Tuesday, April 24, 2012

कालिदास सच-सच बतलाना!


इंदुमती के मृत्यु -शोक से
अज रोया या तुम रोए थे ?
कालिदास, सच-सच बतलाना!
... शिवजी की तीसरी आँख से
निकली हुई महाज्वाला में
घृतमिश्रित सूखी समिधा सम
तुमने ही तो दृग धोए थे
कालिदास, सच-सच बतलाना !
रति रोई या तुम रोए थे?
वर्षा -ऋतु की स्निग्ध भूमिका
प्रथम दिवस आषाढ़ मास का
देख गगन में श्याम घनघटा
विधुर यक्ष का मन जब उचटा
चित्रकूट के सुभग शिखर पर
खड़े-खड़े तब हाथ जोड़कर
उस बेचारे ने भेजा था
जिनके ही द्वारा संदेशा,
उन पुष्करावर्त मेघों का
साथी बनकर उड़ने वाले
कालिदास, सच-सच बतलाना !
पर-पीड़ा से पूर-पूर हो
थक-थक कर औ ' चूर-चूर हो
अमल-धवलगिरि के शिखरों पर
प्रियवर तुम कब तक सोए थे ?
कालिदास, सच-सच बतलाना !
रोया यक्ष कि तुम रोए थे ?

-- नागार्जुन
बाबा नागार्जुन की यह कविता जिसे आप बार-बार पढना कहेंगे...

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