मुस्लिम आक्रांताओं का नफरती हिन्दू विरोध
==========================
मुहम्मद गजनी के आने और अहमदशाह अब्दाली की वापसी के बीच जो 762 वर्षों की अवधि रही, उस दौरान ‘जिहाद’ हिन्दुओं की स्थिति पर सुल्तान अलाउद्दीन के एक काजी ने जो कहा है उसकी कुछ पंक्तियां आज के तथाकथित हिन्दू सेक्युलर, डिजायनर बुद्धिजीवियों के लिए -
★★★★★★★★★★★★★★★
उन्हें (हिन्दुओं) खिराज (कर) अदा करने वाला कहा जाता है और जब राजस्व अधिकारी उनसे चांदी मांगे तो उन्हें बिना सवाल उठाए अति विनम्रता और आदर व्यक्त करते हुए सोना देना चाहिए। यदि अधिकारी उनके मुंह में मैला फेंके तो उन्हें निस्संकोच अपना मुंह खोल कर उस ले लेना चाहिए......। मुंह में मैला फेंके जाने और इस विनम्र अदायगी से धर्म की अपेक्षित अधीनता ही व्यक्त होती है। इस्लाम का गरिमागान एक कत्र्तव्य और दीन के प्रति अनादर दंभ है। खुदा उनसे नफरत करता है और उसका आदेश है कि उन्हें दासता में रखा जाए।
हिन्दुओं को अपमानित करना खासतौर पर एक मजहबी फर्ज है, क्योंकि वे पैगंबर के सर्वाधिक कट्टर दुश्मन हैं और क्योंकि पैगंबर ने हमें उनका कत्ल करने, उन्हें लूटने और गुलाम बनाने का आदेश यह कहते हुए दिया है-‘उन्हें इस्लाम में दीक्षित करो अथवा मार डालो और उन्हें गुलाम बनाओ और उनकी धन-संपदा को नष्ट कर दो। किसी अन्य धर्माचार्य ने नहीं, अपितु महान धर्माचार्य (हनीफ) ने, जिसकी राह के हम अनुगामी हैं, हिन्दुओं पर जजिया लगाए जाने की इजाजत दी है। अन्य पंथों के धर्माचार्य भी किसी अन्य विकल्प की नहीं, अपितु ‘मौत या इस्लाम’ की ही अनुमति देते हैं।’
इतिहासकार लेन पूल के अनुसार-‘ हिन्दुओं पर कर उनकी भूमि के उत्पादन में से आधार तक था और उन्हें अपनी सभी भैंसों, बकरियों और अन्य दुधारू पशुओं पर भी कर चुकाना पड़ता था। धनी और निर्धन सभी को प्रति एकड़ और प्रति पशु की दर से समान रूप से कर चुकाना होता था। रिश्वतखोर संग्राहक या अधिकारी उनकी बेंतों, चिमटों से पिटाई करते थे तथा मुश्कें और हथकड़ियां-बेड़ियां डालने जैसी कड़ी सजा दी जाती थी। ऐसी व्यवस्था की गई थी, एक राजस्व अधिकारी बीस विशिष्ट हिन्दुओं को शिकंजे में कसकर उन पर घूसों से प्रहार करें और वसूली कर सकें।
किसी भी हिन्दू घर से सोना अथवा चांदी तो क्या, सुपारी, जिसे किसी खुशी के अवसर पर पेश किया जाता है, तक भी दिखाई नहीं देती थी और इन असहाय बना गए देशज अधिकारियों की पत्नियों को मुसलिम परिवारों में नौकरी करके गुजारा करना पड़ता था।...... ये राजाज्ञाएं इतनी कठोरता से लागू की गई थीं कि चैकीदार, खूट और मुकद्दिम घोड़े की सवारी नहीं कर सकते थे, हथियार नहीं रख सकते थे, न ही अच्छे कपड़े पहन सकते थे और पान भ्ज्ञी नहीं चबा सकते थे....कोई भी हिन्दू अपना सिर नहीं उठा सकता था....वसूली करने के लिए घंूसे माना जाना, माल भत्ता जब्त किया जाना, कैद और बेड़ियां डाले जाने आदि सभी तरीके अपनाए जाते थे।
यह वह दौर था जब हिन्दुओं को इतनी लाचार स्थिति में लाकर खड़ा कर दिया गया था िकवे सवारी के लिए घोड़ा तक भी नहीं रख सकें और ही अच्छे वस्त्र पहन सकें और न ही जीवन का कोई और सुखोपयोग कर सकें।
फिरोजशाह के शासनकाल (1351-1388)में फरमान था-‘ ब्राह्मण या तो मुसलमान बन जाएं अथवा उन्हें जला दिया जाए।’ ‘तबकाते-नसीरी’ के अनुसार मुहम्मद बख्तियार खिलजी ने निद्दिया (बिहार) पर कब्जा कर लिया तो भयंकर लूटपाट की और हजारों सिर मुंडे हुए ब्राहम्णों को मौत के घाट उतर दिया।
इतिहास प्रमाणित है कि गजनी के मुहम्मद ने भारत पर अपने हमलों को ‘जिहाद’ छेड़ने की संज्ञा दी थी। मुहम्मद के इतिहासकार अल उतबी ने उसके हमलों के बारे में लिखा था-‘ उसने मंदिरों में मूर्तियों को तोड़ कर इसलाम की स्थापना की। उसने शहरों पर कब्जा किया। नापाक कमीनों को मार मार डाला, मूर्ति-पूजकों को तबाह किया और मुसलमानों को गौरवान्वित किया। तदुपरांत वह घर लौटा और इसलाम के लिए की गई विजयों का ब्योरा दिया और यह संकल्प व्यक्त किया कि वह हर वर्ष हिंद के खिलाफ जिहाद करेगा।
मुहम्मद गौरी के इतिहासकार हसन निजामी ने उसके बारे में लिखा है- ‘उसने अपनी तलवार से हिंद को कुफ्र की गंदगी से साफ किया और पाप से मुक्त किया तथा उस सारे मुल्क को बहुदेववाद के कंटक से स्वच्छ किया और मूर्तिपूजा की अपवित्रता से पाक किया और अपने शाही शौर्य और साहस का प्रदर्शन करते हुए एक भी मंदिर को खड़ा नहीं रहने दिया।’
तैमूर अपने संस्मरण में भारत पर हमला करने को प्रेरित करने वाले कारणों का उल्लेख करते हुए कहता है- ‘ मेरा हिन्दुस्तान पर हमलों का मकसद काफिरों के खिलाफ अभियान चलाना और मुहम्मद के आदेशानुसार उन्हें सच्चे दीन में धर्मांतरित करना है। उस धरती को मिथ्या आस्था और बहुदेववाद से पवित्र करना है तथा मंदिरों और मूर्तियों का विघ्वंस करना है, हम गाजी और मुजाहिद होंगे और अल्लाह की नजर में सहयोगी और सैनिक सिद्ध होंगे।’
........................................................
डा. बाबासाहेब आंबेडकर लिखित पुस्तक-★ 'Pakistan or Partition of India' का एक अंश जो प्रभात प्रकाशन से प्रकाशित ‘ डा. आंबेडकरः राष्ट्र दर्शन’ में संकलित से साभार
==========================
मुहम्मद गजनी के आने और अहमदशाह अब्दाली की वापसी के बीच जो 762 वर्षों की अवधि रही, उस दौरान ‘जिहाद’ हिन्दुओं की स्थिति पर सुल्तान अलाउद्दीन के एक काजी ने जो कहा है उसकी कुछ पंक्तियां आज के तथाकथित हिन्दू सेक्युलर, डिजायनर बुद्धिजीवियों के लिए -
★★★★★★★★★★★★★★★
उन्हें (हिन्दुओं) खिराज (कर) अदा करने वाला कहा जाता है और जब राजस्व अधिकारी उनसे चांदी मांगे तो उन्हें बिना सवाल उठाए अति विनम्रता और आदर व्यक्त करते हुए सोना देना चाहिए। यदि अधिकारी उनके मुंह में मैला फेंके तो उन्हें निस्संकोच अपना मुंह खोल कर उस ले लेना चाहिए......। मुंह में मैला फेंके जाने और इस विनम्र अदायगी से धर्म की अपेक्षित अधीनता ही व्यक्त होती है। इस्लाम का गरिमागान एक कत्र्तव्य और दीन के प्रति अनादर दंभ है। खुदा उनसे नफरत करता है और उसका आदेश है कि उन्हें दासता में रखा जाए।
हिन्दुओं को अपमानित करना खासतौर पर एक मजहबी फर्ज है, क्योंकि वे पैगंबर के सर्वाधिक कट्टर दुश्मन हैं और क्योंकि पैगंबर ने हमें उनका कत्ल करने, उन्हें लूटने और गुलाम बनाने का आदेश यह कहते हुए दिया है-‘उन्हें इस्लाम में दीक्षित करो अथवा मार डालो और उन्हें गुलाम बनाओ और उनकी धन-संपदा को नष्ट कर दो। किसी अन्य धर्माचार्य ने नहीं, अपितु महान धर्माचार्य (हनीफ) ने, जिसकी राह के हम अनुगामी हैं, हिन्दुओं पर जजिया लगाए जाने की इजाजत दी है। अन्य पंथों के धर्माचार्य भी किसी अन्य विकल्प की नहीं, अपितु ‘मौत या इस्लाम’ की ही अनुमति देते हैं।’
इतिहासकार लेन पूल के अनुसार-‘ हिन्दुओं पर कर उनकी भूमि के उत्पादन में से आधार तक था और उन्हें अपनी सभी भैंसों, बकरियों और अन्य दुधारू पशुओं पर भी कर चुकाना पड़ता था। धनी और निर्धन सभी को प्रति एकड़ और प्रति पशु की दर से समान रूप से कर चुकाना होता था। रिश्वतखोर संग्राहक या अधिकारी उनकी बेंतों, चिमटों से पिटाई करते थे तथा मुश्कें और हथकड़ियां-बेड़ियां डालने जैसी कड़ी सजा दी जाती थी। ऐसी व्यवस्था की गई थी, एक राजस्व अधिकारी बीस विशिष्ट हिन्दुओं को शिकंजे में कसकर उन पर घूसों से प्रहार करें और वसूली कर सकें।
किसी भी हिन्दू घर से सोना अथवा चांदी तो क्या, सुपारी, जिसे किसी खुशी के अवसर पर पेश किया जाता है, तक भी दिखाई नहीं देती थी और इन असहाय बना गए देशज अधिकारियों की पत्नियों को मुसलिम परिवारों में नौकरी करके गुजारा करना पड़ता था।...... ये राजाज्ञाएं इतनी कठोरता से लागू की गई थीं कि चैकीदार, खूट और मुकद्दिम घोड़े की सवारी नहीं कर सकते थे, हथियार नहीं रख सकते थे, न ही अच्छे कपड़े पहन सकते थे और पान भ्ज्ञी नहीं चबा सकते थे....कोई भी हिन्दू अपना सिर नहीं उठा सकता था....वसूली करने के लिए घंूसे माना जाना, माल भत्ता जब्त किया जाना, कैद और बेड़ियां डाले जाने आदि सभी तरीके अपनाए जाते थे।
यह वह दौर था जब हिन्दुओं को इतनी लाचार स्थिति में लाकर खड़ा कर दिया गया था िकवे सवारी के लिए घोड़ा तक भी नहीं रख सकें और ही अच्छे वस्त्र पहन सकें और न ही जीवन का कोई और सुखोपयोग कर सकें।
फिरोजशाह के शासनकाल (1351-1388)में फरमान था-‘ ब्राह्मण या तो मुसलमान बन जाएं अथवा उन्हें जला दिया जाए।’ ‘तबकाते-नसीरी’ के अनुसार मुहम्मद बख्तियार खिलजी ने निद्दिया (बिहार) पर कब्जा कर लिया तो भयंकर लूटपाट की और हजारों सिर मुंडे हुए ब्राहम्णों को मौत के घाट उतर दिया।
इतिहास प्रमाणित है कि गजनी के मुहम्मद ने भारत पर अपने हमलों को ‘जिहाद’ छेड़ने की संज्ञा दी थी। मुहम्मद के इतिहासकार अल उतबी ने उसके हमलों के बारे में लिखा था-‘ उसने मंदिरों में मूर्तियों को तोड़ कर इसलाम की स्थापना की। उसने शहरों पर कब्जा किया। नापाक कमीनों को मार मार डाला, मूर्ति-पूजकों को तबाह किया और मुसलमानों को गौरवान्वित किया। तदुपरांत वह घर लौटा और इसलाम के लिए की गई विजयों का ब्योरा दिया और यह संकल्प व्यक्त किया कि वह हर वर्ष हिंद के खिलाफ जिहाद करेगा।
मुहम्मद गौरी के इतिहासकार हसन निजामी ने उसके बारे में लिखा है- ‘उसने अपनी तलवार से हिंद को कुफ्र की गंदगी से साफ किया और पाप से मुक्त किया तथा उस सारे मुल्क को बहुदेववाद के कंटक से स्वच्छ किया और मूर्तिपूजा की अपवित्रता से पाक किया और अपने शाही शौर्य और साहस का प्रदर्शन करते हुए एक भी मंदिर को खड़ा नहीं रहने दिया।’
तैमूर अपने संस्मरण में भारत पर हमला करने को प्रेरित करने वाले कारणों का उल्लेख करते हुए कहता है- ‘ मेरा हिन्दुस्तान पर हमलों का मकसद काफिरों के खिलाफ अभियान चलाना और मुहम्मद के आदेशानुसार उन्हें सच्चे दीन में धर्मांतरित करना है। उस धरती को मिथ्या आस्था और बहुदेववाद से पवित्र करना है तथा मंदिरों और मूर्तियों का विघ्वंस करना है, हम गाजी और मुजाहिद होंगे और अल्लाह की नजर में सहयोगी और सैनिक सिद्ध होंगे।’
........................................................
डा. बाबासाहेब आंबेडकर लिखित पुस्तक-★ 'Pakistan or Partition of India' का एक अंश जो प्रभात प्रकाशन से प्रकाशित ‘ डा. आंबेडकरः राष्ट्र दर्शन’ में संकलित से साभार