Saturday, April 20, 2013

आखिर यह दरिंदगी कब तक?


देश की राजधानी दिल्ली दरिंदगी से एक बार फिर दहल गई है। पिछले साल दिल्ली में चलती बस में हुए गैंगरेप के बाद लोगों का गुस्सा जब सड़क पर फूटा तो लगा कि क्रांति आ जाएगी। समाज बदल जाएगा। कानून का राज साकार हो जाएगा। लेकिन अब तो इंतहा हो गई है। पांच साल की एक मासूम के साथ जिस तरह की हैवानियत की गई, उससे ऐसा लगता है कि वसंत विहार गैंगरेप की शर्मनाक घटना से किसी ने सबक नहीं लिया। धीरे-धीरे सबकुछ पुराने ढर्रे पर चल पड़ा। ताजा घटना से ऐसा लगता है कि कुछ भी नहीं बदला है। गुनाह करने वालों को किसी तरह के कानून का डर नहीं है। सियासतदानों पर भी ऐसी घटनाओं का कुछ खास असर नहीं पड़ता दिख रहा है। ऐसी घटनाएं सामने आने पर जिम्मेदारी लेने के लिए कोई तैयार नहीं होता बल्कि सत्ता पक्ष से लेकर विपक्ष तक राजनीति करने में जुट जाता है। 16 दिसम्बर 2012 के पहले जैसे हालात थे वैसे अब भी हैं। ऐसा लगता है कि समाज में पुलिस, कानून, राजनीतिक व्यवस्था और मानवता का कोई अस्तित्व ही नहीं बचा है। तो सवाल है कि जब इनका कोई वजूद ही नहीं है तो क्यों न इन्हें अंतिम श्रद्धांजलि दे दी जाए? राजधानी दिल्ली में मासूम बच्ची के साथ हुई दरिंदगी के बाद एक बार फिर बलात्कारियों को फांसी देने की मांग जोर पकड़ने लगी है। बीजेपी नेता सुषमा स्वराज का कहना है कि जब तक ऐसे दरिंदों को फांसी नहीं होगी तब तक समाज में भय नहीं पैदा होगा। वहीं बीजेपी नेता नजमा हेपतुल्ला ने तो यहां तक कह डाला कि ऐसे दरिंदे को गोली मार देनी चाहिए। कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने भी कड़े लहजे में कहा कि अब बातों से काम नहीं चलेगा। दोषियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई करनी होगी। 16 दिसंबर को दिल्ली में लड़की से बलात्कार और मौत के बाद भी दोषियों को फांसी की सजा देने की मांग उठी थी लेकिन सरकार ने रेप की सजा फांसी करने से इनकार कर दिया। अब एक बार फिर दरिंदों के लिए फांसी की मांग उठी है। बड़ी बात यह कि इस बार ये आवाज संसद के गलियारे से ही उठ रही है। मगर क्या इसे अंतिम उपाय के तौर पर मान लेना चाहिए। क्या सोच व समाज में बदलाव के बिना यह उपाय भी कारगर होगा?

No comments:

Post a Comment