Sunday, February 17, 2013

राष्ट्रपति की वाजिब चिन्ता



संसद एवं राज्य विधानसभाओं की कार्यवाही में बारबार बाधाएं डाले जाने की बढती प्रवृत्ति पर चिंता जताते हुए राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने कहा है कि ये व्यवधान ऐसे मामूली मुद्दों को लेकर होता है जिनका समाधान किया जा सकता है। संसद में बाधाओं के प्रचलन बनने का जिक्र करते हुए मुखर्जी ने कहा, ऐसा न केवल संसद में बल्कि राज्य विधानसभाओं में भी हो रहा है। राष्ट्रपति ने कहा कि उन्होंने इन बाधाओं के उपचार पर भी गौर करने का प्रयास किया और इस प्रक्रिया में महसूस हुआ कि अधिकतर समय विवाद इस बात पर होता है कि किसी मुद्दे पर संसद के किस नियम के तहत चर्चा हो। उन्होंने कहा कि अधिकतर अवसरों पर संसद के किसी भी सदन में विपक्ष के नेता इस आधार पर आपत्ति करते हैं कि किस नियम के तहत चर्चा हो। पिछले कुछ समय से विपक्ष द्वारा संसद की कार्यवाही को बारबार स्थगित किए जाने के परिप्रेक्ष्य में मुखर्जी की यह टिप्पणी आयी है। उन्होंने कहा, मेरे हिसाब से इस समस्या का समाधान करना बहुत कठिन नहीं है । राष्ट्रपति बनने से पहले लोकसभा के नेता रहे मुखर्जी सरकार की तरफ से ऐसे गतिरोध को दूर करने में प्रमुख भूमिका निभाते रहे हैं। उन्होंने कहा कि संविधान निमार्ताओं ने यह नहीं सोचा था कि इस तरह की घटनाएं (बाधा) संसद में प्रचलन बन जायेंगी। मुखर्जी ने कहा, इन विकृतियों को दूर किया जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि इन बाधाओं के कारण वित्तीय मामलों पर लोकसभा में चर्चा करने की शक्ति का भी पूरा उपयोग नहीं हो पाता है। राष्टÑपति की चिन्ता से सहमति बनती है। आमतौर पर देश की सर्वोच्च पंचायत संसद से लेकर राज्य विधान मंडलों तक में मामूली मुद्दों को लेकर गतिरोध की स्थिति कायम होती है और जनता के बहुमूल्य सवाल और मुद्दे पीछे छूट जाते हैं। कई बार तो यह भी देखा गया है कि मुद्दे आधारित विरोध न होकर वह व्यक्ति तक सीमित हो कर रह जाता है। मसलन जार्ज फर्नांडीस या फिर पी चिदम्बरम का संसद में बॉयकाट और उनको सदन के अंदर बोलने न देने की जिद। इसी तरह से राज्य विधानमंडलों में भी मामूली बातों को लेकर सदन की कार्यवाही को कई-कई दिनों तक बाधित कर दिया जाता है। दरअसल आम सहमति के आधार पर इस समस्या का निराकरण ढूंढा जाना चाहिए।

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