Wednesday, April 24, 2013

जनाब सोच बदलिए!



एक ओर देशभर में महिलाओं पर होने वाले अत्याचारों के खिलाफ जनता की आवाज बुलंद हो रही है, दूसरी ओर ऊंचे ओहदे पर बैठे नेताओं-मंत्रियों द्वारा महिलाओं को लेकर अजब-गजब विवादास्पद बयानों का सिलसिला थम नहीं रहा है। ताजा मामला मध्य प्रदेश का है, जहां कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और पूर्व मंत्री सत्यदेव कटारे महिलाओं को लेकर की गई टिप्पणी पर विवादों में घिर गए हैं। सत्यदेव कटारे ने हाल ही में भिंड में कांग्रेस द्वारा प्रदेश में कानून-व्यवस्था, भ्रष्टाचार और अन्य मुद्दों को लेकर आयोजित एक रैली को संबोधित करते हुए कहा, 'जब तक महिला तिरछी नजर से नहीं देखेगी, तब तक पुरुष उसे नहीं छेड़ेगा'। बीजेपी प्रवक्ता व विधायक विश्वास सारंग ने कटारे के महिलाओं को लेकर की गई टिप्पणी को आपत्तिजनक बताते हुए कहा कि उन्हें (कटारे) यह नहीं भूलना चाहिए कि कांग्रेस पार्टी की अध्यक्ष भी एक महिला हैं। उन्होंने कहा कि इस प्रकार की टिप्पणी कांग्रेस नेताओं की महिलाओं को लेकर उनकी मानसिकता को दिखाती है। गौरतलब है कि मध्य प्रदेश के आदिम जाति कल्याण मंत्री विजय शाह द्वारा महिलाओं को लेकर की गई अशोभनीय टिप्पणी पर उनका मंत्री पद पहले ही जा चुका है। विजय शाह ने झाबुआ के कार्यक्रम में सैकड़ों छात्राओं और टीचरों के सामने 'डबल मीनिंग' भाषण दिया था। विजय शाह ने 13 अप्रैल को झाबुआ में एक ग्रीष्मकालीन शिविर के दौरान कहा था, पहला-पहला जो मामला होता है, वह आदमी भूलता नहीं। भूलता है क्या? बच्चे समझ गए होंगे। बाद में हंगामा मचने के बाद उन्हें अपने पद से इस्तीफा देना पड़ा था। दरअसल इस कड़ी में अनेक गण्यमान के नाम शामिल हैं। केन्द्रीय मंत्री श्रीप्रकाश जायसवाल, सलमान खुर्शीद आदि के बयानों को लेकर भी महिलाओं और नारीवादी संगठनों ने काफी हो-हल्ला मचाया था। दरअसल हमारे नेताओं को अपनी सोच और मानसिकता बदलने की जरूरत है। किसी को लड़कियों के लिबास में खोट दिखता है तो किसी को लड़कियों की कम उम्र में शादी कर देने में उनकी भलाई दिखती है। इन राजनेताओं के लिए बस इतना ही कहा जा सकता है कि जनाब! खोट महिलाओं में नहीं आपके दिमाग में हैं, इसलिए सोच बदलिए।

Saturday, April 20, 2013

आखिर यह दरिंदगी कब तक?


देश की राजधानी दिल्ली दरिंदगी से एक बार फिर दहल गई है। पिछले साल दिल्ली में चलती बस में हुए गैंगरेप के बाद लोगों का गुस्सा जब सड़क पर फूटा तो लगा कि क्रांति आ जाएगी। समाज बदल जाएगा। कानून का राज साकार हो जाएगा। लेकिन अब तो इंतहा हो गई है। पांच साल की एक मासूम के साथ जिस तरह की हैवानियत की गई, उससे ऐसा लगता है कि वसंत विहार गैंगरेप की शर्मनाक घटना से किसी ने सबक नहीं लिया। धीरे-धीरे सबकुछ पुराने ढर्रे पर चल पड़ा। ताजा घटना से ऐसा लगता है कि कुछ भी नहीं बदला है। गुनाह करने वालों को किसी तरह के कानून का डर नहीं है। सियासतदानों पर भी ऐसी घटनाओं का कुछ खास असर नहीं पड़ता दिख रहा है। ऐसी घटनाएं सामने आने पर जिम्मेदारी लेने के लिए कोई तैयार नहीं होता बल्कि सत्ता पक्ष से लेकर विपक्ष तक राजनीति करने में जुट जाता है। 16 दिसम्बर 2012 के पहले जैसे हालात थे वैसे अब भी हैं। ऐसा लगता है कि समाज में पुलिस, कानून, राजनीतिक व्यवस्था और मानवता का कोई अस्तित्व ही नहीं बचा है। तो सवाल है कि जब इनका कोई वजूद ही नहीं है तो क्यों न इन्हें अंतिम श्रद्धांजलि दे दी जाए? राजधानी दिल्ली में मासूम बच्ची के साथ हुई दरिंदगी के बाद एक बार फिर बलात्कारियों को फांसी देने की मांग जोर पकड़ने लगी है। बीजेपी नेता सुषमा स्वराज का कहना है कि जब तक ऐसे दरिंदों को फांसी नहीं होगी तब तक समाज में भय नहीं पैदा होगा। वहीं बीजेपी नेता नजमा हेपतुल्ला ने तो यहां तक कह डाला कि ऐसे दरिंदे को गोली मार देनी चाहिए। कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने भी कड़े लहजे में कहा कि अब बातों से काम नहीं चलेगा। दोषियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई करनी होगी। 16 दिसंबर को दिल्ली में लड़की से बलात्कार और मौत के बाद भी दोषियों को फांसी की सजा देने की मांग उठी थी लेकिन सरकार ने रेप की सजा फांसी करने से इनकार कर दिया। अब एक बार फिर दरिंदों के लिए फांसी की मांग उठी है। बड़ी बात यह कि इस बार ये आवाज संसद के गलियारे से ही उठ रही है। मगर क्या इसे अंतिम उपाय के तौर पर मान लेना चाहिए। क्या सोच व समाज में बदलाव के बिना यह उपाय भी कारगर होगा?

Sunday, April 14, 2013

नरेन्द्र पर नीतीश ने दागा ‘टोपी बम




जदयू की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक के दूसरे दिन रविवार को बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने मोदी का नाम लिए बिना ही नरेन्द्र मोदी पर जमकर निशाना साधा। इतना ही नहीं पीएम उम्मीदवारी को लेकर जागे मोदी के अरमानों पर नीतीश ने जमकर प्रहार किया। 'सद्भावना मुहिम' के दौरान एक इमाम द्वारा भेंट की गई टोपी को मोदी द्वारा पहनने से इनकार करने के बाद जो विवाद करीबन दो साल पहले शुरू हुआ था, उसकी गूंज रविवार को नीतीश कुमार के भाषण में भी सुनाई दी।नीतीश कुमार ने उस विवाद के बहाने नरेंद्र मोदी पर निशाना साधते हुए कहा कि देश को ऐसे पीएम की जरूरत है जो सबको साथ लेकर चले। इसके लिए उसे टोपी भी पहनना पड़ेगा और तिलक भी लगाना पड़ेगा। नीतीश ने अटल बिहारी वाजपेयी की प्रशंसा करते हुए उनके राजधर्म वाले बयान को काफी तरजीह दी। उन्होंने कहा, 'देश को चलाने के लिए अटल बिहारी वाजपेयी जैसी सोच चाहिए, अटल जी राजधर्म पालन करने की बात करते थे।'उन्होंने कहा कि देश के लोग भावनाओं में नहीं बहते वह सब जानते हैं। यहां सिर्फ हवा के चलने से ही काम  नहीं चलता है। उन्होंने कहा कि बिहार का भी अपना विकास का मॉडल है। साथ ही उन्होंने मोदी के गुजरात में विकास के मॉडल पर भी अंगुली उठाई। नीतीश ने कहा कि वह उस विकास को नहीं मानते हैं जहां लोग भुखमरी का शिकार और बच्चे कुपोषण से मर रहे हों। उन्होंने बातों ही बातों में कहा कि एक राज्य के विकास का मॉडल दूसरे में लागू हो यह जरूरी नहीं है। अपने भाषण में नीतीश ने कहा कि बिहार में जो विकास हुआ है आज उसकी भी चर्चा होती है। उन्होंने कहा कि आज बिहार की तस्वीर पहले से काफी उलट है। पहले जहां बिहार की चर्चा अपहरण, फिरौती और गैंगवार के लिए होती थी, वहीं अब इसकी चर्चा विकास के लिए होती है। उन्होंने देश की आर्थिक स्थिति नाजुक और राजनीतिक स्थिति को चिंताजनक बताया। इस दौरान जनता दल यूनाइटेड ने एक बार फिर से शरद यादव को अपना राष्ट्रीय अध्यक्ष चुन लिया। इस बैठक में पार्टी ने तीन प्रस्ताव भी पेश किए जिसमें आर्थिक संकल्प प्रस्ताव, राजनीतिक परिस्थिति पर प्रस्ताव, और बिहार को विशेष राज्य के दर्जे का प्रस्ताव शामिल था। नीतीश ने अपने भाषण में जहां देश की आर्थिक स्थिति को नाजुक और राजनीतिक स्थिति को चिंताजनक बतया वहीं बिहार में विकास के लिए अपनी पीठ ठोकी। उन्होंने कहा कि उनकी सरकार के प्रति बिहार में लोगों का विश्वास बढ़ा है। अब वहां निडर होकर लोग चलते हैं, जबकि पहले वहां पर लोग डरे सहमे रहते थे। इस मौके पर उन्होंने बिहार में चल रही साझा सरकार की भी तारीफ की। इससे पहले भाजपा अध्यक्ष राजनाथ सिंह की ओर से बातचीत के जरिए सभी मुद्दों को सुलझाने का आश्वासन और राज्यसभा में नेता प्रतिपक्ष अरुण जेटली से नीतीश की मुलाकात के बाद यह तय हो गया था कि पीएम उम्मीदवार घोषित करने के लिए पार्टी भाजपा को कोई समय सीमा नहीं देगी। हालांकि पार्टी के नेता अली अनवर ने साफ किया है कि मोदी के नाम पर जनता दल यूनाइटेड का रुख बदलने वाला नहीं है। उन्होंने कहा कि पीएम पद के लिए पार्टी को मोदी का नाम मंजूर नहीं।

Saturday, April 6, 2013

माँ का क़र्ज़



एक बेटा पढ़-लिख कर बहुत बड़ा आदमी बन गया । पिता के
स्वर्गवास के बाद माँ ने हर तरह का काम करके उसे इस काबिल
बना दिया था । शादी के बाद पत्नी को माँ से शिकायत रहने
लगी के वो उन के स्टेटस मे फिट नहीं है । लोगों को बताने मे उन्हें
संकोच होता की ये अनपढ़ उनकी सास-माँ है ।
बात बढ़ने पर बेटे ने
एक दिन माँ से कहा-
" माँ मै चाहता हूँ कि मै अब इस काबिल हो गया हूँ कि कोई
भी क़र्ज़ अदा कर सकता हूँ । मै और तुम
दोनों सुखी रहें इसलिए आज तुम मुझ पर किये गए अब तक के सारे
खर्च सूद और व्याज के साथ मिला कर बता दो । मै वो अदा कर
दूंगा । फिर हम अलग-अलग सुखी रहेंगे ।
माँ ने सोच कर उत्तर दिया -
"बेटा हिसाब ज़रा लम्बा है,सोच कर बताना पडेगा। मुझे
थोडा वक्त चाहिए ।"
बेटे ना कहा - " माँ  कोई ज़ल्दी नहीं है । दो-चार दिनों मे बता
देना ।"
रात हुई, सब सो गए । माँ ने एक लोटे मे पानी लिया और बेटे के
कमरे मे आई । बेटा जहाँ सो रहा था उसके एक ओर पानी डाल
दिया । बेटे ने करवट ले ली ।माँ ने दूसरी ओर भी पानी डाल
दिया। बेटे ने जिस ओर भी करवट ली माँ उसी ओर
पानी डालती रही.... तब परेशान होकर बेटा उठ कर खीज कर
बोला कि माँ ये क्या है ? मेरे पूरे बिस्तर को पानी-पानी क्यूँ कर
डाला..?
माँ बोली-
" बेटा, तुने मुझसे पूरी ज़िन्दगी का हिसाब बनानें को कहा था । मै
अभी ये हिसाब लगा रही थी कि मैंने कितनी रातें तेरे बचपन मे तेरे
बिस्तर गीला कर देने से जागते हुए काटीं हैं । ये तो पहली रात है
ओर तू अभी से घबरा गया ..? मैंने अभी हिसाब तो शुरू
भी नहीं किया है जिसे तू अदा कर पाए।"
माँ कि इस बात ने बेटे के ह्रदय को झगझोड़ के रख दिया। फिर
वो रात उसने सोचने मे ही गुज़ार दी । उसे ये अहसास
हो गया था कि माँ का क़र्ज़ आजीवन नहीं उतारा जा सकता।
माँ अगर शीतल छाया है पिता बरगद है जिसके नीचे बेटा उन्मुक्त
भाव से जीवन बिताता है । माता अगर अपनी संतान के लिए हर
दुःख उठाने को तैयार रहती है तो पिता सारे जीवन उन्हें
पीता ही रहता है ।
माँ बाप का क़र्ज़ कभी अदा नहीं किया जा सकता । हम तो बस
उनके किये गए कार्यों को आगे बढ़ाकर अपने हित मे काम कर रहे हैं।
आखिर हमें भी तो अपने बच्चों से वही चाहिए ना.

एक अनार सौ बीमार


लोकसभा चुनाव आने में करीब एक साल से ज्यादा का वक्त है लेकिन हमारे देश के नेता अभी से ही चुनाव की चर्चा करने में लग गए हैं। प्रधानमंत्री पद की रेस में इतने दावेदार सामने आ चुके हैं कि ये पता ही नहीं चल पा रहा कि 2014 में देश का प्रधानमंत्री कौन होगा। एक अनार और सौ बीमार वाली कहावत पूरी तरह से चरितार्थ हो रही है। एक ओर भाजपा में आडवाणी और मोदी प्रधानमंत्री पद की रेस में हैं तो दूसरी ओर कांग्रेस में वर्तमान प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह, राहुल गांधी सहित अब पी चिदंबरम का भी नाम सामने आया है। गुजरात के विकास के बाद देश के विकास की बात करने वाले गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी तो पहले से ही प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार की होड़ में लगे हैं। अब भाजपा के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी का नाम भी उछला है। पहले भी भाजपा से प्रधानमंत्री पद की दावेदारी कर चुनाव लड़ चुके आडवाणी का नाम शनिवार को एक बार फिर दिल्ली में उछाला गया। भाजपा के स्थापना दिवस में दिल्ली के अध्यक्ष विजय गोयल ने आडवाणी के नाम की चर्चा की। वहीं कांग्रेस देश के वर्तमान प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह पर एक बार फिर दांव खेल सकती है। वैसे सोनिया गांधी के यसमैन के रूप में जाना जाने वाले मनमोहन सिंह की अर्थशास्त्री वाली छवि को घोटालों के दाग ने काफी हद तक धूमिल कर दिया है। जहां एक ओर मनमोहन सिंह को कई कांग्रेसी पसंद करते हैं वहीं दूसरी ओर कांग्रेस के युवराज और उपाध्यक्ष राहुल गांधी का भी कई वरिष्ठ कांग्रेस के नाताओं ने पीएम पद के लिए समर्थन दिया है। मगर सवाल है कि भ्रष्टाचार और महंगाई से तंग आ चुकी जनता क्या राहुल गांधी को प्रधानमंत्री के रूप में अपनाएगी? दूसरी ओर हाल में एक विदेशी अखबार में वित्त मंत्री पी चिदंबरम का जिक्र हुआ जिसके बाद उनका नाम भी प्रधानमंत्री पद की रेस में आ गया है। चिदंबरम ने कई बार कांग्रेस को संकट से उबारा है। जिसकी वजह से वह सोनिया गांधी और कांग्रेस के विश्वासनीय बन चुके हैं। अगर कांग्रेस चिदंबरम पर प्रधानमंत्री का दांव खेलती है तो फिर राहुल गांधी का क्या होगा, यह एक बड़ा सवाल है। वैसे ठकुरसुहाती करने वाले कई कांग्रेसी नेता राहुल गांधी का नाम बार-बार उछाल रहे हैं।अब यह देखने की बात होगी अन्तत: किसके नाम पर मुहर लगती है।