Thursday, February 23, 2012

सीएम पद को लेकर सियासी सुर

  • राकेश प्रवीर
उत्तर प्रदेश विधान सभा चुनाव के मतदान का चार चरण पूरा हो चुका है। गुरुवार को पांचवे चरण का चुनाव है। मगर पिछले एक हफ्ïते से सीएम पद को लेकर सियासी दलों ने सुर अलापने शुरू कर दिए है। वैसे उत्तरप्रदेश विधानसभा में किसे बहुमत मिलेगा और किसका राज होगा यह आगामी 6 मार्च को तय होगा। मुख्यमंत्री पद को लेकर अभी से हवा में सभी दलों की ओर से नाम उछाले जा रहे हैं और जुबानी जंग छिड़ी हुई है। बसपा छोड़ कर अन्य सभी पार्टियों ने एक तरह से मुख्यमंत्री पद के दावेदारी को लेकर कई-कई नाम उछाले हैं। चुनावी मुकाबले में भाजपा और कांग्रेस भले ही अब तक तीन और चार नंबर की लड़ाई लड़ रही हैं, मगर कई नामों की चर्चा मुख्यमंत्री पद के लिए इन दलों में होने लगी है। दो दिन पहले भाजपा के राष्टï्रीय अध्यक्ष नितिन गडकरी ने कह दिया कि पार्टी को बहुमत मिला तो उमा भारती मुख्यमंत्री होंगी। इसके पहले लखनऊ में चुनाव प्रचार के दौरान भाजपा के पूर्व राष्टï्रीय अध्यक्ष राजनाथ सिंह ने कलराज मिश्र को मुख्यमंत्री पद के दावेदार के रूप में पेश किया था। कुर्सी की लड़ाई का ही नतीजा है कि भाजपा के वरिष्ठ नेता कलराज मिश्र ने उमा भारती को बाहरी बताया था। उन्होंने कहा था कि वह यहां की वोटर नहीं हैं। इसलिए मुख्यमंत्री नहीं बन सकतीं। मगर गौर करें कि उमा भारती को जब पार्टी के शीर्ष नेतृत्व ने बुंदेलखंड की चरखारी से चुनाव लड़ाने का फैसला किया उसी दौरान एक तरह से उन्हें बतौर भावी मुख्यमंत्री पेश किया गया। इस मुद्ïदे पर भाजपा का मतभेद भी उभर कर सामने आया। चर्चा शुरू हुई कि उमा भारती को इस तरह से पेश करने की वजह से ही फायरब्रांड नेता विनय कटिहार अब कटे-कटे से रह रहे हैं और भरसक उमा भारती के साथ चुनावी सभा करने से बच रहे हैं। भाजपा के अंदर सूर्य प्रताप शाही की दावेदारी पर भी चर्चा होती रही है। चुनाव प्रचार के शुरुआत में भाजपा का एक खेमा राजनाथ सिंह को भी भावी मुख्यमंत्री के रूप में पेश कर रहा था। बाद में श्री सिंह ने अपने को इस दौड़ से बाहर बता कर एक तरह से इस मामले का पटाक्षेप कर दिया। मगर उनके कतिपय समर्थकों का मानना है कि पूर्व के अनुभवों के आधार पर उनकी दावेदारी अभी पूरी तरह से समाप्त नहीं हुई है।
दूसरे दलों में भी मुख्यमंत्री की कुर्सी पर दावेदारी को लेकर जुबानी जंग जारी है। कांग्रेस में कई नाम की चर्चा हो रही है जो मुख्यमंत्री पद के दावेदार बताए जाते हैं। कांग्रेस विधायक दल के पूर्व नेता प्रमोद तिवारी और पार्टी की प्रदेश इकाई की अध्यक्ष रीता बहुगुणा जोशी के साथ ही अन्य कतिपय नाम भी है जिनकी बीच-बीच में चर्चा हुई है। कांग्रेस-रालोद के गठबंधन के बाद रालोद के युवा सांसद तथा रालोद संस्थापक चौधरी अजित सिंह के पुत्र जयंत चौधरी की भी पश्चिमी उत्तर प्रदेश में भावी मुख्यमंत्री के तौर पर जोरदार चर्चा शुरू हुई। कांग्रेस सांसद बेनी प्रसाद वर्मा भी अपने को इस पद की होड़ से अलग मानने के लिए तैयार नहीं है। समाजवादी पार्टी से कांग्रेस में गए श्री वर्मा कई मौके पर अपनी इस महत्वकांक्षा का इजहार भी कर चुके हैं। यहीं वजह थी कि केंद्रीय मंत्री बेनी प्रसाद वर्मा ने खुद की दावेदारी जताते हुए बाराबंकी से कांग्रेस सांसद पीएल पुनिया को बाहरी बता दिया था। कहा था कि वह बाहरी हैं किसी रेस में नहीं हैं। मुख्यमंत्री पद की लड़ाई बढ़ी तो केंद्रीय मंत्री श्रीप्रकाश जायसवाल ने कहा सीएम कोई भी हो, लेकिन उसकी चाबी कांग्रेस महासचिव राहुल गांधी के हाथ में ही रहेगी। राहुल गांधी को उन्होंने रिमोट करार दिया था। राहुल के नाम पर सफाई देते हुए कहा था कि जो व्यक्ति प्रधानमंत्री की कुर्सी स्वीकार नहीं कर रहा है वह प्रदेश का मुख्यमंत्री क्यों बनेगा। कांग्रेस से जुड़े युवाओं के बीच कांग्रेसी सांसद जतिन प्रसाद की भी बतौर मुख्यमंत्री पद के दावेदार के रूप में चर्चा हो रही है।
चुनाव लड़ रही बसपा में ऐसी कोई होड़ नहीं है। मायावती स्वयंभू हैं। उनके आगे किसी में ऐसी हिम्मत भी नहीं नेता प्रतिपक्ष शिवपाल सिंह यादव ने ने कहा था कि समाजवादी पार्टी को बहुमत मिला और सहमति बनी तो अखिलेश यादव उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री हो सकते हैं। मगर चुनाव प्रचार के दौरान ही सपा के प्रदेश अध्यक्ष अखिलेश यादव ने अपने को इस पद की दावेदारी से अलग कर लिया था। अखिलेश ने साफ तौर पर कहा था कि मैं इस रेस में नहीं हूं। नेताजी के पास शासन करने का लंबा अनुभव है। प्रदेश में सरकार बनीं तो अगले मुख्यमंत्री वही होंगे।

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