Saturday, December 31, 2011

उत्तर प्रदेश में परिसीमन से बढ़ी प्रत्याशियों की परेशानी

परिसीमन के बाद हो रहे पहले विधानसभा चुनाव के चलते उत्तर प्रदेश की कई पार्टियों के दिग्गजों की सियासी कर्मभूमि बदल गई है। जिससे इस बार उन्हें दूसरे निर्वाचन क्षेत्रों की ओर रुख करना पड़ा है। परिसीमन की वजह से विधान सभा क्षेत्रों के भूगोल में हुए बदलाव से सभी दलों की परेशानियां बढ़ गयी हैं। कई निवर्तमान विधायकों को जहां अपनी पुरानी सीटों को छोड़कर किसी नये क्षेत्र की शरण में जाना पड़ा है वहीं कई की सीट ही समाप्त हो गयी हैं। इसके साथ नवसृजित विधान सभा सीटों में वोटों के समीकरणों में भी भारी उलटफेर हुआ है। वोटों के जातीय समीकरण बदलने से भी प्रत्याशियों की परेशानी बढ़ी हुई है।
भारतीय जनता पार्टी के अध्यक्ष सूर्य प्रताप शाही अब तक देवरिया की कसया सीट से अपनी किस्मत आजमाते रहे हैं लेकिन नए परिसीमन में उनके पुराने निर्वाचन क्षेत्र का वजूद ही समाप्त हो गया है। भाजपा ने शाही को जिले की नई सीट पथरदेवा से मैदान में उतारा है। नई सीट पर नए जातीय समीकरण ने शाही की मुश्किलें बढ़ा दी हैं। ठीक इसी प्रकार कांग्रेस के दिग्गज नेता अम्मार रिजवी परम्परागत रूप से सीतापुर की महमूदाबाद सीट के बजाय नई विधानसभा सीट सेवता से ताल ठोंक रहे हैं। विधानसभा अध्यक्ष सुखदेव राजभर चार बार विधानसभा और एक बार विधान परिषद का प्रतिनिधित्व कर चुके हैं। परिसीमन में उनकी आजमगढ़ की लालगंज सीट सुरक्षित हो गई है। वह अपने लिए नया ठिकाना ढूंढ रहे हैं। दीदारगंज सीट से उनके चुनाव लडऩे की सम्भावना जताई जा रही है।

कुछ ऐसा ही हाल पांच बार विधायक और तीन बार सांसद रहे मित्रसेन यादव का है। फैजाबाद की मिल्कीपुर सीट से उन्होंने अपना राजनीतिक सफर शुरू किया था। वह इस सीट से पहली बार विधायक चुने गए थे। विधानसभा के लिए हमेशा वह इसी सीट से लड़े। वह दो बार इस सीट से हारे भी लेकिन सीट नहीं बदली। पर इस बार उनको मिल्कीपुर को अलविदा कहना पड़ गया क्योंकि यह सीट आरक्षित हो गई है। मजबूरन उन्हें बीकापुर सीट का रुख करना पड़ा है।
बसपा के कई मंत्रियों को भी परिसीमन की वजह से अपना इलाका बदलने के लिए मजबूर होना पड़ा है। संसदीय कार्य, वित्त, चिकित्सा, शिक्षा आदि महत्वपूर्ण विभागों के मंत्री रहे लालजी वर्मा अम्बेडकरनगर की टांडा सीट से चुने जाते रहे हैं लेकिन पांचवी बार विधानसभा में पहुंचने के लिए उन्हें नई सीट की दरकार है। परिसीमन में उनकी सीट भी बदल गई है।
ऊर्जा मंत्री रामवीर उपाध्याय हाथरस से चुनाव लड़ते रहे हैं लेकिन इस बार परिसीमन में उनकी सीट सुरक्षित हो गई है, इसलिए वह नया ठिकाना तलाश रहे हैं। गोरखपुर की पनियारा विधानसभा सीट वन मंत्री फतेहबहादुर सिंह की परम्परागत सीट रही है। यहां से उनके पिता स्वर्गीय वीर बहादुर सिंह भी चुनाव लड़ते थे। परिसीमन में पनियारा विधानसभा सीट का भूगोल बदल जाने के कारण अब वह कैम्पियरगंज से चुनाव लडऩे को तैयार हैं। नगर विकास मत्री नकुल दुबे की महोना विधानसभा सीट का परिसीमन में वजूद समाप्त हो गया है इसलिए वह इस बार बक्शी का तालाब से किस्मत आजमाएंगे।
इन प्रमुख मंत्रियों के अलावा समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव अशोक वाजपेयी अब पिहानी सीट की बजाय हरदोई की सवायजपुर सीट से, विधानसभा में पार्टी के मुख्य सचेतक अम्बिका चौधरी कोपाचीट के स्थान पर फेफना से और प्रदेश के महासचिव एवं पूर्व मंत्री ओमप्रकाश सिंह दिलदारनगर की बजाय अब जमानिया सीट से अपनी किस्मत आजमाएंगे।

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