यह निश्चिततौर पर सीनियर आईएएस ऑफिसर प्रोमिला शंकर की जीत है। मगर इसी के साथ उत्तर प्रदेश की मायावती सरकार की फजीहत भी है। केन्द्र सरकार के कार्मिक व पेंशन एवं लोक शिकायत मंत्रालय की टिप्पणी से राज्य सरकार बेआबरू हुई है। पिछले वर्ष सितम्बर में पूर्वाग्रह से ग्रसित होकर प्रदेश सरकार ने इस सीनियर आईएएस ऑफिसर को निलंबित कर दिया था। अफसरशाही के इतिहास की शायद यह पहली घटना है जब प्रदेश सरकार की संस्तुति और सहमति की जरूरत समझे बिना केन्द्र सरकार ने सीधे हस्तक्षेप कर उसकी कार्रवाई को अनुचित,अनावश्यक और पूर्वाग्रहजनित ठहराया है। आईएएस ऑफिसर पर लगाए गए चार्ज को भी सिरे से नाकार दिया गया है।
राष्टï्रीय राजधानी प्रक्षेत्र, नोएडा में कमीशनर के पद पर तैनात 1976 बैच की आईएएस अधिकारी प्रोमिला शंकर यूपी कैडर में वर्तमान मुख्यसचिव अनूप मिश्रा से भी सीनियर हैं। बिना पूर्व अनुमति के मुख्यालय छोडऩे और कोलम्बो (श्रीलंका) की यात्रा करने के आरोप में कार्रवाई करते हुए प्रदेश सरकार ने पिछले साल 9 सितम्बर को प्रोमिला शंकर को निलंबित कर दिया था। प्रोमिला शंकर पर सरकार की ओर से आरोप लगाया गया कि वह 5 और 6 सितम्बर को पूर्व अनुमति के बिना मुख्यालय से अनुपस्थिति रहीं और विदेश की यात्रा की। प्रदेश सरकार ने अखिल भारतीय सेवा 1969 के नियम 8 के तहत उनके खिलाफ कार्रवाई करते हुए निलंबित करने का फरमान जारी किया। राज्य सरकार का यह तर्क था कि श्रीमती शंकर ने सूचित किया था कि वह दो दिन यानी 5 और 6 सितम्बर को आकस्मिक अवकाश पर रहेंगी मगर उन्होंने विदेश की यात्रा की जो अखिल भारतीय सेवा (आचरण) अधिनियम 1968 के नियम 3 के विपरीत है।
मगर प्रदेश सरकार ने यह कार्रवाई ठीक तब की जब श्रीमती शंकर ने एक दिन पहले यमुना एक्सप्रेसवे प्राधिकरण पर अपनी रिपोर्ट सौंपी थी जिसमें उन्होंने सरकार की अनेक अनियमितताओं को इंगित किया था और साथ ही जमीन अधिग्रहण की खामियों को भी उजागर किया था। उन्होंने अपनी रिपोर्ट मेंं यह भी कहा था कि प्राधिकरण राष्टï्रीय राजधानी प्रक्षेत्र बोर्ड की औपचारिक अनुमति के बिना ही यमुना टाउनशीप योजना को अमलीजामा दे रहा है। इसी के बाद सरकार ने उन्हें निलंबित करने का तय किया और इसके लिए उनकी दो दिनों की छुट्ïटी को आधार बनाया गया। इस बाबत केन्द्र सरकार के अपीलीय प्राधिकार ने राज्य सरकार के खिलाफ प्रोमिला शंकर की अपील को सुनने के बाद इस मसले पर विचार करना तय किया। श्रीमती शंकर इसी 29 फरवरी को सेवानिवृत्त होने वाली हैं। केन्द्र सरकार का मानना है कि श्रीमती शंकर के खिलाफ अनावश्यक, अकारण आरोप लगाए हैं और इसका संबंध किसी भी तरह से भ्रष्टïाचार, जनहित, अनैतिक कर्म, सरकारी धन के विनियोजन या अनियमितता, गंभीर लापरवाही या कर्तव्यहीनता से नहीं है। केन्द्र सरकार के अपीलीय प्राधिकार के इस फैसले का स्वागत करते हुए श्रीमती शंकर ने कहा है कि अब मैं अपने ऑफिस में वापस आ गई हूं और एकतरह से यह मेरी जीत है। मगर मैं इस लड़ाई को छोडऩे वाली नहीं हूं। अपनी अस्मिता और स्वाभिमान के लिए मैं उनमें से किसी को भी छोडऩे वाली नहीं हूं जिन्होंने मुझे अपमानित करने की साजिश रची थी।
No comments:
Post a Comment