Saturday, May 3, 2014

दुनिया के प्रेस स्वाधीन हो....(विश्व प्रेस स्वाधीनता दिवस पर)

विश्व की आधी से अधिक जनसंख्या लोकतांत्रिक व्यवस्था में रहती है, किन्तु स्वाधीन प्रेस वाले देशों में रहने वाले लोगों की संख्या एक-चौथाई से भी कम है। न्यूयार्क स्थित फ्रीडम प्रेस नामक संस्था ने 187 देशों में किए गए सर्वेक्षण की रिपोर्ट जारी किया है, रिपोर्ट के अनुसार 117 देश लोकतांत्रिक व्यवस्था वाले हैं। सर्वेक्षण से ज्ञात होता है कि इनमें से 58 देशों में प्रेस की स्वाधीनता नाम की कोई चीज नहीं है और राजकीय समाचार माध्यमों पर कठोर नियंत्रण रहता है। इनमें पत्रकारों पर शारीरिक हमले भी शामिल हैं। रोमानिया और मिस्श्र जैसे देशों में वहां की न्याय व्यवस्था प्रेस की स्वतंत्रता पर अंकुश लगाने का कार्य करती है। पत्रकारों पर प्रशासनिक दबाव,जब्ती,उनके अपहरण और कैद करने की संस्कृति कई देशों में उभर रही है। भारत जैसे देश में भी प्रेस की स्वाधीनता को लेकर अनेक सवाल और आशकाएं हैं।
विश्व भर में पत्रकारों के लिए सबसे खतरनाक देश अल्जीरिया है। वहां मुस्लिम उग्रवादियों ने पिछले वर्षों में कम से कम 26 सम्पादकों और पत्रकारों की हत्या कर दी है। प्रेस स्वाधीनता में सबसे पीछे रहने वाले 21 देशों में चीन, क्यूबा, मिस्श्र, ईरान, इराक, अफगानिस्तान, उत्तर कोरिया, लीबिया, म्यांमार, संयुक्त अरब अमीरात, ज्येरेरे ;जायरेद्ध, सूडान, सोमालिया, ताजिखस्तान, तुर्कमेनिस्तान, नाइजीरिया, सर्बिया, मोण्टेनेग्रो, इक्वेटोरियल गायना, बुरफण्डी और अल्जीरिया आदि प्रमुख हैं।
औपचारिक रूप से लोकतांत्रिक देश मध्य-अफ्रीकी गणराज्य, अल्बानिया, जार्जिया, मोलडोवा और तुर्की में तो प्रेस की स्वतंत्राता है ही नहीं, जबकि भारत,फ्रांस और फिलीपिन्स सहित 65 देशों में आंशिक स्वतंत्रता है। 64 अन्य देशों में प्रेस को सभी प्रकार के राजनीतिक हस्तक्षेप से स्वाधीनता मिली हुई है। वियेना के अन्तराष्ट्रीय प्रेस संस्थान के निदेशक जोहैन फ्रिट्ज के अनुसार यूरोप की कम्युनिस्ट सरकारों के पतन के वर्षों बाद भी अधिकांशतः मध्य और पूर्वी यूरोपीय देशों में औपचारिक रूप से प्रेस को आजादी दे दी गयी है, किन्तु व्यावहारिक रूप में प्रेस पर सरकार का नियंत्रण बना हुआ है।
सामान्यतः इन देशों में प्रेस की स्वतंत्रता को सामान्य से उत्तम श्रेणी का विधिक समर्थन मिला हुआ है, मगर मीडिया से जुड़े लोगों का जीवन इस तरह से कर दिया जाता है कि उनका जीना मुश्किल हो जाता हैं। प्रशासन तंत्र समाचार पत्रों पर आर्थिक दबाव डालने का प्रयास करते हैं। अब या तो ये समाचार पत्र निजी हाथों में हैं या इन पर राजनीतिक पार्टियों का कब्जा है। इस स्थिति में शासन की आलोचना करने वाली रिपोर्ट छापने वाले समाचार पत्रों को परेशान किया जाता है, उन पर दण्डात्मक कर लगाये जाते हैं और विज्ञापन न देने की धमकी दी जाती है। कमाबेश भारत जैसे लोकतांत्रिक देश में भी कारपोरेट-माफिया और पालिटिशयन गठजोड़ ने प्रेस की स्वाधीनता पर गंभीर सवाल खड़ा किया है। ..... दुनिया के प्रेस स्वाधीन हो, इसी कामना के साथ......