Thursday, April 10, 2014

पेड न्यूज ‘खबर’ के वेश में भ्रष्टाचार


भारतीय प्रेस परिषद की उप-समिति की एक रिपोर्ट कहती है कि पेड न्यूजखबरके वेश में भ्रष्टाचार का संस्थागत और संगठित रूप है। पर किसी भी समिति का काम केवल बीमारी की पहचान करना नहीं, बल्कि उसके मूल कारणों की तलाश करना और उसके निदान का उपाय सुझाना भी होना चाहिए। अगर अध्ययन के आधार पर पेड न्यूज की समस्या को समझने की कोशिश की जाए तो उसमें एक संदर्भ प्रथम प्रेस आयोग का आता है। उसकी रिपोर्ट बताती है कि दूसरे विज्ञापनदाताओं की तरह सरकार भी कैसे विज्ञापनों के जरिए प्रेस पर दबाव बनाती है। अगर 2008 के विधानसभा चुनाव से पहले विज्ञापनों पर सरकारी खर्चे के संबंध में लोकायुक्त के फैसले पर दिल्ली की मुख्यमंत्री शीला दीक्षित की प्रतिक्रिया देखें तो एक नया पहलू उभरता है। उन्होंने कहा कि सरकार का हर तरह से हक बनता है कि वह अपनी उपलब्धियां विज्ञापित करे। यानी सरकार का विज्ञापन के रूप में प्रचार का हक और चुनाव के दौरान मालदार उम्मीदवारों द्वारा खबर के रूप में विज्ञापन के जरिए प्रचार को लेकर एक नई बहस खड़ी हो जाती है। जबकि हमें यह तलाशना है कि चुनावों में विज्ञापन की भूमिका क्यों बढ़ी है। क्यों कोई मीडिया कंपनी किसी राजनेता के पक्ष में मतदाताओं को भ्रमित करने की कोशिश करती है। इससे भी महत्त्वपूर्ण बात है कि राजनेताओं की मतदाताओं को ठगने की प्रवृत्ति इस हद तक कैसे विकसित हुई?
राजनीतिक पार्टियां और उनके उम्मीदवार विज्ञापनदाता भी हैं और विज्ञापन की जरूरत भूमंडलीकरण की आर्थिक नीतियों और उससे बने वातावरण की देन है। पेड न्यूज एक राजनीतिक प्रश्न है। सब जानते हैं कि भूमंडलीकरण के कार्यक्रमों को लागू करने के साथ ही संसद और उसके सदस्यों की संवैधानिक जिम्मेदारियों को बदल दिया गया। 1991 के बाद जन प्रतिनिधियों में होड़-सी लग गई कि वे ज्यादा से ज्यादा अपने नामों की पfट्टयां लगवाएं और दीवारें खड़ी करने, सड़कें बनाने जैसे कार्यों में अव्वल दिखें। एक तरह से जन प्रतिनिधियों को व्यवस्थागत विज्ञापनदाता के रूप में खड़ा करने की सफल कोशिश की गई। संसद की एक स्थायी समिति ने पेड न्यूज के मामले में जांच के बाद विस्तृत रिपोर्ट पेश की। उक्त रिपोर्ट में पेड न्यूज के संदर्भ में मीडिया की मौजूदा स्थिति को लेकर चिंता जाहिर की गई है। लेकिन जनप्रतिनिधियों के विज्ञापनदाता के रूप में विकास और उसकी पूरी प्रक्रिया को समझने की रिपोर्ट में जहमत नहीं उठाई गई है। समिति के अनुसार मीडिया लोकतंत्र में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है, क्योंकि धारणा बनी हुई है कि यह केवल लोगों की समस्याओं को आवाज देता, बल्कि देश की सामाजिक, सांस्कृतिक, आर्थिक और राजनीतिक परिदृश्य की सही तस्वीर प्रस्तुत करता है। इसलिए जरूरी है कि विभिन्न संचार माध्यमों- अखबार, रेडियो, टेलीविजन, इंटरनेट, मोबाइल फोन पर प्रकाशित-प्रसारित किए जाने वाले समाचार और ज्ञानवर्धक कार्यक्रम तथ्यात्मक, निष्पक्ष, तटस्थ और विषयनिष्ठ हों। पर मीडिया के कुछ हिस्सों में व्यक्तियों, संगठनों, निगमों आदि के पक्ष में सामग्री प्रकाशित-प्रसारित करने की एवज में धनराशि या अन्य लाभ प्राप्त करना शुरू हो गया है, जिसे आमतौर परपेड न्यूजकहा जाता है पैसे लेकर खबर छापना या भुगतान के आधार पर विज्ञापनों को प्रकाशन और प्रसारण भी इस तरह से करना कि वह खबर लगे। इस प्रवृत्ति का दुष्प्रभाव वित्तीय, प्रतिभूति, जमीन-जायदाद कारोबार, स्वास्थ्य प्रक्षेत्र, उद्योगों आदि पर पड़ रहा है। निर्वाचन प्रक्रिया में जनमत भी प्रभावित हो रहा है।….


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