Monday, August 26, 2019

अधीर और नेहरू की सोच एक जैसा?

अधीर और नेहरू की सोच एक जैसा?
*************************
अधीर रंजन चौधरी ने संसद में जो विवादास्पद बयान दिया ,उसे कांग्रेस का ऑफिसियल स्टैंड क्यों नहीं माना जाय?अधीर रंजन चौधरी लोकसभा में राहुल-सोनिया द्वारा चयनित सदन में कांग्रेस के नेता हैं। उनका यह कहना कि "कश्मीर भारत का आंतरिक नहीं,द्विपक्षीय मामला है क्योंकि यूएनओ उसकी मोनिटरिंग करता है",क्या पाकिस्तान का " लाइन ऑफ स्टेटमेंट" नहीं है?
जिस पंडित जवाहर लाल नेहरू के ऐतिहासिक भूल का उस दिन परिमार्जन हो रहा था, उन्होंने भी 1962 में "नेफा" के सन्दर्भ में एक ऐसा ही विवादास्पद बयान दिया था कि "जिस इलाके को लेकर आप लोग हंगामा कर रहे हैं,वहां तो घास का एक तिनका भी नहीं उगता है।"
भारतीय संसद के इतिहास में यह बयान दर्ज है। तब विपक्ष का एक कद्दावर नेता महावीर त्यागी ने प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू को भरे सदन में ललकारते हुए कहा था- "यदि ऐसी बात है नेहरू जी तो फिर आपका सिर भी चीन को क्यों नहीं दे दिया जाए, क्योंकि वह भी तो बंजर है और उस पर अब बाल नहीं उगते।"
किस्सा सन् 1962 के चीनी हमले के बाद का है। चीन ने तब भारत पर हमला कर हमारे देश के एक बड़े भू-भाग पर कब्जा कर लिया था। तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू इस युद्ध के पहले तक चीन को अपना गहरा दोस्त मानते थे। वे मित्रता को लेकर इस कदर आश्वस्त थे कि चीन द्वारा लद्दाख क्षेत्र में घुसपैठ करने के सबूत मिलने के बाद भी चीन को अपना दोस्त मानते रहे और आवाज तक न उठाई।
1962 में संसद में चीनी हमले को लेकर बहस हो रही थी। प्रधानमंत्री को जवाब देना था। वे खड़े हुए और भारतीय इलाके नेफा पर चीन के कब्जे को लेकर कह दिया कि वह तो बंजर इलाका है, वहां घास का एक तिनका तक नहीं उगता।
उनके इस कथन पर संसद में सनसनी फैल गई। उन्हें टोकते हुए विपक्ष के दिग्गज सांसद महावीर त्यागी खड़े हुए और सवाल दागा- पंडित जी, आपके सिर पर भी बाल नहीं उगते, वह भी बंजर ही है। तो क्या उसे भी चीन को भेंट कर देंगे? इस प्रतिप्रश्न से नेहरू अचकचा गए।
उन्हें नहीं सूझा कि क्या जवाब दें। दरअसल, महावीर त्यागी का इशारा था कि नेफा का आर्थिक महत्व भले न हो और उस पर भले ही कुछ उपजता न हो, लेकिन वह भावनात्मक और राष्ट्रीय अस्मिता का सवाल है। उसे यूं ही नहीं छोड़ा जा सकता।
दरअसल नेहरू हों या अधीर , राष्ट्रीय अस्मिता और देश की एकता-अखण्डता को लेकर कांग्रेस की सोच हमेशा ढुलमुल रही है। तुष्टिकरण की राजनीति की जननी कांग्रेस को स्पष्ट करना चाहिए कि 70 साल बाद अगर जम्मू-कश्मीर का भारत में वास्तविक और सम्पूर्ण विलय-एकीकरण होता है तो उसे परेशानी क्यों है? अगर 1947 की आपाधापी में कोई ऐतिहासिक भूल हुई और 70 साल बाद उसे सुधारा जा रहा है तो इस ऐतिहासिक व साहसिक पहल से कांग्रेस अपने को अलग क्यों रखती है? कश्मीर के बहाने पकपरस्ती कर,सर्जिकल और एयर स्ट्राइक का सबूत मांग कर, सेना के शौर्य और पराक्रम का अपमान कर कांग्रेस क्या संदेश देना चाहती है?

No comments:

Post a Comment