Thursday, April 19, 2012

अब आधी दुनिया हमारी मिसाइलों की जद में

अग्नि-5 के सफल परीक्षण ने दुश्मनों की पेशानी पर बल डाल दिए हैं। हम पर हमला करने से पहले उन्हें सौ बार सोचना होगा। इसके सफल परीक्षण के साथ ही आधी दुनिया हमारी मिसाइलों की जद में आ गई है। हम उन देशों के प्रतिष्ठित क्लब में दाखिल हो गए हैं, जिनके पास पांच हजार किमी से अधिक दूरी तक मार करने वाले अंतर महाद्वीपीय मिसाइल [आइसीबीएम] हैं। ओड़िशा के व्हीलर द्वीप से गुरुवार को सुबह आठ बजकर सात मिनट इसे छोड़ा गया। संयोग से 1975 में 19 अप्रैल को ही भारत ने आर्यभट्ट उपग्रह को लांच कर अंतरिक्ष में अपनी सफलता का सितारा टांका था। अपने पीछे कामयाबी की नारंगी रोशनी और उल्लास की सफेद लकीर छोड़ती हुई निकली इस मिसाइल ने करीब 15 मिनट में बंगाल की खाड़ी में अपने निर्धारित लक्ष्य को भेदा। तीसरे चरण में वातावरण में पुन: दाखिल होने के बाद आग के गोले में तब्दील इस मिसाइल ने सात हजार किमी प्रति सेकंड की रफ्तार से लक्ष्य को ध्वस्त किया। इसने देश को नाभिकीय बम के साथ सुदूर तक सटीक वार करने वाली अति जटिल तकनीक का रणनीतिक रक्षा कवच भी दिया है। इसके जरिए वह अपने किसी भी हमलावर को मुंहतोड़ जवाब दे सकता है। ध्यान रहे कि भारत ने वादा किया हुआ है कि वो पहला नाभिकीय वार नहीं करेगा, लेकिन प्रहार हुआ तो पूरी ताकत के साथ जवाब देगा।अग्नि-5 ने सौ फीसद सफलता के साथ अपने लक्ष्य को भेदा। सतह से सतह पर मार करने वाली यह मिसाइल चीन समेत पूरे एशिया, ज्यादातर अफ्रीका व आधे यूरोप तथा अंडमान से छोड़ने पर ऑस्ट्रेलिया तक पहुंच सकती है और एक टन तक के परमाणु बम गिरा सकती है। दो और परीक्षणों के बाद इसे 2014-15 तक सेना के हवाले कर दिया जाएगा। अग्नि-5 की सफलता ने देश के लिए और लंबी दूरी की मिसाइलों के विकास का दरवाजा भी खोल दिया है। अग्नि-5 की रेंज को जरूरत के अनुसार बढ़ाया जा सकता है। भारतीय मिसाइल बेड़े में यह पहला प्रक्षेपास्त्र है जो भारत को जरूरत पड़ने पर चीन के सभी हिस्सों तक मार करने की क्षमता देता है। हालांकि अग्नि-5 अभी चीन की डोंगफेंग-31 का छोटा जवाब ही है क्योंकि यह चीनी मिसाइल दुनिया के किसी भी हिस्से में प्रहार कर सकती है। महत्वपूर्ण है कि अब तक अंतरमहाद्वीपीय प्रहार क्षमता वाली मिसाइलें केवल अमेरिका, रूस, फ्रांस, चीन व ब्रिटेन के पास थीं। अग्नि-5 भारत की सबसे तेजी से विकसित मिसाइल है। इसे महज तीन साल में तैयार किया गया है। इसे अचूक बनाने के लिए भारत ने माइक्रो नेवीगेशन सिस्टम, कार्बन कंपोजिट मैटेरियल से लेकर मिशन कंप्यूटर व सॉफ्टवेयर तक ज्यादातर चीजें स्वदेशी तकनीक से विकसित कीं।

1 comment:

  1. सार्थक और सामयिक पोस्ट, आभार.

    कृपया मेरे ब्लॉग"meri kavitayen" की १५० वीं पोस्ट पर पधारें और अब तक मेरी काव्य यात्रा पर अपनी राय दें, आभारी होऊंगा .

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