Saturday, November 26, 2011

माया सरकार में मंत्री दागी,अफसर बागी


 पिछले साढ़े चार साल में मायावती सरकार की निराली कार्यषैली का ही नतीजा है कि आज जहां उनकी सरकार के 17 मंत्री लोकायुक्त के जांच के घेरे में हैं वहीं भ्रष्टाचार के संगीन आरोपों में ही मं़ित्रमंडल के कई मंत्रियों को निकाल बाहर किया गया है। इसी प्रकार सरकार की कार्य संस्कृति पर ही असंतोष जताते हुए ही कई अफसरों ने भी बगावती तेवर अख्तियार किए हैं।
लोकायुक्त की जांच के घेरे में आये ज्यादातर मंत्री भयभीत हैं। भय स्वाभाविक भी है। पिछले दिनों लोकायुक्त ने जिस तरह से मंत्रियों के भ्रष्टाचार और आय से अधिक यानी नाजायज सम्पत्ति अर्जित करने के मामले की जांच की है और उसी के आधार पर कई माननीयों को पैदल होना पड़ा है,उसके बाद अन्य आरोपितों में भी भय पैदा हुआ है। मालूम हो कि लोकायुक्त की जांच पर ही रंगनाथ मिश्र, अवध पाल सिंह, राजेष त्रिपाठी,बाबू सिंह कुषवहा और बदषाह सिंह जैसों को अपनी कुर्सी गंवानी पड़ी है। इनमें एनआरएचएम घोटाले के आरोपित बाबू सिंह कुषवाहा  सीबीआई जांच के दायरे में भी है। फिलवक्त अयोध्या प्रसाद पाल, रामवीर उपाध्याय, राकेषघर त्रिपाठी, रतनलाल अहिरवार, चौधरी लक्ष्मी नारायण, दद्दू प्रसाद, फतेह बहादुर सिंह, फागू चौहान, सदल प्रसाद, स्वामी प्रसाद मौर्य,नारायण सिंह, राम अचल राजभर, लालजी वर्मा, अब्दुल मन्नान और चन्द्रदेव राम यादव की जांच लोकायुक्त के पास लम्बित है। हाल ही में माया मंत्रिमंडल के सदस्य जयवीर सिंह और विनोद सिंह की षिकायतें भी पहुंची हैं जिसके आधार पर जांच षुरू की गयी है।

कई वर्तमान और निवर्तमान विधायकों की जांच भी लोकायुक्त के यहां चल रही है। इनमें आनन्द कुमार पाण्डेय, अषोक राणा, हरेराम सिंह, ओम प्रकाष सिंह, भगेलू राम, त्रिभुवन दत्त, अब्दुल हन्नान, रिजवान अहमद खां,विषम्भर प्रसाद निषाद, राधेष्याम जायसवाल,जगेन्द्र स्वरूप, महेष चन्द्र और आदित्य पाण्डेय आदि प्रमुख हैं। जांच के घेरे में पूर्व विधायक इन्द्रदेव सिंह और अरिमर्दन सिंह भी हैं। मंत्रियों और विधायकों में से कई की जांच अन्तिम चरण में है। जांच पूरी कर लोकायुक्त आने वाले दिनों में कार्रवाई के लिए रिपोर्ट दे सकते हैं। विधान सभा चुनाव के मद्देनजर कई के लिए लोकायुक्त की रिपोर्ट परेषानी पैदा करने वाली हो सकती है। आरोपों की गंभीरता के आधार पर सवाल केवल कुर्सी गंवाने का नहीं बल्कि सलाखों के पीछे जाने का भी है। जनता के हक और सार्वजनिक धन की बटमारी करने वालों की अंतिम परिणति पर आम लोगों की भी नजर लगी हुई है।
सुरसा की मुंह की तरह विकराल होते भ्रष्टाचार और लूट-खसोट के इस दौर में अफसरों का बागी तेवर भी चिन्ता पैदा करता है। डीआईजी डी डी मिश्रा के गंभीर आरोपों से भले ही षासन ने उन्हंे मानसिक रूप से अस्वस्थ बताकर पला झाड़ लिया मगर हाल ही में जिस तरह से आइपीएस अमिताभ ठाकुर ने तेवर दिखाये हैं, वह षासन के अंदरखाने में पनपी विकृतियों को दर्षाने के लिए काफी है। तब डीआईजी मिश्रा ने फायर सर्विसेज में हुई गड़बड़ियों को उजागर करने की कोषिष की तो उन्हें जबरिया मानसिक रोग अस्पताल में भर्ती करा दिया गया और अब आइपीएस अमिताभ ठाकुर ने षासन के ही दो आलाधिकारियों प्रमुख सचिव गृह कुंवर फतेह बहादुर और सचिव मुख्यमंत्री विजय सिंह पर प्रताड़ित करने का आरोप लगाया है। मंत्री के संरक्षण में लूट का आरोप लगाते हुए जिला उद्यान अधिकारी चन्द्र भूषण पाण्डेय ने भी बगावती तेवर अख्तियार किया है। उनका आरोप है कि पिछले चार सालों में किसानों को बांटी जाने वाली सब्सिडी की दो सौ करोड़ रुपये की बंदरबांट कर ली गयी है। निष्चित तौर पर सरकार इन अधिकारियों के आरोपों के बाबत लीपापोती करेगी,मगर उन सवालों पर गौर करना भी लाजिमी होगा जिसे वे उठा रहे हैं।



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