Monday, December 26, 2011

पूर्वांचल में होगी बसपा की असली अग्निपरीक्षा

चुनाव की घोषणा के साथ ही पूर्वी उत्तर प्रदेश का राजनीतिक तापमान चढऩे लगा है। आंकड़ों के लिहाज से पूर्वी उत्तर प्रदेश का पिछला चुनाव परिणाम बसपा में पक्षा में था। यहां की कुल 177 सीटों में से 97 सीटों पर बसपा ने तब कब्जा जमाया था। हाल की राजनीतिक स्थितियों और बनते-बिगड़ते चुनावी समीकरणों में अगर बसपा अपनी विगत की स्थिति को बरकरार नहीं रखती है तो सबसे ज्यादा नुकसान भी उसे पूर्वांचल में ही उठाना पड़ सकता है। यह कहना गलत नहीं होगा कि पूर्वांचल में ही इस बार बसपा की कड़ी अग्निपरीक्षा होने वाली है।
राज्य बंटवारे का दांव चल कर बसपा सुप्रीमो मायावती ने इस क्षेत्र की दीर्घ लम्बित मांग को हवा देने की कोशिश जरूर की मगर इस चुनाव में उन्हें इसका कितना लाभ मिल पायेगा, यह कहना अभी कठिन है। मुख्यमंत्री मायावती द्वारा पूर्वांचल सहित चार अलग राज्य बनाने और उत्तर प्रदेश के विभाजन का प्रस्ताव केन्द्र सरकार को भेजा गया था। केन्द्र सरकार ने प्रस्ताव पर कुछ सवाल उठाये हैं मगर इस प्रस्ताव से पैदा हुयी राजनीतिक आग की आंच से सभी राजनीतिक दल प्रभावित हैं। लोकमंच के नेता तो इसे अपनी आरम्भिक जीत बता कर श्रेय लेने की होड़ में जुट गए हैं और उनकी योजना है कि विधान सभा चुनाव में पूर्वांचल विरोधियों की करारी पराजय हो। अमर ङ्क्षसह ने इस मुद्दे को पूर्वांचल के विकास से जोड़ कर यह कहना शुरू कर दिया है कि बिजली पूर्वी उत्तर प्रदेश पैदा करे और रोशनी बादलपुर और सैफई में हो। पूर्वांचल की उपेक्षा अब बर्दाश्त नहीं की जायेगी।
उल्लेखनीय है कि पूर्वी उत्तर प्रदेश के सिध्दार्थनगर जिले के इटावा विधान सभा के कांग्रेसी विधायक ईश्वर चन्द शुक्ला ने सबसे पहले पूर्वांचल को अलग राज्य बनाने का प्रस्ताव विधान सभा में बहस के लिए पेश किया था मगर कांग्रेस नेतृत्व वाली संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन सरकार द्वारा राज्य सरकार के उत्तर प्रदेश विभाजन के प्रस्ताव को लौटा देने के बाद कांग्रेस के हाथ से यह मुद्ïदा निकल गया। वैसे कांग्रेस फिलवक्त इस मुद्ïदे न तो विरोध और न समर्थन की रणनीति अख्तियार की हुई है। बसपा सुप्रीमो इस मुद्ïदे को इस चुनाव में पूरी तरह कैश करना चाहती थीं मगर केन्द्र के रवैये से उनकी मंशा पूरी होती नहीं दिख रही है। इस अंचल के छोटे राजनीतिक दल पीस पार्टी,उलेमा कौंसिल और अमर ङ्क्षसह के नेतृत्व वाली लोकमंच के अलावा भारत समाज पार्टी जैसे दलों की ओर से पूर्वांचल के विकास और वर्तमान सरकार में होती रही उपेक्षा को मुद्ïदा बना कर उछालने से बड़े दलों के समक्ष परेशानी पैदा हो सकती है।
यदि वर्ष 2007 में हुए उत्तर प्रदेश विधान सभा चुनाव को आधार बनाया जाय तो पूर्वांचल की 177 सीटों में से बसपा को 97 सीटे मिली थी यानि बसपा को पूरे प्रदेश से मिली कुल 206 सीटों में 47 प्रतिशत हिस्सेदारी पूर्वांचल की थी। पूर्वांचलवासियों के बीच एक चर्चा यह भी है कि पूर्वांचल से मिली इतनी बड़ी सफलता के बावजूद बसपा सुप्रीमो यहां के विकास को लेकर उदासीन बनी रहीं और एक तरह से यहां के लोग उपेक्षित ही रहे।
यह भी दीगर है कि वर्तमान चुनाव में बसपा अपनी 97 सीट में से एक भी सीट खोना नहीं चाहेगी। वर्ष 2007 के चुनाव में पूर्वांचल में  सपा 44, भाजपा 19 और कांग्रेस को मात्र सात सीटें प्राप्त हुई थीं। इस तरह बसपा अगर पूर्वांचलवासियों को अपने पक्ष में करने में सफल नहीं हो पाती है तो सर्वाधिक नुकसान भी उसे ही उठाना पड़ेगा।
वर्ष 2002 के चुनाव में भी बसपा को इतनी कामयाबी नहीं मिली थीं जितनी इस क्षेत्र में वर्ष 2007 में मिली।       उत्तर प्रदेश विधान सभा चुनाव वर्ष 2002 में बसपा को कुल 98 सीटें ही मिली थी और सपा को 143 सीटें मिली थी जबकि भाजपा को 88 और कांग्रेस को कुल 25 सीटें मिली थीं। पूर्वांचल के मुद्दे पर इस अंचल की 177 सीटों पर आरम्भिक रूप से बसपा को ज्यादा जूझना होगा। यह अलग बात है कि यह पहला अवसर है जब सत्ता में रहते हुए बसपा चुनाव मैदान में होगी और उसे सत्ता विरोधी लहर का सामना करना होगा। इसके साथ ही सर्वाधिक विधायक जीता कर देने वाले पूर्वांचल की उपेक्षा और विकासहीनता के सवाल भी होंगे।

No comments:

Post a Comment