Sunday, September 22, 2013

मीडिया का एकाधिकार: लोकतंत्र को खतरा


फिलहाल देश के प्रिंट मीडिया पर 9 बड़े मीडिया घरानों का प्रभुत्व हो चुका है। टाइम्स (ऑफ इंडिया) समूह, हिंदुस्तान टाइम्स समूह, इंडियन एक्सप्रेस समूह, द हिंदू समूह, आनंद बाजार पत्रिका समूह, मलयाला मनोरमा समूह, सहारा समूह, भास्कर समूह और जागरण समूह ने लगभग पूरे मीडिया बाजार पर कब्जा कर रखा है। इसी तरह इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में स्टार इंडिया, टीवी 18, एनडीटीवी, सोनी, जी समूह, इंडिया टुडे समूह और सन नेटवर्क का बोलबाला है। यही हाल रहा तो जल्दी ही देश में पूरी तरह से मीडिया एकाधिकार (मोनोपली) के हालात पैदा हो सकते हैं। दो हजार नौ में टेलीकॉम रेग्युलेटरी अथॉरिटी ऑफ इंडिया (ट्राइ) ने क्रॉस मीडिया ऑनरशिप संकेंद्रण को लेकर अपनी चिंता जताई थी। अपने आधार पत्र में उसने सख्त नियम बनाने की वकालत भी की थी लेकिन कमजोर राजनीतिक इच्छा शक्ति की वजह से इसको लेकर कोई ठोस कानून नहीं बन पाया है।
कुल मिला कर सरकार ने मीडिया के संबंध में विदेशी निवेश के सिवा किसी और मामले में कोई नीति नहीं बनाई है। समझने की बात यह है कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता किसी भी लोकतंत्र के लिए आधारभूत होती है जबकि मीडिया में एकाधिकार अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के लिए खतरा बनता है और इस तरह से अंतत: लोकतंत्र की ही नींव खोदनेवाला साबित होता है। यह पूंजीवादी व्यवस्था की तथाकथित स्वस्थ प्रतिद्वंद्विता को ही खत्म नहीं करता बल्कि विचारों की विविधता और स्वतंत्रता को भी पनपने नहीं देता। एकाधिकारी माध्यमों के अपने मालिकों के आर्थिक हितों या फिर सत्ताधारियों के राजनीतिक हितों के लिए काम करने की संभावना सदा बनी रहती है। वैसे भी भारत जैसे देश में जहां भौगोलिक, सांस्कृतिक और भाषायी विभिन्नता इतनी ज्यादा है बहुसंस्करणीय अखबार और मीडिया का एकाधिकार एक बहुत बड़ा खतरा है।
इसका एक और पक्ष कर्मचारियों को लेकर भी है जो कम महत्त्वपूर्ण नहीं है। बहु संस्करणीय अखबार विशेषकर पत्रकारों की नौकरियों के लिए हानिकारक सिद्ध हो रहे हैं। उनकी पदोन्नति की संभावनाओं को तो कम कर ही रहे हैं पदों को भी घटा रहे हैं।
इस में शंका नहीं है कि अब तक बहुसंस्करणीय अखबारों ने जो रूप ले लिया है उसे खत्म करना आसान नहीं है। पर ऐसा भी नहीं है कि इसे रोका ही नहीं जा सकता।  इस दिशा में सबसे पहला कदम बहुसंस्करणों की सीमा को निर्धारित करना है और दूसरा कदम क्रास मीडिया होल्डिंग पर रोक लगाना है। समाचार है कि सरकार इस बारे में सोच रही है, पर इस तरह के समाचार काफी समय से आ रहे हैं और वर्तमान सरकार जिस तरह से डरी हुई है उसके चलते नहीं लगता कि वह बेइंतहा ताकतवर हो चुके मीडिया को ऐसे समय में नाराज करने की हिम्मत करेगी।

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