Sunday, April 13, 2014

सवाल मीडिया के इरादे का …


लोकतंत्र के तीनों स्तंभ आवश्यकतानुसार मीडिया का उपयोग करते हैं। मीडिया शांति  के लिए कारगर है और शांति  के लिए भी।  मीडिया सिर्फ संघर्ष को पैदा करता और बढ़ावा दे सकता है, बल्कि उसका समाधान भी कर सकता है। सवाल मीडिया के इरादे का है। मीडिया की यही क्ति है जिसे अपने-अपने हिसाब से सिर्फ लोकतंत्र के सभी स्तंभ उपयोग कर रहे हैं, बल्कि अन्य सामाजिक क्तियां भी इसका इस्तेमाल कर रही हैं।
विज्ञान और तकनीकी के तीव्र विकास के कारण इस सदी में मीडिया ईश्वर  की तरह सर्वव्यापी हो गया है। मीडिया सभी सकारात्मक और नकारात्मक बदलावों को प्रभावित करने लगा है। मीडिया के लिए भौगोलिक सीमाएं कोई मायने नहीं रखती। अब यह और भी अधिक महत्वपूर्ण हो गया है कि ऐसी स्थिति में मीडिया या पत्रकारिता की अंतःक्ति पर निर्भर करता है कि वह राजनैतिक-सामाजिक परिवर्तनों को प्रभावित करता है या उन प्रभावित करने वाले घटकों से स्वयं प्रभावित होता है।

ऐसा माना जाता है कि मीडिया सभी तरह की स्थितियों के लिए जनमत का निर्माण करता है, उसे प्रभावित करता है और उसे दिशा  देता है। किसी भी तरह के संघर्ष, संकट, तनाव और विवाद में यह बहुत मायने रखता है कि मीडिया उस दरम्यान कैसी भूमिका अदा करता है, कैसा रुख अख्तियार करता है। अपराध, जातीय-साम्प्रदायिक संघर्ष और राजनैतिक द्वंद्व के दौरान भी मीडिया से जिम्मेदार भूमिका की अपेक्षा की जाती है। तनाव, संघर्ष और विचलन के दौरान मीडिया रिपोर्टिंग का खासा महत्व होता है। मीडिया की सहक्रिया और अन्र्तक्रिया के कारण राजनैतिक तनाव और विचलन तथा सामाजिक संघर्षों को सिर्फ बल मिलता है, बल्कि कई बार यह इन्हीं कारणों से पैदा भी होते हैं।

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