Wednesday, February 27, 2013

अपराध नियंत्रण गंभीर चुनौती



अपराध पर नियंत्रण हर सरकार और प्रशासन के लिए वाकई एक गंभीर चुनौती होती है। अपराधमुक्त समाज एक आदर्श स्थिति हो सकती है, मगर व्यवहार में यह संभव नहीं है। ऐसे में अपराध नियंत्रित समाज की बातें होनी चाहिए। इसके लिए अनुशासित व लोकोन्मुखी पुलिसिंग की जरूरत है। इलेक्ट्रॉनिक मीडिया, प्रिंट मीडिया एवं मानवाधिकार के दौर में सही तौर तरीके विकसित कर पुलिस को कार्य करने होंगे। पटना में आॅल इंडिया पुलिस कांग्रेस का आयोजन किया गया है। उम्मीद की जानी चाहिए कि इस कांग्रेस से बिहार पुलिस की सोच व तरीके में बदलाव आएगा।  पुलिस को कानून के हिसाब से चलते हुए आधुनिक तरीकों का सहारा लेना चाहिये। एक लाख की आबादी पर 125 पुलिसकर्मी की राष्ट्रीय औसत को बिहार में 44 हजार पुलिसकर्मियों की नियुक्ति कर शीध्र ही पूरा करने का भरोसा सरकार की ओर से दिया गया है। इसके साथ ही अनुसंधान का काम एवं विधि व्यवस्था संधारण का काम अलग-अलग हो, इसके लिए पटना शहर से कार्य प्रारंभ किया गया है, जो पूरे राज्य में लागू होगा। इसके लिए सरकार बड़े पैमाने पर पुलिस इंस्पेक्टर की बहाली करने जा रही है। सामान्य अपराधों की तरह ही आर्थिक अपराध यानी भ्रष्टाचार पर भी कारगर नियंत्रण और ससमय समुचित कार्रवाई की जरूरत है। सुप्रीम कोर्ट ने भी बार-बार कहा है कि भ्रष्टाचार समाज के लिए कैंसर है। भ्रष्टाचार धीरे-धीरे पूरे समाज को खत्म कर रहा है। भ्रष्टाचार के मामले के निष्पादन में तेजी होनी चाहिए।इस दिशा में बिहार की पहल सराहनीय है। बिहार में स्पेशल कोर्ट एक्ट लागू किया गया है। बिहार ही एक ऐसा अनोखा राज्य है, जहॉ पांच लोकसेवकों की संपति जब्त हुई है और उसका बेहतर उपयोग करते हुये उसमें स्कूल खोला गया है। आर्थिक अपराध को भी नियंत्रित करना पुलिस की चुनौती है। वैसे सरकार का मानना है कि वह आर्थिक अपराधियों पर भी सरकार शिकंजा कस रही है। बहुत से लोग शराब का नाजायज धंधा करते हैं। लोगों के पास हजारों करोड़ की इकोनॉकी है, इसका प्रयोग वे एशोआराम तथा अपराध के लिए करते हैं। पुलिस की यह चुनौती है कि आधुनिक तकनीक के सहारे वैज्ञानिक ढ़ंग से अनुसंधान कर मामले का शीघ्र निष्पादन करें। पुलिस हमेशा समाज के सुरक्षा के लिए अपराध एवं अपराधकर्मियों पर नियंत्रण कायम रखे, इसके लिए सरकार को उन्हें हर सुविधा उपलब्ध कराना चाहिए।  पुलिस बल भी पर्याप्त संख्या में उपलब्ध होना चाहिए।  यह उल्लेखनीय है कि सूबे में पिछले सात वर्षों में 79 हजार से अधिक अपराधियों को सजा मिली है। बिहार का कनविक्शन दर देश का सर्वाधिक है। वर्ष 2006 में सबसे पहले आर्म्स एक्ट के मामले में स्पीडी ट्रायल के द्वारा कनविक्शन होने शुरू हुये। संगीन अपराध अपहरण, हत्या, डकैती, बलात्कार में भी स्पीडी ट्रायल शुरू हुआ। अपराधियों को स्पीडी ट्रायल के माध्यम से सजा दिलाने में पुलिस ने महत्वपूर्ण भूमिका अदा की, जबकि न्यायालय ने स्पीडी ट्रायल का मॉनिटरिंग करना शुरू किया। स्पीडी ट्रायल का तौर तरीका जारी रहे। गवाहों को ससमय उपस्थित किया जाय तथा अपील में भी तेजी आनी चाहिये, इससे ससमय निर्णय होगा। पहले सरकारी गवाह समय पर उपस्थित नहीं होते थे, अन्य गवाह गवाही ही नहीं देते थे। अब गवाही देने के लिये लोग तत्पर रहते हैं। सरकारी अधिकारियों को सिर्फ एक मुहलत दी गयी है कि वे गवाही देने के लिये एक बार से अधिक अनुपस्थित नहीं हो सकते। पुलिस को भी अपने तौर तरीकों में बदलाव लाने की जरूरत है।

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