Thursday, December 22, 2011

सत्ता के उन्माद में फला-फूला भ्रष्टाचार

बीमारू प्रदेश की सूची में शामिल उत्तर प्रदेश को उत्तम प्रदेश बनाने का नारा भी कभी उछाला गया था। राजनीतिक दलों ने इस नारे केआधार पर जनता को गोलबंद करने का प्रयास  किया। अविकास और पिछड़ेपन से परेशान देश की सबसे बड़ी आबादी वाले इस प्रदेश में तब बदलाव और विकास की छटपटाहट देखी गयी। मगर जातीय राजनीति के भड़काऊ नारे में सब कुछ उलझ कर रह गया। दलित चेतना के उभार के बाद सर्वजन के लुभावने नारे के साथ बहुमत की सरकार बनाने वाली माया सरकार से प्रारंभिक दिनों में उम्मीदें तो जगी मगर सत्ता रूपी हाथी की मदमस्त चाल ने शुरुआती दिनों से ही जनता की उम्मीदों और भरोसे को कुचलना शुरू कर दिया। घोटालों और वित्तीय अनियमितताओं के भंवर में विकास के सपने दम तोडऩे लगे। तब सत्ता के उन्माद में ही भ्रष्टïाचार फलने-फूलने लगा जो अब चुनावी मौके पर सरकार के गले की हड्ïडी बन गया है,जिसे निगलना या उगलना मुख्यमंत्री मायावती के लिए आसान नहीं है।
ऐसे में यही कहा जा सकता है कि सत्ता के गुरूर में उत्तर प्रदेश की चिंता न तो जनता के भरोसे को जीत कर सत्तासीन हुई बसपा प्रमुख मायावती को रही और न ही उनके हुक्मरानों को। जनता को इसका अहसास थोड़े दिन बाद ही हो गया मगर जनता के वोट से चुने गये नेताओं पर इसका कोई असर नहीं पड़ा। सत्ता से बेदखल हुई मुख्य प्रतिपक्षी दल की भूमिका निबाह रही सपा जनता के इन्हीं सवालों को लेकर जब सड़कों पर उतरी तो उसे कोरा राजनीति बताते हुए कुचलने का प्रयास किया गया। मगर राजनीति के इस धींगामुश्ती में प्रदेश हर क्षेत्र में लगातार पिछड़ता चला गया। उत्तर प्रदेश सरकार के भ्रष्टाचारमुक्त शासन के दावे की कलई नियंत्रक महालेखा परीक्षक की रिपोर्ट में ही परत दर परत खुल गयी थी। बाद के दिनों में भ्रष्टïाचार के किस्से सरेआम हुए तो लोकायुक्त और कोर्ट की सक्रियता भी सामने आयीं। शुरू में ही सीएजी का आरोप था कि मायावती सरकार ने भ्रष्टाचार को रोकने के लिए कोई सार्थक प्रयास नहीं किए है जिससे कि राजस्व हानि पर अंकुश लगाया जा सके। इसके साथ ही तब सीएजी ने सरकार के वित्तीय प्रबंधन पर भी उंगली उठाई थी। दरअसल तब चेतने का समय था। मगर राजनीति के भूलभुलैया में सीएजी की रिपोर्ट और उसके जरिए उठाये गए मुद्ïदों को दबा दिया गया।  सीएजी ने मुख्यमंत्री के चहेते स्मारक स्थलों के खर्च में अनियमितता से सरकारी खजाने को करोड़ों रुपये की चपत लगने का भी खुलासा किया था। बाद के दिनों में उच्च न्यायालय और सुप्रीम कोर्ट ने भी ऐसे स्मारकों और पार्कों पर की गयी फिजूलखर्जी पर टिप्पणी की थी।
विपक्षी राजनीतिक दलों ने सीएजी की रिपोर्ट पर मुहर लगाते हुए कहा था कि इस रिपोर्ट ने प्रदेश सरकार के भ्रष्टाचार की पोल खोल दी है। 13 मई 2007 को सूबे में मुख्यमंत्री मायावती ने पूर्ण बहुमत की सरकार बनाई थी। सरकार ने दावा किया था कि उत्तर प्रदेश को उनकी सरकार भ्रष्टाचारमुक्त शासन देगी लेकिन बीते साढ़े चार सालों में राज्य में सबसे अधिक भ्रष्टाचार के मामले उजागर हुए हैं और इसी के आधार पर आज यह टिप्पणी भी की जाती है कि मौजूदा सरकार देश की भ्रष्टïतम सरकारों में से एक है। आज बसपा सरकार के लिए भ्रष्टाचार का मुद्ïदा गले की हड्डी बन गया है तो वही विपक्ष के लिए वरदान भी। भ्रष्टाचार की शिकायत के कारण मुख्यमंत्री मायावती को कई मंत्रियों को हटाना पड़ा तो विपक्षी दलों ने इसी मुद्दे को लेकर विधानसभा के विगत के विभिन्न सत्रों में ही नहीं बल्कि सड़कों और अब अपनी चुनावी सभाओं में भी सरकार पर करारा हमले कर रहे हैं।  गौर करे कि तब सीएजी ने अपनी रिपेार्ट में उल्लिखित किया था कि प्रदेश सरकार विभिन्न वित्तीय नियमों और प्रविधियों के पालन में अनियमितताएं बरत रही हैं जिससे वित्तीय घोटाले और गबन की संभावनाएं बढ़ गयी है। तब सरकार ने सीएजी की रिपोर्ट पर सचेत होकर कोई कार्रवाई नहीं की और एक तरह से उसकी मनमानी जारी रही। आज भी सरकार के पास सीएजी द्वारा उठाये गए सैकड़ों मामलों की जांच और कार्रवाई लंबित हैं। इन्हीं लापरवाहियों की वजह से सरकार को वित्तीय राजस्व का भारी भरकम नुकसान भी उठाना पड़ा और उसके कई मंत्रियों को कार्यकाल के बीच में ही पदच्यूत होना पड़ा है।  वित्तीय वर्ष 2009-10 के दौरान सरकार ने 18 फीसदी अधिक राजस्व पारित किया था, सीएजी ने सरकार के वित्तीय प्रबंधन पर उंगली उठाते हुए कहा था कि निर्धारित खर्चें में से 168216 करोड़ रुपए अधिक खर्च किए गये। साल के अंतिम माह में बजट का अधिक खर्च किए जाने को सीएजी ने वित्तीय प्रबंधन में गंभीर खामी करार दिया था। सीएजी ने सरकार से कहा था कि वह सभी महकमों के बजट की प्रक्रिया को तथा अपने अनुत्पादक व्ययों में कटौती कर अपने व्यय पैटर्न को सुदढ़ करें। मगर सरकार को इसकी सुधि कहां रही।
सीएजी ने कई सरकारी विभागों में खामियां पाई थीं।  पशुपालन विभाग की अनेक खामियां उजागर भी की थीं।  सबसे महत्वपूर्ण तथ्य तो यह था कि विभाग का पशु जैविय औषधि संस्थान बिना लाइसेंस के संचालित हो रहा था जो अपराध है। दूसरी ओर पशु चिकित्सा अधिकारियों तथा पशुधन प्रसार अधिकारियों की कमी के कारण 77 पशु चिकित्सालय और पशु सेवा केंद्र संचालित नहीं  पाए गए थे जिनके बजट का कुल व्यय का 44 से 83 प्रतिशत वित्तीय वर्ष के अंतिम माह मार्च में खर्च किए गये थे। इसके अलावा भारत सरकार से मिली संपूर्ण धनराशि राज्य सरकार ने अवमुक्त भी नहीं की थी। 9.05 करोड़ रुपये खातों में अनियमिति रूप से रखे गये थे। सीएजी के अनुसार लोक निर्माण विभाग का आंतरिक नियंत्रण कमजोर था। सड़कों के चौड़ीकरण एवं सुदृढ़ीकरण पर 68.63 करोड़ रुपये बेवजह खर्च किए गये थे। राज्य सड़क निधि का संचालन न होने के कारण 998.41 करोड़ रुपये अप्रैल 2005 से अप्रयुक्त पड़ा था। आवासीय, गैर आवासी भवनों की मरम्मत पर 9.27 करोड़ रुपये का अनियमित व्यय किया गया था, जबकि स्वीकृतियों के अधीन न आने वाले मदों पर 11.15 करोड़ रुपए का व्यय किया गया था। कंप्यूटराइज्ड डेटा बैंक तथा प्रबंधन सूचना प्रणाली के अभाव में सड़कों का चयन संदेहास्पद था। रिपोर्ट में कहा गया था कि नगरीय स्वास्थ्य सेवाएं उपलब्ध कराने के नाम पर अधिकारियों द्वारा मनमानी की गई है। यहां तक कि पांच ट्रामा सेंटरों के बनने से पहले ही इसके उपकरण क्रय कर लिए गये थे। एंटी रेबीज टीकों की खरीद में क्रय नीति का पालन न करने से 3.60 करोड़ रुपये का अतिरिक्त भुगतान हुआ था। 2007-09 के बीच सात नवसृजित जिलों औरैया, बागपत, बलरामपुर, कौशांबी, संत कबीरनगर, संत रविदास नगर और श्रावस्ती में सौ शैया वाले अस्पतालों के निर्माण का निर्णय लिया गया था लेकिन नवंबर 2010 तक इनके 15 से लेकर 65  प्रतिशत तक कार्य अपूर्ण थे जबकि कार्यदायी संस्था को इस बाबत 88.55 करोड़ रुपये जारी किये जा चुके थे।  इसी तरह सात जिलों में चीरघरों के निर्माण की तिथि निर्धारित किए बिना ही 1.03 करोड़ रुपये की स्वीकृति प्रदान कर दी गयी थी इनमें औरैया, कुशीनगर और संत कबीरनगर में भूमि विवाद के कारण निर्माण कार्य प्रारंभ नहीं हुआ था तथा बाल एवं क्षय रोग चिकित्सालयों के निर्माण में भूमि सुनिश्चित किए बिना ही लखनऊ और गोरखपुर में कार्यदायी संस्था के निजी खाते क्रमश:12 करोड़ और पांच करोड़ रुपये डाल दिए गये थे जो दो साल से अधिक समय तक अनुप्रयुक्त रही।
सीएजी की रिपोर्ट  आने के बाद एकबार फिर मायावती सरकार पर विपक्ष ने हमले तेज किए। सीएजी रिपोर्ट के आधार पर माया सरकार को घेरते हुए तब भाजपा विधान परिषद सदस्य हृदय नारायण दीक्षित ने कहा था कि एक तरह से सीएजी ने विपक्ष द्वारा लगाए गये बसपा सरकार पर भ्रष्टाचार के आरोपों की पुष्टि कर दी हैं। समाजवादी पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष अखिलेश सिंह यादव ने भी कहा था कि सीएजी रिपोर्ट से उत्तर प्रदेश सरकार के भ्रष्टाचार की पोल खुल गई है। कोई ऐसा क्षेत्र नहीं बचा है जो भ्रष्टïाचार से अछूता हो। अब यह देखना होगा कि विपक्षी दल भ्रष्टïाचार के इस मुद्ïदे को किस हद तक चुनावी धार दे पाते है।

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