Tuesday, February 26, 2013

जनाकांक्षाओं पर बेपटरी रेल



रेल बजट से आम लोगों की उम्मीदें जुड़ी होती हैं। आम तौर हर व्यक्ति किसी न किसी रूप में रेलवे का उपभोक्ता होता है। लाखों कर्मियों वाली रेलवे से यूं तो लाखों लोगों की रोजी-रोटी चलती है। पूरे भारत में करीब साढ़े सात हजार से ज्यादा स्टेशन हैं तो करीब 7800 लोकोमेटिव रेलवे के पास हैं। हर रोज भारतीय रेल करीब चौदह हजार ट्रेनें विभिन्न जगहों से चलाती है। भारतीय रेल के पास चालीस हजार कोच और सवा तीन लाख से ज्यादा वैगन है। हर रोज करीब ढ़ाई करोड़ यात्री भारतीय रेल में सफर करते हैं और एक करोड़ टन की माल ढुलाई हर रोज रेल के माध्यम से ही की जाती है। भारतीय रेल के पास 18 राजधानी और करीब 26 शताब्दी ट्रेनें चलाती है। लगातार घाटे का रोना रोने के साथ बुनियादी ढांचे की कमी रेलवे में साफतौर पर नजर आती है। अफसोस की बात यह है कि पिछले एक वर्ष के दौरान रेल मंत्री तो तीन बदल गए लेकिन नहीं बदली तो वह है भारतीय रेल की हालत।वर्ष 2011 में जब तृणमूल कांग्रेस प्रमुख ने बतौर रेलमंत्री रेल बजट पेश किया था तो उन्होंने कई नई ट्रेन चलाने के वादे किए साथ ही रेल किराए न बढ़ाकर यात्रियों को राहत देने की कोशिश की। इसके अलावा उन्होंने अपने बजट में रेल सुविधाओं में बढ़ोतरी की बातें कहीं। लेकिन साल गुजर गया और हुआ कुछ नहीं। हालांकि कुछ नई ट्रेनें जरूर चलाई गई लेकिन खस्ता हाल होती पटरियों को बदलने के बारे में न तो कोई रेल बजट में प्लानिंग ही की गई न ही इन पर इस बार कोई तवज्जो दी गई है। इसका ही नतीजा रहा है कि हर भारतीय रेलवे को बार-बार दुर्घटनाओं का शिकार होना पड़ता है। हालत यह हुई है कि रेल के जरिए विजन 2020 की बातें कहने वाला रेल मंत्रालय हकीकत से कहीं दूर होता चला गया है। हालांकि इस विजन के लिए चौदह लाख करोड़ रुपये जुटाने की दरकार थी। वैसे सुरक्षा व संरक्षा रेलवे के लिए सबसे बड़ी चुनौती है। भारतीय रेल की हालत में सुधार का वादा करने वाली सरकार स्टेशनों के रखरखाव में हर बार विफल होती आई है। इस बार भी इस मामले में निराशा ही हाथ लगी है।

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