Friday, January 6, 2012

कुशवाहा के मुद्दे पर उमा ने दिखाए तेवर



  • चाल,चरित्र और चेहरे का दोहरापन हुआ उजागर
भाजपा सांसद योगी आदित्यनाथ के बाद अब उत्तर प्रदेश में भाजपा के चुनाव की कमान संभाल रहीं मध्य प्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री साध्वी उमा भारती ने भी बसपा के दागी और एनआरएचएम घोटाले के आरोपित बाबू सिंह कुशवाहा सहित अन्य को भाजपा में शामिल कराने को लेकर अपने तेवर सख्त कर लिए हैं। उमा ने साफ कर दिया है कि 9 जनवरी से शुरू होने वाले पार्टी के प्रचार अभियान से वे अपने को अलग रखेंगी। उमा के तेवर के बाद भाजपा के अंदर का खोखलापन भी पूरी तरह से उजागर हो गया है। पार्टी का शीर्ष और केन्द्रीय नेतृत्व भी सवालों के घेरे में हैं। पार्टी के दो फाड़ होने की खबरें भी सतह पर आ गयी है।
दरअसल उमा भारती के तेवर सुविधा के तर्क गढऩे में माहिर भाजपाइयों के चाल,चरित्र और चेहरे के दोहरापन को ही उजागर कर रहा है। उमा ने सवाल उठाया है, अब जनता के बीच जाकर क्या कहेंगे। केन्द्रीय नेतृत्व को इन दागियों को पार्टी मेंं लाने से पहले एक बार मंथन करना चाहिए था। उन्होंने साफ कर दिया है कि ऐसे में वह भाजपा के चुनाव प्रचार से अपने को अलग कर लेंगी। उमा का तर्क है कि एक ओर तो वे लोग गला फाड़ कर काले धन और भ्रष्टïाचार के मुद्ïदे पर जमीन आसमान एक किए हुए हैं,दूसरी ओर भ्रष्टï से भ्रष्टïतम हुए लोगों से भी उन्हें कोई परहेज नहीं है। उनका हमला सीधे तौर पर भाजपा के केन्द्रीय और प्रान्तीय नेतृत्व पर है। उत्तर प्रदेश में अगर पिछड़ों को जोडऩे के लिए भाजपा बाबू सिंह कुशवाहा के नाम पर हर समझौता कर सकती है तो पूर्वी उत्तर प्रदेश में अपनी स्थिति मजबूत करने के लिए उसने इलाके के बाहुबलियों के घर न्यौता भेजना शुरू कर दिया है। जिस सिद्घांत,नीति,दर्शन व अनुशासन को आधार बना कर अब तक भाजपा अपने को पार्टी विद द डिफरेंस बताती रहीं हैं वैसे तो यह जुमला बार-बार तार-तार भी होता रहा है, मगर हालिया यूपी चुनाव के दौरान जो भाजपा का चाल,चरित्र और चेहरा सामने आया है, पार्टी शायद ही उससे अपना पीछा छुड़ा पाये। उमा भारती की यहीं चिन्ता उभर कर सामने आयी है।
सत्ता का सुख ऐसा है जिसको पाने के लिए नैतिकता और सिद्धांत को दांव पर लगाने से अन्य राजनैतिक दलों के साथ अब भाजपा को भी कोई परहेज नहीं है। यह दीगर है कि अब राजनैतिक दलों से जनता के नेता को प्रत्याशी बनाने और उनके कथन पर एतबार करने का जमाना भी लद चुका है। उत्तर प्रदेश के चुनाव में यह बात स्थापित भी हो रही है। बसपा सरकार को भ्रष्टाचार की गंगोत्री कहने वाली भाजपा अब बसपा से बाहर का रास्ता दिखाए गए भ्रष्ट मंत्रियों और नेताओं का ठिकाना बन गयी है। यहां भी वहीं सुविधा का तर्क है कि भाजपा तो गंगा है जहां आकर पापियों के पाप धूल जाते हैं।
बाबू सिंह कुशवाहा और बादशाह सिंह के बाद अब बसपा से ही निष्कासित और गैंगस्टर एक्ट में बंद धनंजय सिंह के घर पर भाजपा ने दस्तक दी है और धनंजय सिंह के करीबियों को टिकट देने का मन भी बनाया है। संभव है कि यह प्रदेश की चुनावी राजनीति की मजबूरी हो। मगर इसी के साथ भाजपा के सिद्घांत बघारू नेताओं को पूरी ईमानदारी से यह स्वीकार कर लेना चाहिए कि उसके तमाम आंदोलन और अभियान जो भ्रष्टïाचार और काले धन को लेकर अब तक चलते रहे हैं वह एक पाखंड है। दरअसल उसकी भी एकमात्र चिन्ता चुनावी सफलता हासिल करने की है और इसके लिए कोई भी जायज नजायज तरीके वह अपना सकती है।
मिली जानकारी केअनुसार जौनपुर से बसपा सांसद धनंजय सिंह से कुशवाहा विवाद के बीच ही प्रदेश के बड़े नेता राजनाथ सिंह के बेटे पंकज सिंह ने जौनपुर जाकर बात की है। पंकज सिंह ने धनंजय सिंह को आफर दिया है कि वे अपनी पत्नी जागृति सिंह को चाहें तो चुनाव मैदान में उतार सकते हैं। भाजपा उन्हें टिकट देने के लिए तैयार है। अब सुविधा का तर्क यह हो सकता है कि गैंगस्टर तो धनंजय सिंह पर लगा है, भला इसमें उनकी पत्नी का क्या दोष? या वह तो पाक-साफ है। ठीक उसी तर्ज पर कि भाजपा तो गंगा है, यहां आकर सभी पापियोंं के पाप धूल जाते हैं। मगर मालूम हो कि धनंजय सिंह ने सिर्फ  पत्नी के लिए ही सीट नहीं मांगी है बल्कि दो अन्य सीटों पर भी दावा कर दिया है। धनंजय सिंह अब भाजपा से एक सीट की बजाय तीन सीट ले रहे हैं ये तीन सीट हैं जौनपुर की मल्हनी, मडियाहू और बदलापुर।  धनंजय सिंह तीनों सीटों पर अपने खास लोगों को उतारना चाहते हैं। खबर के अनुसार भाजपा का शीर्ष नेतृत्व भी धनंजय सिंह को तीन सीट देने के लिए तैयार हो गया है। अगर सबकुछ ठीक रहा तो एक-दो दिन में भाजपा की जो आखिरी सूची आयेगी उसमें धनंजय सिंह के खाते में तीन सीटें होगी।
इस तरह के अभियान के पीछे उत्तर प्रदेश में भाजपा की क्या मंशा है तो यह तो भाजपाई ही अच्छी तरह से समझ पा रहे होंगे मगर जिस तरह से इन मुद्ïदों को लेकर भाजपा के शीर्ष नेतृत्व का अन्तरविरोध खुल कर सामने आया है उससे एक बात तो साफ हो गयी है पार्टी विद द डिफरेंस का जुमला भी भाजपा का एक तरह से पाखंड ही है। कुशवाहा के मुद्ïदे पर पार्टी के वरिष्ठï नेता लाल कृष्ण आड़वाणी की नाराजगी के क्या मतलब है? अभी हाल ही में उन्होंने जेपी की जन्मस्थली सिताबदियारा से 38 दिवसीय भ्रष्टïाचार और कालेधन के खिलाफ देशव्यापी जनजागरण अभियान पूरा किया है। अपनी उस यात्रा में उन्होंने देश के लोगो से भ्रष्टाचार के विरूद्व एकजुट होने का आह्वान किया था। आज उन की पार्टी खुद बसपा से निकाले गये दागी लोगों को लेकर उन के सहारे चुनाव लडऩा चाहती है। उन्हें लेकर प्रदेश में चुनावी सभाएं करना चाहती है। ऐसे दागी लोग जब मंच पर आड़वाणी की बगल में बैठेंगे तो जनता पर क्या असर पड़ेगा? क्या कहेंगे आडवाणी, यदि  जनता ने ये सवाल उछाल दिया कि आखिर अब भाजपा भ्रष्टïाचार के खिलाफ कैसे लड़ेगी भाजपा? तो ये दिग्गज क्या जवाब देंगे। दरअसल यह चुनावी मजबूरी नहीं बल्कि चाल,चरित्र और चेहरे का दोहरापन है,जिसे भाजपा सुविधा के तर्क के आधार पर स्वीकारना नहीं चाहती है। मगर अब जिस तरह से सांसद योगी आदित्यनाथ और भाजपा नेत्री उमा भारती ने तेवर दिखाये हैं उससे कहीं न कहीं भाजपा को खामियाजा भी भुगतना पड़ेगा।





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