Tuesday, April 1, 2014

मीडिया संकेन्द्रण का खतरा


दो ऐसी बड़ी घटनाएं हुई हैं जो देश के मीडिया उद्योग को तेजी से एकाधिकारी और संकेंद्रित करने में निर्णायक साबित होने जा रही हैं। यह इस उद्योग के लिए कितना लाभप्रद होगा, कहना मुश्किल है पर यह जरूर कहा जा सकता है कि जहां तक अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का सवाल है इसके दूरगामी परिणाम होंगे। यहां याद किया जा सकत है कि मीडिया जनमत को प्रभावित करता है और उसका संबंध अभिव्यक्ति की आजादी से है। लोकतंत्र के लिए अभिव्यक्ति की आजादी आधारभूत तत्त्व है और इस आजादी का तभी कुछ अर्थ है जब तक कि वह विकेंद्रित है। यानी जब इस का उपयोग ज्यादा से ज्यादा लोग कर सकने की स्थिति में हों। ऐसे देश में जहां इतने बड़े पैमाने पर अशिक्षा और आर्थिक असमानता हो, जनमत बनाने के माध्यमों का कुछ हाथों में (वह भी जिनके निहित स्वार्थ हों) केंद्रित हो जाने को लोकतंत्र के भविष्य के लिए खतरे की घंटी माना जाना चाहिए। पहली घटना जनवरी 2013 की है, जब देश के सबसे बड़े उद्योग समूह मुकेश अंबानी के रिलाएंस इंडस्ट्रीज लिमिटेड (आरआईएल) ने मीडिया समूहनेटवर्क18 टीवी18 में रु. 1,600 करोड़ का निवेश किया। यह राशि बढ़कर 4,000 करोड़ तक पहुंच सकती है। दूसरी घटना, 2013 के मार्च के अंत में देश के सबसे ज्यादा बिकनेवाले अखबार समूह दैनिक जागरण (कानपुर) द्वारा हिंदी के बहुचर्चित और प्रतिष्ठित अखबार नई दुनिया को खरीद लेना है।
जहां तक नेटवर्क18 टीवी18 का सवाल है, इस समूह के पास जो सात चैनल हैं उनमें समाचार और वाणिज्य समाचारों के चैनल शामिल हैं। कंपनी के पास इनाडु टीवी (इटीवी) का भी नियंत्रण है (इस तरह से रिलाएंस की पकड़ दस राज्यों में दिखलाए जानेवाले 12 क्षेत्रीय भाषाई चैनलों पर भी हो गई है।) यद्यपि अब तक समाचार चैनलों को चलाने वालों में अखबार निकालनेवाली कंपनियों के अलावा मुख्यतः छोटी पूंजी के कंट्रेक्टर, बिल्डर आदि शामिल रहे हैं। पर यह पहली बार है जब किसी गैर-मीडिया कंपनी ने इतने बड़े पैमाने पर निवेश कर किसी मीडिया कंपनी पर नियंत्रण हासिल किया हो। वैसे अंबानी भाइयों मुकेश और अनिल का थोड़ा-बहुत पैसा इनाडु, नई दुनिया और टीवी टुडे आदि कई मीडिया समूहों में प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रूप से लगा हुआ था। देश में इस समय 831 टीवी चैनल हैं उनमें से 366 समाचारों के हैं पर सच यह है कि अधिसंख्य मीडिया कंपनियां घाटे में हैं। जो शीर्ष कंपनियां लाभ में भी हैं उनके लाभ का प्रतिशत भी बहुत कम है। स्वयं नेटवर्क 18 कई प्रमुख चैनलों का मालिक होने के बावजूद जबर्दस्त घाटे में चल रहा है। यह घाटा कुल 2,100 करोड़ तक पहुंच चुका है। इसके बावजूद चैनल चलाने का आकर्षण घटा नहीं है। सरकार के पास इस समय भी नये चैनलों की मंजूरी के लिए 600 से ज्यादा आवेदन विचाराधीन हैं। यह तो हम जानते ही हैं कि मुकेश अंबानी जैसा चतुर व्यापारी यों ही इस नुकसान के धंधे में इतनी बड़ी राशि नहीं लगाएगा। साफ है कि ये चैनल मात्र पैसे के लाभ के लिए नहीं चलाए जाते। ये चैनल और अखबार भी-उदाहरण के लिए दिल्ली से एक कांग्रेसी नेता द्वारा निकाला जानेवाला दैनिक, मुख्यतः अपने राजनीतिक या व्यवसायिक हितों के लिए चलाए जाते हैं। 

आरआईएल पर पहले से ही अप्रत्यक्ष रूप से इनाडु में पैसा लगाने के आरोप हैं, जिसका लाभ उसे कावेरी-गोदावरी बेसिन में गैस के भंडारों को कब्जाने में मिला। दैनिक भास्कर समूह ने अखबारों की कमाई को खदानों और बिजली पैदा करने आदि की विभिन्न कंपनियों में लगाया हुआ है। ध्यान रहे कि उसके संस्करण मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ झारखंड आदि में हैं जहां सबसे ज्यादा निवेश खदानों और बिजली उत्पादन जैसे कामों में हो रहा है। यह मानने का कोई कारण नहीं है कि अखबार की उपस्थिति उस के उद्योगों को मदद नहीं करती होगी?
हिन्दू के वरिष्ठ पत्रकार पी. साईनाथ के अनुसार-‘ मीडिया को सबसे बड़ा खतरा न्यू कन्वर्जेंस से है, जिसके तहत बड़े व्यापारिक घराने मीडिया समूह को खरीद रहे हैं और मीडिया समूह बिजनेस हाउसेस में बदल रहे हैं।साईनाथ का यह भी कहना है कि बड़े राजनैतिक दल नए-नए अखबार और चैनल की षुरूआत कर रहे हैं। यानी अब मीडिया, कारपोरेट और राजनीतिक दलों के हित एक हो रहे हैं। इसकी वजह से मीडिया प्राफिट का कैदी बन गया है।अब प्राफिट ही उसका सबसे बड़ा उद्देष्य है। इसी के चलते मीडिया पर बिल्डरों, व्यापारियों और बड़ी कंपनियों का दबदबा बढ़ता जा रहा है। अखबारों के बोर्ड आफ डायरेक्टर की सूची में रियल एस्टेट और बिल्डरों के नाम देखे जा सकते हैं। दैनिक जागरण के बोर्ड आफ डायरेक्टर में दक्षिण एषिया के मेकडोनाल्ड प्रमुख का नाम शामिल है।

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