Friday, October 26, 2012

ठाकरे के बयान के मायने


शिवसेना प्रमुख बाल ठाकरे दशहरे के मौके पर मुंबई में पार्टी की सालाना रैली में शामिल नहीं हुए।ये एक ऐसी रैली थी, जो पार्टी के रूप में शिवसेना की प्रगति से जुड़ी हुई है। वर्षों से चली आ रही इन रैलियों में अपने ख़ास अंदाज़ के भाषण से बाल ठाकरे ने धीरे-धीरे अपना समर्थन का आधार पुख्ता किया था। पहली बार ऐसा हुआ जब बाल ठाकरे ने मुंबई में दशहरा रैली को संबोधित नहीं किया । अब बाल ठाकरे बीमार हैं। थक गए हैं। अब उनमें वो पहले जैसी ऊर्जा नहीं। इस साल वे इस रैली में नहीं आए। उन्होंने एक रिकॉर्डेड संदेश के जरिए कांग्रेस पार्टी और गांधी परिवार के खिलाफ अपने बेटे उद्धव और पोते आदित्य के लिए समर्थन जरूर मांगा बाल ठाकरे ने अपने अंदाज़ में कांग्रेस पर निशाना साधना नहीं छोड़ा. कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी पर हमला बोलते हुए ठाकरे ने सोनिया गांधी, राहुल गांधी, प्रियंका-रॉबर्ट वाड्रा और उनके राजनीतिक सचिव अहमद पटेल को 'पांच लोगों का गिरोह' बताया और कहा कि इसे 'तबाह' किया जाना चाहिए। ठाकरे ने कहा,''पंच-कड़ी को नष्ट किया जाना चाहिए और देश से बाहर निकाल फेंकना चाहिए।'' उन्होंने ज्यादा विस्तार में ना जाते हुए कहा कि ये देश 'धोखेबाज़ों का देश' बन गया है। बेटे उद्धव और पोते आदित्य के लिए पार्टी कार्यकर्ताओं से समर्थन मांगते हुए 86 वर्षीय बाल ठाकरे ने कहा, ''लोगों को शिवसेना के प्रति अपनी वफादारी अक्षुण्ण बनाए रखना चाहिए। आपने मेरा ख्याल रखा, अब उद्धव और आदित्य का ख्याल रखिएगा. उन्हें आप पर थोपा नहीं गया है. शिवसेना, गांधी परिवार की तरह नहीं है।''बाल ठाकरे के इस रिकॉर्डेड संदेश को दादर स्थित शिवाजी पार्क में दिखाया गया जहां वो गुजरे सालों में दशहरे के मौके पर अपने समर्थकों को संबोधित करते रहे हैं।बाल ठाकरे ने कहा कि इस बार उन्होंने दशहरे के मौके पर अपने समर्थकों को सीधे संबोधित इसलिये नहीं किया क्योंकि उनकी तबीयत ठीक नहीं है।ठाकरे ने कहा, ''मैं चल भी नहीं सकता हूं. बोलते समय मेरी सांस फूल जाती है. मेरी बिगड़ती तबीयत के बावजूद मेरा दिल आपके साथ हैं, मैंने अपना दिल किसी को नहीं दिया, वो आपके पास ही है।'' ठाकरे ने पार्टी कार्यकर्ताओं से कहा कि वो अपना वोट किसी 'बेचे' नहीं. उन्होंने कहा, ''कुछ बेशर्म लोग हैं जो अपना वोट बेच देते हैं. लोगों को पैसे के लिए अपना वोट नहीं बेचना चाहिए।''ठाकरे ने अपने पुराने दोस्त और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के मुखिया शरद पवार को भी कोसा जिन्होंने कहा था कि मुंबई बहुभाषी शहर है. उन्होंने जोर देकर कहा, ''शिवसेना ने मराठी हितों की तिलांजलि नहीं दी है. ये हमारी बुनियाद है।'' मुंबई स्थित वरिष्ठ पत्रकार अनुराग चतुर्वेदी का कहना है कि शिवसेना प्रमुख बाला साहब ठाकरे के दशहरे के मौके पर सालाना भाषण का उनके समर्थक सालभर बेसब्री से इंतजार करते हैं और उनके ना आने से एक बात पुख्ता हो गई है कि बाल ठाकरे और शिवसेना का साथ अब थोड़े ही दिनों का है।वे कहते हैं, ''लगता है कि बाल ठाकरे ने अपने कैडर को ये संकेत दिया है कि ये उनकी चलाचली की बेला है. मेरी उपस्थिति, मेरा निर्देशन अब पार्टी को नहीं मिलेगा. पार्टी में इससे सन्नाटा छा गया है।'' वे कहते हैं, ''कार्यकर्ताओं को लग रहा है कि नेतृत्व अब ढीला पड़ गया है. उद्धव पर ज्यादा जिम्मेदारी आ गई है लेकिन पार्टी कार्यकर्ता निराश हैं. पार्टी अभी कुछ दिनों तक दिशाहीन रहेगी।'' बेटे उद्धव और पोते आदित्य ठाकरे के लिए पार्टी कार्यकर्ताओं से समर्थन मांगे जाने पर उनका कहना है कि बाल ठाकरे ने इस तरह से विदाई का, शोक का गीत पूरा किया है कि मेरे अब कुछ ही दिन रह गये हैं।

Thursday, October 25, 2012

पौराणिक चरित्रों के जरिए विरोधियों पर हमला



काटजू ने दिलाई धनानंद की याद तो नीतीश को आया कालनेमि का स्मरण

राकेश प्रवीर
पटना। बिहार में आजकल अचानक कई पौराणिक चरित्र जिंदा हो गए हैं। दो दिन पहले भारतीय प्रेस परिषद के अध्यक्ष मार्कण्डेय काटजू ने धनानंद की याद दिलाई तो दूसरे दिन बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को रामायण के एक चरित्र कालनेमि का स्मरण हो आया। उन्होंने कहा है कि कुछ लोग राज्य में उत्साह के माहौल को निराशा में बदलने के लिए कालनेमि की तरह घूमते रहते हैं। नीतीश कुमार का कहना है कि बिहार में माहौल बदल रहा है और विकास हो रहा है, लेकिन कुछ लोग उत्साह के वातावरण को निराशा में बदलने के लिए रामायण के पात्र कालनेमि की तरह घूमते रहते हैं। कहीं से अवतरित हो जाते हैं और कुछ प्रवचन देकर चलते जाते हैं। दरअसल उनका यह कटाक्ष भारतीय प्रेस परिषद के अध्यक्ष मार्कण्डेय काटजू पर था। 
गौरतलब हो कि श्री काटजू ने शुक्रवार को एक कार्यक्रम में राजग सरकार पर लोगों का विश्वास खो देने का कथित रूप से आरोप लगाया था। काटजू ने नीतीश सरकार पर निशाना साधते हुए कहा था कि मुख्यमंत्री अब बिहार के लोगों का विश्वास खो चुके हैं। उनके खिलाफ लगातार प्रदर्शन हो रहे हैं। साथ में काटजू ने जेपी की दुहाई देते हुए पूछा-आप कैसे शिष्य हैं। कहां है जेपी का जातिविहीन समाज। कहां गलत रास्ते पर चले गए। क्यों आपका इतना विरोध हो रहा है। सवालों की झड़ी लगाते हुए काटजू ने कहा- मुख्यमंत्री जी आप आत्मनिरीक्षण कीजिए। आत्म आलोचना कीजिए। नीतीश कुमार को सावधान करते हुए काटजू ने कहा- धनानंद का क्या हश्र हुआ, सभी जानते हैं। आप धनानंद मत हो जाइए। मुसीबत हो जाएगी। मालूम हो कि वह इससे पहले भी नीतीश पर प्रेस की स्वतंत्रता को लेकर हमला कर चुके हैं। 
हालांकि कालनेमि से संबंधित नीतीश के बयान से यह स्पष्ट नहीं हो सका कि उनका इशारा काटजू के कथन पर था या कुछ और था। नीतीश ने कहा कि कुछ लोग राज्य में उत्साह के माहौल को निराशा में बदलने के लिए कालनेमि की तरह घूमते रहते हैं। नीतीश का यह भी कहना था कि बहुत से लोग न जाने क्यों बिहार में लोगों को निराश करने के प्रयास में और माहौल बिगाड़ने में लगे रहते हैं। भले ही वे कहीं से अवतरित होकर प्रवचन देकर चले जाएं, लेकिन बिहारियों का मनोबल टूटने वाला नहीं है। राज्य में बेहतर माहौल बना है और चारों ओर विकास हो रहा है। 
मालूम हो कि कालनेमि लंका का एक राक्षस था, जो रावण का विश्वस्त अनुचर था। युद्ध में लक्ष्मण को शक्ति लगने पर हनुमान औषधि लाने के लिए द्रोणाचल की ओर चले तो रावण ने उनके मार्ग में विघ्न उपस्थित करने के लिए कालनेमि को भेजा। वह ऋषि का वेश धारण कर मार्ग में बैठ गया। हनुमान जलपान के लिए रुके तो कालनेमि ने उन्हें जाल में फांसना चाहा। लेकिन हनुमान उसके कपट को भाँप गए और उन्होंने तत्काल उसक वध कर दिया। कालनेमि विरोचन का पुत्र था। पौराणिक कथा के अनुसार कंस पूर्वजन्म में कालेनेमि असुर था। वहीं, धनानंद मगध का एक अत्याचारी सम्राट था,जो अपनी अय्यासी और क्रुरता के कारण प्रजा में काफी अलोकप्रिय था। चाणक्य ने चन्द्रगुप्त के सहयोग से उसका नाश किया था। 

Monday, October 15, 2012

ब्लॉग लेखन से नीतीश की तौबा

बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार जब ब्लॉगर बने तो वेब दुनिया मे उनका जोरदार स्वागत हुआ। नीतीश कुमार ने अपने ब्लॉग पर करीब दो साल में 13 पोस्ट किए हैं। वर्ष 2012 में उन्होंने कोई पोस्ट नहीं किया है। ऐसे में यह माना जा सकता है कि अब उन्होंने ब्लॉग लेखन से तौबा कर ली है। विश्वास यात्रा के अनुभव को सुखद बताने वाले मुख्यमंत्री ने अधिकार यात्रा के अनुभवों को साझा करना मुन
ासिब नहीं समझा है। साल 2010 में उन्होंने अपने ब्लॉग पर 11 पोस्ट किए। वर्ष 2011 में मात्र दो पोस्ट ही कर पाए। एक तरह से वह उनका आखिरी पोस्ट रहा, जिसमें उन्होंने लिखा ‘ एक वादा निभाया...भ्रष्टाचार के खिलाफ जंग जारी रहेगी।’ यह पोस्ट उन्होंने अपने ब्लॉग पर 10 अक्तूबर, 2011 को डाला था। इसी का अंग्रेजी रूपांतर इसके पहले श्री कुमार ने 13 सितम्बर को अपने ब्लॉग पर पोस्ट किया था। हिन्दी में लिखे पोस्ट पर मात्र 34 लोगों ने कमेंट किए, जबकि अंग्रेजी में लिखे पोस्ट पर 115 कमेंट आए। 2010 में श्री कुमार का सर्वाधिक चर्चित पोस्ट ‘ निर्माण या विध्वंस आपके हाथ में हैं, इसलिए आइए और वोट डालिए’ रहा। हिन्दी में किए गए पोस्ट पर तब 258 कमेंट आए ,जबकि इसी के अंग्रेजी रूपांतर पर मात्र 120 लोगों ने अपनी टिप्पणियां दर्ज कीं।
गौरतलब हो कि 2010 चुनावी वर्ष था। इस साल अपने 11 पोस्ट के जरिए श्री कुमार ने जहां मतदाताओं को सक्रिय करने का प्रयास किया, वहीं अपनी सरकार की कतिपय योजनाओं के बारे में भी चर्चा छेड़ी। इसी साल 4 जुलाई को जारी ‘विश्वास यात्रा का अनुभव सुखद रहा’ शीर्षक अपने पोस्ट में श्री कुमार ने अपनी यात्रा के अनुभवों को साझा किया। तब उन्होंने लिखा था कि ‘पिछले दो महीनों में अनगिनत विश्वास यात्राओं को लेकर अत्यधिक व्यस्त रहा । इतना कि आपसे इस ब्लॉग पर चर्चा भी लगभग नगण्य रही । थकान से पस्त हूं लेकिन जो अभूतपूर्व अनुभव इन यात्राओं में हुआ वो बहुत सुखद है।’ इसके पहले 19 जून को उन्होंने ‘ बिहार के विकास में युवाओं की बढ़ती सहभागिता’ शीर्षक से पोस्ट किया।
बिहार में अपराध पर लगाम लगाने की बाबत उन्होंने 29 अप्रैल को एक पोस्ट डाला कि राज्य में अपराध नियंत्रण एक बड़ी चुनौती थी। 2010 में श्री कुमार जब ब्लॉगर बने तो उनका पहला पोस्ट महत्वाकांक्षी बालिका साइकिल योजना पर था। 10 अप्रैल 2010 को ‘मुख्यमंत्री बालिका साइकिल योजना’ शीर्षक से उन्होंने पहला पोस्ट डाला था। इस पोस्ट पर आए कमेंट्स से मुख्यमंत्री इतने गदगद हुए कि एक सप्ताह बाद ही उन्होंने दूसरा पोस्ट किया-‘ आपके साथ संवाद प्रेरणादायक है...।’ मगर पिछले एक साल में मुख्यमंत्री एक भी पोस्ट डालने का समय नहीं निकाल पाए हैं। विश्वास यात्रा के अनुभव को सुखद बताने वाले मुख्यमंत्री को अपनी अधिकार यात्रा के अनुभवों को भी साझा करना चाहिए था। एक तरह से यह उनकी महत्वाकांक्षी यात्रा है। बिहार के हक और अधिकार की लड़ाई के लिए श्री कुमार पूरे बिहार में यात्रा कर रहे हैं। इस बाबत अपने ब्लॉग पर श्री कुमार ने कुछ भी पोस्ट नहीं किया है। श्री कुमार के ब्लॉग पर 2243 फ्लोवर हैं। ऐसे में क्या समझा जाए कि श्री कुमार ने ब्लॉग लेखन से वाकई तौबा ली है।