Friday, December 23, 2011

मुसलमानों के साथ छल कर रही हैं मायावती

ऑल इंडिया मुस्लिम फोरम के संस्थापक व विधिवेत्ता डा. नेहालुद्दीन अहमद का मानना है कि पिछड़े मुसलमानों के आरक्षण को लेकर केन्द्र सरकार के साथ ही उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री मायावती भी छल कर रही हैं। उन्होंने  कहा कि कांग्रेस और बसपा प्रमुख मायावती की ओर से आगामी चुनाव के मद्ïदेनजर लाभ लेने के लिए पिछड़े मुसलमानों को आरक्षण देने के नाम पर राजनीतिक बाजीगरी की जा रही है। इससे मुसलमानों को सचेत रहने की जरूरत है। भाजपा के संग बार-बार गठजोड़ करने वाली मायावती भरोसे लायक नहीं है। पिछड़े मुसलमानों की पीड़ा को सबसे पहले ऑल इंडिया मुस्लिम फोरम ने ही 1994 में उठाया था। तब उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री सुश्री मायावती ही थीं। फोरम की मांग पर सहमति जताते हुए उन्होंने लखनऊ में हुई अपनी एक रैली में मुस्लिमों को आरक्षण देने की घोषणा भी कर दी। मगर बाद में अपनी ही घोषणा से भाजपा के दबाव पर पलटी मार गयी। तब फोरम ने मुख्यमंत्री मायावती के होर्डिंग और पोस्टरों को कालिख पोतना शुरू किया। फोरम के आंदोलन से घबड़ा कर मायावती ने दमनात्मक कार्रवाई शुरू की और उनके सहित फोरम के अन्य नेताओंं को गिरफï्तार करवा लिया। मगर बाद में जब मुलायम सिंह यादव उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बने तो उन्होंने मुस्लिम फोरम द्वारा सुझाये फार्मूला को स्वीकार किया और पिछड़े मुसलमानों के लिए आरक्षण लागू किया। उसके बाद प्रदेश में पिछड़े मुसलमानों को सरकारी सेवाओं में 7 प्रतिशत आरक्षण का लाभ मिलने लगा,जिसे बाद में आबादी के आधार पर बढ़ा कर 8.44 फीसदी किया गया।

उन्होंने कहा कि उस समय उत्तर प्रदेश में मुस्लिम आबादी के आधार पर मुस्लिम फोरम की मांग थी कि पिछड़ों के लिए मंडल कमीशन के आधार पर निर्धारित 27 प्रतिशत आरक्षण में से 8.44 प्रतिशत पिछड़े मुसलमानों के लिए तय किया जाए। इस मांग को लेकर 17 अक्तूबर 1994 को ऑल इंडिया मुस्लिम फोरम ने लखनऊ में एक कन्वेंशन का आयोजन भी किया था जिसमें उस समय के कई प्रमुख मुस्लिम नेताओं मसलन पश्चिम बंगाल के मंत्री कलीमुद्ïदीन,पर्सनल लॉ बोर्ड के मुजाहिदुल इस्लाम कासमी,अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के एम आर खुसरो तथा पत्रकार कुलदीप नैय्यर आदि ने भाग लिया। डा. नेहालुद्दीन के अनुसार तब वहां जुटे अधिसंख्य लोगों ने पिछड़े मुसलमानोंं के लिए आरक्षण का विरोध किया था। मगर बाद में 1997 में फोरम की इस मांग को पूर्व प्रधानमंत्री वी पी सिंह ने जहां अपने चुनावी घोषणापत्र में शामिल किया वहीं सीपीएम के अखिलेन्द्र प्रताप सिंह ने उत्तर प्रदेश में इसका समर्थन किया।
डा. नेहालुद्ïदीन ने कहा कि दक्षिण के कई राज्यों में पिछड़े मुसलमानों की आबादी के आधार पर अलग-अलग प्रतिशत में आरक्षण के प्रावधान किए गए है। उन्होंने कहा कि पश्चिम बंगाल और बिहार में भी नीतीश कुमार की सरकार ने कोटा विथ इन कोटा के तहत ही पांच प्रतिशत आरक्षण पिछड़े मुसलमानों को दिया गया है। इन राज्यों में पिछड़े मुसलमानों को इसका लाभ भी मिल रहा है।
फिलवक्त केन्द्र सरकार द्वारा पिछड़ों के लिए निर्धारित कोटा के अन्तर्गत ही अल्पसंख्यकों के लिए 4.5 प्रतिशत आरक्षण के प्रावधान से संबंधित कैबिनेट से पास प्रस्ताव  को डा. नेहालुद्दीन ने मुस्लिमों के साथ धोखा बताया। उन्होंने कहा कि आगामी महीनों में देश के पांच राज्यों मेंं होने वाले विधान सभा चुनावों मेंं लाभ लेने की मंशा से की गयी यह कार्रवाई है। पिछड़े मुसलमानों के लिए आरक्षण की जगह अल्पसंख्यकोंं के लिए किए जा रहे इस प्रावधान से मुसलमानों को कोई लाभ नहीं मिलने वाला है। मुसलमान एक बार फिर ठगे जा रहे हैं। ठीक इसी तरह पिछड़े मुसलमानों के लिए आरक्षण का कोटा बढ़ाने की मांग कर उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री मायावती भी चुनावी चाल चल रही हैं। उन्हें अच्छी तरह मालूम है कि यह संविधान संशोधन के बिना संभव नहीं है। ऐसी मांग कर वह एक बार फिर प्रदेश के मुसलमानों को भ्रमित करना चाह रही है। मगर मुसलमानों को सचेत रहने की जरूरत है। किसी झांसे में आने की जगह उन्हें आगामी चुनाव में अपने मतों का प्रयोग सोच समझ कर करना चाहिए,ताकि ऐसी सरकार यहां बने जो उनके हितों का ख्याल रखे।

No comments:

Post a Comment