Monday, November 26, 2012

'ये दिल मांगे मोर...' तो नहीं मांगूगा वोट : नीतीश



          राकेश प्रवीर
पटना। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने शनिवार को अपनी सरकार के कामकाज का लेखा-जोखा पेश किया। उन्होंने कहा कि राज्य सरकार की प्राथमिकता है कि यहां के लोगों को पर्याप्त बिजली मिले। अगर विधान सभा चुनाव से पहले यहां की जनता को पर्याप्त बिजली नहीं मिलती है, तो चुनाव में वोट नहीं मांगेंगे। मुख्यमंत्री ने अपनी सरकार द्वारा एक साल में किए गये कामकाज को रिपोर्ट कार्ड के जरिए सबके सामने रखा। उन्होंने दावा किया कि वह राज्य में बिजली की दशा को सुधार देंगे। उनका कहना था कि अगर ऐसा नहीं हुआ तो वे अगले विधानसभा चुनाव में अपनी पार्टी के लिए वोट नहीं मांगेंगे। गौरतलब है कि बिहार में बिजली की हालत बेहद खराब है। उन्होंने सरकार द्वारा जनता की भलाई के लिए की जा रही ढेर सारी उपलब्ध्यिों पर भी प्रकाश डाला। इसके बावजूद नीतीश कुमार को भी 'ये दिल मांगे मोर' का अहसास है। इसके पहले 15 अगस्त को भी पटना के गांधी मैदान में अपने भाषण में नीतीश कुमार ने कहा था, 'अगर हम 2015 तक बिहार के प्रत्येक गांव में बिजली नहीं पहुंचा पाए तो लोगों से अगले विधानसभा चुनाव में हमें वोट करने के लिए नहीं कहूंगा।'
बिहार में बिजली की रोजाना खपत 2500 मेगावाट से 3000 मेगावॉट तक है जबकि राज्य महज 100 मेगावाट बिजली का उत्पादन करता है। केंद्र से राज्य को 1100-1200 मेगावाट बिजली की आपूर्ति की जाती है। बिहार के पास 1200 मेगावाट बिजली की कमी है। इससे तो यही लगता है कि मुख्यमंत्री ने अपनी क्षमता से ज्यादा का वादा कर लिया है। पिछले महीने ही उन्होंने बिहार को विशेष दर्जा देने की मांग के लिए अपनी 'अधिकार यात्रा' रद्द कर दी थी, क्योंकि उन पर एक जगह प्लास्टिक की कुर्सी फेंकी गई और एक जगह सड़े हुए अंडे। तब इस काम को अंजाम दिया उन शिक्षामित्रों ने, जो नियमित शिक्षकों के बराबर हक मांग रहे हैं। बिहार ने करीब 2 लाख शिक्षकों की नियुक्ति की है। इनमें से कुछ प्रशिक्षण प्राप्त हैं, जिनका वेतन 6,000 रुपये प्रति माह है, जबकि कुछ अप्रशिक्षित, जिन्हें 4,000 रुपये प्रति माह वेतन मिलता है। हालांकि इस वेतन को राजनीतिक नफा-नुकसान को ही ध्यान में रखकर मुद्रास्फीति व महंगाई से भी जोड़ा गया है और इसमें बढ़ोतरी भी की गई है। लेकिन शिक्षामित्र नियमित शिक्षकों और उनके वेतन में भारी भरकम अंतर का विरोध कर रहे हैं।
यह सब राज्य के लोगों की बढ़ती आकांक्षाओं का नतीजा है, जिन्हें विकास का अनुभव हो चुका है और अब वे ज्यादा विकास चाहते हैं। ऐसा नहीं है कि नीतीश कुमार इस बात से वाकिफ नहीं है। उन्होंने विकास की रफ्तार को तेज करने की कोशिश की, जिसके लिए उन्होंने राज्य भर के लोगों से बातचीत स्थापित करने के लिए अनेक यात्राएं कीं। इन यात्राओं का लक्ष्य नौकरशाही को संवेदनशील बनाना था। मगर ऐसा हो नहीं सका। एक ओर आकांक्षाएं व उम्मीदें कुलांचे भरती रहीं, तो दूसरी ओर निराशा भी गहराता रहा। दूसरे कार्यकाल के दूसरे वर्ष की समाप्ति पर इसीलिए नए कलेवर के साथ पुराने रेकार्ड को ही बजाया गया है। कई ऐसी तल्ख सच्चाइयां हैं जिसे याद करना और दुहराना सत्ता शीर्ष को कभी नहीं भाता। आमतौर पर जनता भी अल्प याद्दाश्त का शिकार होती है। मगर चुनाव के दौरान राजनीतिक पार्टियां सब कुछ भूल जाएगी, ऐसा नहीं कहा जा सकता है।

सत्तारूढ़ गठबंधन की साझेदार भारतीय जनता पार्टी के पूर्णिया के सांसद उदय सिंह, जो जनता दल यूनाइटेड के राज्य सभा सदस्य एन के सिंह के भाई भी हैं, ने बेहतर प्रशासन के नीतीश कुमार सरकार के दावों को पिछले ही महीने पूर्णिया में एक रैली कर तार-तार कर दिया। उदय सिंह के गैर-सरकारी संगठन द्वारा कराए गए सर्वेक्षण के अनुसार 2005 में नीतीश कुमार के मुख्यमंत्री बनने के बाद से राज्य में गरीबों की संख्या में 50 लाख का इजाफा हुआ है। महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना समेत किसी भी प्रमुख योजना को राज्य में ईमानदारी से लागू नहीं की गई है। सांसद का दावा है कि उनके इस सर्वेक्षण  में उनके संसदीय क्षेत्र में शामिल 3.5 लाख परिवारों में से 2.1 लाख परिवारों ने हिस्सा लिया। सिंह का कहना है कि जिस इलाके में 80 फीसदी आबादी आजीविका के लिए दिहाड़ी पर निर्भर हो, वहां महज 13 फीसदी परिवारों को ही मनरेगा के तहत काम मिला है। 3 से 6 वर्ष की आयु वाले 60 फीसदी बच्चों का आंगनबाड़ी या आईसीडीएस योजनाओं में नामांकन नहीं किया गया है, जिससे उन्हें पूरक पोषण और प्राथमिक शिक्षा नहीं मिल पाती है। इस सर्वेक्षण में हिस्सा लेने वाले 50 फीसदी प्रतिभागियों का कहना था कि स्थानीय स्वास्थ्य देखभाल केंद्रों की हालत बेहद खराब है। सर्वेक्षण में हिस्सा लेने वाले महादलित और अल्पसंख्यक समुदाय के महज 5 फीसदी प्रतिभागियों को ही राज्य सरकार की योजनाओं का फायदा मिला है। बिजली की किल्लत झेल रहे राज्य में 39 फीसदी प्रतिभागियों का कहना था कि अच्छी सड़कों और बुनियादी ढांचे के बजाय बिजली उनकी प्राथमिक जरूरत है। संभव है कि सरकार इस सर्वेक्षण से सहमत नहीं हो। रिपोर्ट कार्ड में अनेक अच्छी बातों व उपलब्धियों की चर्चा हैं। बिजली उपलब्ध कराने का आत्मविश्वास भी। अभी तीन साल शेष है,ईमानदार कोशिश की जरूरत होगी।

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