Tuesday, January 31, 2012

क्या मुसलमान महज मतदाता है?

समाजवादी पार्टी के पक्ष में शाही इमाम बुखारी ने फतवा क्या जारी किया मुस्लिम वोटों को लेकर राजनीतिक दलों में होड़ मच गई है। मुस्लिम मतों की छौंक से सभी अपनी जीत को जायकेदार बनाने में जुट गए हैं। मुस्लिमों के लिए वायदों की बरसात हो रही है। लुभावने आश्वासन दिया जा रहा है। भूल-चूक, लेनी-देनी की माफी की तर्ज पर सभी पार्टियां मुस्लिमों के क थित रहनुमाओं के दर पर माथा टेक रहे हैं। इन सबके बीच एक हकीकत यह भी है कि मुस्लिम बहुल इलाके हर जगह बेहद पिछड़े हैं, लेकिन उनकी जमीन पर नेताओं और पार्टियों की फसलें खूब लहलहाती रही है। इस दफा भाजपा को छोड़ तीन प्रमुख पार्टियों ने सवा दो सौ मुस्लिम उम्मीदवारों को टिकट दिए हैं। पहली बार करीब एक दर्जन मुस्लिम पार्टियां भी मैदान में हैं। सरकारी नौकरियों में 4.5 से लेकर 18 फीसदी आरक्षण समेत तमाम वादे सबके पास हैं। मगर इन तमाम वायदों-प्रलोभनों के बीच एक सवाल अनुत्तरित है कि क्या मुसलमान महज एक वोटर है या एक नागरिक भी है और एक नागरिक की हैसियत से उन्हें वह सब कुछ हासिल होना चाहिए, जिसकी उन्हें समाज में जरूरत है।
मुलायम सिंह ने मुस्लिम बहुल जिलों में कॉलेज खोलने से लेकर कब्रिस्तानों की जमीनों की हिफाजत तक का जिम्मा लिया है। मुलायम मुसलमानों के हितैषी रहे हैं। केवल वायदों में नहीं बल्कि अपने शासनकाल में उन्होंने प्रदेश के मुसलमानों के हित में कई कदम उठाए थे। मुसलमान भी मानते हैं कि उनसे उनका दिल का रिश्ता है। कांग्रेस सच्चर कमेटी की सिफारिशों पर अमल के लिए अपनी पीठ थपथपा रही है। मगर मुसलमान भरोसा करने को तैयार नहीं है। बाबरी मस्जिद का दांव भी कभी कांग्रेस ने ही चली थी, फसल भाजपा ने काट ली। भाजपा मजहबी आरक्षण के खिलाफ  है तो बसपा ने सबसे ज्यादा 84 टिकट देकर चुप्पी साधे रखी है। नई पार्टियां इन सबकी पोल खोलते हुए मुस्लिमों में अपनी जमीन तैयार कर रही हैं। मुस्लिम केन्द्रित पीस पार्टी ने प्रदेश में मुस्लिम मुख्यमंत्री बनाने का जुमला उछाल कर एक नई चाल चली है। गौरतलब हो कि कभी बसपा भी इसी तरह से दलित मुख्यमंत्री की बात करती थी। पिछड़े मुस्लिमों का एक तबका पीस पार्टी के इस राजनीतिक नारे का निहितार्थ भले नहीं समझ पर रहा हो मगर उसके आकर्षण के लिए इतना ही पर्याप्त है कि प्रदेश का मुख्यमंत्री कोई मुस्लिम होगा। 2007 में 57 विधायक इस समुदाय से चुनकर गए।
पिछले दस सालों में 16 मंत्री भी बने। मुलायम सिंह सरकार में 11 और मायावती सरकार में 5 मंत्री। मायावती के तीन मंत्री ऐसे भी थे, जो मुलायम के समय भी मंत्री रहे थे। यानी दस साल लगातार लालबत्ती में। लखनऊ निवासी इरफान जो बीटेक द्वितीय वर्ष के छात्र है का कहना है कि इंजीनियरिंग,मेडिकल कॉलेज तो छोडि़ए ये सारे नुमांइदे मिलकर भी पूर्वांचल की मुस्लिम आबादी में एक स्कूल तक नहीं खोल पाए। अब तक के वादों और दावों की हकीकत जानने के लिए पूर्वांचल के किसी भी गांव में चले जाइए, हकीकत समझ में आ जाएगी। करीब सवा करोड़ मुस्लिम आबादी वाला यह इलाका देश में बदहाल क्षेत्र के रूप में जाना जाता है। सवाल केवल वाराणसी, भदोही या चंदौली के बुनकरों की तंगहाली और बदहाली का ही नहीं है, बल्कि गोरखपुर, देवरिया, महराजगंज से लेकर बस्ती तक के किसी मुस्लिम बहुल गांवों में जाइए आपकों एक सी ही तस्वीर देखने को मिलेगी। लुभावने वायदे और आश्वासनों से कुछ नहीं होता। मौलिक सुविधाओं के अभाव में यह इलाका आज भी शिक्षा और स्वास्थ से लेकर रोजी-रोजगार के मामले में भी बदहाल है। पढ़े-लिखे मुस्लिम युवक भी छोटे-मोटे काम घंधे के लिए देश के महानगरों में पलायन के लिए विवश है। स्थानीय स्तर पर रोजगार का कोई अवसर नहीं है।
अनीसा खातून की तल्खी भी काबिलेगौर है। उनका कहना है कि मेरे पति सरकारी मुलाजिम है। दाल-रोटी चल जा रही है। दो बच्चे हैं। दोनों को दिल्ली में पढ़ा रही हूं। मगर गांवों के गरीब मुसलमान आज भी मदरसों के भरोसे हैं। बहराइच की 16 लाख आबादी में 35 फीसदी मुसलमान हैं। साक्षरता 36 फीसदी है तो मुसलमानों की 30 फीसदी से भी कम। देवरिया और बलिया में मुस्लिमों की साक्षरता 20 फीसदी से कम है। रोजगार के लिए महाराष्ट्र, पंजाब और दिल्ली की तरफ  पलायन का सिलसिला थमा नहीं है। मुस्लिम महिलाओं की स्थिति और भी खस्ता है। गरीब और पिछड़े मुस्लिमों में अब जागरूकता आई है। वह अब उन वजहों की तलाश भी कर रहे हैं जो उनके विकास में आड़े आ रही है। शिक्षा और रोजगार उनकी प्राथमिकता है। मात्र वायदों और घोषणाओं के लॉलीपाप से अब वे बहलने वाले नहीं है। उनका साफ मानना है कि वोट उसी को जो विकास को गति दे सके। पानी,बिजली,स्वास्थ्य, शिक्षा उनकी बुनियादी जरूरते हैं। इससे वह समझौता करने को तैयार नहीं है।

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