उत्तर प्रदेश में आगामी आठ फरवरी से तीन मार्च तक सात चरणों में होने वाले विधानसभा चुनाव में परिसीमन के बाद एक सौ तेरह सीटों पर मुस्लिम मतदाता निर्णायक भूमिका में होंगे। इसलिये भारतीय जनता पार्टी को छोड़ सभी राजनीतिक दलों की नजर इन पर लगी है। मुस्लिम मतदाताओं के लिए सभी राजनीतिक दल जोर आजमाइश में लगे हैं लेकिन पिछड़ों के 27 प्रतिशत आरक्षण के कोटे में से साढ़े चार प्रतिशत अल्पसंख्यकों को देकर कांग्रेस ने जो चाल चली थी फिलवक्त उसकी हवा निकल गई है। निर्वाचन आयोग ने विधानसभा चुनाव तक आरक्षण पर रोक लगा दी है। मुस्लिम रहनुमाओं को भी कांग्रेस की यह चाल नहीं भायी।
वैसे बहुजन समाज पार्टी प्रमुख मायावती और समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष मुलायम ङ्क्षसह यादव ने अपने अपने तरीकों से मुस्लिम वोटरों को आकॢषत करने की कोशिश किए है, मगर मुस्लिमों का हालिया रूझान साफ तौर पर सपा की ओर ही दिख रहा है। टिकट बंटवारे में जहां बसपा ने 85 तो सपा ने 84 मुस्लिम प्रत्याशियों को मैदान में उतारा है। सपा प्रमुख श्री यादव का कहना है कि मुसलमानों के आरक्षण का कोटा 18 प्रतिशत किया जायेगा। वह कांग्रेस के साढ़े चार प्रतिशत आरक्षण को छलावा बताते हैं। उनका कहना है कि कांग्रेस मुसलमानों को गुमराह कर रही है। उत्तर प्रदेश में कांग्रेस इस आरक्षण को मुसलमानों के लिए बताती है तो पंजाब में सिखों के लिए। बसपा प्रमुख मायावती एक कदम आगे बढ़ कर मुसलमानों को आरक्षण देने के लिए संविधान संशोधन की वकालत कर रही है। मगर राज्य के मुसलमान अभी तक अपनी जुबान बंद रखे हुए हैं और किसी के पक्ष में साफ तौर पर खड़े नजर नहीं आते। उत्तर प्रदेश में 113 विधानसभा सीटों पर मुसलमान निर्णायक भूमिका में है। इन क्षेत्रों में मुसलमानों की आबादी 20 प्रतिशत तक है। ऐसे में आरक्षण का दांव भले ही चुनावी लाभ लेने के लिए कांग्रेस चली मगर इसका फायदा अन्य दूसरे दलों के बीच लेने की होड़ मची है। एक तरह से कांग्रेस के लिए उसका यह दांव उल्टा पड़ गया है। कांग्रेस महासचिव एक ओर से जहां विकास की बात कहते नहीं थक रहे हैं वहीं दूसरी ओर उनके ही दल के अन्य नेता आरक्षण को लेकर मुस्लिमों पर चारा डालने की कोशिश में लगे हुए हैं।
वैसे कांग्रेस ने उत्तर प्रदेश की आरक्षित 88 सीटों पर अपना पूरा ध्यान केन्द्रित कर रखा है। कांग्रेस रणनीतिकारों का मानना है कि इसके साथ यदि कांग्रेस को मुसलमान वोट का मात्र 30 प्रतिशत भी मिल जाए तो उत्तर प्रदेश में कांग्रेस निर्णायक स्थिति में आ सकती है। फिलहाल देश के राजनीतिक इतिहास में सबसे महत्वपूर्ण वोट बैंक समझे जाने वाले मुसलमानों पर उत्तर प्रदेश के आगामी विधानसभा चुनाव में कई पाॢटयों का सियासी भविष्य टिका है। राज्य की कुल आबादी में करीब 19 फीसद की हिस्सेदारी रखने वाले मुसलमानों को रिझाने के लिए भारतीय जनता पार्टी को छोड़ कर लगभग सभी पाॢटयां जी जान से जुटी है। अभी तक सपा की सफलता में मुसलमान वोट अहम साबित होते रहे हैं। हाल ही में शाही इमाम अहमद बुखारी ने सपा प्रमुख मुलायम सिंह यादव के प्रेस कांफ्रेंस कर सूबे के मुस्लिमों को यह बता चुके हैं कि सपा ही उनका सबसे बड़ा हितैषी है। यह दीगर है कि बुखारी की अपील का क्या असर होता है मगर बुखारी की अपील के बाद अन्य राजनीतिक दलों की बेचैनी बढ़ गयी है।
आमतौर पर यह आरोप है कि राज्य पर करीब 40 साल तक शासन कर चुकी कांग्रेस ने मुसलमानों को लुभाने के लिए राज्य में चुनावी बयार शुरू होने के साथ ही अल्पसंख्यकों को साढ़े चार फीसद आरक्षण का पासा फेंका वहीं मुस्लिम मतदाताओं को अपना मान कर चल रही सपा इससे कहीं आगे बढ़ कर सत्ता में आने पर आरक्षण का प्रतिशत बढ़ाने का वादा करके यह जता दी कि मुस्लिमों की असली हितैषी वही है। गौरतलब हो कि राज्य के रामपुर, मुरादाबाद, बिजनौर, सहारनपुर, बरेली मुजफ्फरनगर,मेरठ,बहराइच,बलरामपुर,सिद्धार्थनगर, जयोतिबाफुलेनगर,श्रावस्ती, बागपत, बदायूं, गाजियाबाद, लखनऊ, बुलंदशहर और पीलीभीत की कुल 113 विधानसभा सीटों पर मुस्लिम मतदाता निर्णायक भूमिका में है। इन जिलों में मुसलमानों की आबादी 20 से 49 फीसदी के बीच है और नए परिसीमन के बाद सामने आया 113 सीटों का यह आंकड़ा किसी भी दल की किस्मत बना या बिगाड़ सकता है। अगर मुसलमानों का 30 फीसद वोट भी किसी एक दल के पास पहुंच गया तो वह अहम हो सकता है। आल इण्डिया मुस्लिम पर्सनल ला बोर्ड के सदस्य मौलाना खालिद रशीद फरंगी महली का बयान है कि मुसलमानों को साढे चार फीसदी
आरक्षण में शामिल करने से इस तबके की मांग सिर्फ 25 फीसद ही पूरी हुई है। हालांकि वह यह भी कहते हैं कि आरक्षण का यह दांव मुसलमान मतदाताओं को शायद ही लुभाये। मौलाना फरंगी महली ने कहा है कि गरीबी, अशिक्षा और पिछड़ेपन से घिरा मुस्लिम तबका चुनाव को लेकर पहले की ही तरह इस बार भी पसोपेश में जरुर हैं लेकिन अगर मुस्लिम नेतृत्व वाली पाॢटयां अपने एजेण्डे में कामयाब रहीं तो मुसलमानों के वोटों का ध्रुवीकरण भी हो सकता है। हर बार की तरह इस बार भी सियासी पाॢटयां मुस्लिम आरक्षण, राजनीति में समुचित प्रतिनिधित्व और मुसलमानों के पिछड़ेपन को दूर करने के मुद्ïदे को लेकर कई वादे कर रही हैं लेकिन शिया पर्सनल ला बोर्ड इस बार इन दलों को अपने वादों को अमली जामा पहनाने के लिए मजबूर करने की कोशिश कर रहा है। शिया पर्सनल ला बोर्ड के प्रवक्ता मौलाना याकूब अब्बास कहते हैं कि इस बार पाॢटयों के कोरे वादे नहीं चलेंगे बल्कि उन्हें खासकर शिया मुसलमानों के कल्याण के लिए पक्की योजना पेश करनी होगी और उसे अपने अपने चुनाव घोषणापत्रों में भी शामिल करना होगा। उन्होंने कहा कि बोर्ड अपनी कार्यकारिणी की बैठक कर राज्य विधानसभा चुनाव में शिया मतदाताओं को एकजुट रखने के लिए रणनीति तय करेगा।
वैसे बहुजन समाज पार्टी प्रमुख मायावती और समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष मुलायम ङ्क्षसह यादव ने अपने अपने तरीकों से मुस्लिम वोटरों को आकॢषत करने की कोशिश किए है, मगर मुस्लिमों का हालिया रूझान साफ तौर पर सपा की ओर ही दिख रहा है। टिकट बंटवारे में जहां बसपा ने 85 तो सपा ने 84 मुस्लिम प्रत्याशियों को मैदान में उतारा है। सपा प्रमुख श्री यादव का कहना है कि मुसलमानों के आरक्षण का कोटा 18 प्रतिशत किया जायेगा। वह कांग्रेस के साढ़े चार प्रतिशत आरक्षण को छलावा बताते हैं। उनका कहना है कि कांग्रेस मुसलमानों को गुमराह कर रही है। उत्तर प्रदेश में कांग्रेस इस आरक्षण को मुसलमानों के लिए बताती है तो पंजाब में सिखों के लिए। बसपा प्रमुख मायावती एक कदम आगे बढ़ कर मुसलमानों को आरक्षण देने के लिए संविधान संशोधन की वकालत कर रही है। मगर राज्य के मुसलमान अभी तक अपनी जुबान बंद रखे हुए हैं और किसी के पक्ष में साफ तौर पर खड़े नजर नहीं आते। उत्तर प्रदेश में 113 विधानसभा सीटों पर मुसलमान निर्णायक भूमिका में है। इन क्षेत्रों में मुसलमानों की आबादी 20 प्रतिशत तक है। ऐसे में आरक्षण का दांव भले ही चुनावी लाभ लेने के लिए कांग्रेस चली मगर इसका फायदा अन्य दूसरे दलों के बीच लेने की होड़ मची है। एक तरह से कांग्रेस के लिए उसका यह दांव उल्टा पड़ गया है। कांग्रेस महासचिव एक ओर से जहां विकास की बात कहते नहीं थक रहे हैं वहीं दूसरी ओर उनके ही दल के अन्य नेता आरक्षण को लेकर मुस्लिमों पर चारा डालने की कोशिश में लगे हुए हैं।
वैसे कांग्रेस ने उत्तर प्रदेश की आरक्षित 88 सीटों पर अपना पूरा ध्यान केन्द्रित कर रखा है। कांग्रेस रणनीतिकारों का मानना है कि इसके साथ यदि कांग्रेस को मुसलमान वोट का मात्र 30 प्रतिशत भी मिल जाए तो उत्तर प्रदेश में कांग्रेस निर्णायक स्थिति में आ सकती है। फिलहाल देश के राजनीतिक इतिहास में सबसे महत्वपूर्ण वोट बैंक समझे जाने वाले मुसलमानों पर उत्तर प्रदेश के आगामी विधानसभा चुनाव में कई पाॢटयों का सियासी भविष्य टिका है। राज्य की कुल आबादी में करीब 19 फीसद की हिस्सेदारी रखने वाले मुसलमानों को रिझाने के लिए भारतीय जनता पार्टी को छोड़ कर लगभग सभी पाॢटयां जी जान से जुटी है। अभी तक सपा की सफलता में मुसलमान वोट अहम साबित होते रहे हैं। हाल ही में शाही इमाम अहमद बुखारी ने सपा प्रमुख मुलायम सिंह यादव के प्रेस कांफ्रेंस कर सूबे के मुस्लिमों को यह बता चुके हैं कि सपा ही उनका सबसे बड़ा हितैषी है। यह दीगर है कि बुखारी की अपील का क्या असर होता है मगर बुखारी की अपील के बाद अन्य राजनीतिक दलों की बेचैनी बढ़ गयी है।
आमतौर पर यह आरोप है कि राज्य पर करीब 40 साल तक शासन कर चुकी कांग्रेस ने मुसलमानों को लुभाने के लिए राज्य में चुनावी बयार शुरू होने के साथ ही अल्पसंख्यकों को साढ़े चार फीसद आरक्षण का पासा फेंका वहीं मुस्लिम मतदाताओं को अपना मान कर चल रही सपा इससे कहीं आगे बढ़ कर सत्ता में आने पर आरक्षण का प्रतिशत बढ़ाने का वादा करके यह जता दी कि मुस्लिमों की असली हितैषी वही है। गौरतलब हो कि राज्य के रामपुर, मुरादाबाद, बिजनौर, सहारनपुर, बरेली मुजफ्फरनगर,मेरठ,बहराइच,बलरामपुर,सिद्धार्थनगर, जयोतिबाफुलेनगर,श्रावस्ती, बागपत, बदायूं, गाजियाबाद, लखनऊ, बुलंदशहर और पीलीभीत की कुल 113 विधानसभा सीटों पर मुस्लिम मतदाता निर्णायक भूमिका में है। इन जिलों में मुसलमानों की आबादी 20 से 49 फीसदी के बीच है और नए परिसीमन के बाद सामने आया 113 सीटों का यह आंकड़ा किसी भी दल की किस्मत बना या बिगाड़ सकता है। अगर मुसलमानों का 30 फीसद वोट भी किसी एक दल के पास पहुंच गया तो वह अहम हो सकता है। आल इण्डिया मुस्लिम पर्सनल ला बोर्ड के सदस्य मौलाना खालिद रशीद फरंगी महली का बयान है कि मुसलमानों को साढे चार फीसदी
आरक्षण में शामिल करने से इस तबके की मांग सिर्फ 25 फीसद ही पूरी हुई है। हालांकि वह यह भी कहते हैं कि आरक्षण का यह दांव मुसलमान मतदाताओं को शायद ही लुभाये। मौलाना फरंगी महली ने कहा है कि गरीबी, अशिक्षा और पिछड़ेपन से घिरा मुस्लिम तबका चुनाव को लेकर पहले की ही तरह इस बार भी पसोपेश में जरुर हैं लेकिन अगर मुस्लिम नेतृत्व वाली पाॢटयां अपने एजेण्डे में कामयाब रहीं तो मुसलमानों के वोटों का ध्रुवीकरण भी हो सकता है। हर बार की तरह इस बार भी सियासी पाॢटयां मुस्लिम आरक्षण, राजनीति में समुचित प्रतिनिधित्व और मुसलमानों के पिछड़ेपन को दूर करने के मुद्ïदे को लेकर कई वादे कर रही हैं लेकिन शिया पर्सनल ला बोर्ड इस बार इन दलों को अपने वादों को अमली जामा पहनाने के लिए मजबूर करने की कोशिश कर रहा है। शिया पर्सनल ला बोर्ड के प्रवक्ता मौलाना याकूब अब्बास कहते हैं कि इस बार पाॢटयों के कोरे वादे नहीं चलेंगे बल्कि उन्हें खासकर शिया मुसलमानों के कल्याण के लिए पक्की योजना पेश करनी होगी और उसे अपने अपने चुनाव घोषणापत्रों में भी शामिल करना होगा। उन्होंने कहा कि बोर्ड अपनी कार्यकारिणी की बैठक कर राज्य विधानसभा चुनाव में शिया मतदाताओं को एकजुट रखने के लिए रणनीति तय करेगा।
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