Saturday, February 18, 2012

हताश जनता का लोकतंत्र पर विश्वास

उत्तर प्रदेश की सियासत में कई पड़ाव आये हैं। बदलाव के कई दौर भी यहां की राजनीति में आई है। पर आजादी के बाद पहली बार इतने बड़े पैमाने पर मतदान अपने आप में एक एक सियासी करिश्मा है। भ्रष्टाचार से हताश जनता का चुनावी लोकतंत्र पर ऐसा विश्वास वाकई सलाम करने के लायक है। इतिहास के पन्ने उलटने पर पता चलता है कि उत्तर प्रदेश के सियासी गलियारों में मुद्ïदों की गर्माहट, नेताओं के चेहरे और पार्टी की लहर कोई भी कभी ऐसा करिश्मा नहीं कर पाया। भगवा उन्माद, मंडल-कमंडल का उत्तेजक माहौल और राम मंदिर निर्माण के प्रति बहुसंख्य हिन्दू समाज की कटिबद्धता में भी उत्तर प्रदेश में 57 प्रतिशत ही मतदान हुआ था। आपातकाल के बाद इंदिरा गाँधी के तानाशाही के जवाब में भी केवल 55 प्रतिशत  मतदाताओं ने ही अपना आक्रोश व्यक्त किया था। राम रथ पर सवार हो कर उत्तर प्रदेश की कुर्सी हथियाने वाली भजपा को सिंहासन से उतारने के लिए 1993 में बहुजन समाज पार्टी और समाजवादी पार्टी ने मिल कर सामाजिक न्याय और दलित राजनीति का मिश्रण तैयार किया था।  कशीराम और मुलायम सिंह का साझा चेहरा व सांप्रदायिक शक्ति को रोकने की गुहार भी 60 फीसदी का जादुई आंकड़ा नहीं पार करा सकी। उत्तर प्रदेश की बेहद पेचीदा सियासी जमीन पर  1999 में अटल बिहारी बाजपेई का कारगिल विजयी  चेहरा भी 53 प्रतिशत से ज्यादा वोटरों को घर से बहार नहीं निकाल सका था। पर इस बार ऐसा कोई हंगामा चेहरा या मुद्ïदा नहीं है। अन्ना के बीमार होने और चुनाव में कैम्पेन न करने से भ्रष्ट्राचार का मुद्ïदा भी केंद्रीय भूमिका नहीं पा सका और न ही कांग्रेस विरोधी लहर बहती हुई दिख रही है। बस अलसाए हुए सियासी गलियारे में बढ। शायद यही वजह है जो सपा इस बढ़े हुए मतदान को बसपा विरोधी लहर मान रही है और इस पर अपना हक जाता रही है। वहीं कांग्रेस को इसमें राहुल और प्रियंका का चमत्कार दिख रहा है और वो उत्तर प्रदेश में खुद को 22 साल बाद फिर से प्रदेश की सियासत में लौटते हुए देख रहे हैं।  उनका तर्क है की बढ़ा हुआ मतदान युवा मतदाताओं की देन है और ये युवा राहुल गाँधी की सरपरस्ती में उत्तर प्रदेश की तकदीर बदलने को उतावला है। लेकिन यहीं पर अन्ना आन्दोलन का दृश्य उभर आता है जब देश का युवा सड़कों पर था और उसका गुस्सा सबसे ज्यादा राहुल गाँधी पर फूट रहा था। सड़कों पर विरोध करने उतरा युवा नारे लगा रहा था  कि- देश का युवा यहाँ है, राहुल गाँधी कहाँ है...। साथ ही साथ राहुल की सभाओं में उछालते जूते और लहराते हुए काले बैनर और झंडे इस  तर्क को गले से उतरने नहीं देते कि राहुल गाँधी के करिश्मे ने उत्तर प्रदेश के मतदाताओं को मथ दिया है और वोट का सारा मख्खन कांग्रेस के करीने लगने वाला है। कांग्रेस और बसपा के निपटने के बाद नजर भजपा की ओर जाती है जो ये कह रही है कि मतदाता इस बार कांग्रेस और बसपा के भ्रष्टाचार से अजीज आ चुकी है और सपा से उसे कोई उम्मीद नहीं है इसलिए साफ  सुथरी सरकार और कुशल  नेतृत्व के  लिए मतदाता अबकी बार भाजपा का रुख कर रहा है। भाजपा का दावा भी रेत का महल है क्योंकि जिस तरह से बाबू सिंह कुशवाहा को अन्दर बहार किया गया और जनता को बेवकूफ  समझ कर उन्हें भाजपा का चुनाव प्रचार करने के लिए उतरा गया उससे तो यही लगता है कि जनता  इस बार भाजपा को अपने बुद्धि विवेक का परिचय करा के ही दम लेगी।  कर्नाटका के यद्ïदुराप्पा का केस अभी सियासी गलियारों में मौजूद ही था कि विधान सभा में पोर्न फिल्म देखते हुए पाए गए भाजपा के मंत्रियों ने मुश्किलें और बढ़ा दीं। खैर, भाजपा इसे कोई मुद्ïदा नहीं मन रही है और दावा कर रही है कि इसका कोई असर चुनाव में देखने को नहीं मिलेगा।
बढे मतदाताओं पर दावेदारी में सपा भी पीछे नहीं है। सपा का कहना है कि जनता के दर्द को सपा ने समझ लिया है और उसके घोषणा पत्र में जनता के सब दुखों का निवारण है जो इस बार सपा के लिए एक अंडरकरंट  बहा रहा है। अबकी बार विधान भवन में साइकिल का ही बोलबाला होगा। सपा का ये मानना कितना सही है ये तो वक्त ही बताएगा।  इन मुख्य पार्टियों के अलावा सभी छोटी पार्टियां और दागी-बागी निर्दलीय प्रत्याशी वोट कटवा की भूमिका में नजऱ आ रहे  है।  इनकी अधिकतम सफलता सत्ता में भागीदारी तक ही सीमित है। हमाम  में सब नंगे हैं। भ्रष्टाचार, अनाचार और अत्याचार से दो चार होता मतदाता किस ओर सियासी गाड़ी खींच रहा है किसी को कोई खबर नहीं है। सब शंका के शिकार हो रहे हैं। कयासबाजी का बाजार गर्म है।  बढ़े मतदाताओं में सबसे ज्यादा संख्या महिलाओं और युवाओं की है। और ये ऐसे वोटर हैं जिनके बारे में सियासी भविष्यवाणी नहीं की जा सकती। ये किसी भी ओर मुड़ सकते हैं। कुल मिला कर शांत सतह  के नीचे मची हलचल को भाँपते हुए यही कहा जा सकता है कि उत्तर प्रदेश की चुनावी जमीन के नीचे बहता हुआ वोट का अंडरकरंट अबकी बार सबको चौंका सकता है और सत्ता की ऐसी तस्वीर बना सकता है जिसके बारे में पहले नहीं सोचा गया  रहा होगा।
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