Thursday, April 17, 2014

सोशल मीडिया और लोकसभा चुनाव


चर्चा हो रही है कि 2014 का लोकसभा चुनाव सोशल मीडिया के माध्यम से लड़ा जा रहा है। क्या सचमुच सोशल मीडिया और उस पर सक्रिय वर्चुअल मिडिल क्लास भारतीय राजनीति की दिशा तय कर रहा है? भारतीय राजनीति के कुछ पहलुओं पर गौर करने पर साफ पता चलता है कि देश की राजनीति अचानक कुछ बदलावों के साथ नये रूप में सामने रही है। उसके इस नयेपन पर सर्वाधिक प्रभाव सोशल मीडिया का है। फिर भी यह सवाल मौजूद है कि क्या सोशल मीडिया देश की राजनीतिक इबारत लिखने का दमखम रखता है। राजनीतिक दांव-पेंच और उनकी उलझनें इतनी सुलझ गई हैं कि पिछले 10 साल से अस्तित्व में आया सोशल मीडिया और उस पर सक्रिय वर्चुअल मिडिल क्लास भारतीय राजनीति की दिशा तय करेगा? क्या वैचारिक तौर पर यह माध्यम इतना परिपक्व और सशक्त हो चुका है?

कुछ दिनों पहले आईआरआईएस नॉलेज फाउंडेशन, इंटरनेट एवं मोबाइल एसोसिएशन ऑफ इंडिया द्वारा किए गए एक संयुक्त अध्ययन में कहा गया है कि 2014 के लोकसभा चुनाव में 543 लोकसभा सीटों में से 160 सीटों के नतीजों को सोशल मीडिया प्रभावित कर सकता है। सोशल मीडिया के प्रभाव में आने वाले ये ऐसे निर्वाचन क्षेत्र हैं, जहां कुल मतदाताओं की संख्या के दस फीसदी फेसबुक यूजर्स हैं, साथ ही जहां फेसबुक यूजर्स की संख्या पिछले लोकसभा चुनाव में विजयी उम्मीदवारों की जीत के अंतर से अधिक हैं. इस अनुमान के आधार पर यह भी कहा जा सकता है कि महाराष्ट्र में सबसे अधिक 21, गुजरात में 17, उत्तर प्रदेश की 14, कर्नाटक की 12, मध्यप्रदेश में 9 और दिल्ली की सभी 7 सीटें सोशल मीडिया के उच्च प्रभाव में हैं. हरियाणा, पंजाब और राजस्थान की पांच-पांच सीटें, जबकि बिहार, छत्तीसगढ़, जम्मू-कश्मीर, झारखंड और पश्चिम बंगाल की चार सीटों के नतीजे सोशल मीडिया द्वारा प्रभावित हो सकते हैं। अध्ययन में 67 निर्वाचन क्षेत्रों को मध्यम प्रभाव, 60 निर्वाचन क्षेत्रों को कम प्रभाव और 256 निर्वाचन क्षेत्रों को प्रभावहीन घोषित किया गया है।

मेरा मानना है कि तमाम सवालों के बावजूद सोशल मीडिया के असर को एकदम से नाकारा भी नहीं जा सकता है। आकंडों पर गौर करें, तो पिछले 10 वर्षों में शहरी आबादी कुल आबादी का लगभग 32 फीसद है, इनमें 52 फीसद मिडिल क्लास है और पूरे विश्व में सबसे तेजी से बढ़ने वाली मिडिल क्लास की आबादी चीन के बाद भारत में ही है। युवा आबादी सोशल मीडिया पर ज्यादा सक्रिय है और देश में 35 फीसद आबादी 25 साल से कम उम्र के युवाओं की है। जनगणना 2011 से मिले आंकड़ों पर गौर करें, तो 2001 से 2011 के बीच देश में 2875 नये शहर बने। शहरी आबादी बढ़ी, आधुनिक टेक्नोलॉजी और संचार की सुविधाएं बढ़ीं, गांवों की सीटें शहरी सीटों में तब्दील हो गईं। आज देश में लगभग 25 करोड़ लोग सोशल मीडिया पर सक्रिय हैं। किसी भी राजनीतिक दल के लिए यह आंकड़े बेहद उत्साहित करने वाले हैं, लेकिन यह सवाल तो अब भी शेष ही है कि सोशल मीडिया के मंचों पर जन्म ले रहा वर्चुअल मीडिल क्लास, क्या केवल अपने अधिकारों की लड़ाई को लेकर ही आवाज उठाने में विश्वास रखता है या उसकी राजनीतिक चेतना भी उतनी ही विकसित हुई है.....

No comments:

Post a Comment