Sunday, April 8, 2012

उत्तर प्रदेश पुलिस की हालत खस्ता

उत्तर प्रदेश पुलिस  के जवान शारीरिक उत्पीड़न के साथ मानसिक परेशानी का दंश भी झेल रहे हैं। देश के अन्य राज्यों के पुलिस बल से अगर उनकी तुलना करें तो उनके मुकाबले राज्य के जवानों को कम सहूलियत मिल रही है, जिसके चलते उनके अंदर हीनता इस हद तक घर कर चुकी है कि वे आला अधिकारियों पर जानलेवा हमले और आत्महत्या करने जैसे कदम उठाने से भी पीछे नहीं हट रहे हैं। अंतर्राष्ट्रीय मानकों पर गौर करें तो विदेशों में एक लाख लोगों तथा उनकी सुरक्षा के लिए 220 जवानों को तैनात किया जाता है। इसकी तुलना में भारत में केवल 131 जवान ड्यूटी कर रहे हैं। उत्तर प्रदेश में एक लाख की जनसंख्या की सुरक्षा के नाम पर मात्र 74 जवान तैनात हैं। इस कारण राज्य के जवानों पर काम का बोझ अत्याधिक है, जिसके चलते वे मानसिक उत्पीड़न झेल रहे हैं। जनपद प्रबुद्धनगर के शामली के क्षेत्राघिकारी शशि शेखर सिंह का कहना है कि प्रबुद्धनगर के आंकडों की बात की जाए तो यहां जवानों पर काम का बोझ बहुत ज्यादा है। उनका कहना है कि मानकों के अनुसार सरकारी कर्मचारियों और गैर सरकारी कर्मचारियों की ड्यूटी आठ घंटे निश्चित है। प्राइवेट सेक्टर में कार्यरत कर्मचारी अगर आठ घंटे से अधिक ड्यूटी करता है तो उसे ओवरटाईम या छुट्टा की सुविधा मिलती है, लेकिन उत्तर प्रदेश पुलिस के जवानों से दो शिफ्टों में ड्यूटी कराने के बाद भी उन्हें कोई अतिरिक्त पैसा या छुट्टा नहीं मिलती।
प्रबुद्धनगर में तैनात उप निनरीक्षक ने नाम नहीं छापने की शर्त पर बताया कि पुलिसकर्मियों को वैसी ट्रेनिंग नहीं मिल रही है, जिसकी उन्हें ड्यूटी के दौरान जरूरत है। उन्होंने कहा कि पुलिसकर्मियों को दी जाने वाली ट्रेनिंग में सुधार की आवश्यकता है। पुलिसकर्मी ट्रेनिंग पर जो सीखते हैं, असल जिंदगी में उसका उलट होता है। साथ ही साथ जवानों जो सही समय पर भोजन नहीं मिल पाना, रहने के लिए निम्न स्तर के खोली नूमा कमरे, छुट्टी नहीं मिल पाना और मूल निवास स्थान व परिजनों से सैकडों किलोमीटर दूर तैनाती आदि कई ऐसे कारण हैं, जिसके चलते जवान तनावग्रस्त रहते हैं। राज्य के पुलिसकर्मियों की स्थिति को देखा जाए तो यहां के जवानों एवं अधिकारियों के बीच आपसी समन्वय भी बहुत कम है। विभाग के आला अधिकारियों का सामना करने से जवान बचते हैं जबकि अन्य राज्यों में ऐसा नहीं होता। शेखर सिंह इस बात से सहमत हैं। वह कहते हैं कि पुलिसकर्मियों और अधिकारियों के बीच अधिक गैप है। यहां जवान अपने अधिकारियों के सामने खड़ा होने से भी कतराता है। इस कारण जवानों में हीन भावना पैदा हो रही है और वे हताश हो रहे हैं। पुलिस बल की दर्दभरी कहानी का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि कई पुलिस कांस्टेबल एवं बड़े अधिकारियों ने मानसिक परेशानी के चलते अपनी जीवन लीला समाप्त कर ली है।

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