लोकपाल के मसौदे पर बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार वाकई राजनीति कर रहे हैं. अन्ना की टीम के साथ मुलाकात के बाद उन्होंने जो बयान दिया उसी में उनकी राजनीति छुपी हुई हैं. क्या प्रधानमंत्री को लोकपाल के दायरे में लाना चाहिए पर स्पष्ट कुछ नहीं बोलकर एक तरह से उन्होंने मीडिया को गुमराह किया.भ्रस्ताचार के मुद्दे पर नीतीश बिहार में सख्त हिं, यह जगजाहिर है. बतौर उदाहरण बिहार में विधायक फंड की समाप्ति को लिया जा सकता हैं. यह कम यंहा आसान नहीं था. सेवा के अधिकार कानून को पारित करना भी उनकी सराहनीय कार्य रहे हैं. १५ अगस्त २०११ से यह कानून बिहार में लागू हो जायेगा. नीतीश नीतिगत तौर पर बिहार में लोकायुक्त की नियुक्ति पर भी सहमत हैं,फिर लोकपाल को लेकर मनके मन में कैसी दुविधा? अपनी पार्टी और गठबंधन के दलों से बात करेंगे का भी कोई मतलब नहीं है. सभी को मालूम है की नीतीश जो चाहते हैं वही जनता दल यू की राय होतो है. भाजपा भी बिहार में उनके आदेश की गुलाम हैं. उपमुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी उनकी हाँ में हाँ मिलाने के एक तरह से आदि हो चूमे हैं, फिर नीतीश कुमार को किस्से बात करनी हैं? वैसे अन्ना के अनशन का पहले ही समर्थन करके नीतीश ने यह साफ कर दिया था की वे भ्रष्टाचार के खिलाफ चलाये जा रहे हर आन्दोलन के साथ हैं. फिर उनके सामने कौन सी सुविधा हैं? ऐसे में क्या वह राजनीति नहीं कर रहे हैं?
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