राकेश प्रवीर
उत्तरप्रदेश में विधानसभा चुनावों के मद्देनजर सियासी जोड़तोड़ तेज होते ही भाजपा की किरकिरी भी शुरू हो गयी है। भाजपा ने बसपा सरकार से भ्रष्टाचार के आरोपों पर निष्कासित चार मंत्रियों को गले क्या लगाया उसके अंदर भी फूट केस्वर उभरने लगे हैं। माना जा रहा है कि भाजपा कीचड़ में कमल खिलाने चली है। दूसरी ओर भ्रष्टïाचार के आरोपितों के ठिकानों पर हुई सीबीआई की छापेमारी को लेकर भी जहां कांग्रेस पर सवालिया निशान लगने शुरू हो गए है वहीं कांग्रेस और बसपा के सियासी संबंधों को लेकर भी कयास लगने शुरू हो गए हैं। सवालों के शक्ल में यह भी उभर रहा है कि क्या हाथ और हाथी साथ हो गए हैं?
एनआरएचएम घोटाले में आरोपी प्रदेश के पूर्व मंत्री बाबू सिंह कुशवाहा को पार्टी में शामिल करना भाजपा के लिए मुश्किल का सबब बनता जा रहा है। भाजपा के अंदर से मिली जानकारियों के अनुसार कुशवाहा को पार्टी में शामिल किए जाने पर भाजपा में मतभेद काफी गहरा गया है। इस मतभेद की वजह से भाजपा दो फाड़ हो सकती है। बताया जा रहा है कि कुशवाहा के पक्ष में पार्टी अध्यक्ष नितिन गडकरी के अलावा उत्तर प्रदेश भाजपा के अध्यक्ष सूर्य प्रताप शाही और वरिष्ठï नेता विनय कटियार हैं जबकि विपक्ष में सुषमा स्वराज, मुख्तार अब्बास नकवी और एस एस अहलूवालिया हैं। कुशवाहा और उनके सहयोगियों के ठिकानों पर सीबीआई की छापेमारी और विरोधी दलों के हमले से पैदा हुए हालात पर चर्चा के लिए बुधवार को आला नेताओं की गडकरी के आवास पर आपात बैठक हुई। बताया जा रहा है कि दागी मंत्री को भाजपा में शामिल किए जाने से पार्टी के कई नेता नाराज हैं। ऐसे में भाजपा आलाकमान पर बाबू सिंह कुशवाहा को आगामी विधानसभा चुनाव में टिकट नहीं देने का दबाव बढ़ गया है।
भाजपा की केंद्रीय चुनाव समिति की भी बुधवार को ही अहम बैठक हुई जिसमें उत्तर प्रदेश में पार्टी के 100 उम्मीदवारों के नाम पर चर्चा हुई। फिलहाल भाजपा की ओर से यह सवाल भी उठाया जा रहा है कि जब कुशवाहा बसपा में थे तो उस वक्त सीबीआई ने उनके खिलाफ कार्रवाई क्यों नहीं की? उत्तर प्रदेश भाजपा की वर्किंग कमेटी के सदस्य आई पी सिंह ने माना है कि कुशवाहा को भाजपा में शामिल किया जाना बड़ी भूल है। सूत्रों के हवाले से मिली खबर के मुताबिक भाजपा के सीनियर नेता लाल कृष्ण आडवाणी बाबू सिंह कुशवाहा को पार्टी में शामिल किए जाने के पक्ष में नहीं थे लेकिन गडकरी के कहने पर कुशवाहा को भाजपा में जगह मिली। अब कुशवाहा के साथ एक और दागी मंत्री बादशाह सिंह को भी भाजपा से निकालने का दबाव बन रहा है।
भाजपा नेता किरीट सोमैया ने हाल में मायावती सरकार पर भ्रष्टाचार के आरोप लगाते हुए एनआरएचएम घोटाला में साफ तौर पर बाबू सिंह कुशवाहा का नाम लिया था। भ्रष्टाचार के आरोप में मायावती सरकार से बाहर किए गए कुशवाहा सहित कई बसपा नेताओं को विपक्षी सपा और कांग्रेस ने मुद्ïदा बनाकर भाजपा पर हमला बोल दिया है। कांग्रेस नेता प्रमोद तिवारी ने आरोप लगाया है कि भाजपा भ्रष्टाचारियों के लिए धर्मशाला बन गई है। उन्होंने कहा ऐसा लगता है कि यूपी चुनाव में भाजपा का सफाया होने वाला है। यूपी कांग्रेस अध्यक्ष रीता बहुगुणा जोशी ने कहा है कि भाजपा के पास विधानसभा चुनाव के लिए उम्म्मीदवारों की कमी हैं इसलिए वह बसपा से निकाले गए नेताओं को अपना बना रही है। कांग्रेस महासचिव दिग्विजय सिंह ने भी चुटकी ली है। दिग्विजय सिंह ने इंटरनेट पर लिखा है कि बीएसपी के कलंक बीजेपी के तिलक। बीजेपी ने बसपा के दागी मंत्रियों को अपनाया और टिकट दिया। यह बीजेपी का असली चाल, चरित्र और चेहरा है।
दरअसल केंद्र में भ्रष्टाचार के खिलाफ कांग्रेस को घेर रही भाजपा ने बाबू सिंह कुशवाहा और बादशाह सिंह जैसे घोटाले के आरोपी को गले लगा कर एक तरह से उत्तरप्रदेश में सभी को हैरान कर दिया है। माया सरकार से भ्रष्टाचार के आरोपों पर निकाले गए मंत्रियों को उसने चौकीदार बताते हुए अपनी पार्टी में ले लिया। उस दौरान पार्टी उपाध्यक्ष विनय कटियार ने एनआरएचएम घोटाले के संदिग्ध बाबूसिंह कुशवाहा को गले भी लगाया। इसके अलावा बसपा सरकार से निकाले गए दो मंत्रियों अवधेश वर्मा और ददन मिश्र को पार्टी पहले ही उम्मीदवार बना चुकी है। पार्टी नेताओं का कहना है कि इनके खिलाफ भ्रष्टाचार के कोई सबूत नहीं हैं।
प्रदेश की राजनीति में भाजपा की इस कार्रवाई से एक तरह से हलचल पैदा हो गयी है। दूसरी ओर समाजवादी पार्टी के प्रदेशाध्यक्ष अखिलेश यादव ने भाजपा से उलट स्टैंड लेते हुए स्पष्ट किया कि सपा में भ्रष्टï और अपराधियों के लिए कोई जगह नहीं है। कानून का उल्लंघन करने वाले के खिलाफ कार्रवाई होगी। खराब छवि वालों को सपा से दूर रखा जायेगा। आम तौर पर जहां भाजपा की हालिया कार्रवाई से राजनीतिक गलियारे में चर्चा का बाजार गर्म है वहीं दूसरी और बसपा और कांग्रेस के संबंधो को लेकर भी नए सिरे से पड़ताल शुरू हो गयी है। एनआरएचएम घोटाले को लेकर हुई छापेमारी के बाबत भी कांग्रेस पर सवाल उठाया जाने लगा है। दूसरी ओर यह भी कयास लगाया जा रहा है कि छापेमारी की कार्रवाई कहीं न कहीं बसपा और कांग्रेस के बीच संबंधों के सुधरने का संकेत तो नहीं?
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