी,पीछे क्या-क्या छुट गया, एक-एक कर परते उघड़ने लगी। कभी इन्हीं अमराइयों में घंटो गुजर जाया करता था,पत्तों की ओट में छुपी कोयल के स्वर में स्वर मिला कर कू...कू... करने का अलभ्य आनंद क्या भुलाया जा सकता है... आंगन में अहले बिछी महुआ के सफेद फूलों की मदमाती गंध से एक रिश्ता से कायम हो गया था। पोखर के किनारे गुलमोहर की छांह में दुपहरिया कैसे गुजर जाती थी, पता ही नहीं चलता था। दूर-दूर तक खेतों में बिछी सरसों की पीली चादरों के बीच धनिया के छितराए सफेद खिलखिलाते फूलों के गंध आज भी मन में रचे-बसे हैं...इन्हीं ख्यालों में डूबे-डूबे रास्ते कट रही थी कि अचानक गाड़ियों की चिल्ल-पौं से मानो नींद खुल गई। देखा, सामने कंक्रीट के जंगल पसरे हुए है। मन थोड़ा खिन्न हुआ...मगर जीवन की इस आपाधापी को अनचाहे मन से ही सही, स्वीकार तो करना ही होगा...चकाचौंध से भरे महानगरीय जीवन में वसंत तेरा अहसास कहां...
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